सरदार बल्लभ भाई पटेल का बाल्यकाल एवं शिक्षा दीक्षा
Childhood and education initiation of Sardar Ballabh Bhai Patel
सरदार वल्लभभाई पटेल का जन्म वर्ष 1875 में ग्राम बोरसद (गुजरात) के एक मध्यमवर्गीय परिवार में हुआ। उनके पिता जेवरेभाई पटेल ने सन 1857 के संग्राम में भाग लिया था। सरदार पटेल ने अपनी स्कूली शिक्षा नाडियाड हाई स्कूल में प्राप्त की।
स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद अर्थाभाव के कारण वल्लभभाई पटेल कॉलेज और विश्वविद्यालय की कक्षाओं में सम्मिलित नहीं हो सके, किंतु 3 वर्ष बाद उन्होंने मंडल वकील परीक्षा पास कर अहमदाबाद में वकालत प्रारंभ की और कुछ अर्थसंग्रह कर वे इंग्लैंड गए। वहां से मिडल टेंपल से बैरिस्टर की उपाधि धारण कर फरवरी, 1913 में भारत लौटे और अहमदाबाद में ही पुनः अपनी वकालत प्रारंभ की।
• सरदार बल्लभभाई पटेल एक राष्ट्रवादी
सरदार बल्लभ भाई पटेल भारत को एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में देखना चाहते थे। उनकी आंखों में राष्ट्र का गौरवमयी चित्र अंकित था और इसी कार्य में उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। पहले वे राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी नेता रहे। स्वतंत्रता के बाद उन्होंने देशी रियासतों के एकीकरण का महत्वपूर्ण राष्ट्रीय कार्य किया।
• पटेल गांधीवादी विचारधारा के अग्रदूत थे
Patel was the pioneer of Gandhian ideology
स्वतंत्रता संग्राम के दिनों में वल्लभभाई पटेल गांधीवादी विचारधारा के अग्रदूत थे। वे गांधीजी के परम अनुयायियों में से थे और उन्होंने गांधी द्वारा संचालित राष्ट्रीय आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
• पटेल स्वतंत्र व्यक्तित्व के धनी थे
Patel was rich in independent personality
यद्यपि वे गांधीजी के अनुयाई थे और सामान्यतः उन्होंने उनके आदेशों को क्रियान्वित किया लेकिन भारत विभाजन के प्रश्न पर उन्होंने स्वतंत्र व्यक्तित्व का परिचय देते हुए गांधीजी के मत को न केवल स्वीकार किया बल्कि गांधी जी को अपने मत से सहमत भी किया।
सरदार वल्लभभाई का भारत निर्माण में योगदान
Sardar Vallabhbhai contributed to building India
सरदार वल्लभ भाई पटेल के जीवन का महामंत्र भारत को सशक्त और सुदृढ़ बनाना था। उनके कार्यों का विवेचन निम्न बिंदुओं के अंतर्गत किया गया है-
1. गांधीजी के असहयोग आंदोलन में सक्रिय रहे
सन् 1916 में सरदार वल्लभभाई पटेल महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे असहयोग आंदोलन से जुड़े। त्याग, अध्यवसाय और संगठनात्मक कला से शीघ्र ही श्रेष्ठ नेता बन गए।
2. अहमदाबाद नगर सरकार के अध्यक्ष
सरदार पटेल सन 1924 में सन 1928 तक अहमदाबाद नगर सरकार के अध्यक्ष रहे।
3. बारदोली सत्याग्रह का कुशल नेतृत्व किया
सरदार पटेल ने 1928 में बारदोली सत्याग्रह का कुशल नेतृत्व किया। ऐसा करके उन्होंने किसानों के मध्य अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया।
पटेल द्वारा बारदोली सत्याग्रह के सफल नेतृत्व से गुजराती राजनीति पर उनका एकछत्र प्रभाव स्थापित हो गया। महात्मा गांधी ने आंदोलन का कुशल नेतृत्व करने के लिए उन्हें सरदार की उपाधि प्रदान की।
4. अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष
सरदार वल्लभभाई पटेल 1931 में अखिल भारतीय कांग्रेस के अध्यक्ष बने। अधिवेशन में मौलिक अधिकार विषयक प्रस्ताव पारित हुआ जो भारत के संवैधानिक विकास के क्रम में महत्वपूर्ण साबित हुआ।
5. व्यक्तिगत सत्याग्रह तथा भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लेना
1941 में व्यक्तिगत सत्याग्रह में तथा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई तथा जेल गए।
6. महात्मा गांधी के परम अनुयायी, लेकिन स्वतंत्र व्यक्तित्व के धनी
