इस आर्टिकल में भारतीय राजनीति के पितामह दादा भाई नौरोजी का जीवन परिचय, दादा भाई नौरोजी संगठनों की स्थापना, दादाभाई नौरोजी और राजनीति, दादा भाई नौरोजी की पुस्तक : पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया, आर्थिक अपवाह और नैतिक अपवाह के बारे में चर्चा की गई है।
दादा भाई नौरोजी का जीवन परिचय
भारतीय राजनीतिक विचारक और भारतीय राजनीति के पितामह दादाभाई नौरोजी (Dada Bhai Nouroji) का जन्म 4 सितम्बर 1825 को मुम्बई में हुआ। वे ब्रिटिशकालीन भारत के एक पारसी बुद्धिजीवी, शिक्षाशास्त्री, कपास के व्यापारी तथा आरम्भिक राजनैतिक एवं सामाजिक नेता तथा महान राष्ट्रवादी थे। उन्हें ‘भारत का वयोवृद्ध पुरुष’ (Grand Old Man of India) कहा जाता है।
1892 से 1894 तक वे युनिटेड किंगडम (United Kingdom) के हाउस आव कॉमन्स (House of Commans) के सदस्य थे।
पारसियों के इतिहास में अपनी दानशीलता और प्रबुद्धता के लिए प्रसिद्ध ‘कैमास’ बंधुओं ने नौरोजी को अपने व्यापार में भागीदार बनाने के लिए बुलावे पर वे इंग्लैंड गए और लंदन व लिवरपूल में कार्यालय स्थापित किए। इनका उद्देश्य उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड जाने वाले विद्यार्थियों की भलाई करना और सरकारी प्रशासकीय संस्थाओं का अधिक से अधिक भारतीय करण करना था।
नौरोजी 1845 में एलफिंस्टन कॉलेज में गणित के प्राध्यापक चुने गए। यहां के एक अंग्रेजी प्राध्यापक प्रो. अलैबार ने इन्हें ‘भारत की आशा’ की संज्ञा दी। बड़ौदा के प्रधानमंत्री लार्ड सैल सिबरी ने उन्हें ब्लैक मैन कहा था, हालांकि वह बहुत गोरे थे। उन्होंने संसद में बाईबल से शपथ लेने से इंकार कर दिया था।
1874 में बड़ौदा के प्रधानमंत्री बने। लंदन विश्वविद्यालय में गुजराती के प्रोफ़ेसर भी रहे। भारतीयों की दरिद्रता की दुख की अभिव्यक्ति और उसके उन्मूलन हेतु आंदोलन चलाने वाले पहले व्यक्ति थे।
नौरोजी ने सिविल सेवा परीक्षा इंग्लैंड और भारत में एक साथ कराने का सुझाव देते हुए आंदोलन चलाया और लोकसभा (हाउस ऑव कॉमंस) में एक सदस्य की हैसियत से प्रस्ताव स्वीकार करवाया।
वे पहले भारतीय थे जिन्होंने कहा भारत भारतीयों के लिए है। ब्रिटिश शासन का सर्वप्रथम आर्थिक विश्लेषण प्रस्तुत किया। गोखले और गांधी के सलाहकार भी थे। नौरोजी ब्रिटिश शासन को भारतीयों के लिए देवी वरदान मानते थे।
दादा भाई नौरोजी संगठनों की स्थापना
नौरोजी ने 1867 में ईस्ट इंडिया एसोसिएशन बनाई। 1885 में मुंबई विधान परिषद के सदस्य बने। बाद में इंडियन एसोसिएशन का कांग्रेस में विलय हो गया। उन्होंने 1859 में नौरोजी एंड कंपनी के नाम से कपास का व्यापार शुरू किया। ‘ज्ञान प्रसारक मंडली’ नामक महिला हाई स्कूल की स्थापना की।
कांग्रेस के लिए समर्थन प्राप्त करने के लिए 1889 ई. में एक समिति स्थापित की गई थी जिसका अध्यक्ष दादाभाई नौरोजी को बनाया गया था। दादा भाई नौरोजी ‘ऑर्गेनाइजेशन ऑफ सोशलिस्ट एंड लेबर पार्टी’ (Second International) के सदस्य भी रहे थे।
दादाभाई नौरोजी और राजनीति
