इस आर्टिकल में ब्रिटिश काल में भारतीय शिक्षा व्यवस्था, प्राच्य पाश्चात्य विवाद क्या है, लॉर्ड ऑकलैंड और प्राच्य पाश्चात्य विवाद की समाप्ति, अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
ब्रिटिश काल में शिक्षा का विकास
Development of Indian Education In British Period : भारत में आधुनिक व पाश्चात्य शिक्षा की शुरुआत ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी (British East India Company) के शासन काल से शुरू हुई।
ब्रिटिश शासन काल के दौरान शिक्षण संस्थाओं की स्थापना में सर्वप्रथम 1781 में बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स ने फारसी एवं अरबी भाषा के अध्ययन के लिए कोलकाता में एक मदरसा खुलवाया।
1784 ई. में हेस्टिंग्स के सहयोग से सर विलियम जोंस ने एशियाटिक सोसाइटी ऑफ़ बंगाल (Asiatic Society of Bengal) की स्थापना की, जिसने प्राचीन भारतीय इतिहास और संस्कृति के अध्ययन हेतु प्रयास किया।
1791 ईस्वी में ब्रिटिश रेजिडेंट डंकन ने बनारस में एक संस्कृत विद्यालय की स्थापना की। लार्ड वेलेजली ने 1800 ई. में ग़ैर सैनिक अधिकारियों की शिक्षा हेतु कलकत्ता में फोर्ट विलियम कॉलेज (Fort William College) की स्थापना की। कुछ कारणों से इसे 1802 ई. में बंद कर दिया गया।
1813 ई. के चार्टर एक्ट (Charter Act) में सर्वप्रथम भारतीय शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए ₹100000 की व्यवस्था की गई, जिसको भारत में साहित्य के पुनरुद्धार तथा विकास के लिए एवं स्थानीय विद्वानों को प्रोत्साहन देने के लिए खर्च करने की व्यवस्था की गयी।
प्राच्य पाश्चात्य विवाद क्या है?
Orientalist Anglicist Controversy : लोक शिक्षा के लिए स्थापित सामान्य समिति के 10 सदस्यों में दो दल बनाए गए थे। एक आंग्ल या पाश्चात्य विद्या का समर्थक था तो दूसरा प्राच्य विद्या के समर्थकों का नेतृत्व लोक शिक्षा समिति के सचिव एच टी प्रिंसेप ने किया, जबकि इनका समर्थन समिति के मंत्री एच एच विल्सन ने किया।
प्राच्य विद्या के समर्थकों ने वारेन हेस्टिंग्स और लॉर्ड मिंटो की शिक्षा नीति का समर्थन करते हुए संस्कृत और अरबी भाषा के अध्ययन का समर्थन किया।
दूसरी ओर आंग्ल या पाश्चात्य शिक्षा (Western Education) के समर्थकों का नेतृत्व मुनरो एवं एलफिंस्टन ने किया। इस दल का समर्थन लॉर्ड मैकाले ने भी किया।
इस दल को ईस्ट इंडिया कंपनी के नवयुवक अधिकारियों एवं मिशनरियों का भी समर्थन प्राप्त था। ये अंग्रेजी भाषा के माध्यम से भारत में पाश्चात्य शिक्षा का प्रचार प्रसार करना एवं औद्योगिक क्रांति के लाभों से भारतीय जनमानस को परिचित कराना चाहते थे।
मैकाले भारतीयों में पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार के साथ-साथ एक ऐसे समूह का निर्माण करना चाहता था, जो रंग एवं रक्त से भारतीय हो पर विचारों, रुचि एवं बुद्धि से अंग्रेज हो।
भारत में रीति-रिवाज एवं साहित्य के विषय में मेकाले का कहना था कि, “यूरोप के एक अच्छे पुस्तकालय की एक अलमारी का तख्ता भारत और अरब के समस्त साहित्य से अधिक मूल्यवान है।”
कार्यकारिणी के सदस्य की हैसियत से 2 फरवरी 1835 ईस्वी को मैकाले ने महत्वपूर्ण स्मरणार्थ लेख परिषद के समक्ष प्रस्तुत किया। जिसे तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैटिंग ने पूरी तरह स्वीकार किया।
लार्ड मैकाले प्रस्ताव के अनुसार कंपनी सरकार को यूरोप के साहित्य का विकास अंग्रेजी भाषा के द्वारा करना था। साथ ही भविष्य में धन का व्यय इसी पर किया जाना था। मैकाले ने भारतीय संस्कृति की उपेक्षा करते हुए उसे “अंधविश्वासों का भंडार” कहा।
