इस आर्टिकल में किशोरावस्था क्या है, किशोरावस्था में शारीरिक विकास, किशोरावस्था में सामाजिक विकास, किशोरावस्था में मानसिक विकास, किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास, किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
किशोरावस्था क्या है
करीब 13 वर्ष से 21 वर्ष तक की अवधि किशोरावस्था की मानी जाती है। अंग्रेजी के शब्द ‘एडोलसेंस’ (Adolescence) का अर्थ है – प्रजनन-क्षमता का विकसित होना। कुल्हन ने किशोरावस्था को इस रुप में परिभाषित किया है, “किशोरावस्था बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य के परिवर्तन का काल है।” इसे ‘Teen age या Puberty’ की अवस्था भी कहा जाता है।
इस काल में अनेक परिवर्तन शरीर में होते हैं। लैंगिक परिपक्वता में विभिन्नताएं अंतःस्रावी ग्रंथियों की क्रियाओं की विभिन्नताओं के कारण होती हैं जो इस काल में होने वाले परिवर्तनों को पैदा करती हैं।
किशोरावस्था में शारीरिक विकास
मानव विकास की अवस्थाओं में किशोरावस्था सर्वाधिक महत्व की अवस्था है विशेष रूप से शारीरिक विकास की दृष्टि से। इस समय बालक बालिकाओं में अनेक परिवर्तन होते हैं। किशोरावस्था में शारीरिक परिवर्तन निम्न है –
लंबाई (Hight) : लंबाई में सबसे तेज गति से वृद्धि लड़कियों में 10 से 14 वर्ष के बीच होती है बाद में यह वृद्धि धीमी पड़ जाती है। 18 बाद प्राय: लंबाई में वृद्धि नहीं होती है। लड़कों की लंबाई की अवधि औसतन 13 वर्ष से शुरू होकर 15 वर्ष के बीच रहती है। 18 वर्ष तक यह लंबाई पूरी हो जाती है।
भार (Weight) : वसा, अस्थि और उत्तक की वृद्धि के कारण किशोरावस्था में भार पर्याप्त मात्रा में बढ़ जाता है। हड्डियां केवल लंबी ही नही हो जाती है बल्कि आकृति, अनुपात और आंतरिक रचना में भी बदल जाती है ऐसा थायरॉइड से निकलने वाले हार्मोन के कारण होता है। 17 वर्ष तक की आयु में लड़कियों की हड्डियों का विकास की दृष्टि से परिपक्व हो जाता है। लड़कों का विकास लगभग 2 वर्ष बाद पूरा होता है।
सिर एवं मस्तिष्क (Head and Brain) : 10 वर्ष की आयु तक सिर के आकार में प्रौढ़ सिर के 95% तक वृद्धि हो जाती है। 15 वर्ष में यह लगभग प्रौढ़ो के समान हो जाती है। मस्तिष्क का भार शरीर के भार का 90% होता है अथवा 1200-1400 ग्राम के मध्य होता है।
अन्य अंगों का विकास (Development of other Organs) : किशोरावस्था में प्राय: सभी दांत स्थाई रूप से आ जाते हैं। लड़कियों की तुलना में लड़कों में यह पहले आते हैं। पेशियों में वृद्धि किशोरावस्था में सबसे अधिक होती है।
इस अवस्था में लड़के और लड़कियों के प्रजनन अंगों का पूर्ण विकास हो जाता है। लड़कियों में जननांगों के परिपक्व होने का पहला सूचक लड़कियों का प्रथम रज: स्राव है तथा लड़कों में किशोरावस्था की पहचान पहला वीर्यपात है। ज्यों-ज्यों किशोरावस्था की प्रगति होती है त्यों त्यों.. लड़के और लड़कियां आकृति में समान होते जाते हैं। लड़कियों के वक्ष स्थल में वृद्धि हो जाती है और लड़कों में अंड ग्रंथियों और शिश्न के आकार में वृद्धि होती है।
