नीति निर्देशक तत्व के उद्देश्य और न्यायिक निर्णय
• आयरलैंड के संविधान से अभिप्रेरित।• नीति निर्देशक तत्वों का मुख्य उद्देश्य लोक कल्याणकारी राज्य की स्थापना, सामाजिक और आर्थिक न्याय की प्राप्ति है।
• नीति निर्देशक तत्व देश की सरकार एवं सरकारी अभिकरणों के नाम जारी किए गए निर्देश हैं।
• डॉक्टर अंबेडकर ने इनको संविधान की अनोखी विशेषता कहा है।
• डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इसका मुख्य उद्देश्य जल कल्याण वाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना बताया।
• सर आइवर जेनिंग्स ने कहा कि भारतीय संविधान का यह भाग फेबियन समाजवाद की स्थापना करता है।
• ग्रेनविल ऑस्टिन ने राज्य के नीति निदेशक तत्व को भारतीय संविधान की आत्मा कहा है।
• डॉ. अम्बेडकर के अनुसार निर्देशक तत्वों का यह आशय नहीं है कि वह केवल पूजनीय घोषणाएं बनकर रह जाएं। ये अनुदेशो के दस्तावेज हैं, जो भी सत्ता में आएगा इनका आदर करना होगा।
• डॉ राजेंद्र प्रसाद ने इसका मुख्य उद्देश्य जल कल्याण वाली सामाजिक व्यवस्था का निर्माण करना बताया।
• सर आइवर जेनिंग्स ने कहा कि भारतीय संविधान का यह भाग फेबियन समाजवाद की स्थापना करता है।
• ग्रेनविल ऑस्टिन ने राज्य के नीति निदेशक तत्व को भारतीय संविधान की आत्मा कहा है।
नीति निर्देशक तत्वों के उद्देश्य
सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय। जीवन स्तर को ऊंचा उठाना ; संसाधनों का समान वितरण ; अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देना।• डॉ. अम्बेडकर के अनुसार निर्देशक तत्वों का यह आशय नहीं है कि वह केवल पूजनीय घोषणाएं बनकर रह जाएं। ये अनुदेशो के दस्तावेज हैं, जो भी सत्ता में आएगा इनका आदर करना होगा।
डॉ भीमराव अंबेडकर ने राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत को भारत में सामाजिक - आर्थिक लोकतंत्र का घोषणा पत्र कहा।
• नीति निर्देशक तत्व वे लक्ष्य है जिन्हें हमें प्राप्त करना है और मूल अधिकार वे साधन हैं जिनके माध्यम से उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना चाहिए।
• नीति निर्देशक तत्व आत्यंतिक हैं, क्योंकि उन पर किसी स्थिति में निर्बंध नहीं लगाया जा सकता है।
• वैधानिक शक्ति के अभाव एवं न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होने के कारण आलोचना की जाती है। प्रो. के टी शाह ने "इसे एक ऐसा चेक कहा जिसका भुगतान बैंक की इच्छा पर छोड़ दिया जाता है।"
• श्री N R राघवाचारी ने नीति निदेशक तत्वों को ललित पदावली में व्यक्त उच्च ध्वनित भावनाओं की ऐसी पंक्तियां कहते हैं जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है।
• बी एन राव नीति निदेशक तत्वों को नैतिक उपदेश मानते हैं।
• अनुच्छेद 37 -- निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय न होने पर भी देश के शासन के मूल आधार है और निश्चय ही विधि बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
• अनुच्छेद 38 -- राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा जिससे नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिलेगा।
• अनुच्छेद 38 (2) -- 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा जोड़ा गया-- राज्य विशिष्टतया आय की असमानता को दूर करेगा।
• अनुच्छेद 39
* अनुच्छेद 39 (क) -- समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता, समान कार्य के लिए समान वेतन (Equal Pay for Equal Work) की व्यवस्था -- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया।
* अनुच्छेद 39 (ख) -- सार्वजनिक धन का स्वामित्व तथा नियंत्रण सार्वजनिक हित में, जमीदारी पृथा समाप्त।
* अनुच्छेद 39 (ग) -- धन का समान वितरण।
* अनुच्छेद 39 (च) -- बच्चों को स्वतंत्र गरिमामय वातावरण, स्वस्थ विकास के लिए अवसर और सुविधा।
• अनुच्छेद 40 -- ग्राम पंचायतों का संगठन।
• अनुच्छेद 41-- कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार।
• अनुच्छेद 42 -- काम की न्यायसंगत और मनोवांछित दशाओं तथा प्रसूति सहायता पाने का अधिकार।
• अनुच्छेद 43 -- कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, गांव में कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन।
