उपचारात्मक शिक्षण का सम्प्रत्यय (Concept of Remedial Teaching)
एक प्रभावशाली शिक्षक का महत्वपूर्ण कार्य अपने छात्रों की कमजोरियों को पहचान कर उनका सुधार करना है। इस रूप में उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य छात्रों की अधिगम संबंधी कठिनाइयों को पहचानकर उनका हल करना है। अर्थात् अधिगम शिक्षण के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना, शिक्षा संबंधी गलत आदतों से मुक्ति दिलाना और छात्रों में स्वस्थ व्यक्तित्व को प्रोत्साहन देना है।
उपचारात्मक शिक्षण एक प्रकार का शिक्षण/अनुदेशात्मक कार्य होता है जिसे किसी विद्यार्थी या विद्यार्थियों के समूह को विषय विशेष या टॉपिक विशेष से संबंधित विशेष समस्या के निवारण हेतु प्रयोग में लाया जाता है।
उपचारात्मक शिक्षण में शिक्षक, विद्यार्थियों की अधिगम संबंधी त्रुटियों को दूर करके, उनको ज्ञान अर्जन की सही दिशा की ओर ले जाने का प्रयास करते हैं।
जी एम ब्लेयर के अनुसार, “उपचारात्मक शिक्षण वास्तव में एक अच्छा शिक्षण है जो छात्र के स्वयं के स्तर को ध्यान रखकर उपयोग में लाया जाता है। इसके द्वारा छात्र को आंतरिक प्रेरणा प्रदान कर उसकी क्षमता को विकसित किया जाता है। यह सावधानीपूर्वक दोषों के निदान पर आधारित है और छात्रों की आवश्यकता और रूचि पर आधारित है।”
योकम व सिम्पसन के अनुसार, “ उपचारात्मक शिक्षण उस विधि को खोजने का प्रयत्न करता है जो छांत्र को अपनी कुशलता या विचार की त्रुटियों को दूर करने में सफलता प्रदान करे।”
अतः उपचारात्मक शिक्षण छात्रों द्वारा पूर्व में की गई त्रुटियों की पुनरावृति को भविष्य में होने से रोकता है।
• उपचारात्मक शिक्षण के क्षेत्र
उपचारात्मक शिक्षण के निम्न क्षेत्र है –
1. वाचन
2. लेखन
3. उच्चारण
4. भाषा
5. अंकगणित
• उपचारात्मक शिक्षण के उद्देश्य
1. छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयों को दूर करना।
2. छात्रों की अधिगम सम्बन्धी त्रुटियों को दूर करना।
3. व्यक्तिगत विभिन्नताओं के आधार पर दोषों का निराकरण करना।
4. बालक को संबंधित विषय में कुशल बनाने के साथ-साथ उनमें विषय के शिक्षण के प्रति रुचि उत्पन्न करना है।
5. विषय के प्रति छात्रों में रुचि उत्पन्न करना।
6. पिछड़े बालकों की हीन भावना को दूर करना।
7. छात्रों की प्रगति का ज्ञान कराकर उन्हें पढ़ने के लिए प्रेरणा देना।
8. व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से छात्रों की त्रुटियों का निराकरण करना।
9. शिक्षा संबंधी दोषपूर्ण आदतों, मनोवृत्तियों से मुक्ति दिलाना। एवं आवांछनीय रुचियों, दृष्टिकोणों व आदर्शों को वांछनीय रुचियों, आदर्शों एवं दृष्टिकोणों में परिवर्तित करना।
10. छात्रों की मानसिक कठिनाइयों का हल करना।
• उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया
उपचारात्मक शिक्षण का उद्देश्य शिक्षण अधिगम में सुधार करना है अतः यह केवल उस संक्षिप्त विषय वस्तु से संबंधित रहता है जिस क्षेत्र में त्रुटियां होती हैं। इस रूप में यह सामान्य शिक्षण से विभिन्नता लिए हुए हैं। प्रायः सामान्य शिक्षण के उपरांत उपलब्धि परीक्षण किया जाता है और उपलब्धि परीक्षण में पाई गई कमियों को जानने के लिए निदानात्मक परीक्षण किया जाता है। तत्पश्चात उन कमियों को दूर करने के लिए उपचारात्मक शिक्षण किया जाता है। अतः यह सामान्य शिक्षण से अलग है, क्योंकि इसका उद्देश्य शिक्षण अधिगम में सुधार लाना है ना कि शिक्षा के उद्देश्य को पूरा करना। इसे इस रूप में स्पष्ट किया जा सकता है –
उपलब्धि परीक्षण –> निदानात्मक परीक्षण –> उपचारात्मक शिक्षण
उपचारात्मक शिक्षण की प्रक्रिया दो स्तर पर होती है : 1. शिक्षण प्रक्रिया और 2. अनुदेशन प्रक्रिया
1. शिक्षण प्रक्रिया – शिक्षक द्वारा छात्रों को पुनः शिक्षा कराने के लिए अथवा छात्रों की अधिगम कठिनाइयों का हल करने के लिए किया जाता है। यह दो प्रकार से की जा सकती है :
१. अनुवर्ग शिक्षण : अनुवर्ग शिक्षण का उद्देश्य छात्र की अधिगम संबंधी कठिनाइयों का हल करना है। अतः इस शिक्षण में छात्रों की व्यक्तिगत कठिनाइयों के हल करने के लिए कक्षा को छोटे-छोटे समूहों में बांट दिया जाता है और एक शिक्षक के पास छात्रों का छोटा समूह होता है।
