इस आर्टिकल में रूसो की सामान्य इच्छा राजनीतिक दर्शन के संदर्भ में क्या थी, यथार्थ इच्छा क्या है और आदर्श इच्छा क्या है, सामान्य इच्छा का निर्माण कैसे हुआ, सामान्य इच्छा की क्या-क्या विशेषताएं हैं और सामान्य इच्छा की आलोचना किन-किन आधारों पर की जा सकती है तथा राजनीतिक विचारधारा के क्षेत्र में सामान्य इच्छा कि क्या महत्वपूर्ण देन हैं।
रूसो की सामान्य इच्छा सिद्धांत क्या है
रूसो ने अपने राज्य की उत्पत्ति के सामाजिक समझौता सिद्धांत के अंतर्गत सामान्य इच्छा की चर्चा की है।
रूसो के राजनीतिक दर्शन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व सामान्य इच्छा का सिद्धांत है। सामान्य इच्छा की अवधारणा का प्रतिपादन रूसो ने किया जिसके अनुसार व्यक्ति समझौते द्वारा समुदाय के लिए अपनी शक्ति का जो परित्याग करता है, उससे उसको वैयक्तिक इच्छा का स्थान एक सामान्य इच्छा (General Will) ले लेती है। रूसो ने सामान्य इच्छा की पृष्ठभूमि में यथार्थ और आदर्श इच्छा में अंतर किया है जो इस प्रकार है –
यथार्थ इच्छा क्या है
सामान्यतया यथार्थ इच्छा और आदर्श इच्छा का एक ही अर्थ लिया जाता है। परंतु रूसो के द्वारा इनका प्रयोग विशेष अर्थों में किया गया है।
रूसो के अनुसार यथार्थ इच्छा मन की इच्छा का वह भाग है जिसका लक्ष्य व्यक्तिगत स्वार्थ की पुष्टि हो और जो स्वयं व्यक्ति में केंद्रित हो। इसके अंतर्गत सामाजिक हित की अपेक्षा व्यक्तिगत स्वार्थ की प्रबलता होती है।
आदर्श इच्छा क्या है
यथार्थ इच्छा के विपरीत आदर्श इच्छा मानव की वह इच्छा है जिसका लक्ष्य संपूर्ण समाज का कल्याण हो। इस इच्छा के अनुसार मानव स्वयं के हित को सामाजिक हित का अभिन्न अंग मानता है तथा संपूर्ण समाज के हित को देखते हुए ही विचार करता है।
इसमें व्यक्तिगत स्वार्थ का सामाजिक हित के साथ सामंजस्य तथा व्यक्तिगत स्वार्थ पर सामाजिक हित की प्रधानता होती है।
जहां तक सामान्य इच्छा का संबंध है सामान्य इच्छा मानव की आदर्श इच्छाओं का योग मात्र है। दूसरे शब्दों में कहें तो सामान्य इच्छा मानव की इच्छा का वह श्रेष्ठ भाग है जो संपूर्ण समाज के लिए आवश्यक रूप से हितकर हो।
प्रसिद्ध विद्वान टी एच ग्रीन ने सामान्य इच्छा की सूक्ष्म और अर्थपूर्ण व्याख्या करते हुए लिखा है कि “सामान्य आदर्शों की सामान्य चेतना ही सामान्य इच्छा है।”
रूसो की विचारधारा के प्रमुख व्याख्याकार बोसांके के अनुसार, “सामान्य इच्छा संपूर्ण समाज के सामूहिक इच्छा अथवा सभी व्यक्तियों की इच्छाओं का समूह है जिसका लक्ष्य सामान्य हित की पुष्टि हो।”
उपरोक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि रूसो की सामान्य इच्छा के दो अंग है :
- सामान्य व्यक्तियों की इच्छा और
- सामान्य हित पर आधारित इच्छा।
सामान्य इच्छा के इन दो अंगों में द्वितीय, प्रथम से अधिक महत्वपूर्ण है। जैसा कि स्वयं रूसो ने कहा है, “मतदाताओं की संख्या से कम तथा उस सामाजिक हित की भावना से अधिक इच्छा सामान्य बनती है। जिसके द्वारा वे एकता में बंधते है।”
सामान्य इच्छा का निर्माण कैसे हुआ
सामान्य इच्छा का निर्माण कैसे हुआ इस संबंध में रूसों का कहना है कि हम सबकी इच्छा से चलते हैं और सामान्य इच्छा पर पहुंचते हैं। जब कभी जनता के सामने कोई प्रश्न उपस्थित होता है तो जनता का प्रत्येक व्यक्ति इस प्रश्न पर व्यक्तिगत दृष्टिकोण से विचार करता है।
