लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा (Concept of Public Welfare State in hindi)
राज्य के कार्य क्षेत्र के संबंध में जिन विचारधाराओं का प्रतिपादन किया गया है, उनमें सर्वाधिक उचित विचारधारा निश्चित रूप से लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा ही है।
लोक कल्याणकारी राज्य वह होता है जो अपने नागरिकों के लिए व्यापक समाज सेवाओं की व्यवस्था करता है। इन समाज सेवाओं के अंतर्गत शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार और वृद्धावस्था में पेंशन आदि की व्यवस्था होती है। लोक कल्याणकारी राज्य का लक्षण होता है अपने नागरिकों को न्यूनतम जीवन स्तर प्रदान करना और आय की यथासंभव समानता स्थापित करना।
जवाहरलाल नेहरू ने अपने भाषण में लोक कल्याणकारी राज्य को परिभाषित करते हुए कहा था,
सबके लिए समान अवसर प्रदान करना, अमीरों और गरीबों के बीच अंतर मिटाना और जीवन स्तर को ऊपर उठाना लोक कल्याणकारी राज्य के आधारभूत तत्व है।
इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य का अर्थ है राज्य के कार्य क्षेत्र का विस्तार। राज्य के कार्य क्षेत्र के विस्तार का अर्थ व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बंधन से लिया जाता है, लेकिन कल्याणकारी राज्य का अर्थ राज्य के कार्य क्षेत्र का इस प्रकार विस्तार करना होता है कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर कोई विशेष बंथन न लगे, राज्य के कार्य क्षेत्र के साथ ही साथ व्यक्ति का भी अपना स्वतंत्र कार्यक्षेत्र हो।
वास्तव में लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा पश्चिमी प्रजातंत्र और साम्यवादी अधिनायकतंत्र दोनों से ही भिन्न है। पश्चिमी प्रजातंत्र राजनीतिक स्वतंत्रता को एक ऐसी स्थिति प्रदान करता है जिसके अंतर्गत नागरिकों को आर्थिक सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है। इसके विपरीत आर्थिक सुरक्षा के विचार पर आधारित साम्यवादी अधिनायकतंत्र में राजनीतिक स्वतंत्रता का अभाव होता है।
लेकिन लोक कल्याणकारी राज्य की धारणा राजनीतिक स्वतंत्रता और आर्थिक सुरक्षा के बीच सामंजस्य का एक सफल प्रयत्न है। होब्मेन के शब्दों में,
यह (कल्याणकारी राज्य) दो अतियों में एक समझौता है, जिसमें एक तरफ साम्यवाद है और दूसरी तरफ अनियंत्रित व्यक्तिवाद। (Hobman, C.L., The Welfare State, p.1)
लोक कल्याणकारी राज्य लोकहित पर आधारित होता है और इस संबंध में लोकहित से हमारा तात्पर्य राजनीतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दृष्टि से व्यक्ति की अवसर की असमानता को दूर कर उसकी साधारण आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है। इस व्यवस्था का उद्देश्य किसी एक समुदाय या वर्ग विशेष के हितों की साधना न होकर जनता के सभी वर्ग के हितों की साधना होता है।
लोक कल्याणकारी राज्य के लक्षण
लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा को दृष्टि में रखते हुए इस प्रकार के राज्य के प्रमुख रुप से निम्नलिखित लक्षण बताए जा सकते हैं -
(1) आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था
लोक कल्याणकारी राज्य प्रमुख रूप से आर्थिक सुरक्षा के विचार पर आधारित है। हमारा अब तक का अनुभव स्पष्ट करता है कि शासन का रूप चाहे कुछ भी हो व्यवहार में राजनीतिक शक्ति उन्हीं लोगों के हाथों में केंद्रित होती है जो आर्थिक दृष्टि से शक्तिशाली होते हैं।
