इस आर्टिकल में राजनीतिक संकल्पना समानता का अर्थ, समानता की परिभाषा, समानता से क्या आशय है आदि के बारे में विस्तार से चर्चा की गई है।
समानता (Equality) की अवधारणा एक बहुआयामी धारणा है। अतः समानता को परिभाषित करना एक कठिन कार्य है। इस संदर्भ में अर्नेस्ट बार्कर का कथन है कि, “समानता एक बहुरूपिया विचार है, यह बड़ी आसानी से अपना स्वरूप बदलकर नया रूप ग्रहण कर लेती है।”
समानता का अर्थ क्या है ?
समानता से अभिप्राय ऐसी परिस्थितियों के अस्तित्व से है जिनके कारण सभी व्यक्तियों को अपने विकास के लिए समान अवसर प्राप्त हो सके और जिनके द्वारा व्यक्तित्व के विकास के मार्ग को अवरुद्ध करने वाली बाधाओं तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषमताओं को दूर किया जा सके।
समानता (Equality) का दूसरा दृष्टिकोण यह भी है कि राज्य सुविधाओं तथा अधिकारों के वितरण में किसी भी व्यक्ति या वर्ग विशेष के साथ पक्षपात न करें।
समानता की अवधारणा अति प्राचीन है। समानता के सिद्धांत का जन्म प्राचीन तथा मध्य युग में विशेष अधिकारों से संपन्न वर्ग के विरुद्ध प्रतिक्रिया के रूप में हुआ जब अल्पसंख्यक कुलीन वर्ग समाज के समस्त सुख सुविधाओं का उपयोग करने लगा तो बहुसंख्यक वर्ग में असंतोष की भावना पनपी और इस व्यापक विषमता तथा बहुसंख्यक के शोषण के खिलाफ अनेक राजनीतिक विचारकों ने आवाज उठाई।
प्राचीन युग में समानता का समर्थन करने वालों में सोफिस्ट तथा स्टोइकवादी चितंक एटिफोन यूरिपाइड्स आदि प्रमुख थे।
आधुनिक काल में समानता के विचार का प्रारंभ मध्यम वर्ग के उदय के साथ हुआ जिसे पुनर्जागरण तथा धर्म सुधार आंदोलन के माध्यम से सामंतवादी विषमता के विरुद्ध आवाज उठाई। इंग्लैंड में 1649 तथा 1688 की घटनाएं, अमेरिका में 1776 का घोषणा पत्र तथा फ्रांस में 1789 की क्रांति इस दिशा में प्रमुख राजनीतिक आंदोलन थे।
प्राचीन काल में अरस्तु ने प्रतिपादित किया कि राज्य में होने वाले विद्रोह का प्रमुख कारण विषमता है।
अरस्तु ने समानता का अर्थ आनुपातिक समानता (Proportions Equality) की अवधारणा के रूप में व्यक्त किया, जिसका अर्थ है ‘समकक्षों के मध्य समानता’।
प्राचीन ग्रीक युग में समानता की दो परंपराओं का जन्म हुआ। एक परंपरा में जहां समानता का विरोध किया गया वहीं दूसरी परंपरा में समानता का समर्थन किया गया।
18 वीं शताब्दी में पूंजीपति वर्ग सामंतशाही के विरुद्ध सामाजिक तथा राजनीतिक समानता की मांग उठाई। इन्होंने समानता का अर्थ विशेष कानूनी सुविधाओं का अंत करके प्रत्येक व्यक्ति हेतु समान कानून व्यवस्था की उपलब्धता से लिया।
समानता के अर्थ से संबंधित कुछ प्रमुख बिंदु –
- समान लोगों के साथ समान व्यवहार।
- विकास के लिए समान अवसर।
- सभी व्यक्तियों के साथ निष्पक्ष आचरण।
- जाति धर्म भाषा रंग वंश लिंग संपत्ति नस्ल तथा राष्ट्रीयता के आधार पर भेदभाव नहीं।
- मानवीय गरिमा तथा अधिकारों की दृष्टि से सभी समान।
- समाज के प्रत्येक व्यक्ति का समान महत्व।
- विशेषाधिकार वर्ग की अनुपस्थिति।
- अधिकारों की उपस्थिति।
- समानता एक सकारात्मक अवधारणा है।
- स्वतंत्रता तथा समानता एक दूसरे के पूरक है।
- सामाजिक वैमनस्य द्वारा उत्पन्न असमानता का अंत।
- न्यूनतम आवश्यकताओं की पूर्ति।
- समानता केवल अनुपातिक हो सकती है।
समानता की परिभाषाएं (Equality Definitions)
लास्की, “समानता का अर्थ यह नहीं कि प्रत्येक व्यक्ति के साथ एक जैसा व्यवहार किया जाए। यदि ईंट ढोने वाले का वेतन एक प्रसिद्ध गणितज्ञ या वैज्ञानिक के बराबर कर दिया जाए तो इससे समाज का उद्देश्य ही नष्ट हो जाएगा। इसलिए समानता का अर्थ यह है कि कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग नहीं रहे। विशेषाधिकार वर्ग की अनुपस्थिति और सब को उन्नति के समान अवसर प्राप्त हो।”
लास्की, “समानता का अर्थ सभी को अपनी योग्यता और शक्ति के अनुसार विकास के समुचित अवसर प्रदान करना है।”
लास्की के कथनानुसार, “समानता के दो अर्थ हैं प्रथम विशेषाधिकारों या विशेष सुविधाओं का अभाव और द्वितीय सभी नागरिकों के लिए समान अवसर का प्रदान किया जाना।”
