राजनीतिक विज्ञान का परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण » Pratiyogita Today

राजनीतिक विज्ञान का परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण

इस आर्टिकल में राजनीतिक विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण और आधुनिक या समकालीन दृष्टिकोण, परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख विचारक, परंपरागत और आधुनिक राजनीति विज्ञान की मुख्य विशेषताएं, परंपरागत और आधुनिक राजनीतिक विज्ञान की अध्ययन पद्धतियां और क्षेत्र पर विस्तार से चर्चा की गई है।

राजनीतिक विज्ञान का परंपरागत दृष्टिकोण

Traditional Approaches of Political Science : द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व अथवा व्यवहारवादी क्रांति के पूर्व के राजनीतिक सिद्धांत एवं दृष्टिकोण को परंपरागत कहा जाता है। परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत के प्रतिपादक प्लेटो को माना जाता है।

शास्त्रीय युग के सभी विद्वान परंपरागत राजनीतिक दार्शनिक कहे जाते हैं। राजनीति विज्ञान का परंपरागत दृष्टिकोण आदर्शवादी, दार्शनिक एवं कल्पनावादी है। राजनीतिक सिद्धांत के परंपरागत दृष्टिकोण की जड़े यूनानी दार्शनिक चिंतन में निहित है। 19वीं शताब्दी में इस अवधारणा के समर्थक राज्य को व्यक्तित्व विकास, व्यक्ति विशेष ईश्वर को जोड़ने वाली कड़ी के रूप में देखते हैं।

राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण में अध्ययन का क्षेत्र राज्य का अध्यन, सरकार का अध्ययन एवं राज्य एवं सरकार के अध्ययन तक सीमित था। यह सिद्धांत कल्पना पर आधारित है जिसके मूल में इतिहास तथा दर्शन समाहित है। इसको आदर्श राजनीतिक सिद्धांत या क्लासिक राजनीतिक सिद्धांत भी कहते हैं।

परंपरागत दृष्टिकोण मुख्यतः संस्थात्मक (राज्य एवं सरकार का अध्ययन), संरचनात्मक, दार्शनिक, ऐतिहासिक, कानूनी, तार्किक, आदर्शात्मक, काल्पनिक एवं अधि-अनुशासनात्मक है। ये वैज्ञानिक पद्धति को नहीं अपनाते हैं। इनका विचार व्यक्तिपरक और चिंतन प्रणाली निगमनात्मक है। परंपरागत विचारों का आधार व्यक्तिगत दृष्टिकोण, चिंतन, कल्पना एवं अध्यात्मवाद है।

परंपरवादियों के विचार व्यक्तिपरक एवं भावात्मक होते हैं।राजनीतिक दर्शन के जनक प्लेटो और राजनीति विज्ञान के जनक अरस्तु के द्वारा राजनीति के आधारों को निश्चित किया गया। प्लेटो की रचना द रिपब्लिक तथा अरस्तु की रचना द पॉलिटिक्स के अध्ययन से ज्ञात होता है कि राजनीति नगर-राज्य (Polis) से संबंधित नीति एवं कार्य है। यूनानी राजनीति का विषय राज्य के तत्कालीन स्वरूप से न होकर आदर्शवादी एवं काल्पनिक स्वरूप से है।

परंपरागत दृष्टिकोण के प्रमुख विचारक

Thinker of the Traditional Approaches : यह राजनीतिक सिद्धांत अपने प्रतिपादकों के व्यक्तित्व एवं दृष्टिकोण से प्रभावित रहा हैं। परंपरागत दृष्टिकोण के प्रमुख विचारक प्लेटो, अरस्तु, बोंदा, हॉब्स, लॉक, रूसो, डनिंग, मेकल्विन, सेबाइन, गार्नर, सिले, लीकॉक, लास्की, पॉलजेनेट और गोरिस आदि है।

