समाजवाद (Socialism) : एक राजनीतिक विचारधारा (A Political Ideas)
आधुनिक युग समाजवाद (socialism) का युग है। समाजवाद इस युग की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विचारधारा है। समाजवादी विश्व के करोड़ों लोगों के विचारों एवं कार्यो का आधार प्रस्तुत करता है। समाजवादी विचारधारा का विकास तीव्र गति से हो रहा है।लोकतांत्रिक और पूंजीवादी देशों में भी समाजवाद के कार्यक्रम को अपनाने का प्रयास किया जाता है। समाजवाद में उदार, कल्याणकारी और प्रगतिशील विचार होने के कारण यह आज के समाज की मुख्य मांग बन गया है।
यह एक अनिश्चित किंतु व्यापक विचारधारा है। इसकी अनिश्चितता और व्यापकता के संबंध में सी ई एम जोड़ ने लिखा है,
"समाजवाद एक ऐसे टॉप की भांति है जिसकी आकृति भंग हो गई है, क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति इसे पहनता है।"
समाजवाद की अनिश्चितता के प्रमुख कारण निम्न है -
1. समाजवाद एक अत्यंत व्यापक एवं बहुरूपिया विचारधारा
व्यक्तिवादी और उदारवादी विचारों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में तो कहीं समष्टिवादी के रूप में, कहीं फेबीयनवाद, कहीं श्रेणी समाजवाद, कहीं श्रमिक संघवाद, कहीं मार्क्सवाद, कहीं लोकतांत्रिक समाजवाद के रूप में दिखाई देता है।
2. समाजवाद एक व्यावहारिक और परिवर्तनशील विचारधारा है
यह राजनीतिक और आर्थिक आवश्यकताओं के साथ-साथ स्वयं को भी बदल लेता है। आज समाजवाद के विषय में कही गई बात कल असत्य सिद्ध हो सकती है।
समाजवाद के इस निरंतर परिवर्तनशील स्वरूप को देखते हुए रैम्जेम्योर ने लिखा है,
"समाजवाद उस गिरगिट के समान है जो परिस्थितियों के अनुसार अपना रंग बदल लेता है।"
3. समाजवाद, साम्यवाद नहीं है
व्यवहार में लोग समाजवाद और साम्यवाद को एक ही समझ लेते हैं जबकि दोनों में पर्याप्त अंतर है। साम्यवाद कार्ल मार्क्स द्वारा प्रतिपादित एक व्यवस्थित विचारधारा है। समाजवाद एक बहुरूपिया एवं व्यापक विचारधारा है।
4. समाजवाद एक राजनीतिक विचारधारा और दर्शन ही नहीं बल्कि एक आंदोलन भी है
समाजवाद विविध रूपों में पाया जाता है इसकी कोई निश्चित दिशा नहीं है। विश्व में कहीं यह शांतिपूर्ण आंदोलन के रूप में तो कहीं हिंसक आंदोलन के रूप में विद्यमान है।
किसी देश में लोकतांत्रिक पद्धति द्वारा संचालित है तो किसी देश में क्रांतिकारी प्रक्रिया के रूप में संचालित होता है। भारत में भी अनेक प्रकार के समाजवादी विचार और आंदोलन दिखाई देते हैं।
5. समाजवाद एक राजनीतिक विचारधारा होने के साथ आर्थिक विचारधारा भी है
समाजवाद में राजनीतिक एवं आर्थिक दोनों ही पक्ष परस्पर जुड़े हुए हैं। समाजवाद को केवल राजनीतिक विचारधारा के रूप में समझना त्रुटिपूर्ण होगा।
सी ई एम जोड़ के अनुसार,
"समाजवाद को मात्र राजनीतिक पक्ष का विवरण देना, न केवल अव्यवहारिक है वरन् अवांछनीय भी है। समाजवादी दर्शन में राजनीतिक और आर्थिक तत्वों का मिश्रण इस प्रकार है कि केवल आर्थिक या राजनीतिक पक्ष को स्पष्ट करना कठिन है।"
समाजवाद का अर्थ एवं परिभाषा
आज समाजवाद शब्द का प्रयोग इतने विविध अर्थों में किया जाता है कि उसका कोई एक सर्वमान्य अर्थ बताना संभव है। इस संबंध में एक लेखक ने कहा है समाजवाद अपने सिर वाले जंतु के समान है जिसका एक सिर काटने पर दूसरा सिर उत्पन्न हो जाता है।
समाजवाद का कोई निश्चित अर्थ न होने के कारण इसकी अनेक परिभाषाएं दी गई है।
