• दलित पैंथर संगठन (Dalit Panther Organization)
दलित पैंथर एक सामाजिक और राजनीतिक संगठन है जो दलितों का प्रतिनिधित्व करने तथा दलितों और पिछडों के हक के लिए लड़ने के उद्देश्य से स्थापित हुआ।
70 के दशक के शुरुआती सालों मे शिक्षित और युवा दलितों ने अनेक मंचो के माध्यम से दलित समुदाय की पीड़ा और आक्रोश की अभिव्यक्ति की। दलित हितों के हक की इस लड़ाई में महाराष्ट्र मे 1972 मे दलित युवाओं ने “दलित पैंथर” नामक एक संगठन बनाया था।
भीमराव अम्बेडकर द्वारा गठित 'भारतीय रिपब्लिकन पार्टी' के विखंडन के बाद दलित राजनीति में बने एक रिक्त भाग को दलित पैंथर ने भरा। दलित पैंथर ने हमेशा उग्र राजनीति को बढ़ावा दिया और अम्बेडकर, ज्योतिराव फुले एवं कार्ल मार्क्स के क़दमों पर चलने का दावा किया।
इस संगठन ने बाबा साहब अंबेडकर द्वारा लिखित किताबों और विचारों को लोगों तक पहुंचाया और गांधीवाद, साम्यवाद, समाजवाद से अंबेडकरवादी विचारों की तुलना की और अंबेडकरवाद की नींव रखी।
• दलित पैंथर संगठन की स्थापना कब और किसने की
डॉ. भीमराव अंबेडकर के महापरिनिर्वाण के बाद महाराष्ट्र के शिक्षित एवं युवाओं ने दलित पैंथर संगठन की स्थापित की। ये दलितों की पहली शिक्षित पीढ़ी थी।
दलित पैंथर के गठन के पीछे ‘इलाया पेरुमल समिति’ की रिपोर्ट का भी बड़ा योगदान था। अप्रैल 1965 में सम्पूर्ण देश में दलित जातियों पर हो रहे अत्याचारों के मामलों का अध्ययन करके उन्हें दूर करने के उपाय सुझाने के लिए सांसद एल. इलाया पेरुमल की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया गया था। इस समिति ने दलित उत्पीड़न के हजारों मामलों का अध्ययन करके 30 जनवरी 1970 को अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंपी थी. उसने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि दलितों को न्याय मुहैया कराने में इन्दिरा सरकार पूरी तरह से विफल रही है।
इलाया पेरूमल समिति की अनुशंसाओं के आधार पर 1975 में अस्पृश्यता (अपराध) अधिनियम 1955 में व्यापक संशोधन किए गए तथा इसका नाम बदलकर सिविल संरक्षण अधिनियम, 1955 कर दिया गया। यह संशोधित अधिनियम 19 नवंबर 1976 से प्रभावी हुआ था।
इस प्रकार 1970 के दशक में अध्ययन के लिए मुंबई आए विद्यार्थियों ने दलितों पर हो रहे अत्याचार और 1972 में संसद में पेश हुए इलाया पेरूमल रिपोर्ट जो देश में दलित आदिवासियों पर बढ़ते अत्याचार पर थी, इसे लेकर दलित पैंथर की स्थापना नामदेव ढसाल एवं ज वी पवार द्वारा 21 मई 1972 में मुंबई (महाराष्ट्र) में की गयी थी। नामदेव ढसाल, राजा ढाले व अरुण कांबले इसके आरंभिक व प्रमुख नेताओं में हैं।
राजा ढाले साहित्यकार भी थे और उन्होंने दलित पैंथर की पत्रिका साधना में 'काला स्वतंत्रता दिन' शीर्षक नाम से एक लेख प्रकाशित किया। इस लेख ने कई विवाद खड़े किये और दलित पैंथर को महाराष्ट्र में लोकप्रिय कर दिया। इसी घटना के बाद राजा ढाले को दलित पैंथर का एक प्रमुख नेता बनाया गया। दलित पैंथर आंदोलन महाराष्ट्र राज्य से प्रारंभ हुआ था एवं इस संस्था की कई शाखाएं अन्य राज्यों जैसे तमिलनाडू एवं कर्नाटक में भी स्थापित की गयीं।
