भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारत का एक राष्ट्रपति (President) होगा। संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी तथा वह इसका प्रयोग संविधान के अनुसार स्वयं अथवा अन्य पदाधिकारियों द्वारा करेगा।
इस प्रकार संघीय कार्यपालिका में राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मंत्रिपरिषद होंगे। राष्ट्रपति कार्यपालिका का औपचारिक प्रधान होगा और प्रधानमंत्री सहित मंत्रिपरिषद कार्यपालिका की वास्तविक प्रधान।
Election Process of India President |
राष्ट्रपति - भारतीय संघ की कार्यपालिका के प्रधान को राष्ट्रपति कहा गया है। यद्यपि कार्यपालिका के प्रधान का यह नामकरण अमेरिकी संविधान के समान है, लेकिन भारतीय राष्ट्रपति के कार्य और शक्तियां अमेरिकी राष्ट्रपति के समान नहीं है।
अमेरिका की अध्यक्षात्मक व्यवस्था में कार्यपालिका का वैधानिक प्रधान ही वास्तविक प्रधान होता है, लेकिन भारत में ब्रिटेन जैसी संसदात्मक व्यवस्था को अपनाया गया है जिसके अंतर्गत कार्यपालिका का एक वैधानिक प्रधान होता है और दूसरा वास्तविक प्रधान।
राष्ट्रपति भारतीय राष्ट्रीय संघ की कार्यपालिका का वैज्ञानिक प्रधान है और भारतीय संघ में इसकी स्थिति अमेरिकी राष्ट्रपति के स्थान पर ब्रिटिश सम्राट जैसी होती है।
राष्ट्रपति पद की योग्यताएं
संविधान में राष्ट्रपति के पद पर निर्वाचित होने वाले व्यक्ति के लिए निम्न योग्यताएं निश्चित की गई है -- वह भारत का नागरिक हो।
- वह 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।
- वह लोकसभा का सदस्य निर्वाचित होने की योग्यता रखता हो।
राष्ट्रपति भारतीय संसद अथवा राज्यों के विधान मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा। यदि निर्वाचन के पूर्व वह इनका सदस्य है तो निर्वाचन की तिथि से उसका स्थान उस सभा में रिक्त समझा जाएगा। राष्ट्रपति अपने कार्यकाल की अवधि में कोई अन्य वेतनभोगी पद ग्रहण नहीं कर सकता।
भारतीय संघ के इस सर्वोच्च पद के लिए इतनी कम योग्यताओं का होना आश्चर्य का विषय हो सकता है, लेकिन संविधान निर्माताओं ने जानबूझकर ऐसा इसलिए किया है कि भारत का प्रत्येक नागरिक इस उच्च पद को प्राप्त करने में समर्थ हो सके।
यह व्यवस्था जनतंत्रात्मक सिद्धांतों के अनुकूल है। व्यवहार में इस पद पर केवल वही व्यक्ति निर्वाचित हो सकेगा, जिसे देश में बहुत अधिक सम्मान प्राप्त हो।
भारत के राष्ट्रपति का निर्वाचन कैसे होता है
भारत के राष्ट्रपति के चुनाव के लिए अप्रत्यक्ष निर्वाचन की पद्धति को अपनाया गया है और यह चुनाव एकल संक्रमणीय मत पद्धति के आधार पर होता है। यह पद्धति इस प्रकार है -अप्रत्यक्ष निर्वाचन : राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे निर्वाचक मंडल (Electoral College) द्वारा किया जाएगा, जिसमें १.संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य, और २. राज्य विधानसभाओं और 70th संवैधानिक संशोधन 1992 के अनुसार संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य सम्मिलित होंगे। राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में राज्यों की विधानसभाओं और अब संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं को इसलिए सम्मिलित किया गया है कि राष्ट्रपति न केवल केंद्रीय शासन व संपूर्ण भारतीय संघ का प्रधान होता है।
संविधान सभा में पंडित जवाहरलाल नेहरू ने कहा था कि,
"राष्ट्रपति के निर्वाचक मंडल में संघीय संसद के साथ-साथ राज्यों के विधान मंडल के सदस्यों को सम्मिलित कर इस बात का प्रयत्न किया गया है कि राष्ट्रपति का निर्वाचन दलीय आधार पर न हो और संघ के इस सर्वोच्च पद को वास्तविक रूप से राष्ट्रीय पद का रूप प्राप्त हो सके।"👉 राष्ट्रपति का चुनाव प्रक्रिया संबंधी डॉ ए के वर्मा का वीडियो 👇
एकल संक्रमणीय मत पद्धति
