संघीय मंत्रिपरिषद का गठन या संरचना : Union Council of Ministers
मूल संविधान के Article 74 में उपबंधित है कि राष्ट्रपति को उसके कार्यों के संपादन में सहायता एवं परामर्श देने के लिए मंत्रिपरिषद (Council of Ministers) होगी, जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा।
सैद्धांतिक रूप से भारतीय संविधान द्वारा समस्त कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित मानी गई है और राष्ट्रपति को सहायता तथा परामर्श देने के लिए प्रधानमंत्री के नेतृत्व में एक मंत्रिपरिषद की व्यवस्था की गई है, लेकिन भारतीय संविधान द्वारा अपनाई गई संसदात्मक शासन व्यवस्था के व्यवहार में राष्ट्रपति एक संवैधानिक शासक मात्र है और वास्तविक रूप से कार्यपालिका की समस्त सत्ता "सहायता और परामर्श देने वाली इस समिति" मंत्रिपरिषद में निहित है। राष्ट्रपति के नाम पर शासन की समस्त शक्तियों का उपयोग मंत्रिपरिषद के द्वारा ही किया जाता है।
• प्रधानमंत्री की नियुक्ति कौन करता है
भारतीय संविधान के Article 74 के अनुसार प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होगी तथा अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री के परामर्श से की जाएगी। संविधान के अनुसार राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की नियुक्ति करता है लेकिन व्यवहार में इस संबंध में राष्ट्रपति की शक्ति बहुत सीमित है।राष्ट्रपति अनिवार्यतया लोकसभा में बहुमत दल के नेता को ही प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने के लिए आमंत्रित करता है, लेकिन कुछ परिस्थितियों में राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री की नियुक्ति में अपने विवेक से कार्य करने का अवसर मिल सकता है। प्रथम परिस्थिति उस समय उत्पन्न होती है जबकि लोकसभा में किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त न हो।
द्वितीय स्थिति उस समय उत्पन्न हो सकती है जबकि बहुमत वाले दल में कोई निश्चित नेता नहीं रहे या दो समान रूप से प्रभावशाली नेता हो। तृतीय स्थिति उस समय उत्पन्न हो सकती है जबकि राष्ट्रपति लोकसभा भंग कर कुछ समय के लिए किसी को प्रधानमंत्री नियुक्त कर दें।
व्यवहार में भारतीय गणतंत्र के संवैधानिक इतिहास के प्रथम लगभग 50 वर्षों में कम से कम 5 बार (1979 में श्रीमती इंदिरा गांधी की मृत्यु के बाद, 31 अक्टूबर 1984, नवंबर 1990, मई 1996, मार्च 1998 में) राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की नियुक्ति में विवेक का प्रयोग किया।
• प्रधानमंत्री द्वारा मंत्रियों का चयन