परंपरागत राजनीति विज्ञान की मुख्य विशेषताएं

  • परंपरागत दृष्टिकोण मूल्य सापेक्षतावाद पर ज्यादा जोर देता हैं।
  • इस दृष्टिकोण का मूल्यों में आस्था तथा नैतिकता की ओर झुकाव ज्यादा है।
  • यह दृष्टिकोण तर्क एवं निष्कर्षों पर ज्यादा जोर देता हैं।
  • यह दृष्टिकोण वैज्ञानिक पद्धतियों (गणितीय परिणाम तथ्य संग्रह, सर्वेक्षण, अंतर अनुशासनात्मक पद्धति) को भी स्वीकार नहीं करता है।
  • परंपरागत दृष्टिकोण गुणात्मक, आदेशात्मक, नियमितताओं और अनियमितताओं से संबंध है।
  • परंपरागत दृष्टिकोण यूरोपीय देशों पर केंद्रित है। अर्थात इसका अध्ययन क्षेत्र संकुचित है।
  • परंपरागत दृष्टिकोण यथार्थवाद से दूर है।
  • राजनीति के परंपरागत दृष्टिकोण का आधार दर्शन हैं तथा मुख्य प्रश्र क्या होना चाहिए ? से है।
  • राजनीतिक सिद्धांत के परंपरागत दृष्टिकोण का उद्देश्य श्रेष्ठ जीवन की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना तथा व्यक्ति के श्रेष्ठ जीवन के मार्ग को प्रशस्त करना है।

परंपरागत राजनीतिक विज्ञान की अध्ययन पद्धतियां.

(1) ऐतिहासिक अध्ययन पद्धति : इस पद्धति के अनुसार इतिहास राजनीति सिद्धांत की प्रयोगशाला है, राजनीतिक संस्थाओं, आदर्शों, सिद्धांतों और समस्याओं की जड़ें इतिहास के पृष्ठों में खोजी जा सकती है। राजनीति व्यवस्था के अध्ययन को देश के इतिहास संस्कृति के साथ जोड़ना है।

सेबाइन, मैक्स वेबर, आगस्ट काम्टे और मार्गन इसके प्रमुख प्रतिपादक हैं। डेविड ईस्टर्न ने इसे भ्रांतिमूलक पद्धति तथा कार्ल पापर ने इतिहासवाद की संज्ञा दी।

(2) कानूनी पद्धति : इस पद्धति में राज्य के कानूनी आधार पर बल दिया जाता है। यह पद्धति राज्य को एक कानूनी इकाई मानती है जिसका कार्य कानून बनाना और उन्हें क्रियान्वित करना है।

यह पद्धति राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन संवैधानिक कानून के परिप्रेक्ष्य में करती है। राजनीतिक व्यवस्था का अध्ययन करते समय कानूनी ढांचों और नीतियों का अध्ययन करना।

(3) संस्थागत पद्धति : इस पद्धति में राजनीतिक व्यवस्थाओं का अध्ययन करते समय राजनीतिक संस्थाओं के अध्ययन का संदर्भ लिया जाता है।

(4) मानकीय पद्धति : इस पद्धति में राजनीतिक विचारों का अध्ययन एवं चिंतन करते समय शुभ अशुभ उचित अनुचित का अध्ययन किया जाता है।

(5) तुलनात्मक पद्धति : इस पद्धति के अंतर्गत विभिन्न राज्यों की शासन पद्धतियों या राजनीतिक परिस्थितियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। इस प्रणाली का प्रथम प्रयोगकर्ता अरस्तु को माना गया है।

अरस्तु ने इस पद्धति का प्रयोग तत्कालीन यूनान और गैर यूनानी शासकों की प्रणालियों के अध्ययन में किया। मैक्यावेली, मोंटेसक्यू और ब्राइस ने इसे विकसित किया।

(6) दार्शनिक/निगमनात्मक/आदर्शात्मक पद्धति : इस पद्धति में तथ्यों के आधार पर कानून या नियम निर्धारित नहीं किए जाते हैं बल्कि राज्य की पद्धति और उत्पत्ति के संबंध में दार्शनिक एवं काल्पनिक मान्यताएं स्वीकार कर ली जाती है। उसके आधार पर ही आदर्श का निर्माण कर वर्तमान स्थितियों की समीक्षा की जाती है।

इस पद्धति द्वारा आदर्श आधार पर वस्तु का मूल्यांकन किया जाता है। यह पद्धति कारण से कार्य और सामान्य सिद्धांतों से उनके निष्कर्षों पर पहुंचने का एक तरीका है।

इस पद्धति में कल्पना एवं मिथक की प्रधानता रहती है तथा सामान्य से विशिष्ट की ओर पढ़ा जाता है अर्थात सामान्य सिद्धांतों से तथ्यों की ओर बढ़ा जाता है। इसका लक्ष्य राजनीति क्षेत्र में आदर्श की स्थापना करना है। इस पद्धति के प्रयोग कर्ता प्लेटो, थॉमस एक्विनास, बोंदा, हॉब्स, बेंथम आदि थे।