छात्रों के पूर्व ज्ञान को ध्यान में रखते हुए व्यक्तिगत शिक्षण की व्यवस्था की जाती है और शिक्षण के बीच में आने वाली कठिनाइयों को दूर किया जाता है। इसमें छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नता को महत्व दिया जाता है। इसमें अध्यापक और छात्र बहुत करीब आते हैं और उनका उपचारात्मक शिक्षण किया जाता है।
२. स्वामित्व अधिगम व्यूह रचना : ब्लूम ने इस विधि का प्रतिपादन किया। इसका प्रयोग स्वामित्व अधिगम का विकास करने के लिए किया जाता है। यह शिक्षण सामूहिक रूप में किया जाता है। इसमें पाठ्यवस्तु को अधिगम की कठिनाइयों में बांट दिया जाता है और प्रत्येक छात्र से अभ्यास कराया जाता है।
उपलब्धि परीक्षा के आधार पर यह ज्ञात किया जाता है कि किन छात्रों ने स्वामित्व स्तर प्राप्त कर लिया है। जिन छात्रों ने स्वामित्व स्तर प्राप्त कर लिया है, उन्हें अध्ययन के लिए पुनर्बलन मिलता है और जो छात्र स्वामित्व स्तर प्राप्त नहीं कर सके हैं, उन्हें निदानात्मक परीक्षा दी जाती है जिससे उनकी अधिगम की कठिनाइयों को जाना जा सके।
अधिगम की कठिनाइयों के कारणों के आधार पर सुधारात्मक अनुदेशन की व्यवस्था की जाती है जिससे वे छात्र अधिगम स्वामित्व प्राप्त कर सकें। इस प्रकार इस विधि के अंतर्गत सामान्य कक्षा शिक्षण, पुनर्बलन प्रविधि, सुधारात्मक प्रविधि तथा व्यक्तिगत अधिगम त्रुटियों को सम्मिलित किया जाता है।
2. अनुदेशन प्रक्रिया : शिक्षण प्रक्रिया में शिक्षक और छात्र के मध्य अंत:क्रिया होती है किंतु अनुदेशन प्रक्रिया में अध्यापक और छात्र के मध्य अंत:क्रिया का होना आवश्यक नहीं है। छात्रों की व्यक्तिगत विभिन्नता और कमजोरियों के सुधार के लिए अनुदेशन प्रक्रिया व्यवस्थित की जाती है। छात्र स्वयं अध्ययन द्वारा अपने त्रुटियों का सुधार करता है। अनुदेशन प्रक्रिया दो प्रकार की है : 1. शास्त्रीय अभिक्रमित अनुदेशन (रेखीय और शाखीय) 2. समायोजन की प्रविधियां
• उपचारात्मक शिक्षण कार्यक्रम के सोपान
वास्तव में निदानात्मक और उपचारात्मक शिक्षण एक क्रमबद्ध प्रक्रिया है क्योंकि निदान का प्रयोजन ही उपचारात्मक शिक्षण है अतः उपचारात्मक शिक्षण के कार्यक्रम की तैयारी के लिए निम्न प्रक्रिया अपनाई जा सकती है :
1. निदानात्मक परीक्षण – उपचारात्मक शिक्षण की तैयारी का प्रथम सोपान निदानात्मक परीक्षण का प्रशासन करना है जिससे यह ज्ञात हो सके कि किन छात्रों का उपचारात्मक शिक्षण किया जाना है।
2. विश्लेषण – निदानात्मक परीक्षण के आधार पर छात्रों की कमजोरियों का विश्लेषण किया जाता है। अर्थात् किस क्षेत्र में छात्रों की कमियां है उन छात्रों का पूर्ण रूप से विश्लेषण किया जाता है जिससे त्रुटि के आधार पर शिक्षा व्यवस्था की जा सके।
3. त्रुटियों का कारण जानना – त्रुटियों के क्षेत्र का निर्धारण करने के उपरांत त्रुटियों के कारणों को जानना आवश्यक है जिससे उपचारात्मक शिक्षण का कार्यक्रम तैयार किया जा सके। क्योंकि जितने सही रूप में कारणों की जानकारी हो सकेगी इतने अच्छे ढंग से उपचारात्मक कार्यक्रम तैयार हो सकेगा।
4. उपचारात्मक कार्यक्रम का प्रारूप बनाना – त्रुटियों के क्षेत्र एवं कारणों के निर्धारण के उपरांत उपचारात्मक शिक्षण के प्रारूप का निर्धारण किया जाता है। त्रुटि के कारणों को ध्यान में रखते हुए उपचारात्मक अभ्यास मालाओं का निर्माण किया जाता है।
5. प्रस्तुतीकरण – इस स्तर पर उपचारात्मक शिक्षण अभ्यास मालाओं की क्रियान्विति छात्रों पर की जाती है। शिक्षक छात्रों को उपचारात्मक अभ्यास करवाता है, आवश्यकतानुसार अभ्यास मालाओं में संशोधन करता है और मूल्यांकन करता है कि छात्रों को सफलता मिली या नहीं। असफलता की स्थिति में पुनः उपचारात्मक शिक्षण करता है।
• हिंदी की वर्तनी की अशुद्धियों का उपचारात्मक शिक्षण
निदानात्मक परीक्षण – हिन्दी वर्तनी।
त्रुटि का प्रकार – हृस्व एवं दीर्घ स्वर – इ, ई, ए और ओ की अशुद्धता।
त्रुटि का कारण – उच्चारण की अशुद्धता, क्षेत्रीय भाषा का प्रभाव, आदर्श पाठ की कमी।
उपचारात्मक शिक्षण – अध्यापक को छात्रों को ध्वनि संबंधी जानकारी देनी अपेक्षित है। अध्यापक को शुद्ध, स्पष्ट आदर्श वाचन करना चाहिए। इ, ई आदि से संबंधित अभ्यास मालाएं करानी चाहिए।
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