राम काव्य - हिंदी के भक्ति कालीन काव्य में राम काव्य अति विशिष्ट काव्य है। राम काव्य तेजस्विता भरने का प्रयास है।
राम भक्ति काव्य की विशेषताएं
(1) राम का स्वरूप - इस काव्य में राम विष्णु के अवतार है।शक्ति, शील और सौंदर्य के पुंज है। असुरों को समाप्त करने के लिए तथा धर्म की रक्षा करने के लिए अवतार लेते है।
(2) समन्वय का प्रयास - इस काव्य में समन्वय दिखाई देता है। बाहर से विरोधी दिखने वाली बातों का समन करके उनकी मूलभूत एकता को प्रतिष्ठित करना समन्वय कहलाता है। तुलसी के काव्य में समन्वय की विराट चेष्टा मिलती है।
१. दार्शनिक समन्वय - (क) निर्गुण और सगुण (ख) ज्ञान और भक्ति (ग) निवृत्ति और प्रवृत्ति
२. धार्मिक समन्वय - (क) ऐकेश्वरवाद और बहूदेववाद (ख) शैव व वैष्णव
३. सामाजिक समन्वय - (क) शक्ति शील और सौंदर्य का समन्वय (ख) आत्म पक्ष और लोक पक्ष का समन्वय (ग) सत्यम शिवम सुंदरम का समन्वय
४. साहित्यिक समन्वय - (क) सभी रसों का समन्वय (ख) शिल्प पक्ष और भाव पक्ष का समन्वय (ग) मुक्तक और प्रबंध का समन्वय
(3) लोक कल्याण की भावना
(4) दास्य भाव की भक्ति एवं विशिष्टाद्वैतवाद का प्रभाव
(5) काव्य रूप - प्रबंध और मुक्तक
(6) छंद - दोहा, चौपाई, सौरठा, सवैया
(7) भाषा - अवधि और ब्रज
(8) अलंकार - सभी प्रकार के अलंकार है।
तुलसी के काव्य में समन्वय की विराट चेष्टा है।
तुलसी लोकनायक है। जो लोक का नयन करे अर्थात लोक को आगे लेकर जावे। इस समय भारतीय संस्कृति का पोत, विरोधी विचारधाराओं के सागर में डूब उतरा रहा था ऐसे में तुलसी आकाशदीप बनकर उभरें। उन्होंने राष्ट्र व लोक की शक्ति व सीमाओं को समझकर उसे आगे ले जाने का प्रयास किया। लोकनायक के दो मार्ग हैं - क्रांति का मार्ग और समन्वय का मार्ग। तुलसी ने दोनों का समन्वय अपनाया। तुलसी के आध्यात्मिक गुरु नरहरि तथा लोक गुरु शेषनाथन थे।
तुलसीदास की काव्य रचनाएं
तुलसीदास - पिता का नाम आत्माराम तथा माता का नाम हुलसी था। अवधि और ब्रज दोनों भाषाओं पर अधिकार था। तुलसी के काव्य में प्रबंध और मुक्तक दोनों प्रकार के काव्य का उत्कृष्ट है। तुलसी के काव्य में द्वन्द्वचित्रण मिलता है। गोस्वामी के मित्रों और स्नेहियों में नवाब अब्दुलर्रहीम खान खाना, महाराजा मानसिंह, नाभाजी और मधुसूदन सरस्वती आदि कहे जाते हैं। काशी में इनके सबसे बड़े स्नेही और भक्त भदैनी के एक भूमिहार जमींदार टोडर थे।
रामचरित्रमानस - भाषा अवधि, मुख्य छंद चौपाई हैं तथा बीच-बीच में दोहे, सोरठे, हरिगीतिका तथा अन्य छंद हैं।रामचरितमानस को सर्वसाधारण में 'रामायण' नाम से प्रसिद्ध है। यह एक प्रबंध काव्य है। रामचरितमानस तुलसीदास ने अयोध्या में लिखी थी। रामायण का कुछ अंश विशेषता: 'किष्किंधा कांड' काशी में रचा गया है ।
विनयपत्रिका - मुक्तक काव्य है। भाषा - ब्रज, रचना गेय पदों में हुई है।
कवितावली - प्रबंध काव्य है। भाषा - ब्रज, सवैया और कवित छंद का प्रयोग।
गीतावली - इसकी रचना गोस्वामी जी ने सूरदास जी के अनुकरण पर की है।
अन्य रचनाएं - दोहावली, रामाज्ञा-प्रश्न, पार्वती मंगल, जानकी मंगल, श्रीकृष्ण गीतावली, बरवैरामायण, वैराग्य संदीपनी, रामलला नहछू।
अग्रदास - रामभक्ति साहित्य में रसिक-भक्ति के प्रवर्तक अग्रदास माने जाते हैं। अग्रदास 'अग्रअली 'नाम से कविताएं लिखते थे। ध्यानमंजरी, अष्टयाम, रामभजन मंजरी, उपासना -बावनी और पदावली इनकी मुख्य रचनाएं है।
ईश्वर दास - रचनाएं : भरत मिलाप और अंगद पैज
नाभादास - तुलसीदास के समकालीन और अग्रदास के शिष्य थे।
केशवदास - ये रीतिकालीन कवि है, फिर भी उनकी 'रामचंद्रिका' परवर्तीराम काव्य की एक महत्वपूर्ण रचना है।