समानता के उदारवादी दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व लास्की ने किया। लास्की के अनुसार, “जब तक मनुष्य अपनी अपेक्षा, योग्यता तथा आवश्यकताओं में असामान है, व्यवहार की असमानता असंभव है।”
उदारवादी कान्डोरसेट ने समानता के अर्थ की व्याख्या फ्रांसीसी क्रांति 1789 के बाद की।
उदारवादियों ने राजनीतिक, सामाजिक तथा कानूनी स्वतंत्रता को आवश्यक बताया तथा आर्थिक समानता की बात नहीं की।
लास्की के अनुसार समानता से तात्पर्य है कि, व्यक्तित्व के विकासार्थ जिन सुविधाओं की आवश्यकता होती है वह सभी बिना किसी भेदभाव के निष्पक्षतापूर्वक समाज तथा राज्य द्वारा प्रदान की जाएं। समाज में कोई विशेष हित न हो। कोई विशेष वर्ग अथवा व्यक्ति स्वराज्य की शक्ति को अपने ही हित साधनार्थ प्रयुक्त नहीं करें।
लास्की ने समानता के लिए तीन प्रमुख अवश्यकताएं बतायी हैं :
- विशेष सुविधाओं का अभाव।
- सभी के लिए समान अवसरों की उपलब्धि (अवसर की समानता)
- सबकी प्राथमिक आवश्यकताओं की सबसे पहले पूर्ती।
अरस्तु, “न्याय ही समानता है।” (Justice is Equality)
अरस्तु ने समानता का अर्थ अनुपातिक समानता के अवधारणा के रूप में व्यक्त किया इसका अर्थ है ‘समकक्षों के मध्य समानता।’ (Equality Between Counterparts)
प्लेटो तथा अरस्तु ने समानता का विरोध किया। इन लोगों ने दास वर्ग की पैरवी कर समाज का विभाजन किया तथा व्यक्तियों को शारीरिक क्षमता, नैतिक गुण तथा विवेक के आधार पर भिन्न-भिन्न बताया।
बार्कर, “समानता एक बहुरूपिया विचार है। यह बड़ी आसानी से अपना स्वरूप बदलकर नया रूप धारण कर लेता है।”
अप्पादोराय के शब्दों में, “यह कहना कि सब मनुष्य समान है, ऐसे ही गलत है जैसे यह कहना कि पृथ्वी समतल है।”
लेनिन के अनुसार, “जब तक एक वर्ग का दूसरे वर्ग द्वारा शोषण किए जाने की सारी संभावनाएं बिल्कुल नष्ट नहीं कर दी जाती तब तक वास्तविक व सही समानता नहीं हो सकती।”
‘डिस्कोर्स ऑन द ओरिजिन ऑफ इन इक्वेलिटी’ (Discourse on the Origen of the in Equality) में रूसो ने समानता की जोरदार सिफारिश की और असमानता को संपत्ति तथा सभ्यता के साथ जोड़ा।
1776 में अमेरिकी घोषणा पत्र में यह मत प्रतिपादित किया गया कि हम इस सत्य को स्वतः सिद्ध स्वीकार करते हैं कि सब मनुष्य समान हैं।
किस प्रकार की असमानताएं, असमानता के अंतर्गत नहीं आती है
नीचे जो असमानताएं दी गई हैं उनको हम असमानताओं में नहीं मान सकते जो निम्न है :
- प्राकृतिक असमानता (Natural Inequality)
- राज्य द्वारा सकारात्मक कार्यवाहियां (Positive Actions)
- तर्कसंगत अथवा न्यायसंगत असमानता जैसे पिछड़े, कमजोर, अल्पसंख्यक वर्गों को कुछ विशेष सुविधा
रूसो आम तौर पर सामाजिक समानता के पक्षधर थे, लेकिन पूर्ण समानता के नहीं। उनके अनुसार दो प्रकार की असमानताएं संभव है –
- प्राकृतिक असमानता।
- परंपरागत असमानता – विशेष सेवा के लिए विशेष पुरस्कार।
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- स्वतंत्रता का अर्थ एवं परिभाषा
- समानता के सिद्धांत
- समानता के प्रकार
- न्याय का अर्थ एवं परिभाषा
- न्याय के सिद्धांत
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
समानता का अर्थ विशेषाधिकार का अभाव है। यह किसने कहा था ?
उत्तर : लास्की ने समानता का अर्थ बताते हुए कहा था की समाज में कोई विशेष अधिकार वाला वर्ग नहीं रहे। विशेषाधिकार वर्ग की अनुपस्थिति और सब को उन्नति के समान अवसर प्राप्त हो।
समानता से क्या आशय है ?
उत्तर : समानता से अभिप्राय ऐसी परिस्थितियों के अस्तित्व से है जिनके कारण सभी व्यक्तियों को अपने विकास के लिए समान अवसर प्राप्त हो सके और जिनके द्वारा व्यक्तित्व के विकास के मार्ग को अवरुद्ध करने वाली बाधाओं तथा सामाजिक एवं आर्थिक विषमताओं को दूर किया जा सके।
किस प्रकार की असमानताएं, असमानता के अंतर्गत नहीं आती है ?
उत्तर : प्राकृतिक असमानता, राज्य द्वारा सकारात्मक कार्यवाहियां, तर्कसंगत अथवा न्यायसंगत असमानता जैसे पिछड़े, कमजोर, अल्पसंख्यक वर्गों को कुछ विशेष सुविधा।
समानता का अर्थ आनुपातिक समानता बताने वाले विचारक कौन है ?
उत्तर : अरस्तु ने समानता का अर्थ आनुपातिक समानता (Proportions Equality) की अवधारणा के रूप में व्यक्त किया, जिसका अर्थ है ‘समकक्षों के मध्य समानता’।