इस आर्टिकल में सूर्यातप एवं तापमान से संबंधित विभिन्न महत्वपूर्ण बिंदुओं जैसे पृथ्वी का उस्मा बजट क्या है, तापमान असंगति, तापमान का प्रतिलोमन, उपसौर एवं अपसौर, अभिवहन, तापमापन की इकाईयां आदि के बारे में चर्चा करेंगे।
• पृथ्वी का उष्मा बजट क्या है
पृथ्वी का औसत वार्षिक तापमान एक समान रहता है। सौर विकिरण के द्वारा पृथ्वी जितनी उष्मा प्राप्त करती है, उतनी ही उष्मा पृथ्वी पार्थिव विकिरण के द्वारा अंतरिक्ष में वापस लौटा देती है। इस संतुलन को ही पृथ्वी का उष्मा बजट कहते हैं।
पृथ्वी का उष्मा बजट |
• तापमान असंगति क्या है
धरातल पर किसी स्थान विशेष के औसत तापमान तथा उस स्थान के अक्षांश के औसत तापमान के अंतर को तापमान असंगति कहते हैं। इस औसत से विचलन की मात्रा तथा दिशा प्रदर्शित होती है।
• तापमान का प्रतिलोमन
सामान्य रूप से क्षोभ मंडल में ऊंचाई के साथ तापमान घटता जाता है परंतु कभी-कभी भाइयों की निचली प्रथम में ऊंचाई के साथ तापमान बढ़ने लगता है इस प्रकार तापमान के ऊर्ध्वाधर वितरण का क्रम बदल जाता है जिसे तापमान का व्युत्क्रमण या प्रतिलोमन कहते हैं।
तापमान का प्रतिलोमन विशेष रूप से शीतकाल की ठंडी रातों में होता है जब आकाश साफ, हवा बहुत शुष्क तथा पवन शांत अवस्था में रहती है। ऐसी परिस्थितियों में धरातल और वायु की निचली परतो से उष्मा का विकिरण तीव्र गति से होता है। परिणामस्वरूप निचली परत की हवा ठंडी होने के कारण घनी वह भारी हो जाती है। ऊपर की हवा जिसमें उष्मा का विकिरण धीमी गति से होता है तथा वह अपेक्षाकृत गर्म रहती है। ऐसी परिस्थिति में तापमान ऊंचाई के साथ घटने के स्थान पर बढ़ने लगता है।
तापमान का प्रतिलोमन |
तापमान के प्रतिलोमन के फलस्वरूप निचली परत की हवा ठंडी होने के कारण घनी एवं भारी हो जाती है। ऊपर की हवा जिसमें उष्मा का विकिरण धीमी गति से होता है वह अपेक्षाकृत गर्म रहती है। ऐसी परिस्थिति में तापमान ऊंचाई के साथ घटने के स्थान पर बढ़ने लगता है। ऐसा अंतर पर्वतीय घाटियों में होता है। यही कारण है कि पर्वतीय घाटियों में बस्तियां और फलों के बगीचे पर्वतीय ढालों के ऊपरी भाग में विकसित किए जाते हैं।
• उपसौर एवं अपसौर की स्थिति
प्रतिवर्ष 3 जनवरी को पृथ्वी और सूर्य के बीच निकटतम दूरी 147,000,000 किलोमीटर हो जाती है। इस स्थिति को उपसौर के नाम से जाना जाता है। प्रतिवर्ष 4 जुलाई को पृथ्वी और सूर्य के बीच अधिकतम दूरी 152,000,000 किलोमीटर हो जाती है। इस स्थिति को अपसौर के नाम से जाना जाता है।
प्रतिवर्ष 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य से नजदीक होने के कारण अपेक्षाकृत अधिक ताप एवं प्रतिवर्ष 4 जुलाई को दूर होने के कारण अपेक्षाकृत कम ताप प्राप्त करती है। फलस्वरुप दक्षिणी गोलार्ध की ग्रीष्म एवं शीत ऋतुएं उत्तरी गोलार्ध की तुलना में 7% से अधिक कठोर होती है क्योंकि जनवरी में सूर्य मकर रेखा पर सीधा चमकता है। इसलिए अधिक सूर्यातप प्राप्त होने के कारण दक्षिण गोलार्ध की ग्रीष्म ऋतु अधिक कठोर और उत्तरी गोलार्ध कि शीत ऋतु कम ठंडी होती है।
• सौर कलंक क्या है
सूर्य की सतह पर दिखाई देने वाले धब्बों को सौर कलंक के नाम से जाना जाता है। इनका रूप स्थाई नहीं होता है अपितु ये बनते बिगड़ते रहते हैं तथा इनकी संख्या कम व अधिक होती रहती है। यह अंतर चक्रिय रूप में पूरा होता है। औसत रूप में सौर कंलकों का एक चक्कर 11 वर्ष में पूरा होता है। जब सौर कंलकों की संख्या अधिक हो जाती है तो सूर्यातप की मात्रा भी अधिक हो जाती है तथा इनकी संख्या कम होने पर सूर्यातप की मात्रा भी कम हो जाती है।
अभी तक यह निश्चित नहीं हो पाया है कि सौर विकिरण की भिन्नता का पृथ्वी की जलवायु पर किस सीमा तक प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा सौर धब्बों का प्रभाव भी किस स्थिति में कम तथा किस स्थिति में अधिक होगा। इसका भी कुछ निश्चय नहीं हो सका है।
• अभिवहन
धरातल पर तापीय विषमता होने के कारण पवनों का क्षैतिज रूप में प्रवाह होता है। इससे एक स्थान की उष्मा का दूसरे स्थान की तरफ स्थानांतरण होता है। उपोष्ण कटिबंधीय दाब से ध्रुवीय कम दाब की तरफ चलने वाली हवाएं मध्य अक्षांशों में शीत ऋतु में भी तापमान की बढ़ोतरी कर देती है।
• ताप मापन की इकाइयां
तापमान उष्मा की तीव्रता का मापन है। ताप मापने के लिए सेल्सियस या सेंटीग्रेड मापक सबसे अधिक प्रचलित हैं। फॉरेनहाइट, ट्यूमर तथा केल्विन मापक भी प्रयोग में लाए जाते हैं। ताप मापने के लिए अनेक प्रकार के थर्मामीटर एवं थर्मोग्राफ का प्रयोग किया जाता है।
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