इस आर्टिकल में राजनीतिक सामाजीकरण क्या है, राजनीतिक सामाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषा, राजनीतिक सामाजीकरण की विशेषताएं, राजनीतिक सामाजीकरण के साधन या अभिकर्ता और महत्व, राजनीतिक समाजीकरण के प्रकार आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
राजनीतिक समाजीकरण से आप क्या समझते हैं
सामाजिकरण का तात्पर्य मूल्यों को सीखने और अंगीकार करने की प्रक्रिया से है। राजनीतिक सामाजिकरण अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग हरबर्ट एच हाइमन ने किया था। तत्पश्चात ग्रेबियल आमंड, ईस्टर्न आर डी हैंस आदि ने उसका व्यवस्थित अध्ययन किया है।
राजनीतिक सामाजीकरण सामाजीकरण की प्रक्रिया का एक अंग ही माना जा सकता है। सामाजिकरण अध्ययन एवं विश्लेषण का नवीन क्षेत्र नहीं है। मनोविज्ञान, समाजशास्त्र एवं मानवशास्त्र में सामाजिकरण से संबंध और अन्वेषण होते रहे हैं। द्वितीय विश्वयुद्ध के पश्चात उद्भुत नवीन राजनीतिक व्यवस्थाओं में आए राजनीतिक परिवर्तनों एवं राजनीतिक अस्थिरता को समझने के लिए राजनीतिक सामाजीकरण उपागम का विकास किया गया।
राजनीतिक सामाजीकरण अदृश्य रूप से चलने वाली ऐसी प्रक्रिया है जिसके माध्यम से राजनीतिक समुदाय के सदस्य अपने समाज की संस्कृति को आत्मसात करते हैं। राजनीतिक सामाजिकरण की प्रक्रिया द्वारा ही राजनीतिक संस्कृति में निरंतरता एवं परिवर्तन परिलक्षित होता है।
राजनीतिक सामाजीकरण के द्वारा ही राजनीतिक समुदाय के लोग अपने शैशवकाल से ही ऐसी अभिवृत्ति या विश्वास और व्यवहार के तरीके सीख लेते हैं जिनसे वे अपने समुदाय की राजनीतिक संस्थाओं और प्रक्रियाओं को वैधता प्रदान करते हैं।
राजनीतिक सामाजीकरण के द्वारा ही व्यक्ति अपनी और दूसरे लोगों की राजनीतिक भूमिकाओं के बारे में समुचित ज्ञान प्राप्त करता है। राजनीतिक सामाजिकरण जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है जो अनेक औपचारिक और अनौपचारिक अभिकर्ताओं के माध्यम से निष्पादित होती है।
राजनीतिक सामाजीकरण के माध्यम से समाज अपने राजनीतिक मूल्यों मान्यताओं और विश्वासों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक पहुंचाता है। राजनीतिक सामाजिक राजनीतिक स्थिरता को बढ़ावा देता है और राजनीतिक प्रणाली नए दबावों और तनावों को सहन करने की क्षमता विकसित कर लेती है।
राजनीतिक संस्कृति एवं राजनीतिक सामाजिकरण में परस्पर घनिष्ठ संबंध होता है क्योंकि राजनीतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया के द्वारा ही राजनीतिक संस्कृति का निर्माण संरक्षण, परिवर्तन एवं परिवर्द्धन होता है।
राजनीतिक सामाजिकरण का विकास
राजनीतिक सामाजीकरण को नवीनतम अवधारणा माना जाता है किंतु वास्तव में यह अत्यंत प्राचीन अवधारणा है। प्लेटो ने अपने राजनीतिक चिंतन में नागरिकों के प्रशिक्षण पर बल दिया है। वर्तमान युग में 1959 में हरबर्ट एच हाइमन ने इस अवधारणा को व्यवस्थित रूप देते हुए इस अवधारणा का उपयोग किया है। तत्पश्चात आमंड एवं वर्बा ने राजनीतिक गतिविधियों पर राजनीतिक सामाजीकरण के प्रभाव का व्यवस्थित अध्ययन किया है।
