• क्रिया की परिभाषा
ऐसा विकारी शब्द जिससे किसी कार्य के करने या होने का बोध हो क्रिया कहलाता है। जैसे – खाना, पीना, पढ़ना, सोना, रटना, जाना आदि।
• क्रिया के भेद
क्रिया के मुख्य रूप से दो भेद होते हैं।
1. अकर्मक क्रिया – जिस क्रिया के लिए कर्म का प्रयोग ना हो गया कर्म की आवश्यकता नहीं हो उसे अकर्मक क्रिया कहते हैं। जैसे –
* राधा रोती है। यहां कर्म का अभाव है तथा रोती है क्रिया का फल राधा पर पड़ता है।
* मोहन हंसता है। यहां कर्म का अभाव है तथा हंसता है क्रिया का फल मोहन पर पड़ता है।
* लड़के मैदान में दौड़ रहे हैं। इस वाक्य में अकर्मक क्रिया है। वाक्य में मैदान के साथ कारक विभक्ति में लगी है जो अधिकरण में आता है। अतः वाक्य में कोई कर्म प्रयुक्त नहीं हुआ है। कर्ता के लिए ने का प्रयोग तभी होता है जब वाक्य में पड़ी क्रिया सकर्मक और भूतकाल के रूप में हो।
* चिड़िया आकाश में उड़ रही है। इस वाक्य में उड़ रही क्रिया अकर्मक है।
* कुत्ता भोक्ता है।
* कविता हंसती है।
* टीना सोती है।
* बच्चा रोता है।
* गेहूं पिस रहा है।
* ज्योति रोती है।
निम्न क्रियाओं के साथ अकर्मक क्रिया होगी – दौड़ना, भागना, होना, हारना, जीतना, हंसना, रोना, तैरना, ठहरना, रहना, जागना, सोना, सजाना, क्रोधित होना, निराश होना, आशान्वित होना आदि क्रियाएं अकर्मक है।
2. सकर्मक क्रिया – जिस क्रिया के साथ कर्म का प्रयोग हो या कर्म की आवश्यकता बनी हो वहां सकर्मक क्रिया होती है। जैसे –
* राम दूध पीता है। यहां पीना क्रिया सकर्मक है क्योंकि इसके साथ दूध कर्म आ रहा है।
* राम फल खाता है। खाना क्रिया के साथ कर्म फल है।
* सीता गीत गाती है। गाना क्रिया के साथ गीत कर्म है।
* भूपेंद्र दूध पी रहा है।
* नीतू खाना बना रही है।
सकर्मक क्रिया के दो भेद किए जाते हैं –
१. एक कर्मक क्रिया – जहां क्रिया का भार एक कर्म पर पड़े वहां एक कर्मक क्रिया होती है। जैसे –
* राम फुटबॉल खेलता है।
* दुष्यंत भोजन कर रहा है।
२. द्विकर्मक क्रिया – जहां क्रिया का भार दो कर्मों पर पड़े वहां द्विकर्मक क्रिया कहलाती है। जैैसे-
* मां बच्चे को दूध पिलाती है। यहां पर बच्चा और दूध दो कर्म है। दूध मुख्य कर्म है जो क्रिया के साथ लगता है। बच्चा गौण कर्म है क्योंकि क्रिया से दूर है।
* अध्यापक ने छात्रों को हिंदी पढ़ाई। यहां छात्रों और हिंदी दो कर्म है।
* चाचा जी ने मुझे पत्र लिखा है। (मुख्य कर्म – पत्र, गौण कर्म – मुझे)
* तुम मुझे किसका चित्र दिखा रहे हो। (मुख्य कर्म – चित्र, गौण कर्म – मुझे)
* अध्यापक जी छात्रों को भूगोल पढ़ा रहे है। इस वाक्य में पढ़ा रहे हैं क्रिया के साथ छात्रों एवं भूगोल दो कर्म प्रयुक्त हुए हैं।
• क्रिया के अन्य भेद –
१. प्रेरणार्थक क्रिया – जहां कर्ता किसी कार्य को अपने लिए न करके किसी दूसरे के लिए करता है या किसी दूसरे से करवाता है। वह क्रिया प्रेरणार्थक कहलाती है। जैसे –
* राम पढ़ाता है। कर्ता कार्य स्वयं के लिए कर रहा है। अतः पढ़ाता प्रेरणार्थक क्रिया (प्रथम प्रेरणार्थक) है।
* राम पढ़वाता जाता है। प्रेरणार्थक क्रिया (द्वितीय प्रेरणार्थक)
* दुष्यंत हेमंत से पत्र लिखवाता है।
* कविता सविता से पत्र पढ़वाती है।
इस प्रकार क्रियाओं के दो-दो रूप हो जाते हैं। जैसे –
क्रिया प्रथम प्रेरणार्थक द्वितीय प्रेरणार्थक
धोना धुलाना धुलवाना
पीना पिलाना पीलवाना
पढ़ना पढ़ाना पढ़ावाना
खाना खिलाना खिलवाना
२. संयुक्त क्रिया – दो या अधिक धातुओं के मेल से बनी क्रियाएं संयुक्त क्रिया कहलाती है। धातु क्रिया का मूल रूप होता है। जैसे –
* मैं पढ़ सकता हूं।
* वह भागने लगा।
* जोधा जी उठा।
* पानी बरस चुका।
* वह रोने लगा।
* मैं बोलना चाहता हूं।
३. सजातीय क्रिया – कई बार क्रिया से ही कर्म को बनाया जाता है उसे सजातीय क्रिया कहते हैं। या वे क्रियाएं जहां कर्म तथा क्रिया दोनों एक ही धातु से बनकर साथ प्रयुक्त होती हैं। जैसे –
* राजनीतिज्ञ कई चालें चलते हैं।
* पक्षी विविध बोलियां बोलता है।
* लड़के अनेक खेल खेलते हैं।
* भारत ने लड़ाई लड़ी।
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४. सहायक क्रिया – मुख्य क्रिया का काल बताने वाली क्रिया सहायक क्रिया कहलाती है। जैसे –
* वह आया था।
* वह आया है।
* वह आया होगा। यहां होना सहायक क्रिया है। जिसके हैं, था व होगा तीन रूप है। जो तीनों कालों को बताते हैं।
* वह दिनभर खाता रहा। – कालवाचक क्रिया विशेषण
* वह रात भर नहीं सोया। – कालवाचक क्रिया विशेषण
* वह ही सदा दुहता है। – कालवाचक क्रिया विशेषण
* उसी ने बोला था। – अकर्मक क्रिया