किंतु यह परंपरागत शब्दावली है और जहां तक व्यवहार का संबंध है, मंत्रिमंडल (Cabinet) भारतीय शासन व्यवस्था की सर्वोच्च इकाई है और उसके द्वारा समस्त शासन व्यवस्था का संचालन किया जाता है।
वास्तव में राष्ट्रपति की समस्त शक्तियों का उपयोग मंत्रिमंडल (Cabinet) द्वारा ही किया जाता है और इसे 'भारतीय शासन व्यवस्था का ह्रदय' कहा जा सकता है।
भारत में ब्रिटेन जैसी ही संसदात्मक शासन व्यवस्था है, इसलिए केबिनेट के संबंध में जो कुछ कहा गया है, भारतीय कैबिनेट या मंत्रिमंडल पर भी पूर्ण रूप से लागू होता है। ब्रिटिश कैबिनेट के संबंध में लावेल लिखते हैं कि,
"केबिनेट राजनीतिक भवन की आधारशिला है।" ("The cabinet is the key-stone of the Political arch." - Lavel)
सर जॉन मैरियट के अनुसार,
"कैबिनेट वह धूरी है, जिसके चारों और समस्त राजनीतिक तंत्र घूमता है।" ("Cabinet is the pivot around which the whole political machinery revolves." - Sir John Marriot)
मंत्रिमंडल की महत्वपूर्ण शक्तियां और कार्य
(1) सभी महत्वपूर्ण विषयों पर राष्ट्रीय नीति निर्धारित करना :
मंत्रिमंडल का सबसे अधिक महत्वपूर्ण कार्य राष्ट्रीय नीति निर्धारित करना है। मंत्रिमंडल यह निश्चित करता है कि आंतरिक क्षेत्र में प्रशासन के विभिन्न विभागों द्वारा और वैदेशिक क्षेत्र में दूसरे देशों के साथ संबंध के विषय में किस प्रकार की नीति अपनायी जायेगी। मंत्रिमंडल द्वारा अपनाई गई नीति के आधार पर ही समस्त प्रशासनिक व्यवस्था चलती है।
(2) कानून निर्माण पर नियंत्रण :
संसदात्मक व्यवस्था होने के कारण मंत्रिमंडल का कार्यक्षेत्र नीति निर्धारण तक ही सीमित नहीं है वरन् इसके द्वारा कानून निर्माण के कार्य का नेतृत्व भी किया जाता है। मंत्रिमंडल द्वारा नीति निर्धारित कर दिए जाने के बाद उसके द्वारा ही निर्माण का कार्यक्रम निश्चित किया जाता है और मंत्रिमंडल के सदस्य ही महत्वपूर्ण विधेयक सदन में प्रस्तावित करते हैं।
वर्तमान समय में मंत्रिमंडल कानून निर्माण कार्य में इतने अधिक प्रमुख रूप से भाग लेता है कि इसे देखते हुए यदि यह कहा जाए कि संसद की सलाह से मंत्रिमंडल ही कानून निर्माण करता है, तो अनुचित न होगा। अध्यादेश जारी करने व प्रदत्त व्यवस्थापन के कारण तो मंत्रिमंडल की कानून निर्माण की शक्ति बहुत अधिक बढ़ जाती है।
(3) राष्ट्रीय कार्यपालिका पर सर्वोच्च नियंत्रण :
सैद्धांतिक दृष्टि से संघ सरकार की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति के हाथों में है लेकिन व्यवहार में इस प्रकार की समस्त कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग मंत्रिमंडल के द्वारा किया जाता है।
मंत्रिमंडल में विभिन्न विभाग के अध्यक्ष होते हैं। वे अपने विभागों का संचालन करते हैं और उनके कार्यों की देखभाल करते हैं। मंत्रिमंडल ही आन्तरिक प्रशासन का संचालन करता है और देश की समस्त प्रशासनिक व्यवस्था पर नियंत्रण रखता है।
(4) मंत्रिमंडल का समन्वयकारी कार्य :