अन्य मंत्रियों की नियुक्ति के संबंध में संवैधानिक स्थिति यह है कि राष्ट्रपति प्रधानमंत्री की राय से अन्य मंत्रियों की नियुक्ति करेगा, लेकिन व्यवहार में राष्ट्रपति प्रधानमंत्री के परामर्श को मानने के लिए बाध्य है। यदि मंत्रियों की नियुक्ति में राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री के परामर्श को ना माने तो प्रधानमंत्री स्वयं त्यागपत्र देकर संवैधानिक संकट उपस्थित कर सकता है। लेकिन व्यवहार में मंत्रियों का चयन करते समय प्रधानमंत्री को कई बातों का ध्यान रखना होता है -१. पंडित नेहरू द्वारा अपनी पहली मंत्रिपरिषद में कांग्रेस दल के अलावा अन्य दलों के नेताओं को भी लिया था, लेकिन इस संबंध में अनुभव अच्छा नहीं रहा और उसके बाद में प्रधानमंत्री के द्वारा मंत्रिपरिषद का निर्माण अपने राजनीतिक दल से ही किया जाता है।
२. प्रधानमंत्री अपने दल के विभिन्न सदस्यों की स्थिति को ध्यान में रखता है और समानतया दल के बहुत अधिक महत्वपूर्ण सदस्यों को मंत्रिपरिषद् में स्थान दिया जाता है।
३. मंत्रिपरिषद में राष्ट्र के विभिन्न समुदायों और भौगोलिक क्षेत्रों को प्रतिनिधित्व देने की चेष्टा की जाती है। संसद के दोनों सदनों को उचित प्रतिनिधित्व तथा विभिन्न वर्गों को उचित प्रतिनिधित्व देने का प्रयत्न किया जाता है।
४. मंत्रिपरिषद में ऐसे सदस्यों को लिया जाता है जो प्रधानमंत्री के विश्वास पात्र हो और प्रधानमंत्री के नेतृत्व को प्रसन्नता के साथ स्वीकार करें।
५. यद्यपि कानूनी तौर पर मंत्रिपरिषद के लिए कोई योग्यताएं निश्चित नहीं है, लेकिन व्यवहार में प्रधानमंत्री ऐसे व्यक्तियों को ही इस पद पर नियुक्ति करता है जो मंत्री पद और संसदीय कार्य से संबंधित दायित्वों को भली भांति निभा सके और अपने विभाग का प्रशासन चला सके।
६. प्रधानमंत्री के द्वारा किन्हीं ऐसे योग्य व्यक्तियों को भी मंत्री परिषद में लिया जा सकता है, जो किसी भी राजनीतिक दल से संबंध न हो। ऐसा तभी किया जाएगा जबकि उन्हें बहुमत दल की सामान्य नीति में विश्वास और प्रधानमंत्री में निष्ठा हो।
• मंत्रिपरिषद की सदस्य संख्या
मूल संविधान के द्वारा मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या निश्चित नहीं की गई है और आवश्यकतानुसार मंत्रियों की संख्या घढ़ाई बढ़ाई जा सकती है। परंतु 91 वें संविधान संशोधन 2003 द्वारा यह व्यवस्था की गई है कि मंत्रिपरिषद के सदस्यों की संख्या लोकसभा (राज्यों में विधानसभा) की कुल सदस्य संख्या के 15% से अधिक नहीं होगी। जहां सदन की संख्या 40 है वहां अधिकतम 12 मंत्री होंगे।• मंत्रियों में कार्य विभाजन
मंत्रिपरिषद के गठन के बाद प्रधानमंत्री के द्वारा इससे अधिक कठिन कार्य उनके बीच विभागों के विभाजन का किया जाता है। वैधानिक दृष्टि से इस संबंध में प्रधानमंत्री को पूर्ण शक्ति प्राप्त है, लेकिन व्यवहार में विभागों का वितरण करते हुए प्रधानमंत्री को कई बातों का ध्यान रखना होता है।एक मंत्री के अंतर्गत प्राय: एक ही विभाग, किंतु कभी-कभी एक से अधिक विभाग भी रहते हैं। आवश्यकता पड़ने पर नए विभागों का निर्माण भी कर लिया जाता है। मंत्री को उसके कार्य में सहायता देने के लिए राज्यमंत्री, उपमंत्री, संसदीय सचिव तथा सचिव, अतिरिक्त सचिव, उप सचिव आदि के रूप में स्थाई पदाधिकारी रहते हैं।
• मंत्रियों के लिए आवश्यक योग्यताएं
