इस आर्टिकल में थार्नडाइक का सिद्धांत जो कि प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत के नाम से भी जाना जाता है के बारे में चर्चा की गई है। इस आर्टिकल में अधिगम के सिद्धांत के अंतर्गत थॉर्नडाइक के अधिगम के मुख्य और गौण नियम, थॉर्नडाइक के सिद्धांत का शैक्षिक निहितार्थ एवं मूल्यांकन पर चर्चा की गई है।
अधिगम के सिद्धांत (Theory of Learning in hindi)
मनोवैज्ञानिकों द्वारा वर्णित अधिगम सिद्धांतों को मुख्य रूप से दो भागों में वर्णित किया जा सकता है :
- अधिगम के शास्त्रीय सिद्धांत (Associative Theories of Learning)
- अधिगम के क्षेत्र सिद्धांत (Field Theories of Learning)
अधिगम के साहचर्य सिद्धांत (Associative Theory) मुख्यतया उद्दीपक और अनुक्रिया के आधार पर वर्णित है अर्थात इस सिद्धांत के आधार पर यह कहा जा सकता है कि प्रत्येक क्रिया का कोई न कोई उद्दीपक होता है जिसके परिणामस्वरुप जीव का प्रतिक्रिया से संबंध हो जाता है। इन्हें उद्दीपक (Stimulus) अनुक्रिया (Response) अथवा S-R Theory कहा जाता है।
कुछ अनुक्रिया अपने सम्बंद्ध उद्दीपकों के साथ स्वतः ही हो जाती है जबकि कुछ अनुक्रियाएँ सम्बंद्ध उदीपकों के साथ स्वतः घटित नहीं होती वरन किन्हीं विशिष्ट परिस्थितियों का अध्ययन करके उन्हें किसी व्यवस्था में बांधा जाता है। इस प्रकार उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत दो प्रकार के हैं :
- पुनर्बलन से युक्त उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत
- पुनर्बलन रहित उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत
पुनर्बलनयुक्त उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत के अंतर्गत दो सिद्धांतों को लिया गया है :
- थॉर्नडाइक का सिद्धांत और
- स्किनर का सिद्धांत।
जबकि पुनर्बलन रहित उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत में पावलव का सिद्धांत आता है।
अधिगम के साहचर्य सिद्धांत (Associative Theories of Learning)
अधिगम के साहचर्य सिद्धांत का अर्थ है कि व्यक्ति की मानसिक क्रियाएं किसी न किसी उद्दीपक की प्रतिक्रिया स्वरुप होती है। सुखद प्रतिक्रियाएं हमारी स्मृति में अधिक पुष्ट हो जाती हैं जबकि विपरीत अनुभव हमारी स्मृति में अधिक समय तक नहीं रह पाते।
अनेक मनोवैज्ञानिकों ने उद्दीपक अनुक्रिया को अपने सिद्धांत का आधार बनाया। इसमें से कुछ ने पुनर्बलन को इसमें महत्वपूर्ण माना अर्थात् धनात्मक पुनर्बलन मिलने पर अनुक्रिया तत्परता से होती है और ऋणात्मक पुनर्बलन मिलने पर अनुक्रिया नहीं होती।
कुछ मनोवैज्ञानिक उद्दीपन-अनुक्रिया सिद्धांत में पुनर्बलन को महत्व नहीं देते हैं। इसी आधार पर दो प्रकार के सिद्धांत बने। प्रथम प्रकार में स्किनर और थार्नडाइक का सिद्धांत लेखनीय हैं। दूसरे प्रकार में पावलव का नाम आता है। इन्हें निम्न प्रकार वर्णित किया जा सकता है।
थॉर्नडाइक का सिद्धांत : प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत (Trial And Error Theory in Hindi)
थार्नडाइक का मानना है कि अधिगम की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का किसी न किसी मात्रा में संबंध होता है। इसी से जब किसी व्यक्ति के समक्ष किसी परिस्थिति में कोई उद्दीपन होता है तो वह उद्दीपन व्यक्ति को किसी विशेष प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित करता है।
यदि उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया सुखद होती है तो वह उसे पुनः दोहराता है क्योंकि उसे संतोष मिलता है और पुनः पुनः उसे दोहराकर वह उस व्यवहार को सीख लेता है और यदि उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया दुखद होती है तो उसे नहीं दोहराया जाता, उसे नहीं सीखा जाता अर्थात, उद्दीपन (S) अनुक्रिया (R) के मध्य एक घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाता है, इसी को थॉर्नडाइक का प्रयास और त्रुटि द्वारा अधिगम अथवा सम्बद्धवाद का सिद्धांत कहा जाता है।
