इस आर्टिकल में मानसिक समायोजन की रक्षा युक्तियां, मानसिक समायोजन तंत्र, अहं प्रतिरक्षा यंत्र आदि के बारे में चर्चा की गई है।
व्यक्ति के मस्तिष्क में विभिन्न प्रकार के द्वंद्व चला करते हैं, उसके मन में उठने वाले संघर्ष, तनाव, चिंता इत्यादि से निजात पाने या समायोजन करने का प्रयास करता है और मानसिक समायोजन की प्राप्ति में एक यांत्रिक रुपी जीवन जीने का प्रयास करता है।
अहं प्रतिरक्षा यंत्र (Ego Defence Mechanism)
जो बालक समाज संबंध व्यवहार करते हैं, विशेष परिस्थितियों में भी अपना संतुलन नहीं बिगड़ने देते, सब के साथ सद् व्यवहार रखते हैं मानसिक दृष्टि से भी स्वस्थ होते हैं ऐसे बालक संतुलित व्यक्तित्व वाले होते हैं।
इसके विपरीत कुछ बालक मानसिक एवं भावात्मक विषमताओं के कारण एवं अवांछनीय व्यवहार करते हैं, अनावश्यक चिंता करते हैं, अकारण भय ग्रस्त होते हैं, असामाजिक व्यवहार करते हैं, समाज अथवा विद्यालय की व्यवस्थाओं में व्यवधान डालते हैं, उनका लोगों का व्यक्तित्व एवं मानसिक स्वास्थ्य विकृत होता है। इस प्रकार व्यक्ति के व्यवहार को विभिन्न मानसिक एवं भावात्मक शक्तियां प्रभावित करती है।
अनेक बार व्यक्ति ऐसे व्यवहार करता है जिसके फलस्वरूप उसे सफलता एवं संतुष्टि मिलती है उसी प्रकार अनेक बार वातावरण या परिस्थिति उसके अंतर्मन में बाधा उत्पन्न कर देती है, जिसके परिणाम स्वरूप उसमें निराशा एवं रोष की उत्पत्ति होती है, क्योंकि वातावरण या व्यवहार उसे कष्ट पहुंचाते हैं और व्यक्ति उस तनाव से मुक्ति पाने का प्रयास करता है।
इस प्रयास के अंतर्गत वह उन व्यवहारों को अपनाने लगता है जो उसे तनाव से राहत या आराम पहुंचाते हैं।
इस प्रकार व्यक्ति द्वारा अपनाए गए वे व्यवहार जो उसे परिस्थिति से संघर्ष करने में सहायक बनते हैं, उसके व्यवहार को टूटने से बचाते हैं और उसे तनाव रहित करने में सहायता पहुंचाते हैं, अहं प्रतिरक्षा यंत्र (Ego defense Mechanism) के रूप में जाने जाते हैं अर्थात प्रतिरक्षा यंत्र व्यक्ति के व्यवहार जो उसे तनाव से यद्यपि पूर्णतया मुक्त नहीं करते किंतु उसे थोड़ी बहुत सुरक्षा प्रदान करते हैं, संतुष्टि प्रदान करते हैं प्रतिरक्षा यंत्र कहलाते हैं।
ये व्यवहार वास्तव में व्यक्ति की मानसिक अस्वस्थता के परिचायक होते हैं, जिन्हें व्यक्ति तनाव चिंता आदि से बचने के लिए तथा परिस्थितियों से समायोजन करने के लिए अपनाता
है।
समायोजन की रक्षा युक्तियां
(1) क्षतिपूर्ति (Compensation) : इस युक्ति में व्यक्ति किसी एक क्षेत्र में असफल हो जाने पर किसी अन्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त कर के प्रथम क्षेत्र की क्षतिपूर्ति कर लेता है। ऐसा करने से वह अपने असंतोष को छिपाकर दूसरे क्षेत्र में संतोष प्राप्त कर लेता है।
उदाहरण : एक अंधा व्यक्ति अच्छा गायक बनकर अपने असंतोष को छुपा कर संतुष्ट कर लेता है अथवा कोई निर्धन बालक मेहनत से परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करके निर्धनता को छुपाने का प्रयास करता है। इस रूप में किसी एक क्षेत्र में असफल होने पर उसकी अन्य क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने का प्रयास ही क्षतिपूर्ति है।
(2) युक्तियुक्तकरण (Rationalization) : जब व्यक्ति कोई दोष युक्त पुष्टि प्रस्तुत करके अपने दोषों, असफलताओं को छिपाने का प्रयास करता है अर्थात अपनी कमियों को स्वीकार न करके युक्ति युक्त करने का प्रयास करता है तो उसका यह व्यवहार युक्तियुक्तकरण कहलाता है।
उदाहरण : प्रातः देर से उठने पर यह कहना कि मैं जग तो बहुत पहले गया था किंतु मेरे सिर में दर्द था उठ नहीं पाया। वास्तविकता चाहे यह हो कि आंख ही ना खुली हो।
(3) दिवास्वप्न (Day Dreaming) : जब व्यक्ति वास्तविक जीवन में सफलता प्राप्त नहीं कर पाता और अपने मानसिक संघर्षों, इच्छाओं या कल्पना लोक में चिंतन कर के सुख प्राप्त करने का प्रयास करता है।
‘हवाई किले बनाना’ मुहावरा इसी को चरितार्थ करता है। इस हवाई किले की कल्पना से व्यक्ति अपने जीवन की वास्तविक कुंठाओं, तनाव व संघर्षों को काल्पनिक रूप से सोचकर कम कर लेता है। ये दिवास्वप्न व्यक्ति के समायोजन सहायक होते हैं किंतु जब व्यक्ति में इनकी अधिकता हो जाती है तो यह अव्यवहारिक व्यवहार हानिकारक बन जाते हैं।
