डॉ. भीमराव अंबेडकर – आधुनिक भारत का मनु
Dr. Bhimrao Ambedkar – Manu of modern India
डॉ. भीमराव अंबेडकर स्वतंत्र भारत के संविधान में महत्वपूर्ण योगदान के कारण आधुनिक भारत का मनु कहा जाता है। उनकी प्रखर प्रतिभा का चरम उत्कर्ष और उनकी सबसे स्मरणीय उपलब्धि हमारे देश में संविधान में प्रतिबिंबित है और उसके लिए भारत सदैव उनका ऋणी रहेगा।
डॉ. भीमराव अम्बेडकर |
वे संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष थे। संविधान सभा में दिए गए उनके भाषण, राजनीति, कानून, इतिहास, अर्थशास्त्र और दर्शनशास्त्र का अद्भुत संगम प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने संविधान में प्रयुक्त शब्दों, मुहावरों और विचारों के विषय में जो कुछ कहा है वह विधि विशेषज्ञों के लिए एक समृद्ध निधि के समान है।
• डॉक्टर भीमराव अंबेडकर का व्यक्तित्व
Dr. Bhimrao Ambedkar’s personality
* डॉ भीमराव अंबेडकर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे एक महान बौद्धिक प्रतिभा के धनी थे – डॉक्टर अंबेडकर ने कोलंबिया विश्वविद्यालय न्यूयॉर्क से एम ए (1915), पीएचडी (1917), तथा लंदन से एमएससी (1922), विधि स्नातक तथा डीएससी (1923) की उपाधियां प्राप्त की।
इस प्रकार राष्ट्रीय आंदोलन के कालखंड में डॉक्टर अंबेडकर सर्वाधिक शिक्षित राष्ट्रीय नेता थे।
* सामाजिक-राजनीतिक कर्मण्यवादी – डॉक्टर अंबेडकर सामाजिक-राजनीतिक कर्मण्यवादी थे। उन्होंने एक सभा में निर्भीकतापूर्वक घोषणा की कि अनुसूचित जाति के लोग अदम्य साहस और दृढ़ संकल्प के साथ राष्ट्र के स्वाधीनता संग्राम में भाग लेंगे।
* प्रख्यात पत्रकार एवं संगठनकर्ता – डॉक्टर अंबेडकर प्रख्यात पत्रकार एवं संगठनकर्ता थे। उन्होंने अनेक पत्रों का संपादन भी किया।
* दलित चेतना तथा सामाजिक समरसता के पुरोधा – डॉ. अंबेडकर ने दलित चेतना जागृत करने में अपना जीवन लगा दिया तथा दलितों को संवैधानिक आरक्षण दिलवाया। इसके साथ ही वे सामाजिक समरसता के पुरोधा भी थे।
डॉ भीमराव अम्बेडकर ने मार्च 1927 में महाड के चौबदार तालाब से पानी भरने के अधिकार के प्रश्न पर जल सत्याग्रह कर दलित वर्ग के सामाजिक समानता के अधिकार को पुनर्स्थापना का प्रथम सामूहिक अभियान चलाया।
उनके नेतृत्व में दलितों ने मार्च 1930 में भगवान कालाराम के प्रसिद्ध मंदिर (नासिक) में प्रवेश के लिए सत्याग्रह किया। अंततः 1935 में पुजारियों ने मंदिर के द्वार अस्पृश्यों के लिए खोल दिए।
• डॉ भीमराव अम्बेडकर भारतीय संस्कृति के प्रेमी
Dr. Bhimrao Ambedkar lover of Indian culture
* बौद्ध धर्म ग्रहण करना – बौद्ध धर्म ग्रहण करते समय उन्होंने कहा था कि, “मैं नहीं चाहता कि देश के विध्वंसक के रूप में मेरा नाम रहे। बौद्ध धर्म भारतीय संस्कृति का ही अभिन्न अंग है। मैंने इस बात का ध्यान रखा है कि मेरा धर्म परिवर्तन इस भूमि के इतिहास और संस्कृति की परंपरा को कोई हानि नहीं पहुंचाएं।”
* संस्कृत को राजभाषा बनाने पर बल दिया – डॉक्टर अंबेडकर संस्कृत भाषा को भारत के ज्ञान, दर्शन और संस्कृति का मूल स्त्रोत मानते थे। उन्होंने संस्कृत को भारत की राजभाषा बनाने हेतु सितंबर 1949 में संविधान सभा में संशोधन प्रस्तुत किया था।