इस प्रकार अनेक शारीरिक परिवर्तन होते हैं जो उन्हें प्रौढ़ता की ओर ले जाते हैं। लड़के लड़कियों की आवाज में परिवर्तन आ जाता है। लड़कियों की आवाज में कोमलता और मधुरता आ जाती है वही लड़कों की आवाज भारी और कर्कश हो जाती है। त्वचा में परिवर्तन आ जाता है इसके साथ ही लड़के और लड़कियों में गुप्त अंगो काँखो में बाल उग जाते हैं। लड़कों में दाढ़ी मूछ आ जाती है और वक्ष स्थल पर बाल उग आते हैं।
इस अवस्था में मस्तिष्क, ह्रदय, श्वास, पाचन क्रिया एवं स्नायु संस्थान का पूर्ण विकास हो जाता है। लड़कों के कंधे और सीना चौड़ा हो जाते हैं और लड़कियों के कुल्हे बढ़ जाते हैं। इस प्रकार किशोरावस्था में अनेक महत्वपूर्ण शारीरिक विकास होते हैं।
किशोरावस्था में सामाजिक विकास
मानव एक सामाजिक प्राणी है समाज के मध्य रहकर ही वह स्वयं को समाज के साथ समायोजित करता है। आयु के साथ-साथ बालक की रुचियों आदतें आचार-व्यवहार सभी में परिवर्तन आता रहता है।
बाल्यावस्था में जो विकास होता है किशोरावस्था प्राप्त करने पर उसमें बदलाव आ जाता है। वह स्वयं समाज में सुव्यवस्थित समायोजन करने का प्रयास करता है।यद्यपि समाजीकरण की प्रक्रिया आजीवन चलती रहती है किंतु किशोरावस्था में यह एक नवीन जिम्मेदारियों के क्षेत्र में प्रवेश करता है। उसे समाज में नवीन समायोजन करने होते हैं।
उदाहरणार्थ – माता-पिता द्वारा आरोपित आदर्श विचार एवं अपने जीवन का एक विशिष्ट सांचे में ढालने की आदर्श किशोर को विद्रोह के लिए प्रेरित करता है और इसके लिए व्यवस्थापन उसे अनेक कठिनाइयों में डाल देता है।
क्रो एवं क्रो (Crow & Crow) के अनुसार, “जब बालक 13-14 वर्ष की आयु में प्रवेश करने लगता है तब उसके प्रति दूसरों के तथा दूसरों के प्रति उसके कुछ दृष्टिकोण न केवल उसके अनुभवों में वरन उसके सामाजिक संबंधों में भी परिवर्तन करने लगते हैं वस्तुतः सामाजिक संबंधों में होने वाले यही परिवर्तन किशोर के सामाजिक विकास के स्वरूप का निर्धारण करते हैं।”
किशोरावस्था में सामाजिक विकास संबंधी अनेक समस्याएं आती हैं जिनके बारे में आगे पोस्ट में बाद में चर्चा की जाएगी।
किशोरावस्था में मानसिक विकास
जरशील्ड ने अपनी पुस्तक ‘किशोर मनोविज्ञान’ (Adult Psychology) में किशोरावस्था के मानसिक विकास की निम्नलिखित विशेषताएं बताई है –
किशोरावस्था के मानसिक विकास की विशेषताएं
(1) सामान्यीकरण की वर्धित योग्यता
बालकों में बौद्धिक विकास मूर्त वस्तुओं के चिंतन तक सीमित होता है। जैसे जैसे वह किशोरावस्था को प्राप्त होता है वह प्रत्यक्ष ज्ञान की प्रवृत्ति संकल्पनाओं के रूप में सोचने के प्रति हो जाती है। इस प्रकार किशोरों में सामान्यीकरण की योग्यता बढ़ती जाती है।
(2) अमूर्त चिंतन की वर्धित योग्यता योग्यता
किशोरावस्थामें न केवल सामान्यीकृत चिंतन होता है बल्कि उसमें अमूर्त चिंतन की योग्यता भी आ जाती है। औसत बालक लगभग 14 वर्ष की उम्र तक बीजगणित के ढंग से अमूर्त चिंतन के योग्य हो जाता है। यह अमूर्त चिंतन की योग्यता गुण और परिणाम दोनों के ही संबंध में प्रकट होती है।