मंत्री परिषद का सदस्य बनने के लिए कानूनी दृष्टि से यह आवश्यक है कि व्यक्ति संसद के किसी सदन का सदस्य हो।यदि कोई व्यक्ति मंत्री बनते समय संसद सदस्य नहीं है तो उसे 6 महीने के अंदर-अंदर संसद सदस्य बनाना अनिवार्य है। यदि वह ऐसा करने में असफल रहता है तो उसे अपना पद छोड़ना होगा।
S.R. चौहान बनाम पंजाब राज्य (2001) मामले में यदि एक गैर सदस्य मंत्री नियुक्त किए जाने के बाद 6 माह के भीतर निर्वाचित नहीं हो पाता है तो उन्हें पुनः मंत्री नियुक्त नहीं किया जा सकता है। व्यवहारिक दृष्टि से अन्य योग्यताओं पर प्रधानमंत्री द्वारा विचार किया जाता है।
• मंत्रियों द्वारा शपथ ग्रहण
पद ग्रहण करने से पूर्व प्रधानमंत्री सहित प्रत्येक मंत्री को राष्ट्रपति के सामने पद और गोपनीयता की शपथ लेनी होती है-पद की शपथ - मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं/सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं कि मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति श्रद्धापूर्वक तथा शुद्ध अंतःकरण से पालन करूंगा तथा भय या पक्षपात, अनुराग या द्वेष के बिना मैं सब प्रकार के लोगों के प्रति संविधान और विधि के अनुसार न्याय करूंगा।
गोपनीयता की शपथ - मैं ईश्वर की शपथ लेता हूं/ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करता हूं की जो विषय संघीय मंत्री के रूप में मेरे विचार के लिए लाया जाएगा अथवा मुझे ज्ञात होगा, उसे किसी व्यक्ति या व्यक्तियों को उस अवस्था को छोड़कर जबकि मंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों के उचित निर्वहन के लिए ऐसा करना अपेक्षित हो, अन्य अवस्था में प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष रूप से सूचित या प्रकट नहीं करूंगा।
• मंत्रिपरिषद का कार्यकाल
मंत्री परिषद का कार्यकाल निश्चित नहीं होता। मंत्रिपरिषद तभी तक अपने पद पर रहती है जब तक कि उसे संसद का विश्वास प्राप्त हो। मंत्रिपरिषद अधिक से अधिक लोकसभा के कार्यकाल तक, जो कि सामान्यतः 5 वर्ष होता है, अपने पद पर बनी रहती है। व्यक्तिगत रूप से किसी मंत्री का कार्यकाल प्रधानमंत्री के उसके प्रति विश्वास पर निर्भर करता है।• मंत्रियों की श्रेणियां (मंत्रिपरिषद तथा मंत्रिमंडल या कैबिनेट)
मंत्री परिषद में कितने प्रकार के मंत्री होते हैं :मंत्रियों की तीन श्रेणियां होती है : मंत्रिमंडल या केबिनेट के सदस्य, राज्य मंत्री, उप मंत्री। प्रथम श्रेणी के मंत्री कैबिनेट के सदस्य होते हैं जो कि भारत की संसदात्मक व्यवस्था में प्रशासन की सर्वोच्च इकाई है। कैबिनेट के सदस्य एक या अधिक विभागों के प्रधान होते हैं।
दूसरी श्रेणी में राज्य मंत्री आते हैं जिनकी स्थिति पूर्ण मंत्री तथा उपमंत्री के बीच की होती है। यह विशेष विभागों से संबंधित रहते हैं जो कभी-कभी उसके द्वारा विभाग के स्वतंत्र प्रधान के रूप में भी कार्य किया जाता है। प्रधानमंत्री द्वारा इस श्रेणी के मंत्रियों को कैबिनेट की बैठक में आमंत्रित किया जाता है, जिनमें उनके विभाग से संबंधित प्रश्न विचाराधीन होते हैं।
