इस आर्टिकल में भारतीय मानववादी चिंतक मानवेंद्र नाथ राय (M. N. Roy) का जीवन परिचय, मानवेंद्र नाथ राय एक उग्र राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेता के रूप में, मानवेंद्र नाथ राय का रूढ़िवादी मार्क्सवादी की और झुकाव, एम एन राय का स्टालिन के साथ मतभेद और रूढ़िवादी मार्क्सवाद की आलोचना, मानवेंद्र नाथ राय की भारत वापसी और साम्यवादी दल से अलगाव, मानवेंद्र नाथ राय का कांग्रेस में प्रवेश, एम एन राय द्वारा मौलिक मानवतावाद का प्रतिपादन, मानवेंद्र नाथ राय की प्रमुख रचनाएं आदि के बारे में चर्चा की गई है।
भारत के आधुनिक राजनीतिक चिंतकों में मानवेंद्र नाथ राय (M.N. Roy) को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्होंने हमारे समक्ष ‘मौलिक मानववाद’ का आदर्श प्रस्तुत किया है जिसे राजनीतिक चिंतन में नवीन योगदान समझा जा सकता है। मानवेंद्र नाथ राय ने भौतिकवाद की नवीन व्याख्या करते हुए उसे एक नैतिक स्वरूप प्रदान किया।
व्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता का समर्थन करके उन्होंने व्यक्ति की गरिमा को आगे बढ़ाया। एम एन राय ने ‘दलविहीन लोकतंत्र’ का सिद्धांत भी प्रतिपादित किया जो व्यवहारिक न होते हुए भी आकर्षक आदर्श अवश्य है।
राय ने समाज में नैतिक मूल्यों को पुनः प्रतिष्ठित करने का आग्रह किया और साम्यवाद को तानाशाही प्रवृत्ति से बचाने का प्रयत्न किया। किंतु इन सबके साथ राय के स्वभाव और चिंतन में एक हठधर्मिता और दुराग्रह है तथा अपने इस दुराग्रह के कारण ही उन्होंने गांधी, धर्म, ईश्वर और राष्ट्रवाद को गहराई से समझे बिना ही इसके प्रति तीव्र आलोचना का मार्ग अपना लिया।
मानवेंद्र नाथ राय आधुनिक भारत के अत्यंत प्रतिभाशाली राजनीतिक विचारक और क्रांतिकारी थे। उनका संबंध भारतीय साम्यवादियों की पहली पीढ़ी से था। रूस में बोल्शेविक क्रांति (1917) के बाद वे वहीं चले गए और लेनिन के सहयोगी रहे। 1930 में भारत लौटकर उन्होंने यहां की स्थिति का विश्लेषण किया और आगे चलकर उन्होंने एक नए सिद्धांत नव मानववाद का प्रतिपादन किया, जो उनकी ख्याति का मुख्य आधार स्तम्भ है।
मानवेंद्र नाथ रॉय का जीवन परिचय
Biography of Manvendra Nath Roy : मानवेंद्र नाथ राय का जन्म 21 मार्च 1887 को कोलकाता के निकट 24 परगना गांव में हुआ था। राय का प्रारंभिक नाम नरेंद्र नाथ भट्टाचार्य था। प्रारंभिक शिक्षा घर में संपन्न करने के बाद वे स्थानीय राष्ट्रीय पाठशाला में भर्ती हुए। वे इस प्रकार प्रारंभिक अवस्था में ही राष्ट्रवादी विचारों के संपर्क में आए।
एम एन राय के जीवनी लेखक ‘एस. एल. मुंशी और सी. दीक्षित’ के अनुसार राय का जीवन स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ और स्वामी दयानंद सरस्वती से प्रभावित रहा। इन संतों और सुधारकों के अतिरिक्त उनके जीवन पर विपिन चंद्र पाल और वीर सावरकर का भी प्रभाव पड़ा।
मानवेंद्र नाथ राय एक उग्र राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी नेता के रूप में
