इस आर्टिकल में ब्रिटिश शासन काल के दौरान भारतीय शिक्षा आयोग जैसे हंटर कमीशन 1882, विश्वविद्यालय आयोग (भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904) सैडलर आयोग 1917, द्वैध शासन व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा, हार्टोग समिति, बुनियादी शिक्षा की वर्धा योजना 1937, सार्जेंट योजना, राधाकृष्णन आयोग आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
ब्रिटिश शासन व्यवस्था में भारतीय शिक्षा का सुधार
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान शिक्षा व्यवस्था के विकास एवं सुधार हेतु समय-समय पर भारतीय शिक्षा आयोग की नियुक्ति होती रही है।
भारत में अंग्रेजी शिक्षा के औपचारिक तथा नियमित शिक्षा की दिशा में छोटी-सी शुरूआत 1813 ई. में की, जब 1813 के चार्टर अधिनियम में भारतीयों की शिक्षा हेतु ₹100000 वार्षिक का प्रावधान किया गया था। 1813 के अधिनियम की अनुशंसा प्राच्य-पाश्चात्य विवाद के कारण लंबे समय तक लागू नहीं हो सकी।
ब्रिटिश काल में भारतीय शिक्षा आयोग
Education Commission During British Period : 1834 में विलियम बैंटिक ने लार्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक समिति गठित की, जिसकी 2 फरवरी 1835 को मैकाले मिनिट्स के रूप में घोषणा की गई। यह आधुनिक भारतीय शिक्षा का महत्वपूर्ण घोषणा पत्र था जिसे भारतीय शिक्षा के मील के पत्थर के रूप में भी जाना जाता है।
7 मार्च 1835 को विलियम बैंटिक ने मैकाले के प्रस्ताव को पास कर दिया। यहीं से भारतीय शिक्षा का भविष्य निर्धारित हो गया। इसके बाद में कंपनी के बोर्ड ऑफ कंट्रोल के अध्यक्ष चार्ल्स वुड की अध्यक्षता में वुड्स घोषणा पत्र तैयार किया। इसे भारत में अंग्रेजी शिक्षा का मैग्नाकार्टा माना जाता है।
वुड्स घोषणा के पश्चात शैक्षणिक प्रगति का मूल्यांकन करने हेतु कई भारतीय शिक्षा आयोगों की नियुक्ति की गई।
हंटर कमीशन 1882
हंटर कमीशन की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन ने 1882 में डब्लू डब्लू हंटर की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग नियुक्त किया।
चार्ल्स वुड के घोषणा पत्र के पश्चात की शैक्षणिक प्रगति का विवरण व मूल्यांकन की समीक्षा के लिए इस आयोग की नियुक्ति की थी। साथ ही भविष्य की योजना सुझाने का कार्य भी इस आयोग को सौंपा गया।
इस आयोग में 22 सदस्य थे जिसमें से 8 भारतीय सदस्य भी थे। इस आयोग के गठन का महत्वपूर्ण कारण इंग्लैंड में ईसाई मिशनरियों ने यह प्रचार किया कि भारत में शिक्षा व्यवस्था का संचालन वुड के घोषणा पत्र द्वारा निर्धारित नीतियों के अनुसार नहीं हो रहा था।
हंटर शिक्षा आयोग का उद्देश्य प्राथमिक शिक्षा एवं माध्यमिक शिक्षा की स्थिति का आकलन कर इसके विस्तार व गुणवत्ता बढ़ाने के साधनों का सुझाव देना था।
हंटर आयोग की प्रमुख अनुशंसाएं
हाईस्कूल स्तर पर दो प्रकार की शिक्षा व्यवस्था व्यवसायिक एवं व्यापारिक शिक्षा।2. ऐसी साहित्यिक शिक्षा दी जाए जिससे विश्वविद्यालय में प्रवेश हेतु सहायता मिले।3. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा के महत्व पर बल एवं स्थानीय भाषा तथा उपयोगी विषय में शिक्षा देने की व्यवस्था की जाए।4. शिक्षा के क्षेत्र में निजी प्रयासों का स्वागत, लेकिन प्राथमिक शिक्षा उसके बगैर भी दी जाए।5. प्राथमिक स्तर पर शिक्षा का नियंत्रण जिला एवं नगर बोर्डों को सौंप दिया जाए।6. शारीरिक शिक्षा की अनुशंसा करते हुए इसके प्रोत्साहन हेतु अनेक सुझाव दिए।7. नैतिक शिक्षा पर अनिवार्य तौर पर जोर दिया जाए।
वुड के घोषणा पत्र के बाद भारतीय शिक्षा का यह दूसरा महत्वपूर्ण सोपान था। इस आयोग की सिफारिशों में सबसे अधिक जोर प्राथमिक शिक्षा के विस्तार पर दिया गया। माध्यमिक और महाविद्यालय शिक्षा पर भी अत्यधिक उपयोगी सुझाव दिए।
हंटर आयोग के उपरांत 1885 में पंजाब विश्वविद्यालय व 1887 में आगरा व इलाहाबाद विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। इस प्रकार अब भारत में विश्वविद्यालयों की संख्या 6 हो गई।
