इस आर्टिकल में सहभागी लोकतंत्र क्या है या लोकतंत्र का सहभागितामूल्क सिद्धांत, सहभागी लोकतंत्र का अर्थ, सहभागी लोकतंत्र की वकालत करने वाले विचारक, सहभागी लोकतंत्र के सिद्धांत का उद्देश्य, सहभागी लोकतंत्र की विशेषताएं और आलोचना आदि टॉपिक के बारे में चर्चा की गई है।
सहभागी लोकतंत्र का अर्थ
सहभागी लोकतंत्र का अर्थ है नीति निर्माण प्रक्रिया में जनसाधारण की भागीदारी। सहभागी लोकतंत्र आम जनता की ‘विशेषज्ञ’ के विरुद्ध प्रतिक्रिया है।
लोकतंत्र के सहभागितामूल्क सिद्धांत के अनुसार जनसाधारण की राजनीतिक सहभागिता लोकतंत्र का बुनियादी लक्षण है। सहभागिता ऐसी गतिविधि है जिसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति सार्वजनिक नीतियों और निर्णयों के निर्माण तथा कार्यान्वयन की प्रक्रिया में सक्रिय भाग लेता है।
सहभागितामूल्क लोकतंत्र मूलतः लोकतांत्रिक प्रक्रिया में साधारण नागरिकों की सहभागिता पर बल देता है। रूसो तथा मैकफर्सन इसके प्रबल समर्थक हैं।
सहभागी लोकतंत्र के अनुसार स्थानीय स्तर पर प्रत्यक्ष लोकतंत्र का प्रयोग होना चाहिए, जिसमें शक्तियों का विकेंद्रीकरण हो। सहभागितामूल्क लोकतंत्र के अनुसार लोकतंत्र व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास के लिए आवश्यक है।
राजनीतिक सहभागिता के सूचक
राजनीतिक सहभागिता के सूचक के तौर पर इसमें सामुदायिक गतिविधि जैसे – स्वच्छता, सुरक्षा आदि की व्यवस्था के लिए समुदाय के सदस्य एक दूसरे के साथ मिलजुल कर कार्य करते हैं।
व्यक्तिगत या सार्वजनिक मामलों को हल करने के लिए राजनीतिक जनप्रतिनिधि से संपर्क अथवा जुलूस, विरोध प्रदर्शन, हड़ताल धरना या बहिष्कार जैसी गतिविधियों में भाग लेता है तो इसे राजनीतिक सहभागिता की अभिव्यक्ति माना जाता है।
नागरिक सहभागिता की मुख्य कसोटी यह है कि इन गतिविधियों के बल पर कोई नागरिक सार्वजनिक नीति और निर्णयों को कहां तक प्रभावित करता है।
यदि नागरिकों को राजनीतिक सहभागिता के अधिक अवसर मिलेंगे तो वे सार्वजनिक समस्याओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे, राजनीतिज्ञों की गतिविधियों पर कड़ी नजर रखेंगे और शक्ति के दुरुपयोग तथा भ्रष्टाचार को एकदम रोक देंगे। अतः नागरिक सेवा सहभागिता न केवल उत्तम समाज की जरूरी शर्त है। बल्कि यह उत्तम जीवन का आवश्यक अंग है।
सहभागी लोकतंत्र की वकालत करने वाले विचारक
सहभागी लोकतंत्र की वकालत करने वाले मुख्यतः तीन विचारक है – मैकफरसन, कैरोल पैटमैन, पोलान्जे। ऐतिहासिक दृष्टि से यह सिद्धांत रॉबर्ट नोजिक द्वारा प्रतिपादित कानूनी लोकतंत्र के विरोध में स्थापित किया गया था। सहभागी लोकतंत्र का विकास लोकतंत्र के विशिष्ट वर्गीय तथा बहुलवादी सिद्धांतों के विरुद्ध प्रतिक्रिया के परिणामस्वरुप हुआ।
सहभागी लोकतंत्र के सिद्धांत का उद्देश्य
सहभागी लोकतंत्र के सिद्धांत का उद्देश्य लोगों को निर्णय निर्माण में प्रत्यक्ष रूप से शामिल करना है। समानता तथा बहुमत शासन में विश्वास रखते हुए यह सिद्धांत निर्णय निर्माण प्रक्रिया को स्थानीय स्तर तक पहुंचा कर राजनीतिक समानता का विस्तार करना चाहता है।
कुक और मोरगन के अनुसार सहभागी लोकतंत्र के पक्ष –
- निर्णय निर्माण प्रक्रिया का विकेंद्रीकरण करना।
- निर्णय निर्माण में आम जनता की भागीदारी सुनिश्चित करना।
