हिन्दी साहित्य के द्विवेदी युग का महावीर प्रसाद द्विवेदी के नाम से नामकरण हुआ है। द्विवेदी जी ने कामता प्रसाद गुरु के हिंदी व्याकरण के आधार पर खड़ी बोली को शुद्ध और परिष्कृत करने का आंदोलन चलाया।
हिंदी के कवियों और लेखकों की एक पीढ़ी का निर्माण करने, हिंदी के कोश निर्माण करने, हिंदी के कोश निर्माण की पहल करने, हिंदी व्याकरण को स्थिर करने और खड़ी बोली का परिष्कार करने और उसे पद्य की भाषा बनाने आदि का श्रेय बहुत हद तक महावीर प्रसाद द्विवेदी को ही है। डॉ. नगेन्द्र ने द्विवेदी युग को जागरण सुधार कहा।
द्विवेदी युग की विशेषताएं
- वर्णन प्रधान काव्य, इतिवृत्तात्मक काव्य
- राष्ट्रीय चेतना
- समाज सुधार की भावना
- प्रकृति चित्रण
- काव्य रूप : प्रबंध काव्य की प्रधानता, मुक्तक काव्य कम
- भाषा - खड़ी बोली - गद्य एंव पद्य दोनों में
- खड़ी बोली के स्वरूप निर्धारण और विकास का श्रेय द्विवेदी युग को है।
द्विवेदी युग के प्रमुख कवि
महावीर प्रसाद द्विवेदी, श्रीधर पाठक, अयोध्या सिंह उपाध्याय 'हरिऔध', जगन्नाथ रत्नाकर, मैथिलीशरण गुप्त, माखनलाल चतुर्वेदी, सियाराम शरण गुप्त, रामधारी सिंह दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, मुकुटधर पांडेय, नाथूराम शर्मा शंकर आदि है।
अयोध्या उपाध्याय 'हरिऔध' (कवि सम्राट)
हरिऔध की रचनाएं - प्रिय प्रवास, पद्य प्रसून, चुभते चौपदे, चौखेचौपदे, वैदही वनवास, हरिऔध सतसई, रस कलश।
👉 प्रिय प्रवास खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है।
👉 हरिऔध खड़ी बोली के प्रथम महाकाव्यकार के रूप में जाने जाते हैं।
👉 इनका गद्य तथा पद्य पर समान अधिकार था।
👉 हरिऔध का साहित्यिक जीवन तीन युगों में फैला हुआ है - भारतेंदु युग, द्विवेदी युग तथा छायावादी युग।
👉 पहले वे ब्रजभाषा में कविता करते थे। द्विवेदी युग में वह खड़ी बोली की और प्रस्थान करते हैं तथा समाज सुधारक तथा राष्ट्र प्रेम उनके काव्य के प्रमुख स्वर बनते है।
👉 'प्रिय प्रवास' और 'वैदेही वनवास' दो महाकाव्य लिखे। प्रिय प्रवास में राधा का चरित्र प्रेमिका की भूमिका से ऊपर लोक सेविका के स्तर तक उठा है।
मैथिलीशरण गुप्त
हम कौन थे क्या हो गए हैं, क्या होगे अभी। - भारत -भारती
मैथिलीशरण गुप्त द्विवेदी युग के सर्वाधिक प्रसिद्ध कवि है। इनकी प्रथम पुस्तक रंग में भंग (1909) है। इनकी ख्याति का मूलाधार 'भारत भारती' (1912) है। जिसके कारण वे 'राष्ट्रकवि' के रूप में विख्यात हुए।
मैथिलीशरण गुप्त जी की काव्य दीक्षा 'सरस्वती' के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी द्वारा प्राप्त हुई। 'भारत-भारती' रचना पर आपको कारावास यात्रा करनी पड़ी। स्वतंत्रता के बाद राज्यसभा में आपने भारत का मार्गदर्शन किया।
