इस आर्टिकल में कार्यपालिका के कार्य, कार्यपालिका के गुण, कार्यपालिका का व्यवस्थापिका के साथ संबंध आदि के बारे में चर्चा की गई है।
कार्यपालिका के प्रमुख कार्य क्या है (Functions of Executive)
राज्यों के कार्यों के संबंध में वर्तमान समय में व्यक्तिवादी विचारधारा को त्यागकर जन कल्याणकारी राज्य के विचार को अपना लिया गया है। जनकल्याणकारी राज्य की विचारधारा का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ है कि राज्य के कार्यों में वृद्धि हुई है। जैसा कि लिप्सन लिखते हैं, “राज्य के कार्यों में प्रत्येक वृद्धि ने कार्यपालिका के कार्यों और शक्ति में वृद्धि की है।”
वर्तमान समय में कार्यपालिका के प्रमुख कार्य निम्न कहे जा सकते हैं –
(1) आंतरिक प्रशासन संबंधी कार्य
प्रत्येक राज्य राजनीतिक रूप से संगठित समाज है और इस संगठित समाज की सर्वप्रथम आवश्यकता शांति और व्यवस्था बनाए रखना होता है तथा यह कार्य कार्यपालिका के द्वारा ही किया जाता है। इसके अतिरिक्त व्यापार और यातायात, शिक्षा और स्वास्थ्य से संबंधित सुविधाओं की व्यवस्था और कृषि पर नियंत्रण आदि कार्य कार्यपालिका द्वारा ही किए जाते हैं।
इन कार्यों के संपादन हेतु कार्यपालिका द्वारा बहुत बड़ी संख्या में राजनीतिक तथा प्रशासनिक नियुक्तियां की जाती है। इन अधिकारियों की पदोन्नति, अवनति तथा पदच्युति का कार्य भी कार्यपालिका ही करती है। पदाधिकारियों की नियुक्ति और उन्हें निर्देश देने के कार्य के माध्यम से कार्यपालिका वास्तविक प्रशासन पर बहुत अधिक नियंत्रण रखती है।
(2) वैदेशिक संबंधों का संचालन
वर्तमान समय में वैज्ञानिक प्रगति तथा राजनीतिक चेतना ने वैदेशिक संबंधों के संचालन को अधिक महत्वपूर्ण बना दिया है और राज्य की ओर से वैदेशिक संबंधों का संचालन कार्यपालिका के द्वारा ही किया जाता है। अपने इस कार्य के अंतर्गत कार्यपालिका विदेशों में अपने देश के प्रतिनिधि नियुक्त करती है, दूसरे राज्यों के साथ राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक व सांस्कृतिक संधियां संपन्न करती है और विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेती है।
यद्यपि वर्तमान समय की प्रवृत्ति के अनुसार साधारणतया व्यवस्थापिका विदेश नीति पर नियंत्रण रखती है, किंतु वैदेशिक संबंधों के संचालन में विशेषज्ञता, गुप्तता और वैयक्तिक चातुर्य की आवश्यकता होने के कारण व्यवस्थापिका वैदेशिक संबंधों के वास्तविक संचालन में बहुत ही कम भाग ले सकती है।
(3) प्रतिरक्षा कार्य (Defense Related function)
राज्य की कार्यपालिका का प्रधान सेनाओं के सभी अंगों के प्रधान के रूप में कार्य करता है और विदेशी आक्रमण से देश की रक्षा करना कार्यपालिका का महत्वपूर्ण कार्य होता है। अपने इस कार्य के अंतर्गत कार्यपालिका आवश्यकतानुसार युद्ध अथवा शांति की घोषणा कर सकती है।
(4) विधि निर्माण संबंधी कार्य
कार्यपालिका के विधि निर्माण संबंधी कार्य बहुत कुछ सीमा तक शासन व्यवस्था के स्वरूप पर निर्भर करते हैं। सभी प्रकार की शासन व्यवस्था में कार्यपालिका को विधानमंडल का अधिवेशन बुलाने और स्थगित करने का अधिकार होता है।
संसदात्मक शासन में तो कार्यपालिका विधि निर्माण के क्षेत्र में व्यवस्थापिका का नेतृत्व करती है और विशेष परिस्थितियों में लोकप्रिय सदन को भंग करते हुए नव निर्वाचन का आदेश दे सकती है। वर्तमान समय में तो यहां तक कहा जा सकता है कि कार्यपालिका ही व्यवस्थापिका की स्वीकृति से कानूनों का निर्माण करती है।