* शूद्रों को वेदों के दृष्टा बनाना – उन्होंने अपनी पुस्तक शूद्र कौन थे ? (महात्मा ज्योतिबा फुले को समर्पित की) में वैदिक साहित्य के आधार पर यह बताया कि आर्य भारत के मूल निवासी हैं तथा वैदिक भारत में शूद्र वेदों के दृष्टा थे। उपनयन संस्कार करते थे और शासक भी होते थे।
• डॉ भीमराव अम्बेडकर द्वारा साम्प्रदायिकता तथा बलात् धर्मांतरण का विरोध
Dr. Bhimrao Ambedkar opposes communalism and forced conversions
डॉ भीमराव अंबेडकर प्रथम श्रेणी के राष्ट्रवादी थे उन्होंने सांप्रदायिकता तथा बलात् धर्मांतरण का विरोध किया। जैसे-
* मुस्लिम लीग की बंबई से सिंध को अलग करने की योजना का विरोध – डॉक्टर भीमराव अंबेडकर ने सन 1928 में साइमन कमीशन के समक्ष मुस्लिम लीग की सिंध को मुंबई से पृथक करने की मांग का विरोध किया था। उनका तर्क था कि लीग सिंध में सांप्रदायिक बहुमत को राजनीतिक बहुमत में रूपांतरित करना चाहती है।
* भारत और पाकिस्तान के बीच जनसंख्या की अदला-बदली का व्यवहारिक सुझाव देना – उन्होंने अपनी पुस्तक ‘पाकिस्तान ऑफ दी पार्टीशन ऑफ इंडिया’ 1940 में विभाजित भारत की एकता, सांप्रदायिक शांति, आर्थिक विकास और सीमाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए भारत और पाकिस्तान के बीच जनसंख्या की अदला-बदली का व्यावहारिक सुझाव दिया था।
* बलात धर्मांतरण का विरोध- उन्होंने निजाम हैदराबाद और पाकिस्तान में अनुसूचित जातियों के बलात् धर्मांतरण से दुखी होते हुए 28 नवंबर 1947 को दी फ्री प्रेस जनरल (बंबई) में अपील जारी की कि अनुसूचित जातियों द्वारा मुसलमानों पर विश्वास करना आत्मघाती होगा। वह जीवन रक्षा के लिए इस्लाम ग्रहण करने की अपेक्षा भारत आ जाएं।
• डॉ भीमराव अम्बेडकर के अस्पृश्यता के कटु अनुभव
Dr. Bhimrao Ambedkar’s bitter experience of untouchability
हिंदू सामाजिक व्यवस्था की अमानवीय सामाजिक-धार्मिक कुरीति अस्पृश्यता की परंपरा है। डॉक्टर अंबेडकर को अस्पृश्यता के निमन कटु अनुभव हुए –
* अध्ययन काल में तथा बड़ौदा कार्यकाल में कटु अनुभव – डॉक्टर अंबेडकर को न केवल हाईस्कूल तक के अध्ययन काल में बल्कि बड़ौदा के महाराजा गायकवाड के सैनिक सचिव पद पर कार्य करते हुए भी अस्पृश्य जाती महार का होने के कारण कदम कदम पर अपमानजनक व्यवहार के कड़वे घूंट पीने पड़े। बड़ौदा में निवास हेतु उन्हें किसी ने भी मकान तक नहीं दिया।
* व्यवसाय काल में कटु अनुभव – अस्पृश्यता की सामाजिक कुरीति का कटु अनुभव अंबेडकर को सेडन होम कॉलेज मुंबई में पॉलिटिकल इकोनॉमी के प्राध्यापक पद पर (1918-20) कार्य करते हुए तथा बंबई उच्च न्यायालय में वकालत करते हुए भी हुआ।
• अनुसूचित जातियों के कल्याण हेतु डॉक्टर अंबेडकर द्वारा किए गए प्रयास
Efforts made by Dr. Ambedkar for the welfare of Scheduled Castes
डॉक्टर भीमराव अंबेडकर बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी थे। वे न केवल महान बौद्धिक प्रतिभा के धनी थे अपितु सामाजिक-राजनीतिक कर्मण्यवादी भी थे। वे दलित चेतना और सामाजिक समरसता के पुरोधा थे। उन्होंने अनुसूचित जातियों के कल्याण हेतु जो प्रयत्न किए उनका विवेचन निम्न बिंदुओं के आधार पर किया गया है –