डान ग्रिफिथ्स (Dan Griffiths) ने अपनी पुस्तक समाजवाद क्या है (What is Socialism) मैं 261 परिभाषाओं का उल्लेख किया है। प्रो एली ने 400 से भी अधिक परिभाषाओं का संकलन किया है। सन 1892 में पेरिस के एक पत्र लीफिगारों ने समाजवाद की लगभग 600 परिभाषाएं दी थी।
सिडनी वेब (Sidney Webb) - लोकतंत्रात्मक विचार का आर्थिक पक्ष ही समाजवाद है।
सिडनी ओलिवियर (Sidney Olivier) - समाजवाद केवल विवेक युक्त व्यक्तिवाद है। उसकी नैतिकता केवल जीवन की सास्वत भावना की अभिव्यक्ति है।
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, समाजवाद वह नीति अथवा सिद्धांत है जिसका उद्देश्य केंद्रीय लोकतांत्रिक सत्ता द्वारा संपत्ति का अधिक अच्छा वितरण और उत्पादन करना है।
उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि समाजवाद की अनेक परिभाषाएं हैं और इसकी अलग अलग व्याख्या की गई है।
समाजवाद का अर्थ, उद्देश्य और कार्यक्रम के संबंध में समाजवादियों में परस्पर गंभीर मतभेद है। सभी समाजवादी इस बात पर सहमत हैं कि संपत्ति के व्यक्तिगत स्वामित्व पर प्रभावी प्रतिबंध लगाकर संपत्ति और आर्थिक अवसरों का उचित और संतोष वितरण हो।
वैसे समाजवाद की स्थापना प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में आदर्श राज्य के चित्रण द्वारा की है। वह शासक वर्ग के लिए व्यक्तिगत संपत्ति और परिवार का निषेध करता है।
थॉमस मूर ने अपनी रचना यूटोपिया (Utopia) में इंग्लैंड की तत्कालीन अन्याय पूर्ण व्यवस्था की आलोचना करते हुए यूटोपिया टापू की आदर्श व्यवस्था का चित्रण किया। इस टापू में सभी व्यक्ति अपने परिश्रम से उत्पन्न वस्तुओं को एक स्थान पर रख देते हैं और आवश्यकतानुसार वस्तुएं प्राप्त करते हैं। इस व्यवस्था में किसी के पास कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होगी और पूर्ण शांति होगी।
समाजवाद के विकास को इस विचार दर्शन की तीन उपधाराओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
मार्क्स ने पूंजीवाद के अंत और राज्यविहीन, वर्गविहीन समाज की स्थापना की और इसके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया प्रस्तुत की। द्वन्द्वात्मक और इतिहास की आर्थिक व्याख्या के सिद्धांतों के आधार पर समाजवाद की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि का निर्माण किया।
मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद तथा साम्यवादी आंदोलन का नेता मानते हुए प्रयोग लास्की ने कहा है,
मार्क्सवाद के स्थान पर विकासवादी समाजवाद को अपनाया गया। विकासवादी समाजवाद के अंतर्गत पूंजीवाद के स्थान पर समाजवाद की स्थापना के लिए क्रांति आवश्यक नहीं है। इस परिवर्तन के लिए संवैधानिक व शांतिपूर्ण साधनों को ही अपनाया जाना चाहिए। विकासवादी समाजवाद के भी अनेक रूप हैं।
इनमें फेबियनवाद, संशोधनवाद, श्रेणी समाजवाद समष्टिवादी और लोकतांत्रिक समाजवाद प्रमुख है। वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक समाजवाद किसी न किसी रूप में विद्यमान है।
सिडनी वेब (Sidney Webb) - लोकतंत्रात्मक विचार का आर्थिक पक्ष ही समाजवाद है।
सिडनी ओलिवियर (Sidney Olivier) - समाजवाद केवल विवेक युक्त व्यक्तिवाद है। उसकी नैतिकता केवल जीवन की सास्वत भावना की अभिव्यक्ति है।
एनसाइक्लोपीडिया ब्रिटानिका के अनुसार, समाजवाद वह नीति अथवा सिद्धांत है जिसका उद्देश्य केंद्रीय लोकतांत्रिक सत्ता द्वारा संपत्ति का अधिक अच्छा वितरण और उत्पादन करना है।