प्रशासनिक सुविधा के लिए सरकार को विभिन्न विभागों में विभाजित कर दिया जाता है लेकिन इन विभागों में विभाजित होने पर भी सरकार में एक प्रकार की आंगिक एकता पाई जाती है और सुशासन के लिए प्रशासन के विभिन्न विभागों में समन्वय नितांत आवश्यक होता है।
विभिन्न विभागों में इस प्रकार का समन्वय स्थापित करने का कार्य मंत्रिमंडल के द्वारा ही किया जाता है। मंत्रिमंडल विभिन्न विभागों को अधिकाधिक पारस्परिक सहयोग के लिए प्रेरित करता है। इसी उद्देश्य से मंत्रिमंडलीय समितियों की स्थापना की जाती है।
(5) वित्तीय कार्य :
देश की आर्थिक नीति निर्धारित करने का उत्तरदायित्व भी मंत्रिपरिषद का होता है। इस हेतु उसके द्वारा प्रत्येक वर्ष संसद के सम्मुख देश के संभावित आय व्यय का ब्यौरा (बजट) प्रस्तुत किया जाता है।
बजट मंत्रिमंडल द्वारा निर्धारित नीति के आधार पर ही वित्तमंत्री तैयार करता है और वही उसे लोकसभा में प्रस्तुत करता है। अन्य समस्त वित्त विधेयकों को भी मंत्रिमंडल ही लोकसभा में प्रस्तुत करता है।
(6) वैदेशिक संबंधों का संचालन :
भारत के वैदेशीक संबंधों का संचालन मंत्रिमंडल के द्वारा ही किया जाता है। इसके द्वारा युद्ध तथा शांति संबंधी घोषणाएं की जाती है और इस बात का निर्णय किया जाता है कि दूसरे देशों के साथ किस प्रकार के संधि संबंध स्थापित किए जायें। मंत्रिमंडल समय-समय पर अंतरराष्ट्रीय स्थिति पर विचार कर आवश्यक निर्णय लेता है।
(7) नियुक्ति संबंधी कार्य :
सविधान के द्वारा राष्ट्रपति को जिन पदाधिकारियों को नियुक्ति करने की शक्ति प्रदान की गई है, व्यवहार में इन पदाधिकारियों की नियुक्ति मंत्रिमंडल के द्वारा ही की जाती है। मंत्रिमंडल के परामर्श से ही संसद के दोनों सदनों के मनोनीत सदस्य नियुक्त किए जाते हैं।
राज्यों के राज्यपाल, उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश, महाधिवक्ता, महालेखा परीक्षक और सेना के सेनापतियों की नियुक्ति मंत्रिमंडल के परामर्श से ही की जाती है।
(8) अन्य कार्य : उपर्युक्त के अतिरिक्त मंत्रिमंडल के द्वारा कुछ अन्य कार्य भी किए जाते हैं जैसे -
- अपराधियों को क्षमा प्रदान करने के संबंध में राष्ट्रपति को शिफारिश करना।
- भारत रत्न, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और पदम श्री आदि उपाधियां प्रदान करने के संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश करना।
- संविधान के आपातकालीन उपबंधों के संबंध में राष्ट्रपति को सिफारिश करना।
वास्तव में मंत्रिमंडल के कार्य एवं शक्तियां बहुत अधिक व्यापक होती है और देश की समस्त राजनीतिक तथा प्रशासनिक व्यवस्था पर उसका अधिकार होता है।
मंत्रिमंडल और राष्ट्रपति (Cabinet and President)
मंत्रिमंडल तथा राष्ट्रपति के पारस्परिक संबंध पर दो दृष्टिकोण से विचार किया जा सकता है - सैद्धांतिक दृष्टिकोण तथा व्यवहारिक दृष्टिकोण।
यदि सैद्धांतिक दृष्टि से विचार किया जाए तो स्पष्ट होता है कि मंत्रिमंडल राष्ट्रपति को सहायता और परामर्श देने वाली एक समिति है जिसके परामर्श को मानना या न मानना राष्ट्रपति की इच्छा पर निर्भर करता है।
व्यवहारिक स्थिति यह है कि उसे मंत्रिमंडल का परामर्श मानना ही होगा। भारत में अपनाये के संसदात्मक शासन के अंतर्गत कार्यपालिका व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी होती है।