राजनीतिक सामाजिकरण का अर्थ एवं परिभाषा
राजनीतिक सामाजिकरण एक अवधारणा एवं प्रक्रिया दोनों ही है। अवधारणा के रूप में यह राजनीतिक विश्लेषण की इकाई है और प्रक्रिया के रूप में यह राजनीतिक संस्कृति का नियामक तत्व है।
एलेन बाल ने राजनीतिक सामाजीकरण की परिभाषा देते हुए संकल्पनात्मक पक्ष को उजागर किया है। इस प्रकार अवधारणा के रूप में राजनीतिक सामाजीकरण किसी भी राजनीतिक समुदाय के व्यक्ति का राजनीति संबंधी मूल्यों, विश्वासों, अभिवृत्तियों एवं विचारों का योग है। इनसे ही राजनीतिक व्यवस्था के प्रति समर्थन अथवा विरोध उत्पन्न होता है।
राजनीतिक सामाजीकरण को एक प्रक्रिया के रूप में भी परिभाषित किया जाता है। राजनीति के बारे में लोगों की प्रवृतियां, विचारों और आस्थाओं के बनने की प्रक्रिया को ही राजनीतिक सामाजीकरण कहा जाता है। राजनीति से जुड़े विविध आयामों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण निर्माण की प्रक्रिया को ही राजनीतिक सामाजीकरण कहते हैं।
राजनीतिक सामाजिकरण, सामाजिकरण एवं राजनीतिक संस्कृति का अभिन्न अंग माना जा सकता है। इससे राजनीतिक संस्कृति की स्थापना, विकास, संरक्षण एवं परिवर्तन की प्रक्रिया की जानकारी प्राप्त होती है।
आलमंड एवं पॉवेल के अनुसार, “राजनीतिक सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा राजनीतिक संस्कृतियों का निर्माण अनुरक्षण एवं उनमें परिवर्तन किया जाता है। इस कार्य के निष्पादन के माध्यम से लोग राजनीतिक संस्कृति में प्रविष्ट होते हैं और राजनीतिक विषयों की ओर उनकी प्रवृत्तियों का निर्माण होता है।
इस प्रकार कहा जा सकता है कि राजनीतिक सामाजीकरण वह प्रशिक्षण प्रक्रिया है जिनके द्वारा संचालित राजनीतिक व्यवस्था के लिए स्वीकार्य मानकों और व्यवहारों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक संप्रेषित किया जाता है।
राजनीतिक सामाजीकरण की विशेषताएं
(1) राजनीतिक सामाजीकरण एक मनोवैज्ञानिक प्रक्रिया है – यह प्रक्रिया मानव मस्तिष्क, उनके विचारों और भावनाओं से जुड़ी हुई है। इसमें मनुष्य के विचारों और भावनाओं को प्रभावित करने का प्रयत्न किया जाता है।
(2) राजनीतिक सामाजीकरण एक सार्वभौमिक अवधारणा है।
(3) राजनीतिक सामाजीकरण एक निरंतर एवं गतिशील प्रक्रिया है।
(4) राजनीतिक सामाजीकरण प्रशिक्षण की प्रक्रिया है
(5) राजनीतिक सामाजीकरण के द्वारा ही राजनीतिक समुदाय के लोगों के मूल्यों, अभिवृत्तियों एवं मान्यताओं का निर्माण होता है तथा लोगों के द्वारा राजनीतिक संस्थाओं एवं प्रक्रियाओं को वैधता प्राप्त होती है।
(6) राजनीतिक सामाजिकरण द्वारा ही राजनीतिक मूल्यों का अर्जन होता है तथा एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्थानांतरण होता है।
(7) राजनीतिक सामाजीकरण की प्रक्रिया सामान्यतया अदृश्य और सहज ढंग से कार्य करती है।
(8) राजनीतिक सामाजिकरण, सामाजिकरण का एक अभिन्न अंग है। राजनीतिक सामाजीकरण राजनीतिक संस्कृति से घनिष्ठ रूप से संबंध है। राजनीतिक समाजीकरण से ही राजनीतिक संस्कृति का निर्माण, संरक्षण एवं परिवर्तन होता है।