ऐसा समाज यदि सभ्य और सुसंस्कृत हो तो व्यक्तियों की स्वार्थमयी इच्छाएं एक दूसरे की इच्छाओं को नष्ट कर देती है और इस प्रक्रिया के परिणामस्वरुप सामान्य इच्छा का उदय होता है। पारस्परिक वाद विवाद के परिणामस्वरुप व्यक्तिगत इच्छाएं परिष्कृत हो जाती है और उसकी इच्छा का सर्वोत्तम रूप प्रकट होता है जो सामान्य इच्छा है।
रूसो का स्पष्ट मानना है कि सामान्य इच्छा की संपूर्ण अभिव्यक्ति तभी संभव है जब राज्य में छोटे-छोटे संघ नहीं हो। रूसो को ऐसा विश्वास है कि संघ नागरिकों में राज्य के प्रति कर्तव्य की भावना को दूर करता है। ऐसे में नागरिक संघ के संकीर्ण हितों को राज्य का हित मान लेता है।
बहुत सारे संघ आपस में मिलकर अपने हितों की पूर्ति में लगे रहते हैं। इससे सार्वजनिक हित का जबरदस्त नुकसान होता है। इसलिए रूसो जोर देकर कहता है कि अच्छा यही होगा कि राज्य में छोटे-छोटे संघ हो ही नहीं। अगर यदि ऐसे संघ पहले से मौजूद हैं तो उन्हें राज्य की पूर्ण अधीनता में रहना चाहिए। इसी आधार पर रूसो कहता है कि संघों की उपस्थिति सामान्य इच्छा के लिए घातक है।
रूसो ने सामान्य इच्छा की अभिव्यक्ति के लिए छोटे राज्यों को उचित समझा है। रूसो के अनुसार राज्य के सभी नागरिकों के द्वारा कानून के निर्माण में भाग लेना तभी संभव होगा जब राज्यों का आकार बहुत छोटा हो। इसी आधार पर कुछ विद्वान मानते हैं कि उन्होंने प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का समर्थन किया है।
सामान्य इच्छा की विशेषताएं
(1) अखंडता – रूसो के अनुसार सामान्य इच्छा राष्ट्रीय चरित्र में एकता उत्पन्न करती है और उसे स्थिर रखती है।
(2) अदेयता – सामान्य इच्छा किन्हीं व्यक्तियों को स्थानांतरित नहीं की जा सकती है। सामान्य इच्छा प्रतिनिधियों द्वारा व्यक्त किए जाने के योग्य नहीं होती है।
रूसो प्रत्यक्ष प्रजातंत्र का उपासक है जिसमें व्यक्ति स्वयंमेव अपनी इच्छा व्यक्त करते हैं। रूसो के अनुसार प्रतिनिधियों के माध्यम से इसे व्यक्त करना व्यक्तियों के बहुमूल्य अधिकारों का हनन तथा लोकतंत्र की हत्या है।
(3) अविच्छेद्यता – सामान्य इच्छा की विशेषता है कि इसे प्रभुसत्ता से अलग नहीं किया जा सकता। प्रभुसत्ता सामान्य इच्छा में निहित है और वह इसका प्राण है। जिस प्रकार किसी व्यक्ति के शरीर से उसके प्राण को पृथक नहीं किया जा सकता, वैसे ही संप्रभुता को सामान्य इच्छा से अलग कर सकना संभव नहीं है।
(4) सर्वोच्च एवं निरंकुश – सामान्य इच्छा सर्वोच्च एवं निरंकुश होती है। इस पर देवीय, प्राकृतिक या परंपरागत नियमों का कोई प्रतिबंध नहीं होता है और यह किसी व्यक्ति या समूह के अधिकारों से भी नियंत्रित नहीं होती। सभी के द्वारा सामान्य इच्छा का पालन किया जाना चाहिए और उन्हें ऐसा करना ही होगा, कोई भी इसकी अवहेलना नहीं कर सकता है।
रूसो द्वारा प्रतिपादित सामान्य इच्छा के सिद्धांत में संप्रभुता का निरंकुशता और लोकतंत्रात्मक का मिश्रित स्वरूप प्रकट होता है।
(5) स्थायी – सामान्य इच्छा किसी प्रकार से भावात्मक आवेशों, आवेगो या सनक का परिणाम नहीं होती, अपितु मानव के जनकल्याण की स्थायी प्रवृत्ति और विवेक का परिणाम होती है।
(6) लोक कल्याणकारी – सामान्य इच्छा का सबसे प्रमुख लक्षण लोक कल्याण है। सामान्य इच्छा व्यक्तियों की आदर्श इच्छाओं का योग होती है और व्यक्तियों की यह आदर्श इच्छाएं जनकल्याण से प्रेरित होती हैं। अतः सामान्य इच्छा का लक्ष्य सदैव ही संपूर्ण समाज का कल्याण होता है।