विश्वविद्यालय आयोग (भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम 1904)
जब लॉर्ड कर्जन भारत का वायसराय बना तो उसने लॉर्ड मैकाले की शिक्षा नीति की कड़ी आलोचना की। उसने कहा कि मैकाले की नीति देशी भाषाओं के विरुद्ध है।
1 सितंबर 1901 ई. में कर्जन ने शिमला में एक गोलमेज सम्मेलन बुलाया, जहां उसने भारत में शिक्षा के सभी क्षेत्रों की समीक्षा की बात कही।
27 जनवरी 1902 में लार्ड कर्जन ने सर थॉमस रैले की अध्यक्षता में एक विश्वविद्यालय आयोग की स्थापना की। इस आयोग में सैयद हुसैन बिलग्रामी एवं जस्टिस गुरदास बनर्जी सदस्य के रूप में शामिल थे।
इस रैले आयोग का उद्देश्य विश्वविद्यालयों की स्थिति का अनुमान लगाना एवं उनके संविधान तथा कार्यक्षमता के बारे में सुझाव देना था। इस आयोग का कार्य क्षेत्र उच्च शिक्षा एवं विश्वविद्यालय तक ही सीमित था।
टॉमस रो आयोग की सिफारिशों के आधार पर ही 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ जो विश्वविद्यालय शिक्षा तक ही सीमित था।
लॉर्ड कर्जन के समय भारत में शिक्षा महानिदेशक की नियुक्ति की गई। इस स्थान को ग्रहण करने वाला सर्वप्रथम व्यक्ति एच डब्ल्यू ऑरेंज था।
21 फरवरी 1913 में शिक्षा नीति के सरकारी प्रस्ताव में प्रत्येक प्रांत में एक विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा हुई। गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा की जा रही अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा की मांग सरकार ने नकार कर निरक्षरता खत्म करने की नीति को स्वीकार किया।
सैडलर आयोग 1917
1917 में लार्ड चेम्सफॉर्ड के समय भारत सरकार ने इंग्लैंड के लीड्स विश्वविद्यालय के कुलपति डॉक्टर एम ई सैडलर की अध्यक्षता में कलकत्ता विश्वविद्यालय की समस्याओं के अध्ययन व उनके निवारण हेतु सुझाव प्रस्तुत करने के लिए आयोग की स्थापना की।
इस आयोग में दो भारतीय सदस्य सर आशुतोष मुखर्जी एवं डॉक्टर जियाउद्दीन अहमद सम्मिलित किए गए। सैडलर आयोग ने विधालय शिक्षा से लेकर विश्वविद्यालय तक की शिक्षा पर विचार किया।
सैडलर आयोग ने यह माना कि विश्वविद्यालय शिक्षा में सुधार के लिए माध्यमिक शिक्षा की दशा को सुधारना आवश्यक है। संपूर्ण शिक्षा पर विचार करने के पश्चात इस आयोग का विचार क्षेत्र केवल कोलकाता विश्वविद्यालय नहीं रह गया था, इसके सुझाव सभी विश्वविद्यालय में लागू करने योग्य थे।
आयोग ने 1904 ईस्वी के विश्वविद्यालय अधिनियम की निंदा की और कहा कि 1904 के विश्वविद्यालय अधिनियम में भारतीय विश्वविद्यालयों को पूर्णता सरकारी विश्वविद्यालय बना दिया गया था।
विश्वविद्यालयों का सरकारीकरण कर महाविद्यालय शिक्षा में प्रयत्नशील निजी भारतीय प्रयासों को हतोत्साहित करने का षड्यंत्र किया गया था।
द्वैध शासन व्यवस्था के अंतर्गत शिक्षा (1919 से 1937 तक)
मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार 1919 के अंतर्गत शिक्षा विभाग को प्रांतों एवं लोक निर्वाचित मंत्री के अधीन कर दिया गया। केंद्र सरकार ने अपने को शिक्षा के उत्तर दायित्व से मुक्त करते हुए शिक्षा के लिए दी जाने वाली केंद्रीय अनुदान व्यवस्था को बंद कर दिया।
हार्टोग समिति
1929 ईस्वी में भारतीय परिमीति आयोग ने सर फिलिप हार्टोग के नेतृत्व में शिक्षा के विकास पर रिपोर्ट हेतु एक सहायक समिति का गठन किया गया। हार्टोग समिति ने प्रारंभिक शिक्षा के महत्व की बात कही।
माध्यमिक शिक्षा के बारे में मैट्रिक स्तर पर विशेष बल दिया। ग्रामीण अंचलों के विद्यालयों को आयोग ने वर्नाक्यूलर मिडिल स्कूल के स्तर पर ही रोक कर उन्हें व्यवसायिक या फिर औद्योगिक शिक्षा देने का सुझाव दिया।
बुनियादी शिक्षा की वर्धा योजना 1937
1935 के भारत सरकार अधिनियम के अंतर्गत प्रांतों में द्वैध शासन पद्धति समाप्त हो गई। 1937 ईस्वी में गांधी जी ने अपने हरिजन अंकों में शिक्षा परियोजना प्रस्तुत की जिसे ही वर्धा शिक्षा योजना कहा गया।