अमूर्त वस्तुओं के व्यवहार की योग्यता का एक अंग है – प्रतीकों को समझना। व्यंग्य चित्रों के अर्थ ग्रहण की योग्यता इसका उदाहरण हो सकता है।
(3) समय संबंप्रत्यय कि समझ
बाल्यावस्था तक बालक में भविष्य क्या है? उसके लिए क्या योजना बनाई जाए-जैसी समझ विकसित नहीं होती। वह केवल अतीत की बात समझता है। किशोरावस्था में भविष्य के बारे में समझ विकसित हो जाती है।
फ्रीडमैन (Fridman) ने इसके लिए अध्ययन किए और निष्कर्ष निकाला कि किशोरावस्था तक पहुंचते-पहुंचते किशोर पारिभाषिक शब्दों तारीखों और काल क्रम को समझने में अधिक सफल रहे।
जैसे – ईसा के जन्म से पहले या बाद के समय की गणना कैसे की जाती है-जैसी गणना सही कर सकें।
(4) निर्णय करने की योग्यता
किशोरों में प्रायः निर्णय लेने की योग्यता का विकास हो जाता है। वह आत्म निर्णय लेकर परिस्थिति को समझ जाता है और तर्कसंगत व्यवहार करता है। भविष्य में क्या बनना है इसका निर्णय वह ले सकता है। उसमें आत्मविश्वास बढ़ जाता है और वह सही चुनाव कर लेता है।
(5) तात्कालिक व्यक्तिगत स्वार्थों से रहित विचारों के व्यवहार की योग्यता
प्राय: छोटे बालकों का संबंध उन चीजों से होता है जिनसे उसका सीधा और व्यक्तिगत लगाव होता है लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ा होता है, वह अधिकाधिक सोचने-विचारने में समर्थ हो जाता है। वह न केवल अपने और अपने परिवार की बल्कि विस्तृत विश्व के लोगों के विषय में भी विचार करता है। किशोर में अपने निकटस्थ कार्य क्षेत्र से कहीं अधिक विस्तृत संसार की घटनाओं के बारे में सोचने विचारने की योग्यता आ जाती है।
(6) अन्य व्यक्तियों के साथ बौद्धिक संप्रेषण की योग्यता
किशोरावस्था में तार्किक विवेचन की एवं किसी विषय वस्तु पर लगातार विचार विमर्श करते रहने से भी क्षमता विकसित हो जाती है। वे किसी प्रवक्ता द्वारा रचित प्रकरण पर भी अपनी टिप्पणी दे सकते हैं। उनमें परस्पर वाद विवाद एवं विचार विमर्श की प्रवृत्ति बढ़ जाती है।
(7) वृहत्तर विश्व की स्थितियों एवं पात्रों से तादात्म्य
किशोरावस्था में संज्ञानात्मक विकास की दृष्टि से एक परिवर्तन यह आता है कि निजी वातावरण से बाहर के लोगों और स्थितियों से तादात्म्य का अनुभव करने में भी अधिक समर्थ हो जाते हैं। अपने नायकों अथवा आदर्श व्यक्तियों का वर्णन करने में अपने सर्वाधिक प्रशंसा पात्र का नाम बताने को यदि उनसे कहा जाए तो उनकी यह योग्यता स्पष्ट प्रकट हो जाती है।
(8) नैतिक प्रत्यय एवं मूल्यों का अवबोध
किशोरावस्था की ओर अग्रसर होने पर किशोर में नैतिक विकास की दो प्रमुख प्रवृतियां दिखाई देती हैं (१) उसकी नैतिक संकल्पनाएं अधिक व्यापक हो जाती है और (२) उसके नैतिक आदर्श एवं संकोच उसके आंतरिक अंग बन जाते हैं।
सामान्यता वह सच और इमानदारी बरतता है। यदि कभी झूठ बोल देता है तो उसे बेचैनी का अनुभव होता है अर्थात सही और गलत, अच्छे और बुरे, कर्तव्य और अकर्तव्य की भावना के संबंध में वह निर्णायक स्वयं ही बन जाता है।