थॉर्नडाइक के सिद्धांत (थॉर्नडाइक थ्योरी ऑफ़ लर्निंग) को अनेक नामों से जाना जाता है, जैसे –
- थॉर्नडाइक का सम्बन्धवाद सिद्धांत (Thorndike’s Connectionism Theory)
- थार्नडाइक का सम्बन्ध सिद्धांत (Thorndike’s Bond Theory)
- उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत (Stimulus Response Theory)
- प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत (Trial and Error Theory)
थार्नडाइक का मानना है कि कोई विशेष उद्दीपन किसी अनुक्रिया (S-R) द्वारा इस प्रकार संबंधित हो जाता है कि भविष्य में उस उद्दीपन की उपस्थिति में वही अनुक्रिया घटित होती है। उद्दीपन और अनुक्रिया के संबंध के कारण ही यह सिद्धांत संबंधवाद का सिद्धांत कहलाता है।
थॉर्नडाइक के अनुसार, “सीखना संबंध स्थापित करना है।” अर्थात किसी विशेष परिस्थिति के उपस्थित होने पर जीव कोई अनुक्रिया करता है। ये अनुक्रिया प्रारंभ में त्रुटिपूर्ण होती है किंतु यदि पुनः पुनः वैसे ही परिस्थिति आती है तो दोषपूर्ण अनुक्रिया कम होती जाती है और बाद में जीव उस परिस्थिति में केवल उचित अनुक्रिया ही करता है अर्थात वह भूल और प्रयास के द्वारा सीखता है। इस संबंध में थॉर्नडाइक ने अनेक प्रयोग किए गए और ये प्रयोग प्राय: जानवरों पर किए गए।
थॉर्नडाइक का बिल्ली पर प्रयोग
थॉर्नडाइक ने अपने सिद्धांत की पुष्टि के लिए बिल्ली पर एक प्रयोग किया। भूखी बिल्ली को एक ऐसे संदूक में बंद किया गया जिसके दरवाजे में एक लीवर लगा हुआ था जिसके खुलते ही संदूक खुलता था और बिल्ली बाहर आकर अपना भोजन प्राप्त कर सकती थी जो उसके लिए ही रखा गया था– भोजन इस प्रकार रखा गया कि बिल्ली अंदर से उसे देख सकती थी।
बिल्ली इस बात को नहीं जानती थी कि संदूक में कोई लीवर लगा है जिसे खोलने से वह बाहर आकर भोजन कर सकती थी। वह भोजन बिल्ली के लिए उद्दीपन था। वह बाहर आने के लिए अनेक प्रयास (अनुक्रिया) करती रही। कई प्रयासों के पश्चात अचानक उसका पैर लीवर पर पड़ा और दरवाजा खुल गया और उसने बाहर आकर भोजन किया।
इस प्रक्रिया को अनेक बार दोहराया गया। हर बार उसे भूखा रखकर यह क्रिया दोहराई गई। बाद में यह पाया गया कि उसके द्वारा की जाने वाली निरर्थक क्रियाएं कम हुई और वह एक बार में ही सही लीवर दबाकर दरवाजा खोल लेती और भोजन कर सकती थी। इस प्रकार प्रयास और त्रुटि द्वारा बिल्ली ने लीवर खोलना सीख लिया।
इस प्रयोग के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि :
- अधिगम का आधार उद्दीपन-अनुक्रिया (S-R) का संबंध होता है।
- कोई जीव उद्दीपन और अनुक्रिया में जितना अधिक संबंध स्थापित करेगा, अधिगम उतना ही शीघ्रता से होगा।
- अधिगम की प्रक्रिया में कोई न कोई प्रेरणा अवश्य होती है।
- अधिगम के लिए किए गए प्रयासों के बढ़ने के साथ-साथ अनावश्यक क्रियाएं कम होती जाती है।
- इस सिद्धांत के आधार पर बालकों में धैर्य-परिश्रम के प्रति आशा जागृत होती है।
- छोटे बालकों को जूते पहनना, चम्मच से खाना आदि के लिए सिखा सकते हैं।
थार्नडाइक के अधिगम के नियम
थॉर्नडाइक के अधिगम के सिद्धांत के आधार पर अधिगम से संबंधित मुख्य और गौण नियम प्रस्तुत किए :
थॉर्नडाइक के मुख्य नियम
तत्परता का नियम (Law of Readiness)
जब कोई व्यक्ति अधिगम करने के लिए तत्पर होता है अर्थात कार्य करने के लिए उद्यत होता है तभी उसे सिखाया जा सकता है। तत्पर होने पर व्यक्ति को अधिगम कराया जाए तो उसे अधिगम करने में संतुष्टि होती है। कक्षा-शिक्षण में यह नियम अति महत्वपूर्ण है। जब विद्यार्थी सीखने के लिए तत्पर हो तभी उसे सिखाया जा सकता है इसके लिए उन्हें तत्पर करना पड़ता है।
