इस आर्टिकल में राजनीति शास्त्र की आधुनिक अवधारणा के अंतर्गत राजनीतिक संस्कृति के प्रकार या राजनीतिक संस्कृतियों का वर्गीकरण के बारे में चर्चा की गई है।
संख्या शक्ति एवं सहभागिता के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
प्रत्येक प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था में संख्या, शक्ति एवं सहभागिता के आधार पर दो प्रकार की उप संस्कृतियां पाई जाती हैं –
- शासकों (अभिजन) की संस्कृति (Elite Culture)
- जनसाधारण की संस्कृति (Mass Culture)
(1) अभिजन संस्कृति (Elite Culture) – वे लोग जो सत्ता में होते हैं तथा सरकारी निर्णयों में सहभागी एवं उत्तरदाई होते हैं उन्हें अभिजन वर्ग कहा जाता है।
इस विशिष्ट वर्ग की अलग ही राजनीतिक संस्कृति होती है क्योंकि इनके स्वार्थ हित एवं तौर तरीके अलग तरह के होते हैं।
(2) जनसाधारण की संस्कृति (Mass Culture) – इन लोगों के हाथ में सत्ता नहीं होती है और ना ही सरकारी निर्णयों में इनकी विशेष सहभागिता होती है। इनकी आकांक्षाएं, आशाएं, व्यवहार एवं कार्य पद्धति अलग प्रकार की होती है इसे जनसाधारण की संस्कृति कहा जाता है।
इन दोनों के अतिरिक्त एक मध्यम वर्ग भी होता है जिसके प्रभावशाली होने पर दोनों ही उप संस्कृतियों के मध्य संतुलन होता है। एक आदर्श स्थिति में मध्यम वर्ग की भूमिका प्रभावशाली होनी चाहिए तथा अभिजन एवं जनसाधारण की संस्कृति के अंतर कम से कम होना चाहिए।
राजनीतिक संस्कृति में उप संस्कृतियां विद्यमान रहती है तथा प्रत्येक राजनीतिक संस्कृति में अभिजन एवं जनसाधारण की राजनीतिक संस्कृति होती है।
निरंतरता के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
राजनीतिक संस्कृतियों को निरंतरता के आधार पर परंपरागत एवं आधुनिकता के रूप में भी देखा जा सकता है। जैसे ब्रिटिश राजनीतिक संस्कृति, परंपरागतता और आधुनिकता का आदर्श मिश्रण मानी जाती है।
विकासशील एवं नव स्वतंत्र देशों में भी परंपरागत एवं आधुनिकता का राजनीतिक मिश्रण पाया जाता है। ब्रिटिश राजनीति में सामंजस्य पाया जाता है वही विकासशील देशों में परंपरागत एवं आधुनिक राजनीति के मध्य संघर्ष एवं तनाव पाए जाते हैं जो कि राजनीतिक व्यवस्था को कमजोर करते हैं।
सहभागिता के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
सहभागिता के आधार पर वाइजमेन ने अपनी पुस्तक “पॉलीटिकल सिस्टम – सम सोशियोलॉजिकल एप्रोच“ के अंतर्गत राजनीतिक सहभागिता के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के तीन विशुद्ध और तीन मिश्रित रूप बताए हैं। राजनीतिक संस्कृति के तीन विशुद्ध रूप इस प्रकार हैं –
(1) संकुचित राजनीतिक संस्कृति (Parochial Political Culture)
प्रायः ऐसी राजनीतिक संस्कृति आदिम समाज में होती है। समाज परंपरागत एवं पिछड़ा होता है। लोगों में राजनीतिक जागरूकता नहीं होती है और जनता को राजनीतिक ढांचे एवं प्रक्रियाओं की जानकारी नहीं होती है। जनता की अपेक्षाएं भी न्यूनतम होती है।
भूमिकाओं का न्यूनतम विशेषीकरण होता है और शासक राजनीतिक, आर्थिक एवं धार्मिक सभी भूमिकाएं संपन्न करते हैं। जैसे आदमी समाज के मुखिया ऐसी ही भूमिका निभाते थे।
(2) अधीनस्थ राजनीतिक संस्कृति
जनता में राजनीतिक व्यवस्था के प्रति उच्च स्तरीय अभिमुखीकरण होता है। लोगों को राजनीतिक व्यवस्था की जानकारी होती है किंतु उनकी राजनीतिक सहभागिता नहीं होती।
उनका निवेश (input) के बारे में कोई सरोकार नहीं रहता है किंतु वे अपनी मांगों के समाधान के लिए निर्गतों (output) में रुचि रखते हैं। वे शासन से प्राप्त करने के स्तर पर सक्रिय रहते हैं किंतु सरकार में भागीदारी के स्तर पर निष्क्रिय रहते हैं।
