इस आर्टिकल में शैक्षिक मूल्यांकन का अर्थ क्या है, मूल्यांकन की परिभाषाएं, मूल्यांकन की विशेषताएं, मापन और मूल्यांकन में अंतर आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
शिक्षा एक सोद्देश्य क्रिया है जिसका प्रमुख कार्य शैक्षिक उद्देश्यों को प्राप्त करते हुए वांछित व्यवहारों का विकास करना है। शिक्षा में उद्देश्यों का अर्थ छात्रों के व्यवहार में पूर्व निर्धारित परिवर्तनों से है।
शिक्षा में मूल्यांकन की आवश्यकता पूर्व निर्धारित कार्यक्रम अथवा पाठ्यक्रम पूरा होने पर छात्रों की शैक्षिक उपलब्धि जानने के लिए होती है और यह भी पता चलता है कि शैक्षिक उद्देश्यों की प्राप्ति कहां तक हुई है।
शैक्षिक मूल्यांकन का अर्थ क्या है
व्यवहार परिवर्तनों के आधार पर यह स्पष्ट किया जा सकता है कि अधिगम अनुभव प्रभावपूर्ण है अथवा नहीं। ये सभी शैक्षणिक मूल्यांकन के अंतर्गत आते हैं। अर्थात शैक्षिक मूल्यांकन प्रक्रिया के तीन आधार स्तंभ है :
- शिक्षण उद्देश्य
- अधिगम अनुभव
- व्यवहार परिवर्तन
इस रूप में मूल्यांकन एक विस्तृत एवं निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो शिक्षा प्रक्रिया के सभी स्तरों – उद्देश्यों का निर्माण, पाठ्यक्रम योजना, शिक्षण अधिगम प्रक्रिया (Teaching Learning Process) तथा परीक्षणों में पाई जाती है। इसे शिक्षा प्रक्रिया का अभिन्न अंग माना जाता है। जिसमें बालक सीखने के साथ-साथ अपने उद्देश्यों के अनुरूप अपने व्यवहार में भी परिवर्तन लाता है।
शैक्षिक मूल्यांकन (Educational Evaluation) को स्पष्ट करने के लिए इसकी परिभाषाओं पर ध्यान देना आवश्यक है।
मूल्यांकन की परिभाषाएं
क्विलेन एवं हन्ना के अनुसार, “विद्यालय द्वारा हुए बालक के व्यवहार परिवर्तन के विषय में साक्ष्यों के संकलन और उनकी व्याख्या करने की प्रक्रिया ही मूल्यांकन है।”
टॉरगेर्सन तथा एडम्स के अनुसार, “मूल्यांकन का अर्थ है किसी वस्तु अथवा प्रक्रिया का मूल्य निर्धारित करना। इस प्रकार शैक्षिक मूल्यांकन से आशय शिक्षण प्रक्रिया अथवा अधिगम अनुभव की उपयोगिता के संबंध में मूल्य प्रदान करना है।”
डांडेकर के अनुसार, “शैक्षिक उद्देश्यों को बालक द्वारा किस सीमा तक प्राप्त किया गया है, यह जानने की व्यवस्थित प्रक्रिया को ही मूल्यांकन की संज्ञा दी जाती है।”
रेमर्स एवं गेज के अनुसार, “मूल्यांकन के अंतर्गत व्यक्ति या समाज अथवा दोनों की दृष्टि से उत्तम एवं वांछनीय होता है, उसका ही प्रयोग किया जाता है।”
ई बी बैस्ले के मत में, “मूल्यांकन एक समावेशित धारणा है जो परिणामों के गुण, महत्तव, प्रभावशीलता का निर्णय लेने के लिए सभी प्रकार के प्रयासों एवं साधनों के बारे में संकेत प्रदान करती है। यह वस्तुनिष्ठ प्रमाण अथवा आत्मनिरीक्षण का सम्मिश्रण है।”
कोठारी कमीशन (1966) ने मूल्यांकन को परिभाषित करते हुए कहा है, “मूल्यांकन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग है तथा इसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ संबंध रहता है।”
मूल्यांकन की उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर निष्कर्षत: यह कहा जा सकता है कि शैक्षिक मूल्यांकन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका आधार शैक्षिक उद्देश्य होते हैं। इस प्रक्रिया में बालक सीखने के साथ-साथ वांछित शैक्षिक उद्देश्यों के अनुरूप अपने व्यवहार में परिवर्तन लाता है।
इस तरह मूल्यांकन प्रक्रिया विषय वस्तु, अधिगम क्रियाओं और मूल्यांकन पद्धतियों के द्वारा बालक के व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन लाती है। ये सभी पहलू पर एक दूसरे से संबंधित हैं इन्हें अलग नहीं किया जा सकता है। अतः जैसे ही उद्देश्य का निर्धारण हो जाता है, मूल्यांकन प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है और व्यवहार में अपेक्षित परिवर्तन होने के साथ-साथ समाप्त हो जाती है।
राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद (NCERT) ने मूल्यांकन की व्याख्या आधुनिक तरीके से इस प्रकार की है – मूल्यांकन एक ऐसी व्यवस्थित और अनवरत चलने वाली प्रक्रिया है जो निम्न तीन बातों का संबंध निश्चित करती है :
- पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो रही है?