उपर्युक्त परिभाषा से स्पष्ट होता है कि समाजवाद की अनेक परिभाषाएं हैं और इसकी अलग अलग व्याख्या की गई है।
समाजवाद का अर्थ, उद्देश्य और कार्यक्रम के संबंध में समाजवादियों में परस्पर गंभीर मतभेद है। सभी समाजवादी इस बात पर सहमत हैं कि संपत्ति के व्यक्तिगत स्वामित्व पर प्रभावी प्रतिबंध लगाकर संपत्ति और आर्थिक अवसरों का उचित और संतोष वितरण हो।
• समाजवाद का कार्यक्रम Socialism program
चैम्बर्स शब्दकोश के अनुसार,"समाजवाद सामाजिक संगठन का वह सिद्धांत, पद्धति या योजना है जो उत्पादन और वितरण के साधनों पर समाज का अधिकार स्थापित करता है और प्रतियोगिता का स्थान सहकारिता को देता है।"
समाजवाद के इस सिद्धांत को सभी समाजवादी स्वीकार करते हैं।
सी ई एम जोड ने लिखा है कि सभी विचारधाराओं में समाजवाद के निम्न तीन कार्यक्रमों को प्रमुख स्थान दिया गया है -
सी ई एम जोड ने लिखा है कि सभी विचारधाराओं में समाजवाद के निम्न तीन कार्यक्रमों को प्रमुख स्थान दिया गया है -
- महत्वपूर्ण उद्योगों एवं कार्यों पर सार्वजनिक स्वामित्व एवं नियंत्रण स्थापित करना।
- व्यक्तिगत लाभ की भावना के स्थान पर समाज सेवा की भावना प्रतिष्ठित करना।
- व्यक्तिगत लाभ की अपेक्षा सामाजिक आवश्यकताओं की दृष्टि से उद्योगों का संचालन करना।
समाजवाद का विकास The development of socialism
समाजवाद को किसी निश्चित परिभाषा में व्यक्त नहीं किया जा सकता। समाजवाद विचार भी है और एक आंदोलन भी। आधुनिक समाजवाद व्यक्तिवाद और पूंजीवाद की प्रतिक्रिया के रूप में 18 वीं शताब्दी में सामने आया।वैसे समाजवाद की स्थापना प्लेटो ने अपनी पुस्तक रिपब्लिक में आदर्श राज्य के चित्रण द्वारा की है। वह शासक वर्ग के लिए व्यक्तिगत संपत्ति और परिवार का निषेध करता है।
थॉमस मूर ने अपनी रचना यूटोपिया (Utopia) में इंग्लैंड की तत्कालीन अन्याय पूर्ण व्यवस्था की आलोचना करते हुए यूटोपिया टापू की आदर्श व्यवस्था का चित्रण किया। इस टापू में सभी व्यक्ति अपने परिश्रम से उत्पन्न वस्तुओं को एक स्थान पर रख देते हैं और आवश्यकतानुसार वस्तुएं प्राप्त करते हैं। इस व्यवस्था में किसी के पास कोई व्यक्तिगत संपत्ति नहीं होगी और पूर्ण शांति होगी।
समाजवाद के विकास को इस विचार दर्शन की तीन उपधाराओं के माध्यम से समझ सकते हैं -
- कल्पनावादी समाजवाद
- वैज्ञानिक समाजवाद
- विकासवादी समाजवाद
1. कल्पनावादी समाजवाद
कल्पनावादी समाजवादी विचारकों में नोयल, बावेफ, हेनरी सां सिमो, सेंट साइमन, चार्ल्स फोरियर और रॉबर्ट ओवन प्रमुख है।इन समाजवादियों ने समाज में व्याप्त व्यक्तिगत संपत्ति, पूंजीवाद, आर्थिक विषमताओं तथा सामाजिक असमानताओं का विरोध किया। इनके अनुसार भूमि और उत्पादन के साधनों पर एक वर्ग विशेष के नियंत्रण की अपेक्षा संपूर्ण समाज या राज्य का नियंत्रण होना चाहिए।
समाज के प्रत्येक व्यक्ति को कार्य करने का अवसर मिले और इस कार्य के लिए उसे वेतन प्राप्त हो। कल्पनावादियो ने पूंजीवादी व्यवस्था की पहचान कर उसकी आलोचना की और नई सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं की कल्पना की। लेकिन इन कल्पनाओं का साकार रूप देने की कोई सुनिश्चित व्यवस्था नहीं की।
सी एल वेपर (c.l. wayper) के अनुसार,
सी एल वेपर (c.l. wayper) के अनुसार,
"उन्होंने सुंदर गुलाब के फूलों की कल्पना तो की परंतु गुलाब के वृक्षों के लिए कोई धरती पैदा नहीं की।"
2. वैज्ञानिक समाजवाद
