इस आर्टिकल में फासीवाद क्या है और फासीवाद के स्त्रोत, इटली में फासीवाद के उदय और विकास के कारण, फासीवाद की आलोचना और महत्व के बारे में चर्चा की गई है।
फासीवाद क्या है? (What is fascism?)
19वीं शताब्दी को उदारवाद का युग माना जाता है तथा इस युग में उदारवादी पर्याप्त शक्तिशाली एवं लोकप्रिय थे। समय के साथ उदारवाद में भी सर्वाधिकारवादी विचारधारा दृढ़ होती गई और बीसवीं शताब्दी में इन असंतुष्ट उदारवादियों ने फासीवाद और साम्यवाद के रूप में दो नई विचारधाराओं का प्रतिपादन किया। ये दोनों विचारधाराएं भी परस्पर विरोधी थी।
विलियम एबन्सटीन के अनुसार, “पश्चिमी उदारवाद जीवन पद्धति के विरुद्ध बीसवीं शताब्दी में साम्यवाद पहला महत्वपूर्ण सर्वाधिकारवादी विद्रोह था और फासीवाद दूसरा।”
फासीवाद का अर्थ
फासीवाद का अंग्रेजी पर्यायवाची Fascism इटालियन भाषा के Fascio शब्द से लिया गया है। Fascio शब्द का इटालियन भाषा में अर्थ है ‘लकड़ियों का बंधा हुआ गट्ठर एवं कुल्हाड़ी’। प्राचीन युग में इटली का राजचिन्ह फैसियो (Fascio) ही था। लकड़ी का गट्ठर राज्य की एकता और कुल्हाड़ी शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी।
इटली में मुसोलिनी के नेतृत्व में फासीवाद दल ने इसी चिन्ह का प्रयोग किया। फासीवादी दल का उद्देश्य वर्ग संघर्ष पर आधारित समाजवादी व्यवस्था के स्थान पर राजकीय नियंत्रण वाली राष्ट्रीय एकता पर आधारित व्यवस्था है।
मुसोलिनी ने कहा था कि फासीवाद वास्तविकता पर आधारित है। हम निश्चित तथा वास्तविक उद्देश्यों की प्राप्ति करना चाहते हैं। हमारा कार्यक्रम कार्य करना है, बातें करना नहीं है।
राजनीतिक विचारधारा फासीवाद कोई व्यवस्थित राजदर्शन नहीं है। मुसोलिनी ने इटली के लोगों को प्रभावित करने के लिए एक संदेश और कार्यक्रम के रूप में जनता के सम्मुख रखा। मुसोलिनी किसी निश्चित नियमों में बंधना नहीं चाहते थे। फासीवादियों की धारणा है कि औपचारिक सिद्धांत लोहे की जंजीरों के समान है।
मुसोलिनी के शब्दों में, “हम फासीवादियों में सब परंपरागत राजनीतिक सिद्धांतों को त्याग देने का साहस है और हम अभिजाततंत्रवादी, लोकतंत्रवादी, क्रांतिकारी तथा प्रतिक्रियावादी सर्वहारा के समर्थक अथवा सर्वहारा के विरोधी, शांतिवादी तथा शांति विरोधी सब कुछ है। एक निश्चित आदर्श अर्थात् राष्ट्र का होना पर्याप्त है। शेष स्वत: स्पष्ट हो जाएगा।”
फासीवाद को सर्वाधिकारवाद का इटालियन रूपांतरण माना जाता है। विलियम एबन्सटीन के शब्दों में, “मूलतः फासीवाद एक दलीय अधिनायकत्व वाला शासन व समाज का वह सर्वाधिकारवादी संगठन है जो उग्र राष्ट्रवादी, नक्सलवादी, युद्धप्रिय व साम्राज्यवादी होता है।”
फासीवाद के स्त्रोत (Sources of fascism)
फासीवाद कोई व्यवस्थित दर्शन नहीं है। मुसोलिनी पर जिन विचारों का प्रभाव पड़ा वे निम्नलिखित है :
(1) सामाजिक डार्विनवाद : डार्विन ने प्रकृति में निरंतर चलने वाले जीवन संघर्ष योग्यतम प्राणी के जीवित रहने के सिद्धांत का प्रतिपादन किया और यही डार्विनवाद है।