Manvendra Nath Rai as an avid nationalist and revolutionary leader : 1910 तक आते-आते उन्होंने उग्र राष्ट्रवादीयों में अपने लिए स्थान बना लिया था। अतः 1910 में उनको ‘हावड़ा षड्यंत्र कांड’ में बंदी बना लिया गया। वह ‘युगांतर’ (युगान्तर पार्टी बंगाल में क्रान्तिकारियों का प्रमुख संगठन थी) से अपने आपको पूरी तरह संबंध कर चुके थे और भारत में सशस्त्र क्रांति की योजना बनाने में सलंग्न थे।
मानवेंद्र नाथ राय क्रांतिकारियों के प्रतिनिधि के नाते विदेशों से आने वाले शस्त्रों को प्राप्त करने के लिए 1915 ईस्वी में जावा गए। किंतु उन्हें न तो सशस्त्र मिले और ना ही सशस्त्र लाने वाला जलयान। कुछ माह बाद वे दुबारा जावा गए और वहां से फिलिस्तीन, कोरिया और मंचूरिया गए। वे इस यात्रा क्रम में जब अमेरिका पहुंचे तो उन्होंने अपना नाम नरेंद्र नाथ के स्थान पर मानवेंद्र नाथ राय रख लिया।
चीन और जापान की यात्रा में उन्होंने विश्व के बदलते हुए वातावरण को नजदीक से देखा। उन्होंने अमेरिका में ही विवाह कर लिया और अपनी विदेशी पत्नी के साथ मैक्सिको नगर में जा बसे। इसके साथ ही उनके जीवन का उग्र राष्ट्रवादी और क्रांतिकारी अध्याय संभवतया समाप्त हो गया।
मानवेंद्र नाथ राय का रूढ़िवादी मार्क्सवादी की और झुकाव
Manvendra Nath Rai’s leaning towards conservative Marxist : 1918 में एक साम्यवादी नेता ‘माइकल बोरोडीन’ के संपर्क में आए। अब उनका साम्यवाद के प्रति आकर्षण बढ़ने लगा और वे साम्यवाद को मानव जाति के कष्टों का उद्धारक मानने लगे। 1919 में उन्होंने मैक्सिको के बाहर किसी राज्य में प्रथम साम्यवादी दल स्थापित करने का श्रेय प्राप्त हुआ और लेनिन इस प्रतिभाशाली तथा साहसी व्यक्ति से मिलने के लिए उत्सुक हो उठे।
माइकल बोरोडीन के माध्यम से राय को लेनिन का निमंत्रण प्राप्त हुआ और ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ की द्वितीय कांग्रेस में मेक्सिको के प्रतिनिधि के रूप में 1920 के प्रारंभ में रूस पहुंचे। रूस जाते समय उन्होंने बर्लिन में भारतीय क्रांतिकारियों से भेंट की। लेनिन और राय के बीच घनिष्ठ मित्रता के संबंध स्थापित हो गए। लेनिन ने मानवेंद्र नाथ राय को ‘पूर्वी क्रांति का चिह्न’ कहकर सम्मानित किया था।
Note : कम्युनिस्ट इंटरनेशनल (जिसे तृतीय इंटरनेशनल भी कहा जाता है) एक अन्तर्राष्ट्रीय साम्यवादी संगठन था जिसकी स्थापना 1915 में जिमरवाल्द सम्मेलन के दौरान हुई थी। 1919-34 तक कम्युनिस्ट इंटरनेशनल ने 7 सम्मेलन हुए। जोसेफ स्टालिन ने 1943 में इस संगठन को समाप्त कर दिया था।
राय के परामर्श से एशियाई समस्याओं का समाधान खोजने के लिए ‘कम्युनिस्ट इंटरनेशनल’ ने ताशकंद में उनका एक केंद्रीय एशियाई बोर्ड स्थापित किया और इसके पूर्व विभाग के अध्यक्ष नियुक्त किए गए। 1921 में एम एन राय को मास्को के प्राच्य विश्वविद्यालय के अध्यक्ष नियुक्त किए गए थे।
एम एन राय का स्टालिन के साथ मतभेद और रूढ़िवादी मार्क्सवाद की आलोचना