(9) अपने को तथा दूसरों को समझने की अभिरुचि में वृद्धि
संज्ञानात्मक विकास की एक और महत्वपूर्ण विशेषता किशोर में यह भी है कि वह स्वयं को और दूसरों को वस्तुनिष्ठ होकर देखने में रुचि लेते हैं। जैसे -किशोर की इच्छा यह होती है कि वह अपनी योग्यता से अच्छे अंक प्राप्त करें। वह लक्ष्य प्राप्ति के साधन के रूप में अपनी योग्यता की चिंता करता है। किसी अच्छे पद पर रहने की योग्यता उसमें विकसित हो इस बात के लिए वह ज्यादा अपेक्षा करेगा।
किशोरों में संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Dovelpment) को उनमें वर्धित चिंतन, तर्क एवं निर्णय की क्षमता उनकी कल्पना शक्ति, खेल संबंधी रुचियां एवं भाषा पर अधिकार आदि क्षेत्रों में देखा जा सकता है। जीन पियाजे (Piaget) ने भी उनमें इस अवस्था में अमूर्त चिंतन, तर्क, निर्णय आदि की योग्यता की वृद्धि को महत्वपूर्ण बताया है।
किशोरावस्था में संवेगात्मक विकास
वुडवर्थ (Woodworth) के अनुसार संवेग शरीर की उद्वेलित दशा और अनुभूति की क्षुब्ध दशा है। वास्तव में मनुष्य एक बौद्धिक प्राणी है किंतु उस का अधिकांश व्यवहार बुद्धि से नहीं अपितु संवेगों से परिचित होता है।
अतः किशोरावस्था में विशेष रूप से संवेगों का अत्यधिक महत्व होता है। जैसे बालक किशोरावस्था को प्राप्त करता है उसमे अनेक संवेगों का विकास होने लगता है क्योंकि इस अवस्था में वह न तो बालक होता है और ना ही प्रौढ़। यह स्थिति उसमे द्वंद्वात्मक परिस्थितियों को जन्म देती है और विशेष रूप से उसके संवेगों को को प्रभावित करती है।
इस अवस्था में संवेगों पर नियंत्रण करना कठिन हो जाता है इसका प्रमुख कारण उस में होने वाले शारीरिक परिवर्तन है। प्राय: देखा गया है कि स्वस्थ शरीर वाले किशोरों में सांवेगिक स्थिरता अधिक नहीं होती। इसके उपरांत भी प्रत्येक किशोर को व्यथित करते ही हैं।
जैसे अपनी प्रतिष्ठा को किंचित मात्र भी चोट पहुंचते ही किशोर क्रोधित हो उठता है। किसी भी प्रकार का शारीरिक दोष से स्वपन में भी भयभीत कर देता है। एक अज्ञात भय ‘कुछ अन्यथा न हो जाए’ उसे आशंकित करता है और इस भय को किशोर बाह्य रूप में प्रकट नहीं करने देता।
इसका परिणाम उसे दिवास्वप्न का शिकार बना देता है। प्रेम का संवेग उसमें कामुकता की तीव्रता करता है और वह भी विषमलिंगी के प्रति अत्यंत आकर्षित हो उठता है।
इस अवस्था में किशोर में देशभक्ति की भावना भी तीव्र हो जाती है। वह दूसरों के दुख से दुखी और अपने सुख से प्रसन्न होता है। इस अवस्था में किशोर अन्याय के प्रति उत्तेजित हो उठता है। किशोर अनुशासन के प्रति उसमें घृणा का भाव प्रबल हो जाती है।
कहने का आशय है कि किशोर में उनके संवेग जैसे भय, क्रोध, घृणा, दया, सहानुभूति, प्रेम और उत्तेजना आदि इतने स्थायित्व लिए लिए हुए होते हैं कि उन पर नियंत्रण करना उसके लिए कठिन हो जाता है। शरीर के विकास से संवेगों का विकास प्रभावित होता है।
किशोरावस्था के संवेग (Emotions of Adolescence in hindi)