स्वतंत्रता संग्राम के काल में पटेल गांधीवादी विचारधारा के अग्रदूत तथा महात्मा गांधी के परम अनुयायियों में से थे, लेकिन इसके साथ ही वे स्वतंत्र व्यक्तित्व के धनी थे।
सामान्यत: उन्होंने गांधीजी के आदेशों को क्रियान्वित किया, लेकिन विभाजन के प्रश्न पर उन्होंने अपने स्वतंत्र व्यक्तित्व का परिचय दिया और गांधी जी को अपने मत से सहमत किया।
7. अंतरिम सरकार में गृह व सूचना प्रसारण मंत्री तथा देशी रियासतों का एकीकरण
1946 की अंतरिम सरकार में वे गृह एवं सूचना प्रसारण मंत्री, जुलाई 1947 में राज्य के मंत्री तथा 1948 के बाद गृह एवं राज्य मंत्री बने। उन्होंने गृह मंत्रालय का काम बड़ी योग्यता व दक्षता के साथ किया। पटेल का इस इस क्षेत्र में सराहनीय कार्य देशी राज्यों का भारत में एकीकरण करना रहा।
सरदार वल्लभभाई पटेल की राजनीतिक सूझबूझ, व्यवहार कुशलता और राजनीतिक योग्यता से 500 से अधिक छोटी-बड़ी रियासतों का भारत संघ में विलय संभव हो सका।
उन्होंने राष्ट्र की अखंडता की रक्षा की। उनकी तुलना जर्मनी के लार्ड चांसलर बिस्मार्क से की जाती है। बिस्मार्क ने लौह और रक्त की नीति से जर्मनी का एकीकरण किया। वहीं सरदार वल्लभभाई पटेल ने यह कार्य अपनी सूझबूझ और कूटनीति से किया। इसलिए एकीकरण के उनके कार्य की तुलना बिस्मार्क से की जाती है।
देशी रियासतों के एकीकरण के कार्य की सफलता के कारण उन्हें लौह पुरुष की संज्ञा दी गई। हैदराबाद का भारत में विलय सरदार पटेल के प्रयासों का ही परिणाम है।
8. संविधान निर्माण में योगदान
भारत के संविधान निर्माण में भी उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। वे संविधान निर्मात्री सभा की 3 उप समितियों के अध्यक्ष तथा संविधान संचालन समिति और राज्य समिति के सदस्य थे। इस क्षेत्र में उनका योगदान इस प्रकार रहा –
१. उन्होंने अल्पसंख्यकों व अनुसूचित जाति व जनजाति को छोड़कर अन्य वर्गों के आरक्षण को स्वीकार नहीं किया।
२. उनका यह विचार संविधान में समाविष्ट किया गया कि आवश्यकता पड़ने पर राष्ट्रपति राज्यों का शासन अपने हाथ में ले सकता है।
३. राज्य द्वारा संपत्ति ग्रहण करने पर राज्य संबंधित व्यक्ति को क्षतिपूर्ति की राशि देगा। यह बात भी उन्हीं के सुझाव का समर्थन का परिणाम।
४. राष्ट्रपति के निर्वाचन में राज्य विधानसभाओं के सदस्यों को शामिल करने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही।
५. उन्होंने मौलिक अधिकारों और राज्य सत्ता की रक्षा के मध्य संतुलन स्थापित करने पर बल दिया।
६. वे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के पक्षधर रहे।
यद्यपि वे गृह समस्याओं के निदान और समाधान के लिए जाने जाते हैं, तथापि विदेशी मामलों में भी उनकी गहरी सूझबूझ थी। उन्होंने चीन के वैचारिक साम्राज्यवादी स्वरूप को पहचानते हुए तिब्बत के संबंध में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु को सचेत रहने के लिए कहा।
उनका विचार था कि चीनी साम्राज्यवाद वैचारिक प्रसार की क्रिया को अपनाकर पश्चिमी साम्राज्यवाद से कहीं अधिक भयंकर सिद्ध हो सकता है। उन्होंने बताया कि सैन्य शक्ति का विस्तार, संचार प्रक्रिया की समुचित व्यवस्था, चौकीयों की सुरक्षा, बर्मा के साथ अच्छे संबंध बढ़ाना चीन के विरुद्ध शक्ति के साधन हो सकते हैं।
उन्होंने नेपाल, भूटान, सिक्किम और असमी जनजातियों के विषय में विचारपूर्ण नीति के क्रियान्वयन पर बल देने का आग्रह किया तथा चीन के राष्ट्रसंघ में प्रवेश संबंधी भारत की वकालत की नीति पर भी पुनर्विचार करने की आवश्यकता प्रतिपादित की।
उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि सरदार वल्लभभाई पटेल स्वतंत्रता संग्राम के अमर सेनानी, दृढ प्रतिज्ञ, दूरदर्शी और विशाल व्यक्तित्व के धनी थे। कुछ मामलों में नेहरू जी से उनके मतभेेद रहे विशेषकर जम्मू कश्मीर के मामलों को लेकर। लेकिन उन्होंंने सभी को साथ लेकर सभी के साथ मिलकर आधुनिक भारत की सशक्त नींव रखी।