(4) प्रक्षेपण (Projection) : जब व्यक्ति को कोई मानसिक पीड़ा या तनाव होता है तो वह उस तनाव को बाहर निकाल कर किसी अन्य पर आरोपित कर देता है। फ्राइड के अनुसार सबसे महत्वपूर्ण रक्षा युक्ति प्रक्षेपण (Projection) है। फ्राइड ने इसका विशेष अध्ययन किया है, व्यक्तित्व के मापन में इस विधि का प्रयोग किया जाता है।
उदाहरण : यदि किसी व्यक्ति में किसी प्रकार की योग्यता है तो वह इस योग्यता को छिपाने के लिए दूसरों की कमियों को देखता है, उनकी चर्चा करता है, जिससे उसकी योग्यता दूसरों के समक्ष न आए, क्योंकि उससे उसे कष्ट होगा अर्थात अपने दोषों को छिपाने के लिए दूसरों की कमजोरियां निकालना या अपने दोषों को दूसरों पर प्रत्यारोपित करना ही प्रक्षेपण है। ऐसे व्यवहार व्यक्ति की मानसिक अस्वस्थता के परिचायक होते हैं।
(5) तादात्मीकरण (Identification) : यह एक ऐसी सुरक्षा युक्ति है जिसमें व्यक्ति अपने अस्तित्व को भुलाकर किसी अन्य व्यक्ति अथवा वस्तु के साथ इतना अधिक एकात्म स्थापित कर लेता है कि वह अपने को उसी के समान समझने लगता है या एकाकार हो जाता है।
उदाहरण : किसी आत्मीय का विछोह होने पर किसी संस्था से अपना तादात्म्य कर लेना और उसी की उन्नति में अपनी उन्नति समझकर लगे रहना। साधु सन्यासी ईश्वर से अपना तादात्म्य कर लेते हैं। ईश्वर के साथ उनका एकाकार हो जाता है। यह युक्ति मानसिक अस्वस्थता के कारण होती है।
(6) नकारात्मकता (Negativity) : कभी-कभी व्यक्ति अपेक्षित व्यवहारों के ठीक विपरीत व्यवहार करता है तो उसका व्यवहार नकारात्मक हो जाता है। बालकों में यह अधिक पाया जाता है। वह माता-पिता द्वारा बताए गए आचरणों पर न चलकर प्राय: उनके विपरीत आचरण करते हैं।
इस युक्ति को व्यक्ति इस कारण अपनाता है कि इससे उसके मन में आने वाले संघर्ष से मुक्ति मिल जाती है। सुनकर भी अनसुना करना इसी प्रकार का व्यवहार है।
(7) प्रतीपगमन (Regression) : व्यक्ति ऐसे व्यवहारों को अपनाता है जो उसकी अवस्था या विकास के प्रतिकूल माने जाते हैं तो वह युक्ति प्रतीपगमन कहलाती है।
उदाहरणार्थ : प्रोढ़ व्यक्ति का किसी क्षेत्र में असफलता प्राप्त करने पर बालकों के समान रोना अथवा किसी बड़ी उम्र की महिला का किशोरावस्था की उम्र के समान व्यवहार करना।
प्रतिपगमन का अर्थ है अपने पूर्व अवस्था में लौटना। ऐसा व्यवहार तब होता है जब व्यक्ति का वर्तमान परिस्थिति के साथ तालमेल नहीं हो पाता। ऐसी स्थिति आने पर वह छोटी उम्र के बालको, किशोरों के समान व्यवहार करने लगता है यही प्रतीपगमन है।
(8) दमन (Repression) : किसी व्यक्ति को जब किसी परिस्थितिवश निराशा, असफलता अथवा दुख का सामना करना पड़ता है और उसके फलस्वरुप उसे पीड़ा होती है तो वह उससे मुक्ति पाने का प्रयास करता है और उसे अपने अचेतन मन में दबा देता है।
फ्रायड ने सर्वप्रथम अचेतन मन का अध्ययन किया था जिसमें उसने बताया कि जो इच्छाएं पूरी नहीं हो पाती वह अचेतन में दबा दी जाती है। ईगो तथा सुपर ईगो द्वारा इड की असामाजिक इच्छाएं दमित कर दी जाती है जो कालांतर में मानसिक ग्रंथियों के रूप में व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को विकृत कर देती है।
जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति कभी-कभी अवांछनीय व्यवहार करता है, दूसरों से सहानुभूति प्राप्त करने की इच्छा करना, चिंतन करना, अकेले रहना एवं शराब पीना आदि कृत्य व्यक्ति की मानसिक अस्वस्थता के परिचायक हैं।
(9) शमन (Suppression) : जिस प्रकार दमन में अपूर्ण इच्छाएं अचेतन में चली जाती है तो व्यक्ति को विकृत कर देती है, उसी प्रकार शमन में भी कष्टप्रद विचार व्यक्ति के अचेतन मन में चले जाते हैं किंतु शमन में व्यक्ति को पता रहता है कि अमुक विचार अचेतन में चला गया है।
इस प्रकार दमन और शमन दोनों में ही असामाजिक इच्छाएं अचेतन का अंग हो जाती है, किंतु दमन में व्यक्ति को पता नहीं रहता है, जबकि शमन में उसे पता होता है कि कोई इच्छा अचेतन मन का अंग बन चुकी है।
👉 दमन और शमन में क्या अंतर है?