सामाजिक डार्विनवाद का प्रतिपादन वॉल्टर बेजहॉट, लुडविग, गमप्लाविज ने किया जिसके अनुसार समाज में शक्तिशाली, सुदृढ़ व अनुशासित व्यक्ति या समाज की ही विजय होती है। फासीवादी दर्शन पर सामाजिक डार्विनवाद का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है।
सामाजिक डार्विनवाद ने ही मुसोलिनी को कठोर साम्राज्यवादी और अनुशासनप्रिय बनाया।
(2) परंपरावाद : फासीवादी मेजिनी और ट्रीटश्के के परंपरावादी दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे। सत्ता में आने से पूर्व मुसोलिनी परंपराओं का विरोधी था किंतु सत्ता में आने के बाद उसे लगा की सत्ता को स्थायित्व प्रदान करने के लिए राजतंत्र और चर्च की परंपराएं सहायक सिद्ध हो सकती है।
उसने 1929 में पोप के साथ समझौता भी कर लिया। वह इस बात पर बल देता था कि किसी राष्ट्र की विशेषता उसकी गौरवपूर्ण ऐतिहासिक परंपरा में ही होती है।
(3) अबौद्धिकवाद : अबौद्धिकवादी विचारधारा मानती है कि व्यक्ति सोच समझकर कार्य करने वाला विवेकशील प्राणी नहीं है वह अपने सभी कार्य बुद्धि के स्थान पर अंतःप्रेरणा, अंध श्रद्धा और विश्वास से प्रेरित होकर करता है।
मुसोलिनी के शब्दों में, “हमारी अंधश्रद्धा हमारा राष्ट्र है, हमारी अंधश्रद्धा राष्ट्र की महानता है, विश्वास ही पर्वतों को हिला सकता है, तर्क नहीं, तर्क एक साधन हो सकता है किंतु जनता की प्रेरक शक्ति नहीं बन सकता।
मुसोलिनी ने इटली की जनता को दो नारे दिए :
- 1. मुसोलिनी सदैव ठीक होता है।
- 2. मुसोलिनी के आदेशों व आज्ञाओं का सदैव पालन करना चाहिए।
(4) आदर्शवाद : रूसो, काण्ट, फिक्टे और हीगल के आदर्शवाद का प्रभाव फासीवादियो पर पड़ा। आदर्शवादी विचारकों (काण्ट, फिक्टे, हीगल) को फासीवाद और नाजीवाद का आध्यात्मिक पूर्वज कहा जाता है।
मुसोलिनी के शब्दों में, “फासीवाद भौतिकवाद के सिद्धांत को अस्वीकार करता है और आदर्शवाद को स्वीकार करता है। फासीवादी मानते हैं कि राज्य व्यक्ति का विरोधी न होकर उसका सहयोगी है। फासीवाद राज्य को सर्वोच्च स्थान देता है और व्यक्तियों की स्वतंत्रता राज्य के अधीन ही संभव है। किसी भी स्तर पर राज्य का विरोध संभव नहीं है।
(5) व्यवहारवाद : फासीवादी व्यवहारवादी थे। व्यवहारवाद के अनुसार सत्य की कोई निश्चित परिभाषा नहीं है। सत्य, समय व परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तित होता रहता है। मुसोलिनी ने भी सिद्धांतों में विश्वास करने की अपेक्षा व्यवहारिकताओं में विश्वास रखा और वह समय-समय पर अपने विचार बदलता रहा।
प्रारंभ में मुसोलिनी धर्म विरोधी था। सत्ता में आने पर उसने पोप से समझौता कर लिया। किसी समय शांति का समर्थन करने वाले मुस्लिम ने बाद में युद्ध का प्रबल समर्थन किया।
इटली में फासीवाद के उदय के कारण एवं विकास
प्रथम विश्व युद्ध के पश्चात विश्व के विभिन्न देशों में अधिनायकतंत्र के विभिन्न रूप सामने आए। फासीवाद और नाजीवाद उसी के उदाहरण हैं। फासीवाद का विकास इटली में हुआ। इटली में इसके उदय के कारण निम्नलिखित हैं :