• अनुच्छेद 43 क -- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया-- उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी।
• अनुच्छेद 44 -- नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code)
• अनुच्छेद 45 -- बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध - मूल संविधान में संविधान प्रारंभ के 10 वर्ष के भीतर 14 वर्ष तक के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देगा।
वर्तमान में यह निदेशक सिद्धांत मूल अधिकार बन गया है और यह अनुच्छेद 45 रिक्त हो गया इसकी जगह नवीन अनुच्छेद है।
* नवीन अनुच्छेद 45 - 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा जोड़ा गया - राज्य 6 वर्ष की आयु के सभी बालकों को पूर्व बाल्यकाल की देखरेख और शिक्षा का अवसर देने के लिए उपबंध करेगा।
• अनुच्छेद 46 -- अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं दुर्बल वर्गों की संरक्षा।
• अनुच्छेद 47 -- पोषाहार स्तर, जीवन स्तर एवं लोक स्वास्थ्य के सुधार हेतु राज्य का कर्तव्य, मादक पदार्थों का प्रतिषेध।
• अनुच्छेद 48 -- कृषि और पशुपालन का संगठन।
* अनुच्छेद 48 क -- पर्यावरण का संरक्षण, संवर्धन एवं वन्य जीवों की रक्षा।
• अनुच्छेद 49 -- राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण।
• अनुच्छेद 50 -- कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण।
• अनुच्छेद 51 -- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि। अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने हेतु नीति निर्देशक तत्व में निम्न निर्देश है -
• नीति निर्देशक तत्व वे लक्ष्य है जिन्हें हमें प्राप्त करना है और मूल अधिकार वे साधन हैं जिनके माध्यम से उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जाना चाहिए।
• नीति निर्देशक तत्व आत्यंतिक हैं, क्योंकि उन पर किसी स्थिति में निर्बंध नहीं लगाया जा सकता है।
• वैधानिक शक्ति के अभाव एवं न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होने के कारण आलोचना की जाती है। प्रो. के टी शाह ने "इसे एक ऐसा चेक कहा जिसका भुगतान बैंक की इच्छा पर छोड़ दिया जाता है।"
• श्री N R राघवाचारी ने नीति निदेशक तत्वों को ललित पदावली में व्यक्त उच्च ध्वनित भावनाओं की ऐसी पंक्तियां कहते हैं जिसका वैज्ञानिक दृष्टि से कोई महत्व नहीं है।
• बी एन राव नीति निदेशक तत्वों को नैतिक उपदेश मानते हैं।
नीति निर्देशक तत्व संवैधानिक प्रावधान
• अनुच्छेद 36 -- राज्य की परिभाषा दी गई है। राज्य के अंतर्गत - संघ सरकार, संसद, राज्य सरकार, विधानमंडल, संघ और राज्य के अधीन समस्त स्थानीय और अन्य प्राधिकारी।• अनुच्छेद 37 -- निदेशक तत्व न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय न होने पर भी देश के शासन के मूल आधार है और निश्चय ही विधि बनाने में इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा।
• अनुच्छेद 38 -- राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा जिससे नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक न्याय मिलेगा।
• अनुच्छेद 38 (2) -- 44 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1978 द्वारा जोड़ा गया-- राज्य विशिष्टतया आय की असमानता को दूर करेगा।
• अनुच्छेद 39
* अनुच्छेद 39 (क) -- समान न्याय और नि:शुल्क विधिक सहायता, समान कार्य के लिए समान वेतन (Equal Pay for Equal Work) की व्यवस्था -- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया।
* अनुच्छेद 39 (ख) -- सार्वजनिक धन का स्वामित्व तथा नियंत्रण सार्वजनिक हित में, जमीदारी पृथा समाप्त।
* अनुच्छेद 39 (ग) -- धन का समान वितरण।
* अनुच्छेद 39 (च) -- बच्चों को स्वतंत्र गरिमामय वातावरण, स्वस्थ विकास के लिए अवसर और सुविधा।
• अनुच्छेद 40 -- ग्राम पंचायतों का संगठन।
• अनुच्छेद 41-- कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार।
• अनुच्छेद 42 -- काम की न्यायसंगत और मनोवांछित दशाओं तथा प्रसूति सहायता पाने का अधिकार।
• अनुच्छेद 43 -- कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, गांव में कुटीर उद्योग को प्रोत्साहन।