(3) सहभागी राजनीतिक संस्कृति
जनता को संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था, राजनीतिक संरचनाओ एवं प्रक्रियाओं की व्यापक जानकारी होती है। इतना ही नहीं आगत-निर्गत (input-output) में व्यापक सागिता होती है। लोगों का राजनीतिक व्यवस्था के प्रति सुनिश्चित दृष्टिकोण होता है। उन्हें अपनी राजनीतिक व्यवस्था से लगाव होता है।
इसके अतिरिक्त राजनीतिक संस्कृतियों के मिश्रित रूप भी प्रतिपादित किए हैं –
- संकुचित प्रजाभावी राजनीतिक संस्कृति
- प्रजाभावी सहभागी राजनीतिक संस्कृति
- संकुचित सहभागी राजनीतिक संस्कृति
व्यवहार में मिश्रित प्रकार की ही राजनीतिक संस्कृतियां देखी जा सकती हैं और एक राजनीतिक संस्कृति में दूसरी राजनीतिक संस्कृति के तत्व सम्मिलित होते हैं।
सेना की भूमिका के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
प्रो एस ई फाइनर ने राजनीतिक संस्कृतियों का अध्ययन और उनका वर्गीकरण राजनीति में सैनिक सत्ता की भूमिका के आधार पर किया है और राजनीतिक संस्कृति के तीन संवर्ग बताए हैं – परिपक्व, विकसित और निम्न।
(1) परिपक्व राजनीतिक संस्कृति – इसमें शासन सशस्त्र सेनाओं के समर्थन पर निर्भर नहीं करता, यहां तक कि सशस्त्र सेनाएं स्वयं भी असैनिक सत्ता की सर्वोच्चता के सिद्धांत में विश्वास करती है। उदाहरण के लिए ब्रिटेन अमेरिका आदि।
(2) विकसित राजनीतिक संस्कृति – इस प्रकार की संस्कृति से सैनिक दबाव के कारण असैनिक सरकारों को या तो खतरा बना रहता है या उन्हें नुकसान पहुंचाया जाता है। उदाहरण के लिए मिस्र, क्यूबा आदि।
(3) निम्न राजनीतिक संस्कृति – इस संस्कृति में लोग कम संगठित होते हैं और सैनिक सत्ता प्रभावी होती है। जनमत कमजोर होने के कारण लोग शासकों के प्रति विरोध प्रकट नहीं कर सकते। उदाहरण के लिए सीरिया, म्यांमार और इंडोनेशिया।
राजनीतिक व्यवस्था की भूमिका के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के प्रकार
आमंड के अनुसार राजनीतिक संस्कृति राजनीतिक व्यवस्था से जुड़ी हुई होती है। आमंड ने राजनीतिक व्यवस्था की भूमिका के आधार पर राजनीतिक संस्कृति को 4 वर्गों में वर्गीकृत किया है –
(1) आंग्ल-अमेरिकी राजनीतिक व्यवस्था – इस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति विकसित पश्चिमी देशों जैसे कि ब्रिटेन, अमेरिका, स्विट्जरलैंड आदि देशों में पाई जाती है। इनमें राजनीतिक लक्ष्यों एवं साधनों के विषय में आम सहमति होती है। राजनीतिक व्यवस्था को निर्धारित नियमों के अनुसार संचालित किया जाता है। यह समजातीय एवं पंथनिरपेक्ष संस्कृति होती है।
(2) महाद्वीपीय यूरोपीय राजनीतिक व्यवस्थाएं – यूरोपीय महाद्वीप के देशों में राजनीतिक संस्कृति में सामंजस्य के बजाय विघटन एवं खण्डित स्वरुप प्रभावी रूप से पाया जाता है। यहां पर कई प्रकार की राजनीति उप संस्कृतियां पाई जाती हैं। परिणामस्वरूप यहां पर समय-समय पर संघर्ष और हिंसा की स्थितियां उत्पन्न होती रहती हैं। फ्रांस, जर्मनी, इटली में महाद्वीपीय रजनीतिक व्यवस्था पाई जाती है।
(3) गैर – पश्चिमी अथवा आंशिक रूप से पूर्व औद्योगिक राजनीतिक व्यवस्था – तृतीय विश्व के नवोदित राज्य जो अतीत में औपनिवेशिक शोषण का शिकार रहे हैं, इन देशों को विकासशील या अर्द्ध विकसित राज्य कहा जाता है। ऐसे देशों में लोकतांत्रिक व्यवस्था को तो अपनाया है किंतु विकास होना अभी शेष है।
पश्चिमी प्रभाव के फलस्वरुप शासन व्यवस्था, नौकरशाही एवं निर्वाचन प्रणाली तो अपना ली गई है किंतु लोकतांत्रिक राजनीतिक संस्कृति का समुचित विकास नहीं हो पाया है। इन देशों की अपनी मूल संस्कृति एवं सामाजिक व्यवहार परंपरागत रूप से राजनीति पर अपना प्रभाव डालते हैं।