अध्यक्षात्मक व्यवस्था में कार्यपालिका परोक्ष रूप से विधि निर्माण कार्य को प्रभावित करती है। इसके अतिरिक्त जिस समय व्यवस्थापिका अधिवेशन में नहीं होती उस समय आवश्यकता पड़ने पर कार्यपालिका अध्यादेश जारी कर सकती है जो विधि के समान ही प्रभावी होते हैं। वर्तमान समय में कार्यपालिका को प्रदत्त व्यवस्थापन के माध्यम से भी बहुत अधिक शक्ति प्राप्त हो गई है।
(5) वित्तीय कार्य (Financial Work)
यद्यपि वार्षिक बजट स्वीकृत करने का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा किया जाता है किंतु इस बजट का प्रारूप तैयार करने का कार्य कार्यपालिका ही कर सकती है। कार्यपालिका का वित्त विभाग के विभिन्न साधनों द्वारा प्राप्त आय के उपभोग पर विचार करता है।
(6) न्याय संबंधी कार्य (Justice Related Work)
प्राय: प्रत्येक राज्य में कार्यपालिका को कुछ न्यायिक शक्तियां भी प्राप्त होती है। कार्यपालिका के द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति की जाती है। सभी देशों में कार्यपालिका प्रधान को क्षमादान का अधिकार प्राप्त होता है। जिसके अनुसार कार्यपालिका, न्यायपालिका द्वारा दंडित व्यक्तियों पर दया करके उनके दंड को कम कर सकती है या उन्हें क्षमा प्रदान कर सकती है। सर्वक्षमा की शक्ति के अंतर्गत कार्यपालिका एक ही अपराध से संबंधित अनेक अपराधियों को एक साथ क्षमा प्रदान कर सकती है। कार्यपालिका को क्षमादान की शक्ति मानवीय आधार पर राजनीतिक और व्यावहारिक कारणों से प्रदान की जाती है।
इसके अतिरिक्त वर्तमान समय में कार्यपालिका के सामान्य निरीक्षण के अंतर्गत कार्य करने वाले सरकारी विभागों को अर्ध न्यायिक कोटि के व्यापक अधिकार प्रदान किए जाते हैं।
उदाहरण के लिए ब्रिटेन में स्वास्थ्य मंत्रालय अपने प्रशासनिक कार्यों के सिलसिले में लोगों पर जुर्माने कर सकता है और जुर्माना वसूल सकता है।
(7) अन्य विविध कार्य
उपर्युक्त के अतिरिक्त अनेक देशों में कार्यपालिका को उपाधियां वितरित करने का अधिकार भी होता है। कुछ देशों में विशिष्ट सेवा के बदले पेंशन या अन्य प्रकार से सहायता देने का अधिकार की कार्यपालिका का होता है। वस्तुतः जन कल्याणकारी (Public welfare) राज्य की विचारधारा के कारण कार्यपालिका के कार्यों में निरंतर वृद्धि होती जा रही है।
कार्यपालिका के आवश्यक गुण (Merits of Executive)
कार्यपालिका उक्त कार्यों को सफलतापूर्वक संपन्न कर सके इसके लिए उसमें कुछ आवश्यक गुण विद्यमान होने चाहिए।
- कर्तव्यपरायणता
- कार्यकुशलता
- निर्णय में शीघ्रता
- सच्चाई और ईमानदारी
- निष्पक्षता
- गोपनीयता
कार्यपालिका का व्यवस्थापिका से संबंध
सरकार के यद्यपि तीन अलग-अलग अंग होते हैं किंतु इस प्रकार के तीन अलग-अलग अंगों के होते हुए भी सरकार उसी प्रकार की एक आंगिक इकाई है जिस प्रकार की आंगिक इकाई मानव शरीर होता है।
जिस प्रकार मानव शरीर भलीभांति कार्य कर सकें इसके लिए शरीर के विभिन्न अंगों में सहयोग नितांत आवश्यक है उसी प्रकार सरकार के अंगों में विशेषतः व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में सहयोग नितांत आवश्यक है। व्यवहार में चाहे संसदात्मक शासन हो या अध्यक्षात्मक शासन सरकार के इन दोनों अंगों में परस्पर संबंध पाया जाता है।
संसदात्मक शासन में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका के बीच घनिष्ठ संबंध होता है। मंत्रिमंडल के सभी सदस्य अनिवार्य रूप से व्यवस्थापिका के सदस्य होते हैं। व्यवस्थापिका में बैठते हैं, विचार विनिमय में भाग लेते हैं, विधेयक प्रस्तावित करते हैं, विधेयक के पक्ष या विपक्ष में भाषण देते हैं और व्यवस्थापिका के जिस सदन के सदस्य हो, उसमें मतदान में भी भाग लेते हैं। इस प्रकार कार्यपालिका व्यवस्थापिका को कानून निर्माण में पूरा सहयोग देती है।
