रीतिकाल का नामकरण (1700-1900 संवत्)
(1) रीतिकाल / उत्तर मध्यकाल - रामचंद्र शुक्ल
(2) श्रृंगार काल - विश्वनाथ प्रसाद मिश्र
(3) अलंकृतकाल - मिश्रबंधु
(4) कलाकाल - रमाशंकर शुक्ल रसाल
रामचंद्र शुक्ल ने रीतिकाल का प्रवर्तक चिंतामणि को मानना है।
रीति शब्द का अर्थ - (1) व्युत्पत्तिपरक अर्थ - पंथ, पथ, तरिका, मार्ग, व्यवस्था, परंपरा, ढंग, शैली आदि। रीतिकाल में यह अर्थ गृहीत नहीं है।
(2) सांप्रदायिक अर्थ - वामन ने रीति संप्रदाय की विवेचना की और कहां - रीतिकाव्य रात्मास्य। विशिष्ट पदरचना रीति, यहां विशिष्ट का अर्थ विशेषोगुण से है। गुण - काव्य की आंतरिक शोभा बढ़ाने वाले गुण। रीतिकाल में यह अर्थ गृहीत नहीं है।
(3) हिंदी साहित्य में रीति शब्द का अर्थ विस्तार हो गया है। यहां रीति का अर्थ है काव्यशास्त्र, अर्थात जो काव्य, काव्य शास्त्रीय लक्षणों पर लिखा गया हो वह रीति काव्य कहलाता है।
रीतिकाल की प्रवृत्तियां
(1) रीतिकाल के कवियों को तीन भागों में बांट सकते हैं -
(१) रीतिबद्ध - जिन कवियों ने काव्य शास्त्रीय ग्रंथो की रचना की ओर स्वयं के बनाएं हुए उदाहरण प्रस्तुत किए रीतिबद्ध कहलाते है। अर्थात् - आचार्य + कवि, रीतिबद्ध कवि की लम्बी परंपरा, काव्यशास्त्र में मिलती है।
रीतिबद्ध कवि एवं रचनाएं
- केशवदास - रसिक प्रिया, कवि प्रिया
- चिंतामणि - कवि कल्पतरु, श्रृंगार मंजरी
- देव - भाषाविलास, भवानीविलास, रस विलास
- मतिराम - ललित ललाम, रसराज, फूल मंजरी, अलंकार पंचाशिका
- पद्माकर - हिम्मत बहादुर विरुदावली, जगतविनोद, गंगा लहरी, पद्माभरण, आलीजाह प्रकाश
- भूषण - शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक
- ग्वाल - रसरंग
- बेनिप्रवीण - नवरस तरंग
- भिखारीदास - काव्य निर्णय
- जसवंत सिंह - भाषा भूषण
(२) रीतिसिद्ध - जिन कवियों ने काव्यशास्त्र के ग्रंथ की रचना तो नहीं की परंतु जिनके काव्य में काव्य लक्षण मिलते हैं। वे रीतिसिद्ध कहलाते है। बिहारी, रसलीन, द्विवदेव आदि रीतिसिद्ध कवि है।
(३) रीतिमुक्त - जिन कवियों ने न तो काव्यशास्त्र के ग्रंथ लिखे और न हीं लक्षणों पर आधारित रचना की। वे रीतिमुक्त कहलाए। रीतिमुक्त कवि कई भागों में बांटे जा सकते है।
(१) रीतिमुक्त श्रृंगार कवि - घनानंद, ठाकुर, बोधा, आलम
(२) रीतिमुक्त वीर कवि - भूषण, लाल सूदन, चंद्रशेखर वाजपेई
(३) रीतिमुक्त संत कवि - बाबा लाली प्राण नाथि, सतनामी, दरयादासी, राधास्वामी, रामस्नेही संप्रदायों के कवि।
(४) रीतिमुक्त रामभक्त कवि - भगवंतराय खींची, पद्माकर, केशव, सेनापति
(५) रीतिमुक्त नीति कवि - गिरधर कविराय, दीनदयाल गिरी
(2) श्रृंगार का चित्रण - संयोग एवं वियोग
(3) इस काव्य में दरबारी संस्कृति और वैभव का चित्रण है।
(4) प्रकृति की उपेक्षा
(5) शिल्पपक्ष एवं कलापक्ष पर बल
(6) इस काल का काव्य अधिकाश मुक्तक है।
(7) रामचंद्रिका (केशव), सुजानचरित्र, रामरसायन आदि प्रबंध काव्य है।
(8) इस काल में राज प्रशस्ति के काव्य भी लिखे गए हैं। जैसे - केशव - जहांगीर जस चंद्रिका, रतन बावनी, वीरसिंह देव चरित्र। भूषण - शिवराज भूषण, छत्रसाल दशक। पद्माकर - हिम्मत बहादुर विरूदावली। सूदन - सुजान चरित्र।
(9) इस काल की भाषा ब्रज है। ब्रजभाषा का यह काल स्वर्णकाल है।
रीतिकाल के कवि और रचनाएँ
केशवदास - रचनाएं - कविप्रिया, रसिकप्रिया, नखशिख, छंद माला, रामचंद्रिका, वीरसिंहदेव चरित्र, रत्नबावनी, विज्ञानगीता (भक्ति का रूपक), जहांगीर जसचंद्रिका।
केशव को हृदयहीन कवि (मार्मिक स्थलों की पहचान नहीं कर पाए) तथा कठिन काव्य का प्रेत कहा जाता है।
मतिराम - ये चिंतामणि, भूषण के भाई थे। रचनाएं - रसराज, ललित ललाम, फूल मंजरी, छंदसार पिंगल, साहित्यसार, लक्ष्मण श्रृंगार, अलंकार पंचाशिका, मतिराम-सतसई।
भूषण - इन्हें चित्रकूट के राजा रुद्र ने भूषण की उपाधि दी। मूल नाम - पतिराम या मनीराम था। रचनाएं - शिवराज भूषण, शिवा बावनी, छत्रसाल दशक, भूषण हजार, अलंकार प्रकाश। ये वीर रस के में श्रेष्ठ कवि थे।
बिहारी - बिहारी ने एकमात्र रचना बिहारी सतसई लिखी है।जिसमें 719 दोहे है। बिहारी ने गागर में सागर भरा है। बिहारी के काव्य में समाहार शक्ति मिलती है। श्रृंगार, भक्ति और नीति की त्रिवेणी मिलती है।
देव - ये रीतिबद्ध कवि है। रचनाएं - भाव विलास, भवानी विलास, कुशल विलास, रस काव्य रसायन, प्रेम पच्चीसी।
घनानंद - ये मोहम्मद शाह रंगीले के मीर मुंशी (प्रधानमुंशी) थे। ये रीतिमुक्त कवि है। रचनाएं - सुजान सागर, विरह लीला, कोक-सार, सुजान हित, कृपानंद, रस केलि वल्ली, दशकलता, प्रेमपत्रिका, घनानंद प्रेम के पीर और वियोग श्रृंगार के कवि है।
पद्माकर - ये रीतिकाल के अंतिम विशिष्ट कवि है। रचनाएं - हिम्मत बहादुर विरुदावली, पद्माभरण, जगत विनोद, गणगौर, रामरसायन, प्रबोध पचासा, गंगालहरी।
सेनापति - ये रीतीसिद्धि कवियों में आते हैं। इनके काव्य में प्रकृति का चित्रण मिलता है। कवित रत्नाकर इसका विशिष्ट काव्य है। इसमें राम कथा है। श्रृंगार और प्रकृति का वर्णन है।