(1) क्रोध
किशोरावस्था में क्रोध उत्पन्न करने वाले कारक बाल्यावस्था से अलग होते हैं। यह परिस्थितियां प्राय: सामाजिक होती है। हरलॉक के अनुसार किशोर जब क्रोधित होता है, जब उसे वह काम नहीं करने दिया जाता, जिसे वह करना चाहता है, उसकी आलोचना की जाती है या चढ़ाया जाता है, जब उससे कोई तीखी बात कही जाती है, जब लोग उस पर शासन जमाते हैं, जब वह किसी कार्य में व्यस्त होता है उस समय उसमें विघ्न डाला जाता है अथवा माता-पिता या शिक्षक उसकी स्वतंत्रता में बाधक बनते हैं।
इन सभी परिस्थितियों से वह बेकाबू हो उठता है और परिणामस्वरुप अपने क्रोध को व्यक्त करने के लिए– दरवाजा जोर से बंद करता है या दरवाजा बंद करके तब तक बैठा रहता है जब तक उसका क्रोध शांत नहीं हो जाता। कभी-कभी अनर्गल अपशब्द अथवा गाली गलौज करता है, जमीन पर पैर रखता है, क्रोध में कभी कभी बदला लेने की योजनाएँ भी बनाता है। इस प्रकार किशोरावस्था (Adolescence) का क्रोध सामाजिक अधिक होता है।
(2) भय
किशोरावस्था में भय बाल्यावस्था से भिन्न प्रकार का होता है। इसका कारण यह है कि किशोर का सामाजिक क्षेत्र विस्तृत हो जाता है। यद्यपि वे यह दावा करते हैं कि उन्हें किसी चीज से भय नहीं लगता किंतु वास्तविकता में नई, अपरिचित सामाजिक परिस्थितियों से डरते हैं।
जैसे : रात में बाहर अकेले होने का भय, अजनबियों के बीच में होने का भय, स्कूल में नए विषयों का भय आदि। इसमें भय की प्रतिक्रिया स्वरुप उसमें शरीर का जड़ और पीला हो जाना, पसीना आना, कंपन होना अथवा कभी-कभी शर्माना और बेचैन होना आदि क्रियाएं होती है। इसका कारण यह है कि किशोर परिस्थितियों का सामना करने से डरते हैं और उसे बचने की बात का युक्ति इन प्रतिक्रियाओं से होती है।
(3) आकुलता
आकुलता भी भय का ही एक रूप है जो वास्तविक चीज़ों से न होकर काल्पनिक चीजों से होती है। ये आकुलताएं उन क्षेत्रों से संबंधित होती है जो उनके लिए महत्व के होते हैं।
जैसे : खेल प्रतियोगिताओं में भाग लेने की आकुलता, समूह के सामने भाषण करने कि आकुलता अथवा परीक्षाओं की आकुलता- जो इस रूप में होती है कि वे अपनी या अन्य लोगों की प्रत्याशाओं को पूरा नहीं कर पाएंगे।
इनका किशोर के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य (Physical and Mental Health) पर उतना ही घातक प्रभाव पड़ता है जितना वास्तविक भयों का होता है। सामाजिक संबंधों कि आकुलता, लोकप्रियता, शादी आदि के विषय लड़कियों को अधिक आकुल करते हैं।
(4) इर्ष्या
ईर्ष्या का संवेग भी किशोरो में बचपन से अधिक होता है। किशोरावस्था (Adolescence) की ईर्ष्या का स्वरूप स्वयं को असुरक्षित अनुभव करने के कारण होता है। अर्थात जब किशोर किसी विषमलिंगी में दिलचस्पी रखता है और उसमें लोकप्रिय होने की कामना करता है किंतु कभी-कभी उन्हें वांछित लक्ष्य नहीं मिल पाता और विषमलिंगी किसी अन्य को पसंद करता है तो ऐसी स्थिति में अन्य से ईर्ष्या का भाव उत्पन्न हो जाता है।