दमन में अपूर्ण इच्छाएं अचेतन में चली जाती है तो व्यक्ति को विकृत कर देती है, उसी प्रकार शमन में भी कष्टप्रद विचार व्यक्ति के अचेतन मन में चले जाते हैं किंतु शमन में व्यक्ति को पता रहता है कि अमुक विचार अचेतन में चला गया है।
इस प्रकार दमन और शमन दोनों में ही असामाजिक इच्छाएं अचेतन का अंग हो जाती है, किंतु दमन में व्यक्ति को पता नहीं रहता है, जबकि शमन में उसे पता होता है कि कोई इच्छा अचेतन मन का अंग बन चुकी है।
(10) मार्गान्तरीकरण (Sublimation) : जन्मजात प्राकृत मूल प्रवृत्तियों को सामाजिक स्वीकृत रूप प्रदान करना ही मार्गान्तरीकरण (Sublimation) है अर्थात जब व्यक्ति की दमित भावनाएं या असामाजिक प्रवृत्तियां सामाजिक अथवा वांछनीय स्वरूप ले लेती है तो उसकी निराशाओं कुंठाओं का शोधन हो जाता है। यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य के लिए हितकर है।
उदाहरण : कोई व्यक्ति कुसंगति में पड़ जाने के कारण पाशविक व्यवहार करता है और उससे उसे कुंठा तनाव रहता है तो उसे किसी अच्छी दिशा, जैसे : खिलाड़ी या सामाजिक कार्यकर्ता बना देना ही मार्गान्तरीकरण करना है।
(11) विस्थापन (Displacement) : यह एक प्रकार की ऐसी युक्ति है जिसमें व्यक्ति मूल प्रवृत्ति भग्नासा या कुंठा को किसी दूसरी ओर विस्थापित कर देता है। इस प्रकार व्यक्ति अपनी कुंठाओं को उत्पन्न करने वाली स्थिति को नष्ट कर देने का प्रयास करता है।
उदाहरण : ऑफिस में अधिकारी द्वारा डांटे जाने के कारण क्रोधित व्यक्ति उसे क्रोध को घर आकर अपने बच्चों और पत्नी पर उतार देता है। यदि व्यक्ति अपने गुस्से को दूसरों के ऊपर नहीं उतर पाता तो कभी कभी अपने ऊपर उतारता है। जैसे- घर आकर रजाई ओढ़ कर सो जाना, भोजन न करना आदि।इस रूप में वह अपनी आक्रामकता का अन्य पर विस्थापित कर देता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
मनोविज्ञान में शमन का क्या अर्थ है?
उत्तर : जिस प्रकार दमन में अपूर्ण इच्छाएं अचेतन में चली जाती है तो व्यक्ति को विकृत कर देती है, उसी प्रकार शमन में भी कष्टप्रद विचार व्यक्ति के अचेतन मन में चले जाते हैं किंतु शमन में व्यक्ति को पता रहता है कि अमुक विचार अचेतन में चला गया है।
मार्गान्तीकरण क्या है?
उत्तर : जन्मजात प्राकृत मूल प्रवृत्तियों को सामाजिक स्वीकृत रूप प्रदान करना ही मार्गान्तरीकरण (Sublimation) है।
अहं प्रतिरक्षा यंत्र क्या है?
उत्तर : व्यक्ति द्वारा अपनाए गए वे व्यवहार जो उसे परिस्थिति से संघर्ष करने में सहायक बनते हैं, उसके व्यवहार को टूटने से बचाते हैं और उसे तनाव रहित करने में सहायता पहुंचाते हैं, अहं प्रतिरक्षा यंत्र (Ego defense Mechanism) के रूप में जाने जाते हैं अर्थात प्रतिरक्षा यंत्र व्यक्ति के व्यवहार जो उसे तनाव से यद्यपि पूर्णतया मुक्त नहीं करते किंतु उसे थोड़ी बहुत सुरक्षा प्रदान करते हैं, संतुष्टि प्रदान करते हैं प्रतिरक्षा यंत्र कहलाते हैं।