अतः राजनीतिक शक्ति को जनसाधारण में निहित करने और जनसाधारण के हित में इसका प्रयोग करने के लिए आर्थिक सुरक्षा की व्यवस्था नितांत आवश्यक है। लोक कल्याणकारी राज्य के संदर्भ में आर्थिक सुरक्षा का तात्पर्य है निम्नलिखित तीन बातों से लिया जा सकता है -
• सभी व्यक्तियों को रोजगार - ऐसे सभी व्यक्तियों को, जो शारीरिक और मानसिक दृष्टि से कार्य करने की क्षमता रखते हैं, राज्य के द्वारा उनकी योग्यता अनुसार उन्हें किसी न किसी प्रकार का कार्य अवश्य ही दिया जाना चाहिए। जो व्यक्ति किसी भी प्रकार का कार्य करने में असमर्थ है या राज्य जिन्हें कार्य प्रदान नहीं कर सकता है, उनके जीवन यापन के लिए राज्य द्वारा 'बेरोजगार बीमे' की व्यवस्था की जानी चाहिए।
• न्यूनतम जीवन-स्तर की गारंटी - एक व्यक्ति को अपने कार्य के बदले में इतना पारिश्रमिक अवश्य ही मिलना चाहिए कि उसके द्वारा न्यूनतम आर्थिक स्तर की प्राप्ति की जा सके। न्यूनतम जीवन स्तर से आशय है, भोजन, वस्त्र, निवास, शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं लोक कल्याणकारी राज्य में किसी एक के लिए अधिकता के पूर्व सबके लिए पर्याप्त की व्यवस्था की जानी चाहिए।
• अधिकतम समानता की स्थापना - सम्पत्ति और आय की पूर्ण समानता न तो संभव है और न ही वांछनीय; तथापि आर्थिक न्यूनतम के पश्चात होने वाली व्यक्ति की आय का उसके समाज सेवा संबंधी कार्य से उचित अनुपात होना चाहिए। जहां तक संभव हो, व्यक्तियों की आय के न्यूनतम और अधिकतम स्तर में अत्यधिक अंतर नहीं होना चाहिए। इस सीमा तक आय की समानता तो स्थापित की जानी चाहिए कि कोई भी व्यक्ति अपने धन के आधार पर दूसरे का शोषण न कर सके।
2. राजनीतिक सुरक्षा की व्यवस्था
लोक कल्याणकारी राज्य की दूसरी विशेषता राजनीतिक सुरक्षा की व्यवस्था की जा सकती है। इस प्रकार की व्यवस्था की जानी चाहिए कि राजनीतिक शक्ति सभी व्यक्तियों में निहित हो और ये अपने विवेक के आधार पर इस राजनीतिक शक्ति का प्रयोग कर सके। इस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु आवश्यक है ;
• लोकतंत्रीय शासन - लोक कल्याणकारी राज्य में व्यक्ति के राजनीतिक हितों की साधना को भी आर्थिक हितों की साधना के समान ही आवश्यक समझा जाता है, अतः एक लोकतंत्रीय शासन व्यवस्था वाला राज्य ही लोक कल्याणकारी राज्य हो सकता है।
• नागरिक स्वतंत्रताएं - संविधान द्वारा लोकतंत्रीय शासन की स्थापना कर देने से ही राजनीतिक सुरक्षा प्राप्त नहीं हो जाती। व्यवहार में राजनीतिक सुरक्षा के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए नागरिक स्वतंत्रता का वातावरण होना चाहिए। अर्थात नागरिकों को विचार अभिव्यक्ति और राजनीतिक दलों के संगठन की स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए।
इन स्वतंत्राओं के अभाव में लोकहित की साधना नहीं हो सकती और लोकहित की साधना के बिना लोक कल्याणकारी राज्य, आत्मा के बिना शरीर के समान होगा।
पूर्व सोवियत संघ, आदि साम्यवादी राज्यों में नागरिकों के लिए नागरिक स्वतंत्रताओं और परिणामत: राजनीतिक सुरक्षा का अभाव होने के कारण उन्हें लोक कल्याणकारी राज्य नहीं कहा जा सकता।
3. सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था