इस योजना के अंतर्गत गांधी जी ने अध्यापकों के प्रशिक्षण, पर्यवेक्षण, परीक्षण एवं प्रशासन का सुझाव दिया। योजना में सर्वाधिक महत्व हस्त उत्पादन कार्यों को दिया गया। जिसके द्वारा अध्यापकों के वेतन की व्यवस्था किए जाने की योजना थी। यह योजना कागजों तक ही सीमित रही।
सार्जेंट योजना
1944 में केंद्रीय शिक्षा सलाहकार मंडल ने सार्जेंट योजना (सार्जेंट भारत सरकार में शिक्षा सलाहकार थे) के नाम से एक राष्ट्रीय शिक्षा योजना प्रस्तुत की।
योजना के अनुसार प्राथमिक विद्यालय एवं उच्च माध्यमिक विद्यालय स्थापित करने तथा 6 से 11 वर्ष तक के बच्चों को निशुल्क अनिवार्य शिक्षा दिए जाने की व्यवस्था की। 11 से 17 वर्ष तक के बच्चों के लिए 6 वर्ष का पाठ्यक्रम था।
राधाकृष्णन आयोग 1948-49
स्वतंत्रता के पश्चात नवंबर 1948 में भारत सरकार ने डॉ. एस राधाकृष्णन की अध्यक्षता में एक आयोग नियुक्त किया। इस आयोग को भारत में विश्वविद्यालय शिक्षा की स्थिति का अध्ययन एवं इसके सुधार हेतु सुझाव प्रस्तुत करने का दायित्व सौंपा गया।
अगस्त 1949 में इस आयोग ने अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया जिसमें पूर्व विश्वविद्यालय शिक्षा की अवधि 12 वर्ष होनी चाहिए तथा शिक्षा का माध्यम भारतीय भाषाओं को बनाया जाना चाहिए।
देश में विश्वविद्यालयों की देखभाल एवं उनके प्रोत्साहन हेतु एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थापित किए जाने की भी अनुशंसा की।
राधाकृष्णन आयोग की सभी अनुशंसा को स्वीकार कर लागू करने के प्रयास किए गए। उनकी अनुशंसा पर 1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थापित कर दिया गया जिसे 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा वैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया।
स्वतंत्रता से पूर्व स्थापित भारतीय विश्वविद्यालय
क्र.सं. | विश्वविद्यालय | स्थापना वर्ष |
1. | कोलकाता विश्वविद्यालय | 1857 |
2. | मुंबई विश्वविद्यालय मुंबई | 1857 |
3. | मद्रास विश्वविद्यालय चेन्नई | 1857 |
4. | पंजाब विश्वविद्यालय | 1882 |
5. | इलाहाबाद विश्वविद्यालय | 1887 |
6. | बनारस विश्वविद्यालय | 1916 |
7. | मैसूर विश्वविद्यालय | 1916 |
8. | पटना विश्वविद्यालय | 1917 |
9. | उस्मानिया विश्वविद्यालय | 1918 |
10. | अलीगढ़ विश्वविद्यालय | 1920 |
11. | लखनऊ विश्वविद्यालय | 1921 |
12. | दिल्ली विश्वविद्यालय | 1922 |
13. | नागपुर विश्वविद्यालय | 1923 |
14. | आंध्र प्रदेश विश्वविद्यालय | 1926 |
15. | आगरा विश्वविद्यालय | 1927 |
16. | अन्नामलाई विश्वविद्यालय | 1929 |
17. | केरल विश्वविद्यालय | 1937 |
18. | उत्कल विश्वविद्यालय भुवनेश्वर | 1943 |
19. | सागर विश्वविद्यालय | 1946 |
20. | राजस्थान विश्वविद्यालय जयपुर | 1947 |
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
ब्रिटिश भारत में पहला शिक्षा आयोग कौन सा है?
उत्तर : ब्रिटिश भारत में पहला शिक्षा आयोग हंटर आयोग था। हंटर कमीशन की स्थापना ब्रिटिश शासनकाल में भारत के गवर्नर जनरल लॉर्ड रिपन ने 1882 में डब्लू डब्लू हंटर की अध्यक्षता में शिक्षा आयोग नियुक्त किया।
भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम कब बनाया गया था?
उत्तर : टॉमस रो आयोग की सिफारिशों के आधार पर 1904 में भारतीय विश्वविद्यालय अधिनियम पारित हुआ जो विश्वविद्यालय शिक्षा तक ही सीमित था।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की स्थापना किस आयोग की सिफारिश पर की गई थी?
उत्तर : राधाकृष्णन आयोग (1948-49) ने विश्वविद्यालयों की देखभाल एवं उनके प्रोत्साहन हेतु एक विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थापित किए जाने की भी अनुशंसा की।
1953 में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग स्थापित कर दिया गया जिसे 1956 में संसद के एक अधिनियम द्वारा वैधानिक दर्जा प्रदान कर दिया गया।