हिंदी साहित्य का आदिकाल | नाथ साहित्य » Pratiyogita Today

हिंदी साहित्य का आदिकाल | नाथ साहित्य

आदिकाल हिंदी साहित्य का प्रथम काव्य है। आदिकाल साहित्य कई भागों में बंटा हुआ है, जिसके अंतर्गत इस आर्टिकल में हम नाथ साहित्य के बारे में चर्चा करेंगे।

• आदिकाल साहित्य का नाथ साहित्य

नाथ शब्द का अर्थ है ‘मुक्ति दिलाने वाला’। नाथ, सिद्धों से निकले तथा इन्होंने वाममार्ग और पंचमकारों का खंडन किया। इन्होंने जो काव्य लिखा वह नाथ साहित्य कहलाता है।

सिद्धों में जब वाममार्गी भोग-प्रधान योग साधना की प्रधानता हो गई, तब उसकी प्रतिक्रिया स्वरुप ही नाथ पंक्तियों की हठ योग साधना का उदय हुआ। बौद्धों की वज्रयान-सहजयान शाखा से ही नाथ संप्रदाय का विकास हुआ।

गुरु गोरखनाथ ने सिद्ध परंपरा से हटकर स्वतंत्र नाथपंथ का प्रवर्तन किया। 84 सिद्धों में गोरक्षपा के नाम से गोरखनाथ की भी गणना होती है। गोरखनाथ ने वज्रयान की अश्लीलता तथा वीभत्स विधानों का परित्याग कर हिंदू योग-साधना का प्रचार प्रसार किया। नाथ पंथ ने शैव मत का मार्ग ग्रहण किया। वस्तुतः नाथ पंथ सिद्धों और संतों के बीच की कड़ी है।

सिद्धों के द्वारा प्रशस्त किये पंथ का नाथों ने ज्यों का त्यों अनुकरण नहीं किया अपितु उस में समुचित संशोधन करके अपना एक पृथक मार्ग निर्मित किया, जिसके द्वारा संतो के लिए एक राजमार्ग प्रशस्त हो गया। नाथ संप्रदाय पर कौल संप्रदाय की अष्टांग योग पद्धति का भी प्रभाव पड़ा है, पर नाथों ने कौलों की अभिचार पद्धति का विरोध किया है, सिद्धों का पूर्वी भारत में विशेष प्रभाव था तथा नाथों का प्रभाव पश्चिमी भारत पर था, विशेषतः राजस्थान और पंजाब में।

• 84 सिद्धों की भांति नौ नाथ प्रसिद्ध है –

1. आदिनाथ (शिव)

2. मत्स्येंद्रनाथ (मछन्दरनाथ)

3. गोरखनाथ

4. गाहिणीनाथ,

5. ज्वालेन्द्रनाथ

6. चर्पटनाथ

7. चौरंगीनाथ

8. भर्तृहरिनाथ और

9. गोपीचंद नाथ।

नौ नाथ
नौ नाथ Image Source – Wikipedia

आज भी पंजाब और राजस्थान में कनफटे जोगी भर्तृहरि और पिंगला की कथा गाते हुए गोरखवाणी का प्रचार प्रसार करते हैं और अपने आप को गुरु गोरखनाथ का शिष्य बतलाते हैं।

• प्रमुख नाथपंथी साहित्यकार

डॉ रामकुमार वर्मा ने 12 वीं शताब्दी से 14 वीं शताब्दी तक नाथ पंथ का चरमोत्कर्ष माना है। रामकुमार वर्मा के अनुसार नाथ पंथ से ही भक्तिकालीन संत मत का उदय हुआ है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार सिद्धमत, सिद्धमार्ग, योगमार्ग, योग संप्रदाय और अवधूत मत आदि नाम भी नाथ संप्रदाय के ही है।

गोरखनाथ और उनके गुरु मत्स्येंद्रनाथ दोनों का नाम 84 सिद्धों में भी है। सिद्ध नारी भोग में विश्वास करते थे और नाथपंथी भोग विलास के कट्टर विरोधी थे। नाथों में केवल गोरखनाथ की वाणी ही उपलब्ध है।

• गुरु गोरखनाथ

गोरखनाथ को ही नाथ साहित्य का आरंभकर्ता माना जाता है। गोरख पंथ के प्रथम्ल गुरु आदिकाल स्वयं भगवान शिव थे। इनके पश्चात मत्स्येंद्रनाथ हुए। गोरखनाथ इन्हीं के शिष्य थे। गोरखनाथ ने अपने गुरु के आचरण का विरोध किया था। एक जनश्रुति के आधार पर गुरु गोरखनाथ ने नारी भोग में फंसे अपने गुरु मत्स्येंद्रनाथ का उद्धार भी किया था। इसी क्रम में यह उक्ति जन प्रचलित है – “जाग मछंदर गोरख आया।”

गुरु गोरखनाथ के समय के संबंध में विद्वान एकमत नहीं है। राहुल सांकृत्यायन जी ने गोरखनाथ का समय 845 ईसवी तथा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने नवीं शताब्दी, आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने 13वीं शताब्दी और डॉक्टर पितांबर बड़थ्वाल के अनुसार 11वीं शताब्दी है।