(7) विवेक पर आधारित औचित्यपूर्ण इच्छा – यह इच्छा किसी प्रकार की भावनाओं पर नहीं वरन तर्क तथा विवेक पर आधारित होती है। यह संभव है कि सामान्य इच्छा के अंतर्गत की गई सामान्य हित की कल्पना गलत हो किंतु यह व्यक्तिगत स्वार्थ से भ्रष्ट नहीं होता। रूसो के अनुसार, “सामान्य इच्छा सदैव ही विवेकपूर्ण एवं न्याय संगत होती है, क्योंकि जनता की वाणी वास्तव में ईश्वर की वाणी होती है।”
रूसो की सामान्य इच्छा की आलोचना
रूसो का सामान्य इच्छा का सिद्धांत राजनीतिक चिंतन के सर्वाधिक विवादास्पद विषयों में से एक है। एक और कुछ विचारको की दृष्टि से सामान्य इच्छा का सिद्धांत यदि भयंकर नहीं तो सारहीन अवश्य है।
जबकि दूसरे विचारकों के लिए यह सिद्धांत लोकतंत्र तथा राजनीतिक दर्शन का एक बुनियादी पत्थर है। सामान्य इच्छा के विचार की प्रमुख आलोनाएं निम्न प्रकार से की जा सकती है।
- अस्पष्ट एवं अव्यवहारिक है।
- यथार्थ इच्छा तथा आदर्श इच्छा का भेद काल्पनिक है।
- सामान्य हितों की व्याख्या संभव नहीं।
- निरंकुश तथा अत्याचारी राज्य का पोषक – ए डाइड के अनुसार, “रूसो सामान्य इच्छा की आड़ में बहुमत की निरंकुशता का प्रतिपादन तथा समर्थन करता है।”
- प्रतिनिध्यात्मक प्रजातंत्र में संभव नहीं।
रूसो की सामान्य इच्छा का महत्व
- सामान्य इच्छा का सिद्धांत राष्ट्रवाद का प्रेरक सिद्धांत भी है।
- रूसो का सामान्य इच्छा का विचार प्रजातंत्र का प्रतिष्ठापक है।
- इस सिद्धांत में व्यक्ति तथा समाज दोनों के हित को प्रधानता दी गई है।
- यह सिद्धांत व्यक्ति तथा समाज में शरीर तथा उसके अंगों के समान संबंध स्थापित करके सामाजिक स्वरूप को सुदृढ़ करता है।
- यह सिद्धांत इस सत्य का प्रतिपादन करता है कि राज्य एक स्वाभाविक और अनिवार्य संस्था है और राज्य ही सामान्य इच्छा को क्रियात्मक रूप देने का साधन है।
- सामान्य इच्छा की अवधारणा ने भावनावादी तथा रोमांचवादी आंदोलन पर भी प्रभाव डाला तथा इसे फ्रांस की क्रांति का प्रेरक विचार कहा जा सकता है।
जर्मन विद्वान शिलर प्रकृति तथा भावना के प्रतिपादक रूसो को नवयुवकों का पथ प्रदर्शक मानता है और यह कहा जाता है कि रॉब्सपीयर के नेतृत्व में तथा इसके परिणामस्वरुप फ्रांस तथा अन्य देशों में जो क्रांति हुई है, उनका संदेश रूसो की पुस्तक “सामाजिक अनुबंध” (Social Contract) में वर्णित सामान्य इच्छा के आदर्श में है।
इस प्रकार सामान्य इच्छा के विचार के महत्व के संबंध में डब्ल्यू टी जोन्स ने लिखा है कि, “सामान्य इच्छा की कल्पना रूसो के राजनीतिक सिद्धांत का एक केंद्रीय विचार ही नहीं है, यह सिद्धांत राजनीति शास्त्र के लिए भी उनकी एक अत्यंत मौलिक, रुचिकर तथा ऐतिहासिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण देन है।”
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
सामान्य इच्छा का सिद्धांत किसकी देन है?
उत्तर : सामान्य इच्छा का सिद्धांत जे जे रूसो की देन है।
सामान्य इच्छा का सिद्धांत क्या है?
उत्तर : रूसो के राजनीतिक दर्शन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण तत्व सामान्य इच्छा का सिद्धांत है। सामान्य इच्छा का संबंध मानव की आदर्श इच्छाओं का योग मात्र है। दूसरे शब्दों में कहें तो सामान्य इच्छा मानव की इच्छा का वह श्रेष्ठ भाग है जो संपूर्ण समाज के लिए आवश्यक रूप से हितकर हो।