M N Roy’s differences with Stalin and criticism of conservative Marxism : लेनिन और राय के बीच भी कुछ विषयों पर मतभेद की स्थिति थी। लेनिन का विचार था कि साम्यवाद परतंत्र देशों के राष्ट्रीय आंदोलन के साथ प्रमुख रूप से जुड़े हुए संगठनों को समर्थन दे, क्योंकि वह साम्राज्यवाद के विरुद्ध संघर्ष कर रहे हैं। इस दृष्टि से लेनिन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस को समर्थन देने के इच्छुक थे।
लेकिन राय का कहना था कि भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और गांधी के नेतृत्व में चल रहे आंदोलन की प्रकृति सामंतवादी है अतः इसे समर्थन देने का कोई औचित्य नहीं है। लेकिन इस मतभेद के बावजूद साम्यवादी इंटरनेशनल में राय को महत्वपूर्ण स्थिति प्राप्त थी। किंतु लेनिन की मृत्यु के बाद साम्यवादी इंटरनेशनल में राय की स्थिति कमजोर हो गई। क्योंकि अब कॉमिण्टर्न (Communist International) को औपनिवेशिक देशों के राष्ट्रीय आंदोलन के साथ सीधा संपर्क न रखने का आदेश मिला था।
स्टालिन के एक ही देश में समाजवाद के सिद्धांत से राय सहमत नहीं थे। राय, स्टालिन की एकाधिकारवादी प्रवृत्ति के विरुद्ध थे। इन परिस्थितियों में 1928-29 में कम्युनिस्ट इंटरनेशनल से उनका संबंध टूट गया।
मानवेंद्र नाथ राय की भारत वापसी और साम्यवादी दल से अलगाव
Manvendra Nath Rai’s return to India and separation from communist party : 1921-28 के वर्षों में सोवियत रूस में रहते हुए राय ने भारतीय साम्यवादी दल की स्थापना को दृढ़ आधार प्रदान किया था। वे वानगार्ड (Vanguard) और मैसेज (Massage) पत्रिका के माध्यम से भारत के साम्यवादियों का मार्गदर्शन कर रहे थे।
कम्युनिस्ट इंटरनेशनल से संबंध टूटने के बाद वे 1930 में नाम बदलकर भारत लौटे। मुंबई आकर डॉक्टर महमूद के नाम से राजनीतिक गतिविधियों भाग लेने लगे, किंतु उन्हें ‘कानपुर षड्यंत्र केस’ में छः वर्ष के कारावास का दंड भुगतना पड़ा। 1936 में उन्हें जेल से रिहा किया गया, लेकिन वे भारत के साम्यवादी दल पर अपना नेतृत्व स्थापित करने में सफल नहीं हो पाए। इसके साथ ही वे न केवल भारत के साम्यवादी दल वरन साम्यवादी आंदोलन से भी अलग हो गए।
मानवेंद्र नाथ राय का कांग्रेस में प्रवेश
Manvendra Nath Rai enters Congress : 1936 के बाद वे कांग्रेस की ओर उन्मुख हुए और सन 1939 में उन्होंने कांग्रेस के भीतर ही ‘League of Redical Congressmen’ स्थापित की। सन 1940 में उन्होंने मौलाना आजाद के विरुद्ध कांग्रेस के अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ा, लेकिन भारी असफलता ही हाथ लगी। इस पराजय के बाद वे कांग्रेस से अलग हो गए।
मानवेंद्र नाथ राय मार्क्सवाद से पूर्णतया निराश होकर दिसंबर 1940 में रेडिकल डेमोक्रेटिक पार्टी (Redical Democratic Party) की स्थापना की। 1945-46 के चुनाव में उनके दल ने सक्रिय रूप से भाग लिया, लेकिन उनके दल को कोई भी स्थान प्राप्त नहीं हुआ। उन्होंने इस पराजय से निष्कर्ष निकाला कि भारत अभी प्रजातंत्र के मौलिक आदर्शों के लिए अनुपयुक्त है।