नवीन खोजों के अनुसार ईसा की तेरहवीं शताब्दी में गोरखनाथ ने लगभग 40 ग्रंथों की रचना की थी। डॉ. पितांबर बड़थ्वाल केवल 14 ग्रंथ ही गोरख रचित मानते हैं। इन्होंने ‘गोरखवाणी’ नाम से एक संकलन भी प्रकाशित किया है।

नाथ पंथ में शैव, शक्ति, बौद्ध, जैन आदि के अनेक संप्रदाय आकर मिल गए। गोरखनाथ ने अपनी रचनाओं में गुरु महिमा, इंद्रिय निग्रह, वैराग्य, प्राण साधना, कुंडलिनी जागरण, शून्य समाधि आदि का वर्णन किया है।

गोरखनाथ ने इन विषयों के साथ ही नीति साधना तथा जीवन की गहन अनुभूतियों का भी चित्रण किया है। भक्ति काल के ज्ञानमार्गी संत काव्य में भी इसी साहित्य का विकास हुआ।

गोरखनाथ ने हठयोग का उपदेश दिया है। ह का अर्थ सूर्य और ठ का अर्थ चंद्रमा होता है। इन दोनों के योग का नाम ही हठयोग है। हिंदी साहित्य में षटचक्र वाली योग साधना का मार्ग भी गुरु गोरखनाथ ने ही प्रचलित किया है। हठयोग साधना में साधक शरीर और मन को शुद्ध करके शून्य में समाधि लगाता है और ब्रह्मा का साक्षात्कार करता है।

• नाथ साहित्य की प्रमुख विशेषताएं –

1. नाथ साहित्य में ईश्वरवाद को मान्यता मिली है।

2. नाथ साहित्य में सिद्धों की भोगप्रधान साधना का विरोध और हठयोग साधना का समर्थन किया गया है।

3. नाथ साहित्य में इंद्रिय निग्रह वैराग्य, कुंडलिनी, इंगला-पिंगला, सुषुम्ना की साधना, षटचक्र साधना, अनहटनाद सहस्त्रदल कमल, ब्रह्मरंध्र साधना, शून्य समाधि, गुरु कृपा, नाड़ी साधन आदि का चित्रण मिलता है। हिंदी के संत साहित्य में ये सभी धारणाएं नाथ साहित्य से ही ग्रहण की हैं।

3. नाथों की भाषा अपभ्रंश के प्रभाव से मुक्त है। इनकी रचना आरंभिक हिंदी भाषा के विकास को व्यक्त करती है।

4. नाथ साहित्य में साखी, सबद और रमैनी के साथ सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग भी मिलता है।

5. नाथ साहित्य में जाति-पांति, बाह्याचार, तीर्थाटन, आडंबर, कर्मकांड का विरोध और आंतरिक साधना का चित्रण मिलता है।

5. नाथ साहित्य ने अनाचारी जीवन के प्रति वितृष्णा और सदाचार की स्थापना का प्रयास किया है।

6. नाथ साहित्य अपने आप में वीरस और शुष्क होने पर भी अपने सशक्त और सुदृढ़ स्वर में समस्त उत्तर भारत के वातावरण को शुद्ध और उदार बनाने में सहायक सिद्ध हुआ है।

7. नाथ साहित्य में उल्टबासियों, प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से रहस्यवाद के संकेत भी मिलते हैं।

8. नाथों की मान्यता है कि वैराग्य से राग (प्रेम) दूर होता है।

9. नाथ निवृत्ति मुल्क थे। इन्होंने वासनाओं से मुक्ति की बात कही।

10. इनके काव्य में हठयोग की साधना मिलती है। इनके काव्य में छंद, दोहा और पद का प्रयोग किया है।

• नाथ साहित्य की रचनाओं में प्रवृतियां

1. शैव मत हठयोग की प्रधानता – नाथ पंथ के अनुयायी सैद्धांतिक रूप से शैवमत के अनुयायी थे, किंतु व्यवहार में वे हटयोग से प्रभावित थे।

2. नाथ पंथ की ईश्वर संबंधी भावना – नाथपंथ की ईश्वर संबंधी भावना शून्यवाद में है। इसे उन्होंने वज्रयान से ग्रहण किया है।

3. निवृत्तिमार्गी – नाथों ने निवृत्ति पर विशेष बल दिया है। ये वैराग्य को ही मुक्ति का साधन मानते हैं। वैराग्य गुरु के द्वारा ही प्राप्त हो सकता है। इसलिए इस संप्रदाय में गुरु का स्थान अत्यधिक महत्वपूर्ण है।

4. रहस्यात्मक शैली – नाथ पंथियों ने अपने आध्यात्मिक संकेत रहस्यात्मक शैली में व्यक्त किए हैं। उन्होंने रहस्य भावों को प्रकट करने के लिए उल्टबासियों, प्रतीकों और रूपकों का प्रयोग किया है। इनको सामान्य व्यक्ति के लिए समझना कठिन है।