- 1. प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न निराशाा।
- 2. श्रमिकों व सैनिकों की बेरोजगारी।
- 3. इटली की अर्थव्यवस्था का नष्ट होना।
- 4. इटली की शासन व्यवस्था की दुर्बलता।
- 5. मुसोलिनी का व्यक्तित्व और नेतृत्व।
(1) प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न निराशा
प्रथम विश्वयुद्ध में इटली ने जर्मनी के विरुद्ध इंग्लैंड व फ्रांस का साथ दिया था। उसे आशा थी कि उनकी विजय होगी और इससे इटली को पर्याप्त सम्मान प्राप्त होगा।
किंतु युद्ध के पश्चात वर्साय की संधि की शर्तों के कारण इटली की आशाएं पूर्ण नहीं हो सकी और फासीवादी दल को तत्कालीन सरकार के विरूद्ध आवाज उठाने का अवसर प्राप्त हुआ।
(2) श्रमिकों व सैनिकों की बेरोजगारी
प्रथम विश्व युद्ध समाप्त होने के बाद युद्ध सामग्री उत्पादन करने वाले कारखाने बंद हो गए और युद्ध से लौटने के बाद सैनिकों में भी निराशा का भाव उत्पन्न हो गया था। मुसोलिनी ने इस बेरोजगारी और निराशा का लाभ उठाया।
(3) इटली की अर्थव्यवस्था का नष्ट होना
इटली का सन 1912 में ट्रकी के साथ युद्ध हुआ जिसके परिणामस्वरूप इसकी आर्थिक व्यवस्था नष्ट हो गई। प्रथम विश्वयुद्ध के कारण देश की अर्थव्यवस्था को और आघात लगा और इटली में आर्थिक अस्थिरता उत्पन्न हो गई।
(4) इटली की शासन व्यवस्था की दुर्बलता
प्रथम विश्व युद्ध के बाद इटली के सभी वर्गों में निराशा थी और तत्कालीन सरकार इस स्थिति को नियंत्रण में नहीं रख सकी। मुसोलिनी जैसे अधिनायक के लिए यह उपयुक्त अवसर था और उसने इसका लाभ उठाया तथा इटली की सत्ता पर नियंत्रण स्थापित कर लिया।
(5) मुसोलिनी का व्यक्तित्व और नेतृत्व
मुसोलिनी के नेतृत्व और व्यक्तित्व के कारण अनेक युवक उसके फासीदल में सम्मिलित हो गए। संगठित होकर उन्होंने तत्कालीन सरकार का विरोध किया।
फासीवाद की आलोचना (Criticism of fascism)
फासीवाद को सैद्धांतिक और व्यवहारिक आधार पर महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकता। इस विचारधारा की अनेक दृष्टि से आलोचना की गई है।
(1) राज्य को साध्य मानना तर्कसंगत नहीं।
(2) फासीवाद उन्नतशील विचारों के विरुद्ध है : वर्तमान युग प्रजातंत्र, समाजवाद, विश्वशांति व मानव मात्र की एकता में विश्वास करता है लेकिन फासीवादी इन विचारों के न केवल विरोधी हैं बल्कि युद्ध को आवश्यक मानते हैं।
स्वतंत्रता और समानता में कोई विश्वास नहीं है। प्रजातंत्र को ‘सड़ा हुआ शव’ और ‘जन समुदाय को ‘भेड़ों का रेवड़’ कहा है जो कि उचित नहीं है।
(3) केवल शक्ति राज्य को स्थायित्व प्रदान नहीं कर सकती : शक्ति राज्य के स्थायित्व के लिए आवश्यक तो है लेकिन यही एकमात्र तत्व नहीं है।
क्योंकि इतिहास इस बात का साक्षी है कि भय व शक्ति पर आधारित राज्यों का शीघ्र ही अंत हो गया। टी एच ग्रीन के अनुसार, “राज्य का आधार शक्ति नहीं वरन इच्छा है।”
(4) फासीवाद, निरंकुशवाद व अधिनायकवाद का प्रतीक है।