(9) उद्देश्यपूर्ण एवं मूल्य आधारित अवधारणा व प्रक्रिया – राजनीतिक समाजीकरण का मूल उद्देश्य राजनीतिक संस्कृति का अनुरक्षण एवं विकास है अर्थात वांछित दिशा में राजनीतिक संस्कृति का परिवर्तन ही इसका उद्देश्य है।
जैसे भारत में राजनीतिक सामाजीकरण का उद्देश्य नागरिकों को लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता, आर्थिक एवं सामाजिक न्याय तथा राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता की ओर प्रवृत्त करना है।
राजनीतिक सामाजीकरण प्रक्रिया के दो रूप
आमंड और पॉवेल ने राजनीतिक सामाजीकरण के दो रूप बतलाए है –
(1) प्रत्यक्ष या प्रकट राजनीतिक सामाजिकरण
जब राजनीतिक व्यवस्था संबंधित जानकारी और मूल्यों को स्पष्ट रूप से पूर्व नियोजित एवं योजनाबद्ध तरीके से निर्मित किया जाता है तो यह प्रकट राजनीतिक समाजीकरण कहलाता है।
इस प्रकार के प्रकट या प्रत्यक्ष सामाजिकरण में शासक वर्ग जनसामान्य के राजनीतिक मूल्यों और आदर्शों की शिक्षा को अपनी तरफ मोड़ने का प्रयत्न करता है और विशेष राजनीतिक लक्ष्य प्राप्त करना चाहता है।
प्रत्यक्ष राजनीतिक सामाजीकरण लोकतंत्रात्मक एवं अधिनायकवाद शासन व्यवस्थाओं में समान रूप से पाया जाता है। सर्वाधिकारवादी राज्य किसी विचारधारा विशेष को आरोपित करने का प्रयत्न राजनीतिक सामाजीकरण के द्वारा करते हैं जैसे पूर्व सोवियत संघ एवं वर्तमान चीन की साम्यवादी व्यवस्था इसके उदाहरण हैं।
नागरिक शास्त्र पाठ्यक्रमों के प्रति आस्था, अपनी विचारधारा के आधार पर परिवर्तन, भाषणों एवं संचार माध्यमों के द्वारा श्रोताओं को विशेष प्रकार से राजनीतिक समाजीकरण करने का प्रयत्न किया जाता है।
प्रत्यक्ष सामाजिकरण से कुछ समय के लिए अनुकूल राजनीतिक वातावरण का निर्माण हो सकता है किंतु इसका स्थाई एवं दीर्घकालीन प्रभाव नहीं पड़ता। कभी-कभी तो इसका नकारात्मक प्रभाव भी पड़ता है।
राज्य द्वारा प्रायोजित प्रत्यक्ष राजनीतिक सामाजीकरण का ही दुष्प्रभाव था कि सोवियत संघ 1990 के दशक में खंडित हो गया, क्योंकि राजनीतिक समाज के लोग साम्यवादी विचारधारा को आत्मसात नहीं कर पाए।
(2) अप्रत्यक्ष या अप्रकट राजनीतिक सामाजिकरण
अप्रत्यक्ष राजनीतिक सामाजीककरण अप्रत्यक्ष एवं अदृश्य रूप से सहज एवं स्वत: होने वाली प्रक्रिया है। इसमें राजनीति संबंधी मूल्य, मान्यताएं, विचार, योजनाबद्ध रूप से बनाए और आरोपित नहीं किए जाते हैं वरन् व्यक्ति के सामाजिकरण की प्रक्रिया के साथ-साथ स्वत: ही मूल्यों, मान्यताओं, विचारों का निर्माण होता रहता है।
प्रत्यक्ष राजनीतिक सामाजीकरण जीवन पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया होती है। इसका प्रभाव धीमा किंतु दीर्घकालीन होता है। व्यक्तियों के राजनीतिक सामाजीकरण हेतु राजव्यवस्था, प्रचार तंत्र एवं सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग नहीं होता अपितु व्यक्तियों को राजव्यवस्था की दृष्टि से वांछित दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित मात्र ही किया जाता है।
