• राजा राममोहन राय के धार्मिक विचार
Religious views of Raja Rammohan Roy
धार्मिक सत्य के प्रति मन में गहरी जिज्ञासा के कारण राजा राममोहन राय ने विश्व के सभी धर्मों का तुलनात्मक अध्ययन किया तथा उनमें निहित सत्य को समझकर विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया। जहां वाराणसी में उन्होंने संस्कृत के प्राचीन धर्मशास्त्रों का अध्ययन किया। वहीं अरबी और फारसी के अधिकारपूर्ण ज्ञान के आधार पर इस्लाम का अध्ययन किया। राजा राममोहन राय ने ईसाई धर्म के साथ ही तिब्बत के लामा बौद्ध संप्रदाय का भी अध्ययन किया।
राजा राममोहन राय – धार्मिक और सामाजिक सुधार |
मोनियर विलियम्स के अनुसार, “वे दुनिया के पहले व्यक्ति थे जिन्होंने पूरी गंभीरता, निष्ठा और लगन से दुनिया के धर्मों का तुलनात्मक अध्यन किया और उनमें निहित सत्य को समझा।”
राजा राममोहन राय ने एकेश्वरवाद का प्रतिपादन और बहुदेेेेेववाद का खंडन किया। वे मूर्ति पूजा और बलि प्रथा के विरोधी थे। उन्होंने परंपराओं के अंधानुकरण का विरोध तथा धार्मिक सहिष्णुता का प्रतिपादन किया।
राजा राममोहन राय ने धर्म को आडंबर से मुक्त करके उसे लौकिक बनाने का प्रयास किया। धर्म को मंदिर की दीवारों से मुक्त कर, उसे मानव-मात्र की सेवा के लिए अग्रसर किया।
• राजा राममोहन का सामाजिक क्षेत्र में योगदान
Raja Rammohan’s contribution to social sector
राजा राममोहन राय ने समाज सुधार को तार्किक आधार प्रदान किया। यदि समाज में अन्याय की जड़ें गहरी हैं तो स्वाधीनता भी निरर्थक हो जाती है। अतः भारत जैसे देश को राष्ट्रीय स्वाधीनता से पूर्व समाज सुधार का कार्य करना चाहिए।
ऐसी स्थिति में देश की सबसे बड़ी समस्या समाज के प्रत्येक मनुष्य को तर्क-शून्य रीति-रिवाजों से मुक्त कराने की थी। राजा राममोहन राय के सामाजिक क्षेत्र में योगदान को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर जाना जा सकता है –
1. परंपरावादिता का विरोध
सामाजिक जीवन में किसी स्थिति को मात्र इस कारण श्रेष्ठ नहीं माना जा सकता कि वह लंबे समय से चली आ रही है। अतः परंपराओं के संदर्भ में विवेकसंगत मार्ग अपनाना चाहिए।
2. सती प्रथा का उन्मूलन
हिंदू धर्म ग्रंथों के अपने ज्ञान के आधार पर उन्होंने प्रमाणित किया कि सती प्रथा धर्मसंगत नहीं थी। उनके द्वारा चलाए गए आंदोलनों के कारण लॉर्ड विलियम बैंटिक के समय में सन् 1829 में अधिनियम 17 के अंतर्गत सती प्रथा को अवैध घोषित किया गया।
3. नारी स्वतंत्रता
आधुनिक भारत में वे पहले व्यक्ति थे जो स्त्री स्वाधीनता एवं अधिकारों के समर्थक थे। उन्होंने विद्वान धर्मशास्त्रियों को उद्धृत करते हुए अपने एक लेख ‘हिंदू उत्तराधिकार विधि पर आधारित स्त्रियों के प्राचीन अधिकारों का आधुनिक अतिक्रमण’ में यह सिद्ध किया कि प्राचीन भारत में विधिशास्त्र और धर्मशास्त्र में स्त्रियों को भी संपत्ति का उत्तराधिकारी स्वीकार किया जाता था।
वे विधवा विवाह और अंतर्जातीय विवाह के समर्थक तथा बहुपत्नी विवाह के विरोधी थे। स्त्रियों को शैक्षणिक, सामाजिक और आर्थिक अधिकारों के प्रति राय के प्रगतिशील विचारों के कारण उन्हें आधुनिक भारत में स्त्री स्वतंत्रता का सूत्रधार माना जाता है।