अतः व्यवहार में कार्यपालिका शक्ति का प्रयोग उन्हीं व्यक्तियों के द्वारा किया जा सकता है जो व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी हो। व्यवस्थापिका के प्रति मंत्रिमंडल उत्तरदायी होती है, राष्ट्रपति नहीं।
अतः स्वाभाविक रूप से शासन की शक्ति का प्रयोग केबिनेट के द्वारा ही किया जाता है और राष्ट्रपति केवल एक औपचारिक प्रधान होता है जो "साधारणतया मंत्रियों के परामर्श को मानने के लिए बाध्य होगा। वह न तो उनके परामर्श के विरुद्ध कुछ कर सकता है और न उनके परामर्श के बिना ही।"
सामान्य स्थिति यह है कि राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के परामर्श को स्वीकार कर, उसके अनुसार कार्य करता है।
लेकिन 44 वें संविधान संशोधन के अनुसार {अनुच्छेद 74(1)} राष्ट्रपति और मंत्रिमंडल के आपसी संबंध के विषय में स्थिति यह है कि, "राष्ट्रपति को मंत्रिमंडल से जो परामर्श प्राप्त होगा उसके संबंध में राष्ट्रपति को अधिकार होगा कि वह मंत्रिपरिषद को इस परामर्श पर पुनर्विचार के लिए कहे, लेकिन पुनर्विचार के बाद मंत्रिमंडल से राष्ट्रपति को जो परामर्श प्राप्त होगा राष्ट्रपति उसके अनुसार ही कार्य करेंगे।"
व्यवहार में जब 21 अक्टूबर 1997 को मंत्रिमंडल द्वारा राष्ट्रपति को परामर्श दिया गया कि उत्तर प्रदेश में विधानसभा भंग कर दी जानी चाहिए, तब राष्ट्रपति ने मंत्रिमंडल के निर्णय को पुनर्विचार के लिए मंत्रिमंडल के पास भेजा।
मंत्रिमंडल ने पुनर्विचार में अपने इस परामर्श को वापस ले लिया और उत्तर प्रदेश में कल्याण सिंह मंत्रिमंडल बना रहा। इस प्रकार विशेष स्थिति में राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के कार्यों को प्रभावित कर सकता है।
44 वें संविधान संशोधन 1979 के उपर्युक्त प्रावधान का 1997 में पहली बार और सितंबर 1998 में बिहार राज्य के प्रसंग में दूसरी बार प्रयोग किया गया है।
देश के इतिहास में पहली बार मार्च 1999 को किसी प्रकार सरकार को राज्य (बिहार) में राष्ट्रपति शासन लागू करने की राष्ट्रपति की अधिसूचना को संसद में मंजूरी नहीं मिल पाने के कारण वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल की सिफारिश पर 12 फरवरी 1999 को राष्ट्रपति के आर नारायणन ने बिहार में राबड़ी देवी सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन की उद्घोषणा कि। संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन को संसद के दोनों सदनों से 2 माह के भीतर मंजूरी मिलनी जरूरी थी।
तत्कालीन वाजपेयी सरकार लोकसभा में अनुमोदन प्रस्ताव पारित कराने में सफल हो गई किंतु राज्यसभा में अनुमोदन हेतु आवश्यक बहुमत न मिलने के कारण केंद्रीय मंत्रिमंडल (Central Cabinet) ने राष्ट्रपति को 12 फरवरी 1999 को जारी उद्घोषणा वापस लेने की सिफारिश की।
नोट : शक्तियां और कार्य के संबंध में मंत्रिमंडल (cabinet) और मंत्रिपरिषद (council of ministers) में कोई अंतर नहीं है।
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