प्रत्यक्षवादी काम्टे और आदर्शवादी हिगल, प्लेटो की रचना रिपब्लिक और थामस मूर की यूटोपिया इसके अनुपम उदाहरण है।

राजनीतिक विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण का अध्ययन क्षेत्र

Field of Study of Traditional Approaches to Political Science : राजनीति विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण में अध्ययन का क्षेत्र प्रमुख रूप से राजनीतिक दर्शन, राजनीतिक संस्थाओं का अध्ययन और एक समिति के रूप में तथ्यों की जांच पड़ताल करने तक ही सीमित है।

  • राज्य, सरकार और राजनीतिक प्राणी के रूप में मनुष्य का अध्ययन करता है।
  • यह राज्य के अतीत, वर्तमान और भविष्य का सैद्धांतिक अध्ययन करता है, व्यावहारिक नहीं।
  • वर्तमान में जो राज्य है वह ऐसा क्यों है, पर जोर नहीं। यह किस ढंग से कार्य कर रहा है पर जोर दिया जाता है।
  • राज्य के संरचनात्मक स्वरुप का अध्ययन करता है कार्यात्मक स्वरूप का नहीं।
  • परंपरागत दृष्टिकोण का अध्ययन क्षेत्र सीमित एवं संकुचित हैं। महान प्रसंगों का अध्ययन आदर्श राज्य की खोज, दार्शनिक अभिविन्यास आदि इस दृष्टिकोण के अध्ययन क्षेत्र है।
  • शास्त्रीय आधार पर मूल्यों का अध्ययन, राज्य व सरकारों की उत्पत्ति का अध्ययन, विकास, संगठन के प्रकार, राजनीतिक दल, राजनीतिक विचारधाराओं, प्रमुख संविधान, सरकारों के तुलनात्मक अध्ययन आदि विषय क्षेत्र है।

राजनीतिक विज्ञान का आधुनिक या समकालीन दृष्टिकोण

Modern or Contemporary Approach of Political Science : राजनीतिक विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण के द्वारा किए गए वर्णन राजनीतिक व्यवस्थाओं, प्रक्रियाओं और संस्थाओं की वास्तविकताओं को समझने व सर्वमान्य सिद्धांतों के प्रतिपादन में सहायक नहीं हुए और नवीन अध्ययन विधियों की खोज की गई।

यह नवीन अध्ययन ही राजनीतिक विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण कहा जाता है। आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख विचारक रॉबर्ट ए डहल ने परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत को परानुभववादी बताया।

आधुनिक दृष्टिकोण की शुरुआत व्यवहारवादी क्रांति से हुई। फ्रांसीसी विचारक आगस्ट काम्टे ने निश्चयवाद की अवधारणा का प्रतिपादन किया और सामाजिक व राजनीतिक सिद्धांत शास्त्रियों को यह सुझाव दिया कि वे राजनीति का अध्ययन निश्चयवादी अर्थात वैज्ञानिक अर्थों में करें।

आधुनिक रूप से राजनीति विज्ञान के अध्ययन की शुरुआत कोलंबिया विश्वविद्यालय के 1856 में फ्रांसिस लिबर की अध्यक्षता में स्थापित एक पृथक विभाग के साथ हुई।

द्वितीय युद्ध के पश्चात राजनीति विज्ञान में अनेक परिवर्तन हुए जिसका प्रमुख श्रेय अमेरिकी राजनीति शास्त्रियों को दिया जाता है। अमेरिका में राजनीति विज्ञान को दिशा देने के प्रेरक तत्व के रूप में शिकागो विश्वविद्यालय तथा मनोविज्ञान रहे है।

शिकागो विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान का नेतृत्व चार्ल्स मेरियम ने किया और उसके नेतृत्व में राजनीति शास्त्रियों के एक समूह ने राजनीति विज्ञान को समाजशास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शन, संख्यिकी, अर्थशास्त्र और मानवशास्त्र जैसे समाज विज्ञान के निकट लाने का हर संभव प्रयास किया। लिकर्ट, कुर्त लेविन और लजार्स फेल्ड के प्रयासों से नवीन राजनीति शास्त्र में मनोविज्ञान की शोध और तकनीकों का ज्यादा से ज्यादा प्रयोग होने लगा।

1908 में अमेरिकन पॉलीटिकल साइंस एसोसिएशन की स्थापना हुई जिसने राजनीतिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं से संबंध तथ्यों के संग्रह, संगठन और वर्गीकरण को बढ़ावा दिया।