• अनुच्छेद 43 क -- 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1976 द्वारा जोड़ा गया-- उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी।
• अनुच्छेद 44 -- नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता (Uniform Civil Code)
• अनुच्छेद 45 -- बालकों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबंध - मूल संविधान में संविधान प्रारंभ के 10 वर्ष के भीतर 14 वर्ष तक के बच्चों को निशुल्क शिक्षा देगा।
वर्तमान में यह निदेशक सिद्धांत मूल अधिकार बन गया है और यह अनुच्छेद 45 रिक्त हो गया इसकी जगह नवीन अनुच्छेद है।
* नवीन अनुच्छेद 45 - 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 द्वारा जोड़ा गया - राज्य 6 वर्ष की आयु के सभी बालकों को पूर्व बाल्यकाल की देखरेख और शिक्षा का अवसर देने के लिए उपबंध करेगा।
• अनुच्छेद 46 -- अनुसूचित जातियों, जनजातियों एवं दुर्बल वर्गों की संरक्षा।
• अनुच्छेद 47 -- पोषाहार स्तर, जीवन स्तर एवं लोक स्वास्थ्य के सुधार हेतु राज्य का कर्तव्य, मादक पदार्थों का प्रतिषेध।
• अनुच्छेद 48 -- कृषि और पशुपालन का संगठन।
* अनुच्छेद 48 क -- पर्यावरण का संरक्षण, संवर्धन एवं वन्य जीवों की रक्षा।
• अनुच्छेद 49 -- राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण।
• अनुच्छेद 50 -- कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण।
• अनुच्छेद 51 -- अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि। अंतर्राष्ट्रीय शांति को बढ़ावा देने हेतु नीति निर्देशक तत्व में निम्न निर्देश है -
१) अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा की अभिवृद्धि
(२) राष्ट्रों के बीच न्यायसंगत और सम्मानपूर्ण संबंधों को बनाए रखना
(३) संगठित लोगों के एक दूसरे से व्यवहारों में अंतर्राष्ट्रीय विधि और संधि-बाध्यताओं के प्रति आदर बढ़ाना
(४) अंतर्राष्ट्रीय विवादों के मध्यस्थ द्वारा निपटारे के लिए प्रोत्साहन देने का प्रयास करेगा।
• संविधान के अन्य भागों में उल्लेखित नीति निर्देशक तत्व, ये निर्देश न्यायालय के निर्णयाधिन नहीं है। दलवी बनाम तमिलनाडु राज्य में निर्णय दिया कि संविधान के सभी भागों के साथ इन्हें भी पढ़ा जाना चाहिए --* अनुच्छेद 350 क -- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा देना
* अनुच्छेद 351-- हिंदी को प्रोत्साहन देना
* अनुच्छेद 335 -- संघ/राज्य सेवाओं और पदों के लिए नियुक्त SC - ST के दावों का प्रशासन व दक्षता बनाए रखने की संगति के अनुसार ध्यान।
• अनुच्छेद 31 ग --
* 25 वें संविधान संशोधन अधिनियम 1971 द्वारा जोड़ा गया
* अनुच्छेद 39 (ख) और (ग) में उल्लेखित नीति निर्देशक तत्वों को कार्यान्वित करने के लिए विधि बनाने की शक्ति देता है।
* इस प्रकार की बनाई गई विधि यदि अनुच्छेद 14 एवं 19 के मूल अधिकारों का अतिक्रमण करती है तो वह विधि शून्य नहीं होगी। इस प्रकार नीति निर्देशक तत्वों को मूल अधिकार पर प्रभावी बनाया गया।
* केशवानंद भारती 1973 मामले में इसे महत्व दिया गया।
* 42 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा अनुच्छेद 31 (ग) का विस्तार करके सभी नीति निर्देशक तत्वों को मौलिक अधिकारों पर प्राथमिकता दी गई।
* मिनर्वा मिल्स वाद 1980 में इस संशोधन को असंवैधानिक घोषित कर नीति निर्देशक और मूल अधिकारों को एक दूसरे के पूरक बताया। भाग 3 एवं 4 के बीच संतुलन भारतीय संविधान की आधारशिला है।
• सर्वप्रथम मद्रास राज्य बनाम चंपाकरण दोइराजन 1951 मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मूल अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में विरोध की स्थिति में न्यायालय ने मौलिक अधिकारों को अधिमान किया तथा निदेशक तत्वों को मूल अधिकारों के सहायक के रूप में उल्लेखित किया।
• सदानंद हेगड़े :-- सिद्धांतत: एक ही संविधान के दो भागों में कोई असंगति नहीं हो सकती।
• ग्रेनविल ऑस्टिन :-- मूल अधिकारों और नीति निदेशक तत्वों को शामिल करने की अपेक्षा आशा थी कि भारत में वास्तविक स्वाधीनता का वृक्ष लहराएगा।
• ग्रेनविल ऑस्टिन ने नीति निर्देशक तत्वों को आर्थिक स्वाधीनता की घोषणा कहा है।
• के सी व्हीयर ने नीति निर्देशक तत्वों को उद्देश्य और आकांक्षाओं का घोषणा पत्र कहा है।
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