मैकाले का उद्देश्य जनसाधारण को शिक्षित करना नहीं था। वह स्पष्ट जानता था कि सीमित साधनों से समस्त जनता को शिक्षित करना असंभव है। वह विप्रवेशन सिद्धांत (Infiltration Theory) में विश्वास करता था कि अंग्रेजी पढ़े लिखे लोग एक दुभाषिया श्रेणी के रूप में कार्य करेंगे और भारतीय भाषाओं और साहित्य को समृद्धशाली बनाएंगे और इस प्रकार पाश्चात्य विज्ञान तथा साहित्य का ज्ञान जनसाधारण तक पहुंच जाएगा।
इस प्रकार मैकाले के इस सिद्धांत का प्राकृतिक परिणाम भारतीय भाषाओं को अंग्रेजी भाषा के सहायक के रूप में बढ़ावा देना था।
लॉर्ड ऑकलैंड और प्राच्य पाश्चात्य विवाद की समाप्ति
प्राच्य पाश्चात्य विवाद का अंत लॉर्ड ऑकलैंड ने किया। ऑकलैंड ने 24 नवंबर 1839 को एक प्रस्ताव द्वारा इसे समाप्त कर दिया। ऑकलैंड ने इस विवाद का मूल कारण केवल आर्थिक सहायता मानी। उसने सोचा कि शिक्षा संबंधी मद को यदि बढ़ा दिया जाए तो यह विवाद सदा के लिए समाप्त हो जाएगा। क्योंकि प्राच्य और पाश्चात्य दोनों दलों की आवश्यकताएं पूरी हो जाएगी और वे संतुष्ट हो जाएंगे।
क्या ऑकलैंड ने पाश्चात्य दल को निराश कर उन्हें निंदित किया ? नहीं, प्रत्युत उसने कड़वी औषधि न देकर स्वादिष्ट औषधि देकर अपने लक्ष्य को सिद्ध किया।
ऑकलैंड भी अंग्रेजी साहित्य और विज्ञान का प्रसार करना चाहता था। वह केवल उच्च वर्ग को शिक्षित बनाना चाहता था। उसका विचार था कि उच्च वर्ग के शिक्षित हो जाने के पश्चात शिक्षा छन छन कर निम्न वर्ग तक पहुंच जाएगी। उसने आगरा, इलाहाबाद, बनारस, पटना और ढाका में अंग्रेजी कॉलेजों का निर्माण भी किया।
इस प्रकार ऑकलैंड ने प्राच्य पाश्चात्य विवाद को तो हल कर दिया परंतु दूसरी और अपनी नीति पटुता के कारण भारतीयों का बड़ा अहित किया।
जन साधारण की शिक्षा उपेक्षित होती गई और अंग्रेजी को प्रोत्साहन मिलता गया। अंग्रेजी साहित्य एवं विज्ञान के प्रचार के लिए ₹100000 से भी अधिक धनराशि देखकर पाश्चात्यवादियों को उनके उद्देश्य की पूर्ति में बड़ा प्रोत्साहन दिया। लॉर्ड ऑकलैंड के इन्हीं सिद्धांतों पर 1840 तक शिक्षा चलती रही।
अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत
Down Syndrome Theory : अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत का अर्थ है : शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को दी जाए। उच्च वर्ग से छन छन कर ही शिक्षा का असर जनसामान्य तक पहुंचे, को सर्वप्रथम सरकारी नीति के रूप में लॉर्ड ऑकलैंड ने लागू किया। परंतु इससे पहले मैकाले ने भी इस सिद्धांत पर कार्य किया था। वुड डिस्पेच 1854 के पहले तक इस सिद्धांत के तहत भारतीयों को शिक्षित किया गया।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
उन विद्वानों के नाम बताइए जिन्होंने प्राच्य शिक्षा का समर्थन किया?
उत्तर : प्राच्य शिक्षा के समर्थक विद्वान विलियम जोन्स, हेनरी टॉमस कोलब्रुक, नैथेलियल हॉलहेड व वारेन हेस्टिंग्स आदि है।
प्राच्य-पाश्चात्य विवाद का अंत कब हुआ?
उत्तर : प्राच्य पाश्चात्य विवाद का अंत लॉर्ड ऑकलैंड ने किया। ऑकलैंड ने 24 नवंबर 1839 को एक प्रस्ताव द्वारा इसे समाप्त कर दिया। ऑकलैंड ने इस विवाद का मूल कारण केवल आर्थिक सहायता मानी। उसने सोचा कि शिक्षा संबंधी मद को यदि बढ़ा दिया जाए तो यह विवाद सदा के लिए समाप्त हो जाएगा।
अधोमुखी निस्यंदन सिद्धांत क्या है?
उत्तर : शिक्षा समाज के उच्च वर्ग को दी जाए। उच्च वर्ग से छन छन कर ही शिक्षा का असर जनसामान्य तक पहुंचे, को सर्वप्रथम सरकारी नीति के रूप में लॉर्ड ऑकलैंड ने लागू किया। परंतु इससे पहले मैकाले ने भी इस सिद्धांत पर कार्य किया था। वुड डिस्पेच के पहले तक इस सिद्धांत के तहत भारतीयों को शिक्षित किया गया।