सूक्ष्म के प्रति स्थूल का विद्रोह प्रगतिवाद है। मार्क्स के दर्शन को आधार बनाकर लिखा गया काव्य प्रगतिवाद काव्य है।
कार्ल मार्क्स के सिद्धांत है - (1) सृष्टि का उद्भव द्वन्द्व से हुआ है (2) भौतिकवाद युग की सही व्याख्या है (3) द्वंद्वात्मक भौतिकवाद।
प्रगतिवाद के उद्भव के कारण
- छायावाद की प्रतिक्रिया - कल्पना का आधिक्य
- राष्ट्रीय चेतना का न होना
- अत्यधिक सूक्ष्मता
- अनुभूति का अभाव
प्रगतिवाद की विशेषताएं
- शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति और करुणा
- शोषक वर्ग के प्रति आक्रोश
- रक्त क्रांति का आह्वान
- मार्क्स और रूस की प्रशंसा
- काव्य रूप- मुक्तक
- अलंकार कम है, छंद नहीं है, भाषा जनमानस है।
प्रगतिवादी कवि
सुमित्रानंदन पंत, सूर्यकांत त्रिपाठी निराला, रामधारी सिंह दिनकर, नरेन्द्र शर्मा, नागार्जुन, शिवमंगल सिंह सुमन, रामविलास शर्मा
राजनीति में जो स्थान 'समाजवाद 'का है वही स्थान साहित्य में 'प्रगतिवाद' का है।
नागार्जुन
नागार्जुन का मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। 1936 में श्रीलंका गए और वहीं बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। लोक जीवन से गहरा सरोकार रखने वाले नागार्जुन भ्रष्टाचार, राजनीतिक स्वार्थ और समाज की पतनशील स्थितियों के प्रति अपने साहित्य में विशेष सजग रहे। वे व्यंग्य में माहिर है, इसलिए उन्हें 'आधुनिक कबीर' भी कहा जाता है।
नागार्जुन मातृभाषा मैथिली में 'यात्री' नाम से प्रतिष्ठित रहे हैं। नागार्जुन मार्क्सवाद से प्रभावित प्रगतिशील साहित्यकार थे। जनकवि होने के कारण लोकभाषा के शब्दों का खुलकर प्रयोग किया है।
छायावादोत्तर दौर के वे ऐसे अकेले कवि है जिनकी कविता गांव की चौपाल और साहित्यिक दुनिया में समान रूप से लोकप्रिय रही। नागार्जुन ने छंदों में काव्य रचना की ओर मुक्तक छंद में भी। इन्होंने आपातकाल का खुला विरोध किया तथा जयप्रकाश नारायण के साथ आंदोलन में शामिल हुए। आपातकाल में उन्होंने इंदिरा गांधी की तीखी आलोचना करते हुए कविता लिखी है।
नागार्जुन को प्राप्त पुरस्कार - हिंदी अकादमी, दिल्ली का शिखर सम्मान, उत्तर प्रदेश का भारत भारती पुरस्कार एवं बिहार का राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार दिया गया।
नागार्जुन की रचनाएं - युगधारा, सतरंगे पंखों वाली, हजार- हजार बांहों वाली, तुमने कहा था, पुरानी जूतियां का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, मैं मिलिट्री का बुड्ढा घोड़ा, अभिधा।