5. इंद्रिय निग्रह की साधना – गुरु गोरखनाथ तथा अन्य नाथों ने इंद्रिय निग्रह की साधना के लिए नारी से दूर रहने का उपदेश दिया है। नाथों के प्रभाव से ही कबीर ने अपनी वाणी में नारी की निंदा की है।

6. मन साधना – इंद्रिय निग्रह ने आगे प्राण साधना और उससे भी आगे मन साधना ही नाथ पंथियों का लक्ष्य था। उनकी दृष्टि में मन को बाह्य जगत से खींचकर अंतर्जगत की ओर प्रवृत्त करना ही साधना है। इसके लिए नाथों ने कुछ साधना भी सुझाए हैं जैसे – नाड़ी साधन, कुंडलिनी, इंगला-पिंगला और सुषुम्ना को जगाना, षटचक्र, सूरत योग अनहदनाद आदि।

7. बाह्याडंबरों का विरोध – नाथ पंथियों ने शिव और शक्ति को मूल तत्व मानकर बाह्याचारों और आडंबरों का विरोध किया है।

• नाथ साहित्य का परवर्ती साहित्य पर प्रभाव

परवर्ती हिंदी साहित्य पर नाथ साहित्य का पर्याप्त प्रभाव पड़ा है। नाथों की शून्य को कबीर ने अपनाकर उसे सहज सुन्न, सहसदल आदि नामों से पुकारा है। संत मत में गुरु की प्रधानता नाथपंथ से ही अपनाई गई है। संत मत में उलटबासियों, प्रतिकों और रूपकों का प्रयोग नाथपंथ से ही ग्रहण किया गया है।

कबीर का नारी निंदा प्रकरण भी नाथों के प्रभाव की ही देन है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार, “इसने परवर्ती संतो के लिए सदाचरण प्रधान धर्म की पृष्ठभूमि तैयार कर दी। जिन संत साधकों की रचनाओं से हिंदी साहित्य गौरवान्वित है, उन्हें बहुत कुछ बनी बनाई भूमि मिली थी।”

हिंदी के संत साहित्य में इंद्रिय निग्रह, वैराग्य, गुरुकृपा, नाड़ी साधन, कुंडलिनी, इंगला-पिंगला और सुषुम्ना की साधना, षट्चक्र साधना, अनहदनाद, सहसदल कमल, ब्रह्मरंध्र साधन, शून्य समाधि आदि धारणाएं नाथ साहित्य से ही ग्रहण की है।

नाथ साहित्य के प्रभाव से ही हिंदी संत काव्य में साखी, सबद और रमैनी के साथ सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग हुआ है। नाथ योगियों की आंतरिक साधना की पद्धति का हिंदी के संत कवियों ने अपनी अंतः साधना में पूर्णतः अनुसरण किया है। नाथ पंथियों के रहस्यवादी संकेत ही संत साहित्य में रहते-रहते रविंद्र नाथ टैगोर और महादेवी वर्मा के काव्य में फले फूले हैं।

• नाथ साहित्य और सिद्ध साहित्य में अंतर

सिद्ध साहित्य नाथ साहित्य
1. 84 सिद्ध प्रसिद्ध थे 1. 9 नाथ प्रसिद्ध थे
2. वाममार्ग और पंचमकार का प्रयोग 2. वाममार्ग और पंचमकार का खंडन किया
3. सिद्ध बौद्धों की बज्रयान शाखा से संबंधित थे 3. नाथ बौद्धों की वज्रयान-सहजयान शाखा से संबंधित हैं
4. इनका प्रभाव क्षेत्र पूर्वी भारत (बिहार से असम तक) 4. इनका प्रभाव क्षेत्र पश्चिमी भारत (पंजाब व राजस्थान)
5. भोग प्रधान साधना 5. हठयोग की साधना
6. भाषा अपभ्रंश युक्त सांध्या 6. अपभ्रंश प्रभाव से मुक्त और आरंभिक हिंदी भाषा
7. राग (प्रेम) से राग दूर होता है 7. वैराग्य से राग (प्रेम) दूर होता है
8. जीवन का लक्ष्य महासुख/ प्रज्ञापयोत्मिका रति 8. जीवन का लक्ष्य निवृत्तिमूलक (वासनाओं से मुक्ति)
9. नारी भोग/ सुख को प्रधानता दी 9. नारी से दूर रहने का उपदेश

यह भी पढ़ें –

आदिकाल का सिद्ध साहित्य

हिंदी साहित्य का इतिहास – काल विभाजन और नामकरण

• नाथ साहित्य और सिद्ध साहित्य में समानता

1. साखी, शब्द और रमैनी के साथ संध्या सधुक्कड़ी भाषा का प्रयोग।

2. उलटबासियों, प्रतीकों और रूपकों के माध्यम से रहस्यवाद के संकेत।

3. छंद, दोहा एवं पदों का प्रयोग।

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About Mahender Kumar

My Name is Mahender Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching compititive exams. My education qualification is B. A., B. Ed., M. A. (Political Science & Hindi).

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