कार्ल मार्क्स और एंजिल्स द्वारा प्रतिपादित विचारधारा को वैज्ञानिक समाजवाद के नाम से जाना जाता है। मार्क्स का दृष्टिकोण पूर्णतः वैज्ञानिक था।मार्क्स के पूर्ववर्ती विचारको ने समाज में व्यापक आर्थिक विषमता का अंत तथा आर्थिक साधनों के न्यायोचित वितरण पर बल दिया। यह विषमता किन कारणों से उत्पन्न हुई ? उनका उत्पादन की विधियों के साथ क्या संबंध है ? इस संबंध में उन्होंने कोई तार्किक रूप से विकल्प प्रस्तुत नहीं किया।
मार्क्स ने पूंजीवाद के अंत और राज्यविहीन, वर्गविहीन समाज की स्थापना की और इसके लिए एक निर्धारित प्रक्रिया प्रस्तुत की। द्वन्द्वात्मक और इतिहास की आर्थिक व्याख्या के सिद्धांतों के आधार पर समाजवाद की वैज्ञानिक पृष्ठभूमि का निर्माण किया।
मार्क्स को वैज्ञानिक समाजवाद तथा साम्यवादी आंदोलन का नेता मानते हुए प्रयोग लास्की ने कहा है,
"मार्क्स का चिंतन सामाजिक दर्शन के इतिहास में स्वयं एक युग है। उसके विषय में एक महत्वपूर्ण बात यह है कि उसने साम्यवाद को अस्त-व्यस्त रूप में पाया तथा उसने उसे एक आंदोलन बना दिया। उसके द्वारा साम्यवाद को एक दर्शन और गति प्राप्त हुई।"
3. विकासवादी समाजवाद
मार्क्स का समाजवाद क्रांतिकारी है। वह पूंजीवाद के अंत के लिए क्रांति आवश्यक मानता है। वह वर्ग को भी अपरिहार्य मानता है। मार्क्स की विचारधारा को विश्व के कई देशों में अपनाया गया। इंग्लैंड और अमेरिका जैसे कुछ देश जिसमें लोकतंत्र बहुत सुंदृढ़ था।मार्क्सवाद के स्थान पर विकासवादी समाजवाद को अपनाया गया। विकासवादी समाजवाद के अंतर्गत पूंजीवाद के स्थान पर समाजवाद की स्थापना के लिए क्रांति आवश्यक नहीं है। इस परिवर्तन के लिए संवैधानिक व शांतिपूर्ण साधनों को ही अपनाया जाना चाहिए। विकासवादी समाजवाद के भी अनेक रूप हैं।
इनमें फेबियनवाद, संशोधनवाद, श्रेणी समाजवाद समष्टिवादी और लोकतांत्रिक समाजवाद प्रमुख है। वर्तमान में विश्व के अधिकांश देशों में लोकतांत्रिक समाजवाद किसी न किसी रूप में विद्यमान है।
सिडनी और बैट्रिस वेब, जॉर्ज बर्नार्ड शॉ, प्रो ग्राहम वालास, एनी बेसेंट, आर एच टोनी, रेम्जै मैकडॉनल्ड, एटली, लास्की, जी डी एच कोल आदि को विकासवादी समाजवाद के प्रमुख प्रतिपादक माना जाता है।
अमेरिका में नॉर्मन थॉमस और भारत में आचार्य नरेंद्र देव, जयप्रकाश नारायण और जवाहरलाल नेहरू को विकासवादी समाजवादियों की श्रेणी में माना जाता है।
👉 समाजवाद और साम्यवाद में अंतर संबंधी डॉ ए के वर्मा का वीडियो 👇
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• समाजवाद के प्रमुख सिद्धांत
समाजवाद मूलतः पूंजीवादी व्यवस्था व व्यक्तिवादी विचारधारा के विरुद्ध आंदोलन है। समाजवाद का मुख्य उद्देश्य समाज में संवैधानिक और लोकतांत्रिक तरीकों से राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक समानता की स्थापना करना है। समाजवाद के प्रमुख सिद्धांत निम्न हैं -- सामाजिक और आर्थिक समानता में आस्था।
- समाजवाद का लक्ष्य पूंजीवाद की समाप्ति।
- समाजवाद एक लोकतांत्रिक विचारधारा है।
- समाजवाद समाज की आंगिक एकता का पक्षधर है।
- प्रतियोगिता के स्थान पर सहयोग की भावना का विकास।
- समाजवाद उत्पादन के साधनों पर सामाजिक स्वामित्व के पक्ष में है।
- व्यक्ति की अपेक्षा समाज को अधिक महत्व देता है।
- समाजवादी राज्य को एक लोक कल्याणकारी राज्य या संस्था मानते हैं।
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