दलित पैंथर संगठन अमेरिका में निग्रो लोगों के अधिकार के लिए लड़ रहे 'ब्लैक पैंथर' पार्टी से प्रभावित थी। ब्लैक पैंथर पार्टी ने 20 वीं सदी में अमेरिका में हुए अफ्रीकी-अमेरिकी नागरिक अधिकार आंदोलन के दौरान अफ़्रीकी-अमेरिकी नागरिकों के अधिकारों के लिए आवाज़ उठाने में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। ब्लैक पैंथर पार्टी ने भी अपने अखबार 'ब्लैक पैंथर' के द्वारा 'दलित पैंथर' का भरपूर समर्थन किया।
दलित पैंथर के अलावा और भी दलित युवाओं के संगठन थे, जैसे - रिपब्लिकन स्टूडेंट एसोसिएशन, रिपब्लिकन क्रांति दल, युवक आघाड़ी परंतु दलित पैंथर में वैचारिक प्रतिबद्धता थी।
• दलित पैंथर संगठन का उद्देश्य
दलित पैंथर के द्वारा किए गए आंदोलन की रणनीति जाति प्रथा को समाप्त करना तथा भूमिहीन गरीब किसान, शहरी औद्योगिक मजदूर और दलित सहित सारे वंचित वर्गो का एक संगठन खड़ा करना था। दलित पैंथर संगठन ने दलित अधिकारो की दावेदारी करते हुए “जन-कारवाई” का मार्ग अपनाया था। महाराष्ट्र के विभिन्न इलाकों में दलितों पर बढ़ रहे अत्याचार से लड़ना इसकी मुख्य गतिविधि थी।
• दलित पैंथर आंदोलन की मुख्य मांगे
1. संविधान में भेदभाव, आरक्षण, सामाजिक न्याय की नीतियों के कारगर क्रियान्वयन की माँग।
2. जाति के आधार पर असमानता और भौतिक संसाधनो के मामले मे अपने साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ना।
3. दलित महिलाओ के साथ हो रहे दुर्व्ययहार का विरोध करना।
4. भूमिहीन किसानो, मजदूरो और सारे वंचित वर्ग को उनके अधिकार दिलवाना और दलितो मे शिक्षा का प्रसार करना।
5. दलितो के साथ हो रहे सामाजिक-आर्थिक उत्पीड़न को रोकना।
• दलित पैंथर आंदोलन का परिणाम
दलित पैंथर के आंदोलन के परिणाम स्वरूप सरकार ने 1989 मे एक व्यापक कानून बनाया। इस कानून के अंतर्गत दलित पर अत्याचार करने वाले के लिए कठोर दंड का प्रावधान किया गया।
आपातकाल (1975) के बाद के दौर मे इस संगठन ने कई चुनावी समझौते भी किए। इस संगठन मे कई विभाजन भी हुए और यह संगठन राजनीतिक पतन का शिकार भी हुआ। संगठन के पतन के बाद इसकी जगह बामसेफ (बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी एम्प्लाइज फेडरेशन - BAMCEF) का निर्माण हुआ।
• दलित पैंथर संगठन का पुनर्गठन
एस.एम प्रधान के नेतृत्व में भारतीय दलित पैंथर का गठन 1978 में औरंगाबाद में हुआ। इसके पहले अध्यक्ष अरुण कांबले बने। इस संगठन में रामदास आठवले और गंगाधर गाडे युवा नेता थे तो दूसरी तरफ दलित पैंथर को बंद करके राजा भाऊ ने मास मूवमेंट नाम का युवाओं का संगठन बनाया। नामदेव ढासाल ने आर्थिकता से तंग आकर शिवसेना के मुखपत्र सामना में संपादक का काम करना शुरू किया और दलित पैंथर नाम से ही संगठन चलाया।
आगे चलकर भारतीय दलित पैंथर के औरंगाबाद के मराठवाड़ा विद्यापीठ को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर नाम देने का आंदोलन 16 साल तक चलाया। इसका नेतृत्व रामदास आठवले कर रहे थे।
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• दलित पैंथर : एक आधिकारिक इतिहास
फॉरवर्ड प्रेस द्वारा प्रकाशित और ज.वी. पंवार द्वारा लिखित दलित पैंथर : एक आधिकारिक इतिहास पुस्तक है। यह डॉ. भीमराव अंबेडकर के बाद अंबेडकरवादी आंदोलन पर उनकी पुस्तक श्रृंखला की चौथी पुस्तक है।