कभी-कभी किशोर उन साथियों से भी ईर्ष्या करता है जो विद्यालय अध्ययन अथवा खेलकूद आदि में अधिक सफल होते हैं। इस ईर्ष्या की प्रतिक्रिया स्वरुप में शाब्दिक आक्रमण, व्यंग्यात्मक टीका-टिप्पणी, हंसी उड़ाना अथवा निंदा करना आदि कार्य करते हैं।
(5) स्पर्धा
ईर्ष्या के समान स्पर्धा भी किसी व्यक्ति के प्रति होती है। ईर्ष्या लोलुपता का एक रुप है। जैसे किशोर की इच्छा होती है कि उसके पास उतनी ही चीजें हो जितनी उसके मित्रों के पास है, साथ ही मित्रों की चीजों से अच्छी भी हो। जैसे उसका घर उसकी कार उसके कपड़े आदि मित्रों की तुलना में अच्छी गुणवत्ता के हो। ईर्ष्या की प्रतिक्रिया शाब्दिक होती है, जैसे दूसरों के घर, कार आदि में नुक्ताचीनी करना, उनकी मजाक उड़ाना, अपने माता पिता को दूसरों की चीजें बढ़ा चढ़ाकर बताना और वह भी उनसे अच्छी चीज रखेगा, जैसे वादे करना आदि स्पर्धा के ही रूप है। किशोरियां भी दूसरों की सहानुभूति और ध्यान आकर्षण करने की कोशिश करती है।
(6) स्नेह
बालकों की तुलना में किशोर में प्रेम-प्रगाढ़ रूप का पाया जाता है। किशोरावस्था का स्नेह एक आत्मसात् करने वाला संवेग है। जो किशोर को अनवरत उन व्यक्तियों के साथ रहने के लिए प्रेरित करता है जिनके साथ उनका प्रगाढ़ -प्रेम होता है। दूर होने पर भी उनसे संपर्क बनाए रखता है। तन्मय होकर उनकी बात सुनना, मुस्कुराकर उनकी और देखना आदि प्रेम या स्नेह प्रकट करने के तरीके किशोर प्रयोग में लाता है। इस प्रकार किशोरावस्था (Adolescence) का प्रेम उनके लिए एक सुखद संबंध होता है।
प्रौढ़ों के प्रति उनका प्रेम ‘वीर-पूजा’ के रूप में होता है। जिन्हें किशोर चाहता है उनके प्रति उसका प्रेम अति प्रगाढ़ होता है।
(7) हर्ष
किशोर के हर्ष का संवेग उस समय स्पष्ट होता है जब उसका अपने काम से और उन सामाजिक परिस्थितियों से जिनके साथ उसका तादात्म्य होता है, उससे अच्छा समायोजन (Adjustment) होता है। हर्ष की प्रतिक्रिया स्वरुप किशोर का सारा शरीर ढीला पड़ जाता है, वह मुस्कुराता है, अपने हर्ष को प्रकट करने का प्रयास करता है।
(8) जिज्ञासा
जब किशोर के जीवन में नई चीजें आती हैं तो वह उसकी जिज्ञासा को उद्दीप्त करती है। स्त्री पुरुष संबंध, विषमलिंगी का अनुभव, स्कूल के नए-नए विषय आदि उसकी जिज्ञासा को लगाते हैं। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप किशोर सवाल पूछना, टीका टिप्पणी करता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
किशोरावस्था क्या है?
उत्तर : करीब 13 वर्ष से 21 वर्ष तक की अवधि किशोरावस्था की मानी जाती है। अंग्रेजी के शब्द ‘एडोलसेंस’ (Adolescence) का अर्थ है – प्रजनन-क्षमता का विकसित होना। कुल्हन ने किशोरावस्था को इस रुप में परिभाषित किया है, “किशोरावस्था बाल्यावस्था तथा प्रौढ़ावस्था के मध्य के परिवर्तन का काल है।” इसे ‘Teen age या Puberty’ की अवस्था भी कहा जाता है।
किशोरावस्था में प्रायः कौन कौनसे संवेग पाए जाते हैं?
उत्तर : किशोरावस्था में प्रायः क्रोध, भय, आकुलता, ईर्ष्या, स्पर्धा, स्नेह, हर्ष, जिज्ञासा आदि संवेग पाए जाते हैं।