(5) फासीवाद असंतुलित व अस्पष्ट है : फासीवाद व्यवस्थित दर्शन इसलिए नहीं है क्योंकि यह निश्चित सिद्धांतों और कार्यक्रमों में विश्वास नहीं करता।
फासीवाद में अनेक ऐसे राजनीतिक विचार मिलते हैं जिनको परिस्थिति के आधार पर स्वीकार कर लिया गया लेकिन इनसे क्रमबद्ध व सुसंगठित विचारधारा का विकास नहीं हो पाया।
(6) युद्ध व साम्राज्यवाद का विचार अनुचित है।
(7) धर्म व राजनीति का मिश्रण उचित नहीं है : फासीवाद धर्म व राजनीति को परस्पर संबंधित मानते हैं जो कि रूढ़िवादी विचारधारा माना जा सकता है। वर्तमान समय में लगभग सभी देशों में धर्म व राजनीति के मार्ग पृथक-पृथक हैं।
लेकिन फासीवाद ने आवश्यकतावंश धर्म से न केवल समझौता किया बल्कि कैथोलिक धर्म को इटली का राजधर्म घोषित कर दिया। ऐसा विचार किसी भी प्रगतिशील समाज के लिए प्रशंसा के योग्य नहीं है।
(8) पूंजीवाद का उग्ररूप : मार्क्सवादियों ने फासीवादी को पूंजीवाद का उग्र रूप कहा है।
(9) राज्य का सावयवी विचार भी तर्कसंगत नहीं है।
फासीवाद का महत्व (Importance of Fascism)
फासीवाद की घोर आलोचना हुई और द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद मुसोलिनी के पतन के साथ ही यह समाप्त हो गया। इसकी अनेक आलोचनाओं के बावजूद राजनीतिक चिंतन में इसका अपना स्थान रहा है। फासीवाद की देन को निम्नलिखित बिंदुओं के आधार पर समझा जा सकता है।
- फासीवाद लोकतंत्र के दोषों को दूर करता है।
- संकटकालीन स्थिति में तत्काल निर्णय की आवश्यकता होती है और इसके लिए फासीवाद उपयुक्त है।
- फासीवाद में राष्ट्रीयता की भावना का विकास होता है।
- फासीवाद द्वारा उन्मुक्त प्रतियोगिताओं से बचा जा सकता है।
- फासीवाद में शासन योग्य व्यक्ति के नियंत्रण में होने से राष्ट्र सुरक्षित रहता है।
- मुसोलिनी के युग में इटली में आर्थिक व औद्योगिक विकास हुआ।
इस प्रकार फासीवाद यद्यपि एक अल्पकालीन व्यवस्था थी लेकिन इसका सदैव महत्व बना रहेगा।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
फासीवाद का मतलब क्या है?
उत्तर : फासीवाद का अंग्रेजी पर्यायवाची Fascism इटालियन भाषा के Fascio शब्द से लिया गया है। Fascio शब्द का इटालियन भाषा में अर्थ है ‘लकड़ियों का बंधा हुआ गट्ठर एवं कुल्हाड़ी’। प्राचीन युग में इटली का राजचिन्ह फैसियो (Fascio) ही था। लकड़ी का गट्ठर राज्य की एकता और कुल्हाड़ी शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी।
इटली में फासीवाद के उदय के क्या कारण थे?
उत्तर : इटली में इसके उदय के कारण निम्नलिखित हैं :
1. प्रथम विश्वयुद्ध से उत्पन्न निराशाा।
2. श्रमिकों व सैनिकों की बेरोजगारी।
3. इटली की अर्थव्यवस्था का नष्ट होना।
4. इटली की शासन व्यवस्था की दुर्बलता।
5. मुसोलिनी का व्यक्तित्व और नेतृत्व।फासीवाद का प्रतीक चिन्ह क्या है?
उत्तर : फासीवाद का प्रतीक चिन्ह ‘लकड़ियों का बंधा हुआ गट्ठर एवं कुल्हाड़ी’। प्राचीन युग में इटली का राजचिन्ह फैसियो (Fascio) ही था। लकड़ी का गट्ठर राज्य की एकता और कुल्हाड़ी शक्ति का प्रतीक मानी जाती थी।