अमेरिकी विद्वान चार्ल्स ए बीयर्ड, ए एल लावेल और आर्थर बेंटले ने राजनीति के क्षेत्र को विस्तृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की।

आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की शुरुआत मैकीयावेली और बोंदा से होती है। मैकीयावेली की रचना द प्रिंस मूल्य निरपेक्ष राजनीति की इतिहास में पहली व्याख्या है।

ग्राहम वालास की रचना ‘Human Nature in Politics, 1908’ और आर्थर बेंटले की रचना ‘The Process of Government,1908’ है। इन दोनों ने राजनीतिक व्यवहार के सामाजिक मनोवैज्ञानिक आधार पर बल दिया।

राजनीतिक विज्ञान के आधुनिक दृष्टिकोण के प्रमुख समर्थक

Major Supporters of the Modern Approach to Political Science : राजनीति के आधुनिक दृष्टिकोण के मुख्य समर्थक लासवेल, कैटलिन, कैप्लान, डेविड ईस्टन, आमंड पॉवेल, रॉबर्ट ए डहल आदि हैं।

समकालीन राजनीतिक सिद्धांत की विशेषताएं

  • आधुनिक दृष्टिकोण में राजनीतिक घटनाओं का मूल्य निरपेक्ष अध्ययन किया जाता है तथा इसमें मूल्यों की अपेक्षा तथ्यों पर अधिक बल दिया जाता है।
  • आधुनिक दृष्टिकोण की पद्धतियां अनुभवमूलक, व्यवहारवादी एवं वैज्ञानिक हैं। यह दृष्टिकोण वैज्ञानिक पद्धतियों को स्वीकार करता है।
  • आधुनिक दृष्टिकोण में मानव के राजनीतिक व्यवहार के अध्ययन पर बल दिया जाता है। मानव व्यवहार की ग्वेषणा तथा मानव के सूक्ष्म क्रियाकलापों, समूहों, संस्थाओं की गतिविधियों का अध्ययन किया जाता है।
  • इसमें समाज विज्ञान के विभिन्न अनुशासन को अंतर्संबंधित एवं एक दूसरे से प्रभावित बताया गया है। राजनीति विज्ञान को आनुभविक विज्ञान के रूप में प्रतिष्ठित किया है।
  • शोध एवं सिद्धांतों में परस्पर घनिष्ठता रहती है।
  • सिद्धांत निर्माण कठोर शोध प्रक्रियाओं पर आधारित होते हैं।
  • आधुनिक दृष्टिकोण में राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन उसकी संपूर्णता में किया जाता है। क्योंकि सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक पहलुओं को पृथक नहीं किया जा सकता। मनुष्य के राजनीतिक व्यवहार को प्रभावित करने वाले गैर राजनीतिक तत्वों का भी अध्ययन किया जाना चाहिए।
  • राजनीतिक सिद्धांत के आधुनिक दृष्टिकोण का उदय व्यवहारवाद के विकास के साथ होता है। आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत में संस्थाओं का अध्ययन न करके उनके मध्य अंतः संबंधों का अध्ययन किया जाता है।
  • आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत का लक्ष्य राजनीति की प्रक्रिया को समझना है।
  • आधुनिक दृष्टिकोण के समर्थक राजनीति विज्ञान को पूर्ण विज्ञान बनाना चाहते हैं।
  • यह राजनीति के यथार्थ के अध्ययन पर ज्यादा जोर देता है।
  • आधुनिक दृष्टिकोणवादी स्वयं को नैतिक भावनाओं, मूल्यों, आदर्शों, मिथ्या झुकाव व पक्षपातों आदि से दूर रखकर वैज्ञानिक अध्ययन और अनुसंधान करते हैं।
  • आधुनिक दृष्टिकोण के विचारकों का उद्देश्य ज्ञान प्राप्त करना है। वे प्रविधियों पर अधिक जोर देकर उसकी सार वस्तु की उपेक्षा करते हैं।

राजनीतिक विज्ञान के आधुनिक / समकालीन दृष्टिकोण की अध्ययन पद्धति

राजनीतिक सिद्धांत के आधुनिक दृष्टिकोण की अध्ययन पद्धति अंतर अनुशासनात्मक अध्ययन पद्धति है। 16 वीं शताब्दी में वैज्ञानिक क्रांति के साथ-साथ सामाजिक विषयों का अध्ययन प्रारंभ हुआ, तब से ही अर्थशास्त्र, राजनीति शास्त्र, समाजशास्त्र, मनोविज्ञान इत्यादि विषय सामाजिक विज्ञान के रूप में स्थापित होने लगे।