परिणामस्वरूप इन देशों में प्रायः करिश्मा प्रधान नेतृत्व पश्चिमी एवं परंपरागत संस्कृति में समन्वय का प्रयास करता है। प्रायः संसद भी विभिन्न वर्गों का अखाड़ा बन कर रह जाती है। कहीं-कहीं तो सेना और नौकरशाही की भूमिका राजनीतिक व्यवस्था में बढ़ जाती है।
भारत सहित एशिया, अफ्रीका के नवोदित लोकतंत्रों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।
(4) सर्वाधिकारवादी राजनीतिक व्यवस्था – यह व्यवस्था ऊपरी तौर पर समजातीय सस्कृति में दिखाई देती है लेकिन वास्तव में यह समजातीयता कृत्रिम होती है। जनता की सहमति एवं सहभागिता नाममात्र की एवं दिखावटी होती है।
दमन एवं उत्पीड़न इस प्रकार की व्यवस्था का आधार होता है। सेना और नौकरशाही की शक्तियां बढ़ जाती हैं। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं होती तथा अपने राजनीतिक विरोधियों को राष्ट्रद्रोही एवं समाजद्रोही घोषित कर दिया जाता है।
सर्वाधिकारवादी शासन व्यवस्थाओं में ऐच्छिक संघों एवं विरोधी राजनीतिक दलों की कोई भूमिका नहीं होती है। संचार साधनों पर सरकारी नियंत्रण होता है तथा शासन की संपूर्ण शक्ति ऐसे अधिकारी तंत्र के हाथों में रहती है जिसे एक ही विचारवाला राजनीतिक दल नियंत्रित करता है।
यहां तक कि न्यायपालिका भी स्वतंत्र एवं निष्पक्ष नहीं रहने दी जाती तथा शासन विरोधी निर्णय असंभव हो जाता है। ऐसी शासन व्यवस्थाएं दमन, शोषण एवं शक्ति के बल पर ही चलती है। कृत्रिम एकता अंततः राज्य के विभाजन व राजनीतिक पतन का कारण बनती है।
सोवियत संघ तथा वर्तमान चीन की शासन व्यवस्थाओं को इस श्रेणी में माना जा सकता है। पूर्वी यूरोप में युगोस्लाविया, बुल्गारिया, रोमानिया, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया आदि देशों में भी यही स्वरूप पाया जाता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
राजनीति में सैनिक सत्ता की भूमिका के आधार पर राजनीतिक संस्कृति का वर्गीकरण करने वाला विद्वान है ?
उत्तर : प्रो एस ई फाइनर ने राजनीतिक संस्कृतियों का अध्ययन और उनका वर्गीकरण राजनीति में सैनिक सत्ता की भूमिका के आधार पर किया है और राजनीतिक संस्कृति के तीन संवर्ग बताए हैं – परिपक्व, विकसित और निम्न।
भारत में किस प्रकार की राजनीतिक संस्कृति पाई जाती है ?
उत्तर : भारत में गैर – पश्चिमी अथवा आंशिक रूप से पूर्व औद्योगिक राजनीतिक व्यवस्था वाली राजनीतिक संस्कृति पाई जाती है। भारत सहित एशिया, अफ्रीका के नवोदित लोकतंत्रों को इसी श्रेणी में रखा जा सकता है।
किस देश की राजनीतिक संस्कृति वहाँ की राजनीतिक निरन्तरता का परिणाम है ?
उत्तर : ब्रिटेन की राजनीतिक संस्कृति वहाँ की राजनीतिक निरन्तरता का परिणाम है। ब्रिटिश राजनीतिक संस्कृति, परंपरागतता और आधुनिकता का आदर्श मिश्रण मानी जाती है।
अभिजन संस्कृति से क्या अभिप्राय है ?
उत्तर : सत्ता में रहते हुए सरकारी निर्णयों के सहभागी एवं उत्तरदायी वर्ग की संस्कृति को अभिजन संस्कृति कहा जाता हैं।
सहभागिता के आधार पर राजनीतिक संस्कृति का वर्गीकरण किसने किया ?
उत्तर : सहभागिता के आधार पर वाइजमेन ने अपनी पुस्तक “पॉलीटिकल सिस्टम – सम सोशियोलॉजिकल एप्रोच” के अंतर्गत राजनीतिक सहभागिता के आधार पर राजनीतिक संस्कृति के तीन विशुद्ध और तीन मिश्रित रूप बताए हैं। राजनीतिक संस्कृति के तीन विशुद्ध रूप इस प्रकार हैं – संकुचित राजनीतिक संस्कृति, अधीनस्थ राजनीतिक संस्कृति और सहभागी राजनीतिक संस्कृति।