- कक्षा में दिए जाने वाले अधिगम अनुभव कितने प्रभावशाली रहे हैं ?
- शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति कितने अच्छे ढंग से हुई है?
उपर्युक्त निर्दिष्ट इन तीनों बिन्दुओं के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मूल्यांकन का वास्तविक लक्ष्य शिक्षा को उद्देश्य केंद्रित बनाना है।
मूल्यांकन की परिभाषा एवं अर्थ के आधार पर इसकी निम्नलिखित विशेषताएं हो सकती हैं :
मूल्यांकन की विशेषताएं
(1) व्यापक प्रक्रिया (Comprehensive Process)
मूल्यांकन के अंतर्गत अधिगम उद्देश्य, अधिगम अनुभव और व्यवहार परिवर्तन सभी महत्वपूर्ण बिंदु समाहित रहते हैं और यह सभी परस्पर एक दूसरे पर निर्भर और परस्पर घनिष्ठ रूप से सह संबंधित होते हैं।
मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा छात्र के सभी पक्षों अर्थात शारीरिक, संवेगात्मक एवं बौद्धिक आदि की जानकारी प्राप्त होती है और ये सभी विभिन्न उद्देश्यों के रूप में दर्शाएं जाते हैं। इस रूप में यह एक विस्तृत प्रक्रिया है जो छात्र के समग्र व्यवहार का चित्र प्रस्तुत करती है।
(2) निरंतर चलने वाली प्रक्रिया (Continue Process)
मूल्यांकन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसका अर्थ है कि मूल्यांकन केवल पाठ्यक्रम की समाप्ति तक ही संपन्न नहीं होता अपितु यह संपूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है।
अतः अध्यापक को अध्ययन कराने के उपरांत यह जानने का प्रयास करते रहना चाहिए कि छात्रों के व्यवहार में वांछित परिवर्तन आए अथवा नहीं। छात्रों की कठिनाइयों की जानकारी होने पर उन्हें हल करना आसान होता है। इस प्रकार मूल्यांकन एक सतत प्रक्रिया कही जा सकती है।
(3) गत्यात्मक प्रक्रिया (Dynamic Process)
मूल्यांकन गत्यात्मक होता है इसका अर्थ है कि इसमें पाठ्यक्रम, अनुदेशन और छात्र सभी को अनवरत सुधार करने का अवसर मिलता रहता है क्योंकि मूल्यांकन के अनेक उपकरण या साधन है, जैसे – मौखिक परीक्षा, लिखित परीक्षा, कक्षा अध्यापन के समय बालकों की कार्य विधि आदि के द्वारा इसकी जांच होती रहती है और इसमें वांछित सुधार लाया जा सकता है।
(4) सहयोगी प्रक्रिया (Co-operative Process)
मूल्यांकन में अध्यापक और छात्र दोनों का सहयोग अपेक्षित है। जहां एक और अध्यापक छात्रों की उपलब्धि का मूल्यांकन करता है वहीं दूसरी और अध्यापक का भी मूल्यांकन होता है।
यदि अध्यापक ठीक तरह से नहीं पढाता है तो छात्रों की उपलब्धि तो प्रभावित होती ही है इसके साथ ही शिक्षक को छात्र का पूर्ण मूल्यांकन करने में उसके सामाजिक संबंध, संवेगात्मक व्यवहार, सामाजिक दृष्टिकोण, छात्र के माता-पिता, पड़ोस आदि का सहयोग लेना पड़ता है जो उसके संपर्क में आते रहते हैं। सभी के सहयोग से छात्र का सही मूल्यांकन होता है इसलिए इसे सहयोगी प्रक्रिया कहा गया है।
(5) उदेश्य आधारित प्रक्रिया (Objective Based Process)
मूल्यांकन उद्देश्य आधारित प्रक्रिया है। इसका अर्थ यह है कि एक अच्छे मूल्यांकन के लिए आवश्यक होता है कि उसके सभी साधन शिक्षण उद्देश्यों पर आधारित हो अथवा कहा जा सकता है कि मूल्यांकन द्वारा यह पता लगाया जाता है कि शिक्षण द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों की प्राप्ति किस सीमा तक हो पाई है। मूल्यांकन की वैधता तभी होगी जब वह पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के संदर्भ में हो।
(6) छात्र केंद्रित प्रक्रिया (Student Centered Process)
मूल्यांकन को छात्र केंद्रित माना जाता है क्योंकि शिक्षण के द्वारा छात्रों में अपेक्षित व्यवहार परिवर्तन लाने का प्रयास किया जाता है और उनका मूल्यांकन करके यह स्पष्ट किया जाता है कि छात्रों में पूर्व निर्धारित उद्देश्यों के आधार पर वांछित व्यवहार परिवर्तन हुए हैं अथवा नहीं। इस रूप में मूल्यांकन छात्रों पर केंद्रित होता है।
मापन एवं मूल्यांकन में अंतर क्या है