ऐसे अप्रत्यक्ष सामाजिकरण से राष्ट्र एवं व्यवस्था के प्रति निष्ठा व्यक्ति के जीवन चरित्र का स्वाभाविक अंग बन जाता है। प्रत्यक्ष राजनीतिक सामाजीकरण की अपेक्षा अप्रत्यक्ष सामाजिकरण ज्यादा प्रभावी एवं स्थाई होता है।
राजनीतिक सामाजीकरण के प्रकार
मुख्यतः राजनीतिक सामाजिकरण दो प्रकार का होता है सजातीय और विजातीय राजनीतिक सामाजीकरण।
राजनीतिक सामाजीकरण का मुख्य उद्देश्य राजव्यवस्था को बनाए रखना होता है। सजातीय राजनीतिक सामाजिकरण ही राजव्यवस्था के लिए हितकर एवं अपरिहार्यता होता है। विजातीय राजनीतिक सामाजीकरण से व्यवस्था के टूटने का खतरा उत्पन्न हो सकता है। 1991 में सोवियत संघ का विघटन विजातीय राजनीतिक समाजीकरण के कारण ही हुआ।
विजातीय राजनीतिक सामाजीकरण में जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र, राजनीतिक विचार एवं आर्थिक हितों में अंतर होने से संदेह और अविश्वास घृणा व संघर्ष में परिवर्तन हो जाता है और राजव्यवस्था के प्रति निष्ठा में कमी आती है। राज व्यवस्था के स्थायित्व एवं अस्तित्व का संकट उत्पन्न हो जाता है। अतः सजातीय राजनीतिक समाजीकरण श्रेष्ठ एवं उपयोगी होता है।
राजनीतिक समाजीकरण के साधन या अभिकर्त्ता
- परिवार
- शिक्षण संस्थान
- समकक्षी समूह – खेल समूह, मित्र मंडली, कार्य व्यवस्था के समुदाय
- धर्म
गौण समूह –
1. विशिष्ट राजनीतिक अभिप्रेरणा से संबंध गौण समूह – राजनीतिक दल, युवा संगठन इत्यादि।
2. गैर राजनीतिक उद्देश्यों के लिए निर्मित गौण समूह – विभिन्न श्रम संगठन।
3. न राजनीतिक उद्देश्य होता है और न ही राजनीतिक पहचान होती है। अपने समूह की गतिविधियों में सहभागिता से ही राजनीतिक अभिमुखीकरण स्वत: हो जाता है। जैसे क्लब, सांस्कृतिक संघ, खेल संघ आदि।
4. जन संचार के साधन – संचार माध्यमों की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता का राजनीतिक सामाजीकरण पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि विभिन्न देशों की सरकारें न केवल अपने नागरिकों अपितु अपने पड़ोसी एवं शत्रु राज्यों की जनता का भी संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक अभिमुखीकरण का प्रयत्न करती है। बीबीसी लंदन, वॉइस ऑफ अमेरिका, रेडियो मास्को द्वारा सुनियोजित ढंग से लोगों का सामाजिकरण करने का प्रयत्न शीत युद्ध काल से ही होता रहा है। यही कारण है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात पूर्वी यूरोप के अनेक देशों ने पश्चिमी राजनीतिक मूल्यों एवं उदारवादी लोकतांत्रिक ढांचे को अपनाया है।
5. राजनीतिक दल
6. सरकार एवं राजव्यवस्था
7. प्रतीक – राष्ट्रीय ध्वज, राष्ट्रगान, राष्ट्रीय प्रतीक, धार्मिक ध्वज आस्था के केंद्रों, महान नेताओं के जन्म दिवस पर होने वाले उत्सव, बड़े-बड़े उद्घाटन आदि।
8. समाज एवं संस्कृति।
राजनीतिक सामाजीकरण के नियामक
1. राजनीतिक व्यवस्था की प्रकृति – राजनीतिक व्यवस्था के स्वरूप पर राजनीतिक सामाजीकरण निर्भर करता है। जैसे लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनीतिक सामाजीकरण सहज रूप से होता है। अधिनायकवाद में राजनीतिक सामाजीकरण शासकों की इच्छा के अनुकूल ही होता है।
2. समाज में सामाजीकरण की स्थिति।