संसद तथा राज्यों और संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों द्वारा राष्ट्रपति का चुनाव एक विशेष मत पद्धति के अनुसार होगा, जिसे 'एकल संक्रमणीय मत पद्धति' (Single Transferable Vote System) कहा जाता है।👉 एकल संक्रमणीय मत पद्धति और राष्ट्रपति का चुनाव संबंधी डॉ ए के वर्मा का वीडियो 👇
इस चुनाव में मतदान गुप्त मत पत्र द्वारा होगा और चुनाव में सफलता प्राप्त करने के लिए उम्मीदवार के लिए न्यूनतम कोटा प्राप्त करना आवश्यक होगा। न्यूनतम कोटा निर्धारित करने के लिए निम्न सूत्र अपनाया जाता है -
न्यूनतम कोटा की व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि स्पष्ट बहुमत प्राप्त होने पर ही एक व्यक्ति को राष्ट्रपति का पद प्राप्त हो सके। इस व्यवस्था से ही वह पद के अनुकूल सम्मान का पात्र हो सकता है।
इस पद्धति के अंतर्गत प्रत्येक मतदाता के द्वारा अपने मत पत्र में उतनी ही पसंद व्यक्त की जा सकती है, जितनी संख्या में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होते हैं। सर्वप्रथम पहली पसंद या प्रथम वरीयता (Frist Preference) के मतों की गणना की जाती है।
यदि पहली पसंद के मतों की गणना से ही किसी उम्मीदवार को चुनाव कोटा (मतदाताओं का स्पष्ट बहुमत) प्राप्त हो जाए, तो दूसरी पसंद के मतों की गणना नहीं की जाती, लेकिन यदि पहली पसंद के मतों की गणना से किसी भी उम्मीदवार को चुनाव कोटा प्राप्त नहीं हो तो फिर क्रमश: दूसरी, तीसरी पसंद के मतों की गणना की जाती है।
जन प्रतिनिधित्व के आधार पर मतदाता के मत का मूल्य निर्धारण (मतों की संख्या) :
भारत के राष्ट्रपति को जिस निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित किया जाता है उस निर्वाचक मंडल के सदस्य हैं :
न्यूनतम कोटा (Minimum Quota)
दिए गए मतों की संख्या / निर्वाचित होने वाले प्रतिनिधियों की संख्या +1 = +1न्यूनतम कोटा की व्यवस्था इसलिए की गई है ताकि स्पष्ट बहुमत प्राप्त होने पर ही एक व्यक्ति को राष्ट्रपति का पद प्राप्त हो सके। इस व्यवस्था से ही वह पद के अनुकूल सम्मान का पात्र हो सकता है।
इस पद्धति के अंतर्गत प्रत्येक मतदाता के द्वारा अपने मत पत्र में उतनी ही पसंद व्यक्त की जा सकती है, जितनी संख्या में राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होते हैं। सर्वप्रथम पहली पसंद या प्रथम वरीयता (Frist Preference) के मतों की गणना की जाती है।
यदि पहली पसंद के मतों की गणना से ही किसी उम्मीदवार को चुनाव कोटा (मतदाताओं का स्पष्ट बहुमत) प्राप्त हो जाए, तो दूसरी पसंद के मतों की गणना नहीं की जाती, लेकिन यदि पहली पसंद के मतों की गणना से किसी भी उम्मीदवार को चुनाव कोटा प्राप्त नहीं हो तो फिर क्रमश: दूसरी, तीसरी पसंद के मतों की गणना की जाती है।
जन प्रतिनिधित्व के आधार पर मतदाता के मत का मूल्य निर्धारण (मतों की संख्या) :
भारत के राष्ट्रपति को जिस निर्वाचक मंडल द्वारा निर्वाचित किया जाता है उस निर्वाचक मंडल के सदस्य हैं :
- राज्य विधानसभाओं और संघीय क्षेत्रों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य और
- संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य
उपर्युक्त स्थिति को दृष्टि में रखते हुए यह व्यवस्था की गई है कि निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य समान नहीं होता। प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य या मतों की संख्या निम्न सिद्धांतों के आधार पर निश्चित की जाती है -
प्रथम सिद्धांत : भारतीय संघ के कुछ राज्यों (विशाल राज्यों) की विधानसभा के सदस्य अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और कुछ राज्यों (छोटे राज्य) या संघ क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्य कम जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। राष्ट्रपति के चुनाव में विधानसभा के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य उस अनुपात में निश्चित होता है, जितनी जनसंख्या का वह प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरा सिद्धांत : यह अपनाया गया है कि राष्ट्रपति के चुनाव में केंद्र तथा राज्यों का बराबर का हिस्सा होना चाहिए। इसलिए समस्त राज्यों की विधानसभाओं के समस्त सदस्यों के जितने मत हो, उतने ही मत संसद सदस्यों द्वारा दिए जाने चाहिए।
निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य या मतों की संख्या निश्चित करने के सूत्र (Formula) इस प्रकार है -
1. किसी भी राज्य या संघीय क्षेत्र की विधानसभा के सदस्य के मतों की संख्या (मूल्य)
राज्य या संघीय क्षेत्र की जनसंख्या / राज्य विधानसभा या संघीय क्षेत्रों की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या ÷ 1000
2. संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या (मूल्य)
समस्त राज्यों और संघीय क्षेत्रों के विधानसभाओं के समस्त सदस्यों को प्राप्त मतों की संख्याओं का कुल योग / संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की संख्या
मतों की गणना के संबंध में उपयुक्त सूत्र और प्रक्रिया को इस उद्देश्य से अपनाया गया है कि राष्ट्रपति के चुनाव में समस्त राज्यों के प्रभाव में जनसंख्या के आधार पर एकरूपता रहे और समस्त राज्यों की विधानसभाओं को सामूहिक रूप से संघीय संसद के बराबर प्रभाव प्राप्त रहे। समस्त विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों की संख्याओं का योग भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करता है और इसी प्रकार संसद के दोनों सदनों के सदस्य भी भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अतः यह उचित है कि दोनों पक्षों को जो समान रूप से भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, राष्ट्रपति के चुनाव में समान शक्ति प्राप्त हो।
विधानसभा भंग होने पर भी राष्ट्रपति का चुनाव संभव है
1974 जबकि राष्ट्रपति का चुनाव होना था, गुजरात विधानसभा भंग की जा चुकी थी, अतः यह प्रश्न उत्पन्न हुआ कि क्या गुजरात विधानसभा भंग होने की स्थिति में राष्ट्रपति के चुनाव हो सकते हैं।
इस संबंध में राष्ट्रपति ने 29 अप्रैल 1974 को आर्टिकल 143 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगा और सुप्रीम कोर्ट ने अपने परामर्श में कहा कि राष्ट्रपति का चुनाव, वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व में होना चाहिए और एक या एक से अधिक राज्यों की विधानसभा भंग होने की स्थिति में भी यह चुनाव हो सकते हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष क्यों
संविधान सभा में राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति पर पर्याप्त वाद विवाद हुआ था। कुछ सदस्य चाहते थे कि राष्ट्रपति का चुनाव भारतीय जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाना चाहिए।
उनका विचार था कि प्रत्यक्ष निर्वाचन ही लोकतंत्र के अनुकूल होगा और इस प्रकार से निर्वाचित व्यक्ति ही उचित रूप से भारत राष्ट्र के प्रतीक के रूप में कार्य कर सकता है, लेकिन अंत में अप्रत्यक्ष निर्वाचन की पद्धति अपनाई गई क्योंकि भारत की संसदात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति केवल एक औपचारिक या वैधानिक प्रधान होता है और वास्तविक कार्यपालिका सत्ता उत्तरदायी मंत्रिमंडल के हाथ में रहती है।
श्री संथानम के शब्दों में,
प्रथम सिद्धांत : भारतीय संघ के कुछ राज्यों (विशाल राज्यों) की विधानसभा के सदस्य अधिक जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं और कुछ राज्यों (छोटे राज्य) या संघ क्षेत्रों की विधानसभाओं के सदस्य कम जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं। राष्ट्रपति के चुनाव में विधानसभा के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य उस अनुपात में निश्चित होता है, जितनी जनसंख्या का वह प्रतिनिधित्व करता है।
दूसरा सिद्धांत : यह अपनाया गया है कि राष्ट्रपति के चुनाव में केंद्र तथा राज्यों का बराबर का हिस्सा होना चाहिए। इसलिए समस्त राज्यों की विधानसभाओं के समस्त सदस्यों के जितने मत हो, उतने ही मत संसद सदस्यों द्वारा दिए जाने चाहिए।
निर्वाचक मंडल के प्रत्येक सदस्य के मत का मूल्य या मतों की संख्या निश्चित करने के सूत्र (Formula) इस प्रकार है -