सामाजिक सुरक्षा का तात्पर्य सामाजिक समानता से और इस सामाजिक समानता की स्थापना के लिए आवश्यक है कि धर्म, जाति, वंश और संपत्ति के आधार पर उत्पन्न भेदों का अंत करके व्यक्ति को व्यक्ति के रूप में महत्व प्रदान किया जाए। डॉक्टर बेनी प्रसाद के शब्दों में,
सामाजिक समानता का सिद्धांत इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति के सुख का महत्व हो सकता है तथा किसी को भी अन्य किसी के सुख का साधन मात्र नहीं समझा जा सकता है। वस्तुतः लोक कल्याणकारी राज्य जीवन के सभी पक्षों में समानता के सिद्धांत को स्वीकार किया जाना चाहिए।
4. राज्य के कार्य क्षेत्र में वृद्धि
लोक कल्याणकारी राज्य का सिद्धांत व्यक्तिवादी विचार के विरुद्ध एक प्रतिक्रिया है और इस मान्यता पर आधारित है कि राज्य को वे सभी जनहित कार्य करने चाहिए, जिनके करने से व्यक्ति की स्वतंत्रता नष्ट या कम नहीं होती। इसके द्वारा न केवल आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक सुरक्षा की व्यवस्था वरन् जैसा की हॉब्सन ने कहा है,
डॉक्टर, नर्स, शिक्षक, व्यापारी, उत्पादक, बीमा कंपनी के एजेंट, मकान बनाने वाले, रेलवे नियंत्रक तथा अन्य सैंकड़ों रूपों में कार्य किया जाना चाहिए।
5. अंतरराष्ट्रीय सहयोग की भावना
इन सबके अतिरिक्त एक लोक कल्याणकारी राज्य, अपने राज्य विशेष के हितों से ही संबंध न रखकर संपूर्ण मानवता के हितों से संबंध रखता है और इसका स्वरूप राष्ट्रीय न होकर अंतर्राष्ट्रीय होता है। एक लोक कल्याणकारी राज्य तो 'वसुधैवकुटुंबकम' अर्थात 'संपूर्ण विश्व ही मेरा कुटुंब है' के विचार पर आधारित होता है।
लोक कल्याणकारी राज्य के कार्य
लोक कल्याणकारी राज्य के प्रमुख कार्य निम्न प्रकार हैं -
- आंतरिक व्यवस्था तथा विदेशी आक्रमण से रक्षा।
- व्यक्तियों के पारस्परिक संबंधों और राज्य एवं व्यक्तियों के संबंधों की व्यवस्था।
- कृषि, उद्योग तथा व्यापार का नियमन और विकास।
- आर्थिक सुरक्षा संबंधी कार्य।
- जनता के जीवन स्तर को ऊंचा उठाना।
- शिक्षा और स्वास्थ्य संबंधी कार्य।
- सार्वजनिक सुविधा संबंधी कार्य।
- समाज सुधार।
- आमोद प्रमोद की सुविधाएं।
- नागरिक स्वतंत्रताओं की व्यवस्था।
- अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र के कार्य।
इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य के कुछ कर्तव्य गिनाए गए हैं, किंतु लोक कल्याणकारी राज्य की सूची तैयार करना संभव नहीं है। व्यक्ति के जीवन में राज्य का हस्तक्षेप कहां से आरंभ हो और कहां पर समाप्त हो जाए, इस संबंध में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है। इस प्रश्न का ठीक-ठीक उत्तर स्थानीय तथा राष्ट्रीय परिस्थितियों और आवश्यकताओं के संदर्भ में ही दिया जा सकता है।
आज की परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति केवल अपने लिए या अपने ही प्रयास से जीवित नहीं रह सकता है और समाज द्वारा जनहितकारी कार्यों का संपादन अच्छे जीवन की एक आवश्यकता बन गई है। अतः राज्य के द्वारा अपने नागरिकों को वे समस्त सुविधाएं प्रदान की जानी चाहिए जो उनके सामूहिक कल्याण की वृद्धि करने वाली हो।
लोक कल्याणकारी राज्य का मूल्यांकन
यद्यपि लोक कल्याण वर्तमान समय की सर्वाधिक लोकप्रिय प्रवृत्ति है, फिर भी लोक कल्याणकारी राज्य के विरुद्ध कुछ तर्क दिए जाते हैं जो इस प्रकार हैं -
(1) ऐच्छिक समुदायों का आधात