मापन और मूल्यांकन दोनों का ही शिक्षा के क्षेत्र में प्रयोग हो रहा है अतः दोनों परस्पर संबंधित है। फिर भी दोनों में अंतर है :
मापन जहां एक स्थिति तक सीमित है वही मूल्यांकन संपूर्ण वातावरण के संदर्भ में ज्ञान कराता है। दूसरे शब्दों में कहें तो मापन परिमाणात्मक है और मूल्यांकन गुणात्मक है।
ब्रेडफिल्ड तथा मारडक के मत में, “मापन में किसी घटना के लिए प्रतीक निर्धारित किए जाते हैं, जबकि मूल्यांकन में घटना अथवा तथ्य का मूल्य ज्ञात किया जाता है।”
(1) क्षेत्र के आधार पर : मापन का क्षेत्र सीमित होता है इसमें छात्र के कुछ ही पक्षों की परीक्षा संभव है। मूल्यांकन का क्षेत्र विस्तृत होता है। इसमें छात्र के संपूर्ण व्यक्तित्व का परीक्षण किया जा सकता है।
(2) मात्रा/परिमाण गुणात्मक आधार पर : मापन में किसी गुण अथवा शीलगुण को मात्रात्मक रूप में मापा जाता है मूल्यांकन में किसी गुण को गुणात्मक और मात्रात्मक रूप में मापा जाता है। मूल्यांकन में किसी गुण को गुणात्मक रूप और मात्रात्मक रूप दोनों रूपों में मापा जाता है।
(3) सार्थकता के आधार पर : मापन मूल्यांकन का एक उपकरण है। अतः इसका शुद्ध और सार्थक होना आवश्यक है। मूल्यांकन मापन के ऊपर निर्भर करता है। अतः मापन जितना अधिक शुद्ध होगा मूल्यांकन उतना ही अच्छा होगा।
(4) प्रक्रिया का समय के आधार पर : मापन की प्रक्रिया थोड़े समय तक ही सीमित होती है अतः इसमें कम समय एवं श्रम की आवश्यकता होती है। मूल्यांकन प्रक्रिया अधिक समय तक चलती रहती है अथवा यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसमें अधिक समय एवं श्रम की आवश्यकता होती है।
(5) समग्र/आंशिक आधार पर : मापन में व्यक्ति की योग्यता व व्यवहार का आंशिक रूप से अध्ययन किया जाता है। मूल्यांकन में व्यक्ति की योग्यता एवं व्यवहार का समग्र रूप से अध्ययन किया जाता है।
(6) मूल्य प्रदान करने के आधार पर : मापन में यह स्पष्टतया ज्ञात किया जा सकता है कि किसी छात्र में कितनी योग्यता है अर्थात मापन केवल कितना (How Much) को मापता है।
मूल्यांकन में यह भी स्पष्ट होता है कि कोई गुण कितना अच्छा या संतोषजनक (How Good or Satisfactory) है। अर्थात यह उसे क्या मूल्य दिया जाना चाहिए – इस बात को भी स्पष्ट करता है।
(7) तुलना के आधार पर : मापन के द्वारा तुलनात्मक अध्ययन करना संभव नहीं है। मूल्यांकन के द्वारा तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
(8) साधन/साध्य के आधार पर : मापन एक साधन है, स्वयं में कोई साध्य नहीं है। मूल्यांकन स्वयं में एक साध्य हैं।
(9) भविष्यवाणी की सार्थकता के आधार पर : मापन चूंकी एक स्थिति का ज्ञान कराता है अतः इसके आधार पर भविष्यवाणी सार्थकता के साथ नहीं की जा सकती। मूल्यांकन संपूर्ण वातावरण के संदर्भ में स्थिति का ज्ञान कराता है अतः इसमें भविष्यवाणी सार्थकता के साथ की जा सकती है।
(10) केंद्रितता के आधार पर : मापन पाठ्यवस्तु केंद्रित होता है। मूल्यांकन उदेश्य केंद्रित होता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
शैक्षिक मूल्यांकन प्रक्रिया के तीन आधार स्तंभ है?
उत्तर : शैक्षिक मूल्यांकन प्रक्रिया के तीन आधार स्तंभ है : १. शिक्षण उद्देश्य २. अधिगम अनुभव ३. व्यवहार परिवर्तन।
मूल्यांकन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। कैसे?
उत्तर : मूल्यांकन निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। इसका अर्थ है कि मूल्यांकन केवल पाठ्यक्रम की समाप्ति तक ही संपन्न नहीं होता अपितु यह संपूर्ण शैक्षिक प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है।
कोठारी कमीशन (1966) ने मूल्यांकन को परिभाषित किया है?
उत्तर : कोठारी कमीशन (1966) ने मूल्यांकन को परिभाषित करते हुए कहा है, “मूल्यांकन एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जो शिक्षा प्रणाली का अभिन्न अंग है तथा इसका शैक्षिक उद्देश्यों से घनिष्ठ संबंध रहता है।”