1. किसी भी राज्य या संघीय क्षेत्र की विधानसभा के सदस्य के मतों की संख्या (मूल्य)
राज्य या संघीय क्षेत्र की जनसंख्या / राज्य विधानसभा या संघीय क्षेत्रों की विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों की संख्या ÷ 1000
2. संसद के प्रत्येक सदन के प्रत्येक निर्वाचित सदस्य के मतों की संख्या (मूल्य)
समस्त राज्यों और संघीय क्षेत्रों के विधानसभाओं के समस्त सदस्यों को प्राप्त मतों की संख्याओं का कुल योग / संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्यों की संख्या
मतों की गणना के संबंध में उपयुक्त सूत्र और प्रक्रिया को इस उद्देश्य से अपनाया गया है कि राष्ट्रपति के चुनाव में समस्त राज्यों के प्रभाव में जनसंख्या के आधार पर एकरूपता रहे और समस्त राज्यों की विधानसभाओं को सामूहिक रूप से संघीय संसद के बराबर प्रभाव प्राप्त रहे। समस्त विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्यों की संख्याओं का योग भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करता है और इसी प्रकार संसद के दोनों सदनों के सदस्य भी भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
अतः यह उचित है कि दोनों पक्षों को जो समान रूप से भारत की समस्त जनता का प्रतिनिधित्व करते हैं, राष्ट्रपति के चुनाव में समान शक्ति प्राप्त हो।
विधानसभा भंग होने पर भी राष्ट्रपति का चुनाव संभव है
1974 जबकि राष्ट्रपति का चुनाव होना था, गुजरात विधानसभा भंग की जा चुकी थी, अतः यह प्रश्न उत्पन्न हुआ कि क्या गुजरात विधानसभा भंग होने की स्थिति में राष्ट्रपति के चुनाव हो सकते हैं।
इस संबंध में राष्ट्रपति ने 29 अप्रैल 1974 को आर्टिकल 143 के अधीन सर्वोच्च न्यायालय से परामर्श मांगा और सुप्रीम कोर्ट ने अपने परामर्श में कहा कि राष्ट्रपति का चुनाव, वर्तमान राष्ट्रपति का कार्यकाल समाप्त होने के पूर्व में होना चाहिए और एक या एक से अधिक राज्यों की विधानसभा भंग होने की स्थिति में भी यह चुनाव हो सकते हैं। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के निर्वाचन को उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष क्यों
संविधान सभा में राष्ट्रपति के चुनाव की पद्धति पर पर्याप्त वाद विवाद हुआ था। कुछ सदस्य चाहते थे कि राष्ट्रपति का चुनाव भारतीय जनता द्वारा प्रत्यक्ष रूप से किया जाना चाहिए।उनका विचार था कि प्रत्यक्ष निर्वाचन ही लोकतंत्र के अनुकूल होगा और इस प्रकार से निर्वाचित व्यक्ति ही उचित रूप से भारत राष्ट्र के प्रतीक के रूप में कार्य कर सकता है, लेकिन अंत में अप्रत्यक्ष निर्वाचन की पद्धति अपनाई गई क्योंकि भारत की संसदात्मक व्यवस्था में राष्ट्रपति केवल एक औपचारिक या वैधानिक प्रधान होता है और वास्तविक कार्यपालिका सत्ता उत्तरदायी मंत्रिमंडल के हाथ में रहती है।
श्री संथानम के शब्दों में,
"यह महसूस किया गया कि जब राष्ट्रपति को औपचारिक प्रधान मात्र बनाना है, तो फिर उसे प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित करना व्यर्थ ही परिश्रम होगा।"यह भी सोचा गया कि करोड़ों मतदाताओं वाले देश में प्रत्यक्ष निर्वाचन को अपनाने में बड़ी बाधा और कठिनाईयां उपस्थित होंगी।
विधानसभा में यह भी भय प्रकट किया गया कि ऐसा सोचना उचित ही था कि शायद प्रत्यक्ष रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति राष्ट्र का केवल वैधानिक प्रधान बना रहना स्वीकार न करें और उस स्थिति में उसका मंत्रिमंडल से संघर्ष हो सकता है, जिसका परिणाम संवैधानिक द्वंद्व होगा।
यद्यपि राष्ट्रपति के निर्वाचन की यह पद्धति पर्याप्त क्लिष्ट है, लेकिन इसके बावजूद राष्ट्रपति के पद से संबंधित इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल हो रही है कि राष्ट्रपति एक वैधानिक प्रधान के रूप में कार्य करें और राष्ट्रपति (President) को भारतीय संघ के सर्वोच्च प्रधान के रूप में सर्वोच्च आदर और सम्मान की स्थिति प्राप्त रहे।