जब लोक कल्याण की प्रवृत्ति को अपना लेने पर राज्य के कार्य बहुत अधिक बढ़ जाते हैं, तो राज्य अनेक ऐसे कार्य करने लगता है, जो वर्तमान समय में ऐच्छिक समुदायों द्वारा किए जाते हैं।
इस प्रकार लोक कल्याणकारी राज्य ऐच्छिक समुदाय के लिए घातक होता है और मानव जीवन के संबंध में उपयोगी भूमिका निभाने वाले ये ऐच्छिक समुदाय समाप्त हो जाते हैं।
(2) व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अंत
व्यक्तियों का कहना है कि लोक कल्याण की प्रवृत्ति को अपना लेने पर जब राज्य के कार्य बहुत अधिक बढ़ जाते हैं, तो स्वभावत: राज्य की शक्तियों में भी वृद्धि होती है और अति शक्तिशाली राज्य व्यक्ति की स्वतंत्रता को समाप्त कर देता है। अमेरिकी राज्य सचिव वायर्नेस ने इसी आधार पर इसमें 'विकराल सरकार' (Big Government) की झलक पायी थी।
(3) नौकरशाही का भय
लोक कल्याण की प्रवृत्ति को अपना लेने पर राज्य-नौकरशाही में भी बहुत अधिक वृद्धि हो जाती है और नौकरशाही में यह अत्यधिक वृद्धि लालफीताशाही, भाई-भतीजावाद, भ्रष्टाचार आदि अन्य बुराइयों को जन्म देगी।
(4) अत्यधिक खर्चीला
लोककल्याणकारी राज्य बहुत अधिक खर्चीला आदर्श है, क्योंकि राज्य को विभिन्न लोक कल्याणकारी सेवाएं संपादित करने में बहुत अधिक धनराशि की आवश्यकता होती है। सामान्य आर्थिक साधनों वाला राज्य है इस प्रकार का व्यय भार वहन नहीं कर सकता।
सिनेटर टाफ्ट (Senator taft) ने इसी कारण कहा है कि
"लोक कल्याण की नीति राज्य को दिवालियेपन की ओर ले जाएगी।"
लोक कल्याणकारी राज्य के जो उपर्युक्त दोष बताए जाते हैं, उनके कारण लोक कल्याणकारी राज्य को अस्वीकार नहीं किया जा सकता।
वास्तव में यह दोष लोक कल्याणकारी राज्य के नहीं वरन माननीय जीवन की दुर्बलताओं के हैं। सर्वप्रथम, लोक कल्याणकारी राज्य और सर्वाधिकारवादी राज्य में आधारभूत अंतर है और लोक कल्याणकारी राज्य का तात्पर्य राज्य द्वारा व्यक्ति के संपूर्ण जीवन पर अधिकार नहीं है।
लोक कल्याणकारी राज्य में न केवल व्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए एक बहुत बड़ा क्षेत्र बच जाता है, वरन् यह व्यक्ति की स्वतंत्रता को वास्तविकता का रूप प्रदान करता है।
लोक कल्याणकारी राज्य के कारण ऐच्छिक समुदायों के कार्यक्षेत्र पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। इससे उनके कार्य और महत्व में वृद्धि ही होती है, कमी नहीं।
जहां तक नौकरशाही की बुराइयों का संबंध है वे तो दोषपूर्ण राज व्यवस्था और मानवीय चरित्र की दुर्बलता के परिणाम है और इनमे सुधार कर इन्हें दूर किया जा सकता है।
इसके अतिरिक्त, यह देखने में आया है कि लोक कल्याण की प्रवृत्ति तत्काल तो राजकोष में भारी व्यय का कारण होती है, लेकिन लंबे समय में इसका नागरिकों की कार्यकुशलता पर अच्छा प्रभाव पड़ता है, जिससे उत्पादन में वृद्धि होती है और राष्ट्रीय आय तेजी के साथ बढ़ती है।
व्यवहार में लोक कल्याणकारी राज्य की प्रवृत्ति को विश्व के लगभग सभी राज्यों द्वारा किसी न किसी रूप में अपना लिया गया है और इसे अपनाने के अतिरिक्त अन्य कोई मार्ग भी नहीं है।
लोकतंत्र आज की सबसे अधिक लोकप्रिय शासन व्यवस्था है और लोकतंत्र शासन लोक कल्याण के आदर्श को अपना कर ही सफलता के मार्ग पर आगे बढ़ सकता है। लोकतंत्र और लोक कल्याणकारी राज्य एक दूसरे के अनुकूल और परस्पर पूरक है।
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