इस शासन में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदाई होती है। व्यवस्थापिका के सदस्य मंत्रियों से प्रश्न तथा पूरक प्रश्न पूछ सकते हैं, निंदा या आलोचना प्रस्ताव रखते हैं और व्यवस्थापिका का निम्न सदन अविश्वास प्रस्ताव पास कर मंत्रिमंडल अर्थात कार्यपालिका को पदच्युत कर सकता है। इसी प्रकार मंत्रिमंडल द्वारा निम्न सदन को समय से पूर्व ही भंग करवाया जा सकता है।
इस शासन में कार्यपालिका को कानून निर्माण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण शक्तियां प्राप्त होती है। व्यवस्थापिका द्वारा पास किए गए विधेयकों पर कार्यपालिका प्रधान निषेधाधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकता है तथा अपनी ओर से अध्यादेश जारी कर सकता है।
कार्यपालिका प्रदत्त व्यवस्थापन (Dlegated Legislation) के अंतर्गत नियमों और उपनियमों का निर्माण करते हुए कानून निर्माण में प्रभावपूर्ण ढंग से भाग लेती है।
अध्यक्षात्मक शासन यद्यपि शक्ति पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित होता है और इसके अंतर्गत सैद्धांतिक दृष्टि से व्यवस्थापिका और कार्यपालिका पृथक होती है। किंतु व्यवहार में सरकार के इन दोनों अंगों में परस्पर संबंध होता ही है।
उदाहरण के लिए अमेरिका में जहां अध्यक्षात्मक शासन है। राष्ट्रपति के द्वारा की गई नियुक्तियों और संधियों पर अमेरिकी कांग्रेस अर्थात व्यवस्थापिका के द्वितीय सदन (सीनेट) की स्वीकृति प्राप्त होनी आवश्यक है। कांग्रेस को राष्ट्रपति पर महाभियोग लगाकर उसे पदच्युत करने का अधिकार प्राप्त है। इसी प्रकार व्यवस्थापिका के द्वारा जिन विधेयकों को पास कर दिया गया है उन पर राष्ट्रपति को निषेधाधिकार (Prohibition) प्राप्त हैं।
राष्ट्रपति व्यवस्थापिका को संदेश भेज सकता है और उसके द्वारा आदेश भी जारी किया जा सकता है। इसका प्रभाव कानून के समान ही होता है। इसके अतिरिक्त दलीय व्यवस्था के आधार पर व्यवस्थापिका और कार्यपालिका में अनौपचारिक संबंध स्थापित हो जाता है।
इस प्रकार संसदात्मक शासन में व्यवस्थापिका और कार्यपालिका परस्पर घनिष्ठ रूप से संबंधित होती है। किंतु अध्यक्षात्मक शासन में इनमें अपेक्षाकृत कम संबंध होता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
कार्यपालिका के कार्यों में निरंतर वृद्धि होने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर : राज्यों के कार्यों के संबंध में वर्तमान समय में व्यक्तिवादी विचारधारा को त्यागकर जन कल्याणकारी राज्य के विचार को अपना लिया गया है। जनकल्याणकारी राज्य की विचारधारा का स्वाभाविक परिणाम यह हुआ है कि राज्य के कार्यों में वृद्धि हुई है।
कार्यपालिका कानून निर्माण के कार्यों में किस प्रकार भाग लेती है?
उत्तर : कार्यपालिका प्रदत्त व्यवस्थापन (Dlegated Legislation) के अंतर्गत नियमों और उपनियमों का निर्माण करते हुए कानून निर्माण में प्रभावपूर्ण ढंग से भाग लेती है।
व्यवस्थापिका द्वारा पास किए गए विधेयकों पर कार्यपालिका प्रधान निषेधाधिकार की शक्ति का प्रयोग कर सकता है तथा अपनी ओर से अध्यादेश जारी कर सकता है।राज्य के कार्यों में प्रत्येक वृद्धि ने कार्यपालिका के कार्यों और शक्ति में वृद्धि की है।” यह कथन किसका है?
उत्तर : राज्य या कार्यपालिका के बढ़ते हुए कार्यों को देखते हुए यह कथन लिप्सन ने कहा था।