3. राजनीतिक समाज के आदर्श – पूंजीवाद, धर्म आधारित व्यवस्था, पंथनिरपेक्षता, आधुनिकीकरण, समाजवाद जैसे आदर्श राजनीतिक समाजीकरण को अपनी प्रकृति के अनुसार प्रभावित करते हैं।
4. जनसंसार के माध्यमों एवं अभिकरणों की भूमिका।
5. राजनीतिक संस्कृति – अगर राजनीतिक संस्कृति के प्रतिमानों में कोई परिवर्तन आता है तो राजनीतिक सामाजीकरण भी प्रभावित होता है। 1991 में सोवियत संघ के पतन और पूर्वी यूरोप के घटनाक्रम ने उन राज्यों के राजनीतिक समुदाय के राजनीतिक सामाजीकरण की दिशा में आमूल-चूल परिवर्तन कर दिया।
राजनीतिक सामाजीकरण में व्यवधान उत्पन्न करने वाले कारक
- संकटकाल
- तीव्र शहरीकरण
- सामाजिक मूल्यों में आकस्मिक परिवर्तन
- हिंसात्मक परिवर्तन
राजनीतिक सामाजीकरण का महत्व
- राजनीतिक व्यवस्था के अध्ययन में सहायता
- राजनीतिक संस्कृति के अध्ययन में सहायक
- राजनीतिक प्रक्रियाओं को समझने में सहायक
- राजनीतिक आदर्शों का निर्धारण एवं उनकी प्राप्ति
- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में महत्व
राजनीतिक समाजीकरण की अवधारणा की उपयोगिता अनेक बार संदिग्ध बताई जाती है। जे पी नेटेल ने कहा है कि तीसरी दुनिया के देशों में बहुत सारी सेनाएं, पराश्रित नौकरशाही, संपत्ति का असमान वितरण, कम उत्पादकता और समुदायों के मध्य संघर्षों के कारण अमेरिकी समाज वैज्ञानिकों द्वारा सृजित राजनीतिक सामाजीकरण की अवधारणा तीसरी दुनिया के देशों के अनुकूल नहीं है।
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इस वीडियो का पार्ट -2 यहां देखें और पार्ट – 3 यहां देखें.
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
राजनीतिक समाजीकरण की सर्वप्रथम व्याख्या किसने की?
उत्तर : राजनीतिक सामाजिकरण अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग हरबर्ट एच हाइमन ने किया था। तत्पश्चात ग्रेबियल आमंड, ईस्टर्न आर डी हैंस आदि ने उसका व्यवस्थित अध्ययन किया है।
राजनीतिक समाजीकरण में संचार माध्यमों की भूमिका बताइए?
उत्तर : संचार माध्यमों की निष्पक्षता एवं विश्वसनीयता का राजनीतिक सामाजीकरण पर दीर्घकालीन प्रभाव पड़ता है। यही कारण है कि विभिन्न देशों की सरकारें न केवल अपने नागरिकों अपितु अपने पड़ोसी एवं शत्रु राज्यों की जनता का भी संचार माध्यमों के द्वारा राजनीतिक अभिमुखीकरण का प्रयत्न करती है।
बीबीसी लंदन, वॉइस ऑफ अमेरिका, रेडियो मास्को द्वारा सुनियोजित ढंग से लोगों का सामाजिकरण करने का प्रयत्न शीत युद्ध काल से ही होता रहा है।
यही कारण है कि 1991 में सोवियत संघ के विघटन के पश्चात पूर्वी यूरोप के अनेक देशों ने पश्चिमी राजनीतिक मूल्यों एवं उदारवादी लोकतांत्रिक ढांचे को अपनाया है।राजनीतिक समाजीकरण से क्या तात्पर्य है?
उत्तर : जिस प्रक्रिया के द्वारा व्यक्ति राजनीति के प्रति अपना ज्ञान प्राप्त करता है, उस प्रक्रिया को राजनीतिक समाजीकरण कहते हैं।
किन राज्यों में समाजीकरण के साधनों पर नियन्त्रण होता है?
उत्तर : साम्यवादी तथा सर्वाधिकारवादी राज्यों में समाजीकरण के साधनों पर राज्य का कठोर नियन्त्रण होता है।