4. शिक्षा एवं विज्ञान का समर्थन
शिक्षा मनुष्य को ज्ञान से मुक्त करके सामाजिक कुरीतियों को त्यागने की प्रेरणा और साहस प्रदान करती है। राजा राममोहन राय ने 1823 में लॉर्ड एम्हर्स्ट को लिखे ऐतिहासिक पत्र में भारतीयों के लिए आधुनिक वैज्ञानिक एवं अंग्रेजी शिक्षा का समर्थन किया।
राजा राममोहन राय ने 1816-17 में कोलकाता में एक अंग्रेजी स्कूल की स्थापना की। पाश्चात्य शिक्षा पद्धति के समर्थक होने पर भी राय भारतीय ग्रंथों के अध्ययन के प्रति पूर्ण सजग थे। इसलिए उन्होंने वेदांत कॉलेज की स्थापना की। वे निशुल्क और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा तथा नारी शिक्षा के प्रबल समर्थक थे।
राज्य द्वारा कानून निर्माण से अमानवीय सामाजिक प्रथाओं पर प्रतिबंध लगाने का उन्होंने समर्थन किया, जिससे समाज सुधार की गति को त्वरित किया जा सके।
इस प्रकार राजा राममोहन राय ने मध्ययुगीन विश्वासों और कुरीतियों पर प्रहार करते हुए समाज सुधार को तार्किक आधार प्रदान किया।
सामाजिक जीवन में उन्होंने बाल विवाह, बहुविवाह, समुद्री यात्रा निषेध का विरोध किया तथा विधवा विवाह और स्त्री शिक्षा का समर्थन किया।
इससे स्पष्ट होता है कि राजा राममोहन राय एक प्रभावशाली समाज सुधारक थे। उन्होंने इस कार्य के लिए ब्रह्म समाज की स्थापना की तथा तत्कालीन समाज में प्रचलित कुरीतियों तथा रूढ़ियों का विरोध किया।
धर्म सुधार के क्षेत्र में उन्होंने वही कार्य किया जो यूरोप में मार्टिन लूथर ने किया था। राजा राममोहन राय बुद्धिवादी दृष्टिकोण के थे जिसके द्वारा उन्होंने अंधविश्वास, कुरितियां, अविवेक और भाग्यवाद का विरोध किया तथा वे भारतीय जागरण के अग्रदूत कहलाए।
बुद्धिवादी दृष्टिकोण के कारण ही उन्होंने अंग्रेजी और वैज्ञानिक शिक्षा का समर्थन किया। राजा राममोहन राय महान मानवतावादी और विश्व बंधुत्व के समर्थक थे। उनके विचारों में मानव का कल्याण, विश्व नागरिकता, विश्व संघ और विश्व बंधुत्व दिखाई देता है।
उन्होंने पूर्व को हीन माने बिना पश्चिम के संदेश को स्वीकार किया। बीएस नरवणे ने लिखा है कि, “उन्होंने पूर्व को हीन माने बिना ही, पश्चिम के संदेश को स्वीकार करने के लिए अनुप्रेरित किया।”
राजा राममोहन राय ने इस तथ्य का प्रतिपादन किया कि यद्यपि भारतीय धर्म और संस्कृति श्रेष्ठ है, परंतु इसके साथ ही भारतीय जीवन में व्याप्त कुरीतियों को दूर करना अनिवार्य है।
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व्यक्ति की स्वतंत्रता पर बल देते हुए उन्होंने स्वतंत्रता की मांग से, चाहे वह विश्व के किसी भी कोने में उठी हो, गहरी सहानुभूती थी। स्वतंत्रता को वे प्रत्येक व्यक्ति व राष्ट्र के लिए आवश्यक मानते थे। वस्तुतः स्वतंत्रता के प्रति अगाध प्रेम ही उनकी विभिन्न गतिविधियों का स्त्रोत था।
उपयुक्त विवेचन से स्पष्ट होता है कि राजा राममोहन राय आधुनिक भारत के जनक थे। उन्होंने एक समाज सुधारक और धर्म सुधारक के रूप में देश की समस्याओं के सभी पक्षों को स्पर्श किया और उनका समाधान प्रस्तुत किया।