रूसो जैसे विचारकों का मानना है कि लोकतंत्र के अंतर्गत सार्वजनिक निर्णय तक पहुंचने के लिए जनसाधारण की प्रत्यक्ष सहभागिता का ज्यादा से ज्यादा विस्तार करना आवश्यक है। आधुनिक विशाल राज्यों में इस उद्देश्य की सिद्धि हेतु प्रशासन का विकेंद्रीकरण और परिपृच्छा (जनमत संग्रह) के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाए।
समकालीन राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत जन सहभागिता के दृष्टिकोण
समकालीन राजनीतिक सिद्धांत के अंतर्गत जन सहभागिता के तीन दृष्टिकोण हैं –
- नैमित्तिक दृष्टिकोण – जन सहभागिता स्वयं सहभागी व्यक्ति के हितों की रक्षा करती है और बढ़ावा देती है।
- विकासात्मक दृष्टिकोण – नागरिकों की सामान्य नैतिक, सामाजिक और राजनीतिक सजगता को बढ़ाती है।
- समुदायवादी दृष्टिकोण – जनसहभागिता सामान्य हित को बढ़ावा देती है।
सहभागी लोकतंत्र की विशेषताएं
- व्यक्ति का आत्म विकास सहभागी लोकतंत्र में ही संभव है।
- प्रतिनिधि संस्थाओं के साथ-साथ स्थानीय समुदायों की संस्थाओं के नियमन हेतु जनसाधारण की प्रत्यक्ष भागीदारी सुनिश्चित करना चाहता है।
- जनता के प्रति प्रत्यक्ष रूप से उत्तरदाई राजनीतिक दल व्यवस्था का पुनर्गठन करना चाहता है। इस प्रकार पुनर्गठित राजनीतिक दलों को ही संसदीय सरकार चलाने की अनुमति हो।
- राज्य की संस्थापक व्यवस्था खुली हो, ताकि प्रजातांत्रिक नियंत्रण के नवीन आयाम की संभावना सुरक्षित हो सके।
- जनसाधारण और सामाजिक समुदायों के आर्थिक अधिकारों में वृद्धि करना चाहता है।
- सार्वजनिक और निजी जीवन में अनुत्तरदायी नौकरशाही की शक्ति को कम करना चाहता है।
सहभागी लोकतंत्र की आलोचना
(1) सहभागिता को बढ़ावा देने वाली व्यवस्था और प्रक्रिया के सिद्धांत तो पहले से ही मौजूद हैं। अतः सहभागिता को बढ़ावा देने सहभागिता को बढ़ावा देने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है, सिद्धांत की नहीं।
(2) लोकतंत्र में जन सहभागिता को एक सीमा तक ही बढ़ाना उपयुक्त होगा। अत्यधिक राजनीतिक सहभागिता को प्रोत्साहन देने से लोग अपनी शिकायतों और विवादों को पर लाकर जीवन अस्त-व्यस्त कर देंगे।
(3) अत्यधिक जन सहभागिता के परिणामस्वरुप आए दिन जुलूस, हड़ताल, नारेबाजी, रैलियों, प्रदर्शन, घेराव, चक्का जाम, जेल भरो आंदोलन जैसे दुष्प्रभाव देखने को मिलेंगे।
(4) अत्यधिक जनसहभागिता से आए दुष्परिणामों को दूर करने के लिए कोई ठोस उपाय नहीं बताया गया है।
(5) सहभागी लोकतंत्र वर्तमान में मौजूद लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंदर ही नागरिकों की सहभागिता बढ़ाने पर बल देते है। कोई वैकल्पिक व्यवस्था प्रदान नहीं करते हैं।
(6) जन साधारण में इतना धैर्य और सूझबूझ नहीं होती कि वे सब स्थितियों का सही-सही मूल्यांकन कर सकें।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
सहभागी लोकतंत्र की वकालत किसने की थी?
उत्तर : सहभागी लोकतंत्र की वकालत करने वाले मुख्यतः तीन विचारक है – मैकफरसन, कैरोल पैटमैन, पोलान्जे।
सहभागी लोकतंत्र क्या है?
उत्तर : सहभागी लोकतंत्र का अर्थ है नीति निर्माण प्रक्रिया में जनसाधारण की भागीदारी। सहभागी लोकतंत्र आम जनता की ‘विशेषज्ञ’ के विरुद्ध प्रतिक्रिया है।