उदाहरण के लिए यदि बिल्ली भूखी न होती और उसे अपना भोजन सामने रखा हुआ दिखाई न देता तो वह बाहर निकलने के लिए प्रयास नहीं करती। तत्परता (Readiness) का अर्थ है कि अनुबंध के पूर्ण होने पर संतोष मिलता है और पूर्ण न होने पर असंतोष होता है इसलिए अधिगम से पूर्व परिस्थितियां उचित ढंग से प्रस्तुत की जानी आवश्यक है।
अभ्यास का नियम (Law of Exercise)
थॉर्नडाइक के अनुसार जब किसी प्रत्युत्तर की पुनरावृति करके अभ्यास किया जाता है तो अनुबंध दृढ़ होता है और अभ्यास के अभाव में अनुबंधन निर्बल होता है। अर्थात अभ्यास के अभाव में उद्दीपन और अनुक्रिया अनुबंध निर्बल हो जाते हैं। कक्षा शिक्षण में अभ्यास का नियम अतिमहत्वपूर्ण है। गणित ,व्याकरण आदि अभ्यास से ही भली भांति सीखे जा सकते हैं।
अभ्यास से उद्दीपन अनुक्रिया संबंध अधिक दृढ़ होते हैं किंतु अभ्यास में अशुद्ध या गलत अनुक्रिया नहीं की जानी चाहिए अन्यथा उद्दीपन अनुक्रिया में संबंध टूट जाएगा। इसे अनभ्यास का नियम (Law of Disuse) कहते हैं। इस नियम को ‘उपयोग और अनुपयोग का नियम’ भी कहा जाता है।
प्रभाव का नियम (Law of Effect)
थॉर्नडाइक का मानना है कि जब किसी उद्दीपन के प्रति कोई अनुक्रिया प्रदर्शित होती है और उससे संतोष मिलता है, तो अधिगम प्रभावकारी होता है। इस अनुक्रिया को पुनः पुनः करने का प्रयत्न किया जाता है, किंतु यदि कोई अनुक्रिया दु:खद होती है तो उसे छोड़ दिया जाता है। यही अधिगम का ‘प्रभाव का नियम’ (law of effect) है।
इस प्रकार अधिगम और संतोष दोनों संबंधित हैं। इसके साथ ही पुरस्कार और दंड से भी संबंधित किया गया है।थॉर्नडाइक का मानना है कि पुरस्कार अधिगम में सहायक होता है और दंड अधिगम में बाधक होता है।
उदाहरणार्थ : यदि किसी बच्चे को किसी कार्य की सफलता के लिए पुरस्कृत किया जाए तो वह उस क्रिया की पुनरावृति करेगा और यदि किसी कार्य के लिए उसे दंडित किया जाए तो वह उस कार्य को पुन: नहीं करेगा। इस नियम को ‘पुरस्कार व दंड का नियम’ भी कहा जाता है।
थार्नडाइक के गौण नियम
थॉर्नडाइक ने उपर्युक्त 3 मुख्य नियमों के अतिरिक्त अधिगम के पांच गौण नियमों का प्रतिपादन भी किया है जो इस प्रकार है :
बहुविध अनुक्रिया का नियम (Principal of Multiple Response)
इस नियम के आधार पर अधिगमकर्ता सही अनुक्रिया प्राप्त करने के पूर्व अनेक अनुक्रियाएं करता है और सफलता प्राप्त होने पर उस अनुक्रिया को ही दोहराता है। यही अधिगम है। इस प्रकार प्रयास एवं त्रुटि का शिक्षा में यह महत्व है कि व्यक्ति अपने प्रयास से सीखता है।
मनोवृति का नियम (Principale of Mind Set)
अधिगम के लिए सकारात्मक मनोवृति का होना आवश्यक है। अध्यापक छात्रों को अनेक प्रकार से सिखाने के लिए तत्पर करता है किंतु जब तक छात्र स्वयं सीखने के लिए तत्पर नहीं होंगे या उनकी मनोवृति अधिगम कि नहीं होगी तब तक अधिगम नहीं हो सकेगा। अर्थात छात्रों की उद्दीपन के प्रति मनोवृति का प्रभाव उनकी अनुक्रिया पर पड़ेगा।
आंशिक क्रिया का नियम (Principale of Partial Activity)
थॉर्नडाइक के अनुसार अधिगमकर्ता अनेक तत्वों में से वांछित तत्वों का चयन करके अनुक्रिया करता है। इसका तात्पर्य है कि किसी समस्या के समाधान के लिए अधिगमकर्ता में आवश्यक व वांछित तत्वों के चयन करने की क्षमता होती है।
साहचर्य या सादृश्यता का नियम (Principale of Assimilation or Analogy)
इस नियम के अनुसार अधिगमकर्ता किसी नवीन समस्या के समाधान के लिए पूर्व में समान परिस्थिति में की गई अनुक्रियाओं को दोहराता है। कक्षा शिक्षण में अध्यापक इसी नियम के आधार पर पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान के संबंध को स्थापित करता है।