एम एन राय द्वारा मौलिक मानवतावाद का प्रतिपादन
Mn Rai’s rendition of fundamental humanism : साम्यवादी आंदोलन से अलग होने के बाद 1937 में उन्होंने ‘इंडिपेंडेंट इंडिया’ (Independent India) साप्ताहिक पत्र का प्रकाशन और इस पत्र के माध्यम से मानवतावादी आंदोलन को संगठित करने का प्रयास किया था। इस पत्र का 1949 में नाम बदलकर ‘Redical Humanist’ कर दिया गया था। एम एन रॉय ने रेडिकल ह्यूमेनिस्ट की अवस्था के दौरान दलवहीन व्यवस्था का समर्थन किया।
सन 1947 से वे इस मानवतावादी आंदोलन के साथ पूरे तौर पर जुड़ गए और 25 जनवरी 1954 को अपने मानवतावादी आंदोलन के साथ देहावसान तक मानवतावादी आंदोलन का प्रसार करते रहे। गांधी और कांग्रेस के आलोचक तो वे सदैव थे, जीवन के अंतिम 10 वर्षों में वे कांग्रेस और गांधी के कटु आलोचक हो गए थे। जीवन के अंतिम दस वर्ष उन्होंने स्वतंत्र लेखन, चिंतन तथा स्वयं द्वारा स्थापित Indian Renaissance Institute’, देहरादून में व्यतीत किए। 25 जनवरी 1954 को देहरादून में राय का निधन हो गया।
मानवेंद्र नाथ राय की प्रमुख रचनाएं
एम एन राय के दार्शनिक विचारों का संग्रह ‘Philosophical Consequences of Modern Science’ नामक ग्रंथ है। इस ग्रंथ की रचना 9 खंडों में 1930-36 में जेल में की गई है।
प्रमुख रचनाएं –
- Reason, Romanticism and Revolution
- Materialism
- India in Transition
- Indian Problem and its Solutions
- One Year of Non-Co-Operation
- The Future of Indian Politics
- The Revolution and Counter Revolution in China
- The Way to Durabile piece
- New Humanisms and Politics
- The Principal of Redical Democracy
- Politics, Power and Party’s
- Constitution of free India
- Redical Humanisms
- Over Differences
- Historical Role of Islam
- New Orientation
- Byond Communism to Humanisms
- Science and Philosophy
- Fascism: Its Philosophy, Professions and Practice
- Traventy to thesis
एम एन राय के चिंतन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंश ‘मानवतावाद’ का प्रतिपादन प्रमुख रूप से उनके पत्र ‘Independent India’ और ‘Radical Humanist’ में हुआ है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
एम एन राय ने अपनी किस रचना में नव मानववाद का प्रतिपादन किया?
उत्तर : एम एन राय के चिंतन के सर्वाधिक महत्वपूर्ण अंश ‘मानवतावाद’ का प्रतिपादन प्रमुख रूप से उनके पत्र ‘Independent India’ और ‘Radical Humanist’ में हुआ है।
नव मानवतावाद का प्रतिपादन किसने किया?
उत्तर : नव मानवतावाद का प्रतिपादन प्रसिद्ध भारतीय मानववादी चिंतक मानवेंद्र नाथ राय ने किया था।
एम एन रॉय ने संविधान सभा की मांग कब की?
उत्तर : भारत में संविधान सभा के गठन का विचार 1934 में पहली बार एम एन रॉय ने रखा था। 1935 में राष्ट्रीय कांग्रेस ने पहली बार भारत के संविधान के निर्माण के लिए आधिकारिक रूप से संविधान सभा के गठन की मांग की।