राज्यमंत्री के बाद उपमंत्री की श्रेणी आती है जो किसी ज्येष्ठ मंत्री के अधीन रहते हुए उस मंत्री की सहायता करते हैं।
उपयुक्त तीन श्रेणियों के मंत्रियों को सामूहिक रुप से मंत्रिपरिषद के नाम से संबोधित किया जाता है। इस प्रकार मंत्रिपरिषद एक वृहद संस्था है जिसमें सभी श्रेणियों के मंत्री सम्मिलित रहते हैं, लेकिन कैबिनेट मंत्रिपरिषद के अंतर्गत एक छोटा सा समूह होता है जिसमें केवल प्रथम श्रेणी के मंत्री होते हैं जो विभिन्न विभागों के प्रधान होते हैं और जिनके द्वारा सामूहिक रुप से संपूर्ण प्रशासनिक नीति का निर्धारण किया जाता है।
इस प्रकार कैबिनेट का प्रत्येक सदस्य मंत्रिपरिषद का सदस्य होता है। कैबिनेट एक ऐसी संगठित इकाई है जिसके सदस्य मंत्रीपरिषद के केवल कुछ ही सदस्य होते हैं। कैबिनेट मंत्रिपरिषद की आंतरिक समिति के रूप में है, यह मंत्रिपरिषद का भीतरी चक्र है।
दूसरी श्रेणी में राज्य मंत्री आते हैं जिनकी स्थिति पूर्ण मंत्री तथा उपमंत्री के बीच की होती है। यह विशेष विभागों से संबंधित रहते हैं जो कभी-कभी उसके द्वारा विभाग के स्वतंत्र प्रधान के रूप में भी कार्य किया जाता है। प्रधानमंत्री द्वारा इस श्रेणी के मंत्रियों को कैबिनेट की बैठक में आमंत्रित किया जाता है, जिनमें उनके विभाग से संबंधित प्रश्न विचाराधीन होते हैं।
राज्यमंत्री के बाद उपमंत्री की श्रेणी आती है जो किसी ज्येष्ठ मंत्री के अधीन रहते हुए उस मंत्री की सहायता करते हैं।
उपयुक्त तीन श्रेणियों के मंत्रियों को सामूहिक रुप से मंत्रिपरिषद के नाम से संबोधित किया जाता है। इस प्रकार मंत्रिपरिषद एक वृहद संस्था है जिसमें सभी श्रेणियों के मंत्री सम्मिलित रहते हैं, लेकिन कैबिनेट मंत्रिपरिषद के अंतर्गत एक छोटा सा समूह होता है जिसमें केवल प्रथम श्रेणी के मंत्री होते हैं जो विभिन्न विभागों के प्रधान होते हैं और जिनके द्वारा सामूहिक रुप से संपूर्ण प्रशासनिक नीति का निर्धारण किया जाता है।
इस प्रकार कैबिनेट का प्रत्येक सदस्य मंत्रिपरिषद का सदस्य होता है। कैबिनेट एक ऐसी संगठित इकाई है जिसके सदस्य मंत्रीपरिषद के केवल कुछ ही सदस्य होते हैं। कैबिनेट मंत्रिपरिषद की आंतरिक समिति के रूप में है, यह मंत्रिपरिषद का भीतरी चक्र है।
मंत्रिपरिषद के कार्य करने के सिद्धांत
मंत्रिपरिषद की सर्वाधिक महत्वपूर्ण इकाई मंत्रिमंडल है और सभी महत्वपूर्ण मामलों पर विचार और निर्णय का कार्य मंत्रीमंडल या कैबिनेट के द्वारा ही किया जाता है। मंत्रिमंडल की बैठक सामान्यतः सप्ताह में एक बार होती है। इसके अतिरिक्त प्रधानमंत्री जब चाहे तब इसकी बैठक बुला सकता है।इन बैठकों की अध्यक्षता प्रधानमंत्री द्वारा की जाती है और उनकी अनुपस्थिति में मंत्रिमंडल का सबसे वरिष्ठ सदस्य अध्यक्षता करता है। बैठक की कोई गणपूर्ति (कोरम) नहीं होती है। मंत्रिमंडल अपना कार्य सुचारू रूप से कर सके इसके लिए मंत्रिमंडल सचिवालय (cabinet Secretariat) की व्यवस्था की गई है।