1885 में मुंबई विधान परिषद के सदस्य बने। 1886 में होलबर्न क्षेत्र से पार्लियामेंट के लिए चुनाव लड़ा परंतु असफल रहे। 1886 में लिबरल पार्टी से फिन्सबरी क्षेत्र से पार्लियामेंट के लिए निर्वाचित हुए।
नौरोजी तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1886 में कोलकाता, 1893 में लाहौर और 1906 में कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की। 1906 में कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता करते हुए सर्वप्रथम स्वराज्य की मांग की गई। भारतीय जनता के 3 मौलिक अधिकारों का वर्णन किया –
- लोक सेवाओं में भारतीय जनता की अधिक नियुक्ति।
- विधानसभा में भारतीयों का अधिक प्रतिनिधित्व।
- भारत एवं इंग्लैंड में उचित आर्थिक संबंध की स्थापना।
नौरोजी कांग्रेस के नरमपंथी और उदारवादी नेताओं में से थे। ब्रिटिश संसद में चुने जाने वाले प्रथम एशियाई थे। दादा भाई नौरोजी की प्रसिद्ध का कारण ब्रिटिश संसद में ड्रेन थ्योरी प्रस्तुत करना था, जिसमें भारत से लुटे हुए धन को ब्रिटेन ले जाने का उल्लेख था।
दादा भाई नौरोजी की पुस्तक : पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया
नौरोजी की इस पुस्तक को राष्ट्रीय आंदोलन की बाइबिल माना जाता है। 1868 में सर्वप्रथम नौरोजी ने अंग्रेजों द्वारा भारत के ‘धन की निकासी’ (धन का बहिर्गमन) की और सभी भारतीयों का ध्यान आकृष्ट किया।
2 मई 1867 को लंदन में आयोजित ‘ईस्ट इंडिया एसोसिएशन’ की बैठक में अपने पत्र जिसका शीर्षक ‘इंग्लैंड डिबेट टू इंडिया’ (England Debut to India) को पढ़ते हुए पहली बार धन के बहिर्गमन के सिद्धांत को प्रस्तुत किया। उन्होंने कहा, “भारत का धन ही भारत से बाहर जाता है और फिर धन भारत को पुनः ऋण के रूप में दिया जाता है, जिसके लिए उसे और धन ब्याज के रूप में चुकाना पड़ता है। यह सब एक दुष्चक्र था, जिसे तोड़ना कठिन था।”
उन्होंने अपनी पुस्तक पॉवर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया में प्रति व्यक्ति वार्षिक आय का अनुमान ₹20 लगाया था। अन्य पुस्तक जो धन के निष्कासन सिद्धांत की व्याख्या की है – ‘द वांटस एंड मींस ऑफ इंडिया’ (1870), ‘ऑन द कॉमर्स ऑफ इंडिया’ (1871) । दादा भाई ने धन के निष्कासन को ‘अनिष्टों का अनिष्ट’ की संज्ञा दी है।
भारतीय राजनीति के पितामह : दादाभाई नौरोजी
नौरोजी आधुनिक भारत के सुलझे हुए अर्थशास्त्र वेता साम्राज्यवाद के आलोचक और भारतीय राष्ट्रवाद के अग्रदूत के रूप में विख्यात हैं। उन्होंने भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के उत्कृष्ट के दिनों में अपनी प्रसिद्ध कृति ‘पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ (Poverty and Unbritish Rule in India’ भारत में गरीबी और गैर ब्रिटिश शासन, 1901) के अंतर्गत भारत की तत्कालीन दुर्दशा और उसके कारणों का सटीक, प्रमाणिक और मर्मस्पर्शी विवरण प्रस्तुत किया। इसमें उन्होंने अपने तर्कों की पुष्टि विस्तृत सांख्यिकी की सहायता से की है।
इस दुर्दशा के लिए उन्होंने ब्रिटिश साम्राज्यवाद की क्रूर नीतियों को दोषी ठहराते हुए उन्हें बदलने की मांग की। उन्होंने तर्क दिया कि भारत में अंग्रेजी सरकार के तौर तरीके ब्रिटिश शासन की मर्यादा के अनुरूप नहीं थे।