साहचर्य परिवर्तन का नियम (Principale of Associative Shifting)
थॉर्नडाइक के अनुसार पूर्व में की गई अनुक्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में किया जाता है तो नवीन उद्दीपन उत्पन्न होता है अर्थात इस नियम के अनुसार प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य समान परिस्थितियों में किया जाता है।
प्रयास और त्रुटि के सिद्धांत का शिक्षा में अनुप्रयोग
थॉर्नडाइक का सीखने का सिद्धांत (Thorndike Theory of Learning in Hindi) उद्दीपन अनुक्रिया संबंध पर आधारित है। आपने पुनर्बलन का विचार भी प्रस्तुत किया और बताया कि जब अधिगमकर्ता को सुखद अनुक्रिया होती है तभी अधिगम होता है। कक्षा शिक्षण में यह सिद्धांत अनेक विध उपयोगी है :
- छोटे बच्चों में आदतें, दृष्टिकोण और रुचियों के विकास में यह सिद्धांत उपयोगी है।
- मंदबुद्धि बालकों का अधिगम प्रयास व त्रुटि द्वारा किया जा सकता है।
- गणित, नृत्य-संगीत, टंकण आदि में यह सिद्धांत महत्वपूर्ण है।
- इस सिद्धांत के आधार पर समस्या समाधान एवं शिक्षक द्वारा निर्देशन के द्वारा विद्यार्थियों का अधिगम किया जा सकता है।
थॉर्नडाइक के सिद्धांत का मूल्यांकन
थॉर्नडाइक ऐसे अमेरिकन मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने उद्दीपन अनुक्रिया से संबंधित अनेक प्रयोग जानवरों पर किए आपने अधिगम में पुरस्कार के संप्रत्यय का विचार प्रस्तुत किया तथा पुनर्बलन के सिद्धांत (Reinforcement Theory) पर महत्व दिया।
थॉर्नडाइक ने अपने प्रयोगों के आधार पर साहचर्य को अधिगम का आधार बताया तथा अधिगम के महत्वपूर्ण नियम प्रतिपादित किए। आपके द्वारा प्रतिपादित प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत (Trail & Error Theory in Hindi) जो उद्दीपन-अनुक्रिया (Stimulus-Response) के सिद्धांत पर आधारित है, साहचर्यवादी सिद्धांत (Associate Theory) ही है।
इस रूप में आपने अधिगम प्रक्रिया (Learning Process) का मनोवैज्ञानिक विश्लेषण प्रस्तुत किया है जिसका अर्थ है कि उद्दीपन अनुक्रिया द्वारा अधिगमकर्ता (Learner) जितनी शीघ्रता से समस्या से संबंध स्थापित कर ले लेता है, वह उतनी ही शीघ्रता से कार्य को सीख जाता है। कक्षा शिक्षण में यह सिद्धांत उपयोगी है।
प्रयास और त्रुटि के सिद्धांत की आलोचना
इसके उपरांत भी थार्नडाइक के सीखने के सिद्धांत की आलोचना की गई है, कुछ आधार इस प्रकार हैं :
- थॉर्नडाइक का सिद्धांत (Thorndike Theory in hindi) अनर्गल प्रयत्नों पर बल देता है, जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है।
- यह सिद्धांत छोटे बच्चों या मंदबुद्धि बालकों के लिए अधिक उपयोगी है।
- पुनः पुनः अभ्यास, रटने की प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
किस आयु में बालक प्रयत्न एवं भूल द्वारा सीखता है?
उत्तर : 0 से 2 वर्ष की आयु में, बच्चे प्रयत्न एवं भूल विधि से सीख सकते हैं।
थार्नडाइक का सिद्धांत क्या है?
उत्तर : थार्नडाइक के अनुसार अधिगम की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का किसी न किसी मात्रा में संबंध होता है। इसी से जब किसी व्यक्ति के समक्ष किसी परिस्थिति में कोई उद्दीपन होता है तो वह उद्दीपन व्यक्ति को किसी विशेष प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित करता है।
थार्नडाइक के अनुसार अनभ्यास का नियम (Law of Disuse) क्या हैं?
उत्तर : अभ्यास से उद्दीपन अनुक्रिया संबंध अधिक दृढ़ होते हैं किंतु अभ्यास में अशुद्ध या गलत अनुक्रिया नहीं की जानी चाहिए अन्यथा उद्दीपन अनुक्रिया में संबंध टूट जाएगा। इसे अनभ्यास का नियम (Law of Disuse) कहते हैं। इस नियम को ‘उपयोग और अनुपयोग का नियम’ भी कहा जाता है।