मंत्रिपरिषद की कार्य प्रणाली के दो सबसे महत्वपूर्ण सिद्धांत है - सामूहिक उत्तरदायित्व और गोपनीयता।
* सामूहिक उत्तरदायित्व - मंत्रिमंडल के कार्य करने का सबसे अधिक महत्वपूर्ण सिद्धांत मंत्रिमंडल का संसद के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व है। मंत्रिगण व्यक्तिगत रूप से तो संसद के प्रति उत्तरदाई होते ही हैं, इसके अतिरिक्त सामूहिक रुप से प्रशासनिक नीति और समस्त प्रशासनिक कार्यों के लिए संसद के प्रति उत्तरदाई होते हैं।
सामूहिक उत्तरदायित्व के इस सिद्धांत के अनुसार संपूर्ण मंत्रिमंडल एक इकाई के रूप में कार्य करता है और सभी मंत्री एक दूसरे के निर्णय तथा कार्य के लिए उत्तरदाई होते हैं। मंत्रिमंडल की बैठक में विभिन्न विभागों के मंत्री अपने विचार प्रकट करते हुए एक दूसरे का विरोध कर सकते हैं, परंतु जब मंत्रिमंडल कोई नीति निर्धारित कर लेता है तब सभी मंत्रियों को उसका समर्थन करना होता है।
यदि मंत्रिमंडल का कोई सदस्य निर्धारित नीति से सहमत नहीं है तो उसके द्वारा मंत्रिमंडल से त्यागपत्र दे दिया जाना चाहिए। प्रधानमंत्री सामूहिक उत्तरदायित्व का उल्लंघन करने वाले मंत्री को मंत्रिमंडल से हटाने के लिए राष्ट्रपति से सिफारिश कर सकता है। यदि लोकसभा किसी एक मंत्री के विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव पारित करें अथवा मंत्रिमंडल के किसी सदस्य द्वारा सदन में प्रस्तावित विधायक को रद्द कर दें तो समस्त मंत्रिमंडल को त्यागपत्र देना होता है।
लॉर्ड मार्ले के अनुसार,
"मंत्रिमंडल के सदस्य एक ही साथ तैरते और एक ही साथ डूबते हैं।"
यही सामूहिक उत्तरदायित्व का सार है। सामूहिक उत्तरदायित्व मंत्रिमंडल को एक संगठित शक्ति का रूप प्रदान करता है और इस आधार पर राष्ट्रपति तथा संसद के सम्मुख मंत्रिमंडल की स्थिति बहुत सुदृढ हो जाती है।
सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत नीति संबंधी मामलों पर ही लागू होता है। किसी मंत्री के व्यक्तिगत आचरण संबंधी मामले में केवल संबंधित मंत्री को ही त्यागपत्र देना होता है।
* गोपनीयता - मंत्रिमंडल की बैठकें गुप्त होती है और इन बैठकों में प्रेस के प्रतिनिधियों आदि को आमंत्रित नहीं किया जाता है। बजट के संबंध में गोपनीयता के नियम का कड़ाई से पालन किया जाता है। प्रत्येक मंत्री को गोपनीयता की शपथ लेनी होती है।
सामूहिक उत्तरदायित्व का सिद्धांत नीति संबंधी मामलों पर ही लागू होता है। किसी मंत्री के व्यक्तिगत आचरण संबंधी मामले में केवल संबंधित मंत्री को ही त्यागपत्र देना होता है।
* गोपनीयता - मंत्रिमंडल की बैठकें गुप्त होती है और इन बैठकों में प्रेस के प्रतिनिधियों आदि को आमंत्रित नहीं किया जाता है। बजट के संबंध में गोपनीयता के नियम का कड़ाई से पालन किया जाता है। प्रत्येक मंत्री को गोपनीयता की शपथ लेनी होती है।
👉 मंत्रिपरिषद और मंत्रिमंडल में अंतर संबंधी डॉ ए के वर्मा का वीडियो 👇
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