१. विधान मंडलों में पृथक आरक्षण की व्यवस्था
सन 1918 में डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के सामाजिक-राजनीतिक कर्म क्षेत्र में आगमन से अछूतोद्धार-दलितोंद्वार आंदोलन को नई दिशा और उत्तरोत्तर गति प्राप्त हुई।
२. पत्रों के प्रकाशन द्वारा दलित चेतना पैदा करना
डॉक्टर अंबेडकर ने दलितों (अब अनुसूचित जाति) की सामाजिक वेदना को सख्त शब्दों में अभिव्यक्त करने तथा सामाजिक लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष को जनाधार प्रदान करने के लिए अनेक साप्ताहिक अथवा पाक्षिक पत्र – मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता, समता और प्रबुद्ध भारत आदि प्रकाशित किए। इन सभी पत्रों का एक ही लक्ष्य था दलितों में समान नागरिक अधिकारों की प्राप्ति के लिए चेतना उत्पन्न करना।
३. विचारों का संस्थाकरण
उन्होंने अपने सामाजिक विचारों का संस्थाकरण करने के लिए 20 जुलाई 1924 के बहिष्कृत हितकारिणी सभा की स्थापना की जिसका प्रमुख संदेश था – “शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो ।”
उन्होंने सर्वप्रथम ‘ऑल इंडिया डिप्रेस्ड क्लासेस कांग्रेस’ का अधिवेशन 8 अगस्त 1930 को नागपुर में आयोजित किया। अध्यक्ष पद से डॉक्टर अंबेडकर ने स्वशासन के पक्ष में उद्बोधन करते हुए दलितों के लिए संयुक्त निर्वाचन प्रणाली सहित आरक्षण की मांग की।
उन्होंने जुलाई 1942 में ‘ऑल इंडिया शेड्यूल कास्ट फेडरेशन’ की स्थापना की। इस संस्था का कार्यक्षेत्र सामाजिक होने के साथ-साथ राजनीतिक भी था।
४. सत्याग्रह
डॉक्टर अंबेडकर ने मार्च 1927 में महाड़ (जिला कोलाबा,महाराष्ट्र) के चौबदार तालाब से पानी भरने के अधिकार के प्रश्न पर महाड़ जल सत्याग्रह किया। डॉक्टर अंबेडकर ने इस अवसर पर कहा कि, “स्वतंत्रता किसी को उपहार के रूप में नहीं मिलती, इसके लिए संघर्ष किया जाता है। आत्म-उत्थान अन्य लोगों के आशीर्वाद से नहीं, अपितु अपने ही प्रयत्नों, संघर्ष और परिश्रम से होता है।”
भारत के सामाजिक इतिहास में सामाजिक न्याय और सामाजिक समानता के अधिकार की पुनर्स्थापना के लिए दलित वर्ग का यह प्रथम सशक्त अभियान था।
दिसंबर 1927 को छत्रपति शिवाजी महाराज के जयघोष के साथ सामाजिक रूढ़िवाद की प्रतीक मनुस्मृति को सार्वजनिक रूप से जलाया।
उनके नेतृत्व में दलितों ने अपनी सामाजिक चेतना का विराट प्रदर्शन मार्च 1930 में भगवान कालाराम मंदिर नासिक में सत्याग्रह करके किया। अंततः 1935 में पुजारियो ने मंदिरों के दरवाजे अस्पृश्यों के लिए खोल दिए।
५. दलितों के आरक्षण के लिए प्रयत्न
डॉक्टर अंबेडकर ने साइमन कमीशन (1928) और लंदन में आयोजित तीन गोलमेज सम्मेलनों (1930-32) में दलितों के नागरिक अधिकारों की रक्षा के लिए पृथक निर्वाचन तथा आरक्षण पर बल दिया।
परिणामस्वरूप महात्मा गांधी के साथ पूना पैक्ट (1932) तथा भारतीय संविधान में अनुसूचित जाती तथा जनजाति के लिए संयुक्त निर्वाचन प्रणाली के साथ आरक्षण के प्रावधान डॉक्टर अंबेडकर के संघर्षशील जुझारू व्यक्तित्व की देन है।
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इस प्रकार उन्होंने सदियों से सामाजिक-नागरिक अधिकारों से वंचित समाज के लिए सामाजिक-राजनीतिक लोकतंत्र के द्वार खोलें।