भारत में ब्रिटिश साम्राज्य को लक्ष्य करते हुए दादाभाई नौरोजी (Dada Bhai Nouroji) ने स्वीकार किया कि विदेशी शासन चाहे कितना ही हितकारी क्यों न हो वह स्वशासन की तुलना में कहीं भी नहीं ठहरता।
आर्थिक अपवाह से तात्पर्य
एक विशाल धनराशि प्रतिवर्ष भारत से इंग्लैंड भेज दी जाती थी। यह राशि भारतीय उपनिवेश का प्रशासन चलाने वाले ब्रिटिश अधिकारियों के वेतन और पैसों के रूप में, गैर सरकारी ब्रिटिश उद्यमियों की आय के रूप में, भारत में रखे गए ब्रिटिश सैनिकों पर होने वाले खर्च के रूप में तथा भारत में रहने वाले ब्रिटिश व्यवसायिक वर्गों की ऐसी आय के रूप में चुकाई जाती थी जो भारत से इंग्लैंड भेज दी जाती थी।
नैतिक अपवाह से अभिप्राय
उच्च पदों की सारी नियुक्तियां केवल अंग्रेजों के लिए सुरक्षित थी, भारत के लोग बहुत से बहुत क्लर्क, कुली और मजदूर बन पाते थे जिनकी आय पेट भरने के लिए भी मुश्किल से पूरी होती थी। रहन-सहन के अच्छे स्तर की तो बात ही क्या ! ऐसी हालात में भारतीय लोगों के लिए धन संचय और पूंजी निर्माण का कोई अवसर ही नहीं था।
नौरोजी जी ने दोनों देशों के बीच सुखद संबंध कायम रखने के हित में भारत को स्वराज्य या स्वशासन प्रदान करने का मुतालबा किया। उन्होंने भारत की पूर्ण स्वाधीनता की मांग नहीं की बल्कि ब्रिटेन के सर्वोच्च नियंत्रण और मार्गदर्शन के अंतर्गत भारत में स्वशासन की स्थापना का सुझाव दिया। इसका मुख्य मुद्दा था भारत के लोगों को प्रशासनिक शक्तियों का स्थानांतरण और भारत में पूंजी निवेश के लाभों का भारत और इंग्लैंड के बीच बंटवारा है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
दादा भाई नौरोजी को किसने भारत की आशा कहा था?
उत्तर : दादा भाई नौरोजी 1845 में एलफिंस्टन कॉलेज में गणित के प्राध्यापक चुने गए। यहां के एक अंग्रेजी प्राध्यापक प्रो. अलैबार ने इन्हें ‘भारत की आशा’ की संज्ञा दी। बड़ौदा के प्रधानमंत्री लार्ड सैल सिबरी ने उन्हें ब्लैक मैन कहा था, हालांकि वह बहुत गोरे थे।
दादा भाई नौरोजी ने सर्वप्रथम राष्ट्रीय आय का अनुमान कब लगाया था?
उत्तर : भारत की राष्ट्रीय आय की गणना करने का सर्वप्रथम प्रयास दादा भाई नौरोजी ने 1867-68 में किया था। जिन्होंने प्रति व्यक्ति वार्षिक आय ₹20 होने का अनुमान लगाया था।
दादा भाई नौरोजी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के कितनी बार अध्यक्ष चुने गए थे?
उत्तर : दादा भाई नौरोजी तीन बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गए। 1886 में कोलकाता, 1893 में लाहौर और 1906 में कलकत्ता अधिवेशन की अध्यक्षता की।
दादा भाई नौरोजी ने भारत की तत्कालीन दुर्दशा और उसके कारणों का सटीक, प्रमाणिक और मर्मस्पर्शी विवरण अपनी किस पुस्तक में प्रस्तुत किया था?
उत्तर : भारत में ब्रिटिश साम्राज्यवाद के उत्कृष्ट के दिनों में दादा भाई ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ (Poverty and Unbritish Rule in India’ भारत में गरीबी और गैर ब्रिटिश शासन, 1901) के अंतर्गत भारत की तत्कालीन दुर्दशा और उसके कारणों का सटीक, प्रमाणिक और मर्मस्पर्शी विवरण प्रस्तुत किया।