डेविड ईस्टन, लुसियन पाई, डेविड ईस्टन डेविड एप्टर, कार्ल ड्यस, कौलमैन, आंमंड आदि अनेक विद्वानों ने बीसवीं शताब्दी के मध्य में राजनीति विज्ञान को अंतर विषय उपागम बनाकर उसके अध्ययन को व्यापक बना दिया। व्यवहारवादी पद्धति, समाज वैज्ञानिक पद्धति और मनोवैज्ञानिक पद्धति आदि अन्य अध्ययन पद्धतियां है।

आधुनिक राजनीति शास्त्रीयों के द्वारा प्रतिपादित दृष्टिकोण

👉 राजनीति विज्ञान शक्ति के अध्ययन के रूप में : कैटलिन और लासवेल

इसमें राजनीति विज्ञान को मनुष्य के राजनीतिक क्रियाकलाप से संबंधित माना है। राजनीति विज्ञान के प्रभुत्व एवं नियंत्रण को ही अध्ययन का केंद्र बिंदु माना जाता है।

👉 राजनीति विज्ञान समाज में मूल्यों के आधिकारिक आवंटन के रूप में : डेविड ईस्टन

डेविड ने अपनी पुस्तक पॉलिटिकल सिस्टम 1953 में इसका वर्णन किया है। इसमें राजनीति विज्ञान में अध्ययन में तीन बातों को महत्वपूर्ण माना है – 1.मूल्य 2.आवंटन और 3.अधिकारिता।

👉 राजनीति विज्ञान समस्याओं एवं संघर्षों के अध्ययन के रूप में : डाइक और ओडेगार्ड।

मूल्यों एवं साधनों की सीमितता के कारण उनके वितरण की समस्या से संबंधित।

👉 राजनीति विज्ञान सार्वजनिक सहमति तथा सामान्य अभिमत के अध्ययन के रूप में : मायरन तथा बोनफील्ड।

👉 तुलनात्मक राजनीति के उपागम – परंपरागत और आधुनिक दृष्टिकोण संबंधित डॉ ए के वर्मा का वीडियो 👇

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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. राजनीति विज्ञान का परंपरागत दृष्टिकोण क्या है?

    उत्तर : द्वितीय विश्व युद्ध के पूर्व अथवा व्यवहारवादी क्रांति के पूर्व के राजनीतिक सिद्धांत एवं दृष्टिकोण को परंपरागत कहा जाता है। परंपरागत राजनीतिक सिद्धांत के प्रतिपादक प्लेटो को माना जाता है।

  2. राजनीति विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण क्या है?

    उत्तर : राजनीतिक विज्ञान के परंपरागत दृष्टिकोण के द्वारा किए गए वर्णन राजनीतिक व्यवस्थाओं, प्रक्रियाओं और संस्थाओं की वास्तविकताओं को समझने व सर्वमान्य सिद्धांतों के प्रतिपादन में सहायक नहीं हुए और नवीन अध्ययन विधियों की खोज की गई। यह नवीन अध्ययन ही राजनीतिक विज्ञान का आधुनिक दृष्टिकोण कहा जाता है।

  3. राजनीति विज्ञान को शक्ति का अध्ययन के रूप में बताने वाले आधुनिक राजनीतिशास्त्री कौन है?

    उत्तर : राजनीति विज्ञान को शक्ति के अध्ययन के रूप में कैटलिन और लासवेल ने बताया है।
    इसमें राजनीति विज्ञान को मनुष्य के राजनीतिक क्रियाकलाप से संबंधित माना है। राजनीति विज्ञान के प्रभुत्व एवं नियंत्रण को ही अध्ययन का केंद्र बिंदु माना जाता है।

  4. आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की शुरुआत कहां से मानी जाती है?

    उत्तर : आधुनिक राजनीतिक सिद्धांत की शुरुआत मैकीयावेली और बोंदा से होती है। मैकीयावेली की रचना द प्रिंस मूल्य निरपेक्ष राजनीति की इतिहास में पहली व्याख्या है।

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About Mahender Kumar

My Name is Mahender Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching compititive exams. My education qualification is B. A., B. Ed., M. A. (Political Science & Hindi).

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