खड़ी बोली कविता के संपादक और उन्ननायक के रूप में प्रसिद्ध गुप्तजी 'दद्दा' के नाम से विख्यात है। इनके काव्य का मूल स्वर राष्ट्रीय संस्कृति का समन्वय और उन्नयन है।
गुप्तजी ने उपेक्षित नारी जीवन के प्रति करूणा और सहानुभूति जागृत कर उसे जनमानस में प्रतिष्ठित किया। 'साकेत' व 'यशोधरा' इनके दो नारी प्रधान काव्य है। गुप्त जी की पहली खड़ी बोली की कविता 'हेमंत' शीर्षक से सरस्वती पत्रिका (1907) में छपी थी।
मैथिलीशरण गुप्त की रचनाएं - रंग में भंग, भारत- भारती, पंचवटी, साकेत, यशोधरा, द्वापर, जयभारत, विष्णु प्रिया, प्लासी का युद्ध, सैरन्ध्री, नहूष, अनंध सिद्धराज, पृथ्वीपुत्र, कैकयी, उर्मिला, जयद्रथवध।
रामधारी सिंह दिनकर
दिनकर की कविताओं में वीर योद्धा का सा गंभीर घोष, अग्नि का सा ताप, सूर्य का सा प्रखर तेज मिलता है। वे ओज और तेज के कवि माने जाते हैं। 'संस्कृति के चार अध्याय' नामक उनका ग्रंथ इतिहास तथा संस्कृति के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण ग्रंथ माना जाता है। 1952 में भारतीय संसद के सदस्य निर्वाचित हुए। उर्वशी काव्य हेतु ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला है।
रामधारी सिंह दिनकर की रचनाएं - हुंकार, द्वन्द्वगीत, कुरुक्षेत्र (प्रबंध काव्य), इतिहास के आंसू, रश्मिरथी (प्रबंध काव्य ), धूप और धुआं, उर्वशी (कामाध्यात्म प्रधान नाट्य काव्य ), परशुराम की प्रतीक्षा, रेणुका।
कुरुक्षेत्र काव्य रचना में वे भीष्म के चरित्र के माध्यम से संसार के लिए प्रेम, शांति तथा सहयोग का मार्ग खोजने का प्रयास करते है तथा आधुनिक विज्ञानवाद तथा बुद्धिवाद के खोखलेपन पर व्यंग्य करते है।
परशुराम की प्रतिज्ञा काव्य में वे 1962 में चीन आक्रमण से आहत राष्ट्रीय सम्मान की वेदना को व्यक्त करते हैं तथा भारतीय राजनीति की अकर्मण्यता पर प्रहार करते है। इस काव्य में वे अपनी ओजस्वी वाणी में गांधी के अहिंसा दर्शन पर भी प्रहार करते हैं।
निबंध रचनाएं - अर्द्धनारीश्वर, वट पीपल, उजली आग, संस्कृति के चार अध्याय, देश-विदेश (यात्रा वृतांत)
महावीर प्रसाद द्विवेदी
"साहित्य समाज का दर्पण है" - महावीर प्रसाद द्विवेदी
1903 में हिंदी मासिक पत्रिका 'सरस्वती' का संपादन किया। वे हिंदी के पहले व्यवस्थित संपादक, भाषा वैज्ञानिक, इतिहासकार, पुरातत्ववेत्ता, अर्थशास्त्री, समाजशास्त्री, वैज्ञानिक चिंतन एवं लेखन के संपादक, समालोचक और अनुवादक थे।
हिंदी में पहली बार समालोचना को स्थापित करने का श्रेय भी महावीर प्रसाद द्विवेदी को जाता है। द्विवेदी जी ने साहित्य में भाव प्रकाश के लिए तीन शैलियों को अपनाया- व्यंग्यात्मक, आलोचनात्मक, गवेषणात्मक।
महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनाएं - काव्य मंजूषा, सुमन, रसज्ञरंजन, साहित्य-सीकर, साहित्य-संदर्भ, अद्भुत आलाप (निबंध संग्रह)। संपत्ति शास्त्र उनकी अर्थशास्त्र से संबंधित पुस्तक हैं।