इस आर्टिकल में शीत युद्ध (Cold War) किसे कहते हैं, शीत युद्ध की उत्पत्ति के कारण, शीत युद्ध की प्रमुख घटनाएं, शीत युद्ध के प्रभाव आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
शीत युद्ध किसे कहते हैं
शीत युद्ध (Cold War) दो देशों के मध्य प्रतिद्वंद्विता और तनाव की स्थिति को कहते हैं। शीत युद्ध के दौरान मैदान में संघर्ष नहीं होता है। शीत युद्ध में वैचारिक घृणा, राजनीतिक अविश्वास, कूटनीतिक जोड़-तोड़, सैनिक प्रतिस्पर्धा, जासूसी (Detective), मनोवैज्ञानिक युद्ध और कटुतापूर्ण संबंधों की अभिव्यक्ति होती है।
शीत युद्ध शब्द का प्रथम प्रयोग दो अमेरिकियों बेनार्ड बरूच (Benard Baruch) और वाल्टर लिपमैन (Walter Lipmen) ने किया था।
रेमंड एरोन (Raymond Aron), “यह ऐसी स्थिति थी जिसमें शांति असंभव थी और युद्ध नामुमकिन था।
जॉन फोस्टर डलेस (John Faster Dulles), 1950 के दशक में अमेरिकी विदेश मंत्री, शीत युद्ध को नैतिक धर्म युद्ध के रूप में परिभाषित किया, अच्छाई का बुराई के विरुद्ध संघर्ष का नाम दिया, अमेरिका को सत्यता और धर्म का प्रतीक माना, सोवियत संघ को मिथ्या और अधर्म का पक्षधर बताया।
जवाहरलाल नेहरू, स्नायु युद्ध के रूप में पहचाना। उनका कहना था कि जनमानस निलंबित मृत्युदंड की छाया में जीवन व्यतीत कर रहा है। शीत युद्ध को गर्म युद्ध से भी भयभीत बताया।
जवाहरलाल नेहरु, “शीत युद्ध दो विचारधाराओं का संघर्ष न होकर दो भीमाकार दैत्यों का आपसी संघर्ष है।
फ्लेमिंग, “शीत युद्ध एक ऐसा युद्ध है जो युद्ध क्षेत्र में नहीं बल्कि मनुष्य के मस्तिष्क में लड़ा जाता है तथा इसके द्वारा उनेक विचारों पर नियंत्रण स्थापित किया जाता है।”
वी एन खन्ना : शांतिकालीन सशस्त्रास्त्र युद्ध था।
जवाहरलाल नेहरू, “शीतयुद्ध महाशक्तियों की शक्ति का संतुलन अपने पक्ष में बनाए रखने की चीरकालिक अभिलाषा की एक नए रूप में अभिव्यक्ति था।”
यथार्थवादी (Realistic), जर्मनी और जापान पराजय से मध्य यूरोप और पूर्वी एशिया में उत्पन्न हुई शून्यता के आलोक में शीत युद्ध को समझते हैं। अर्थात शून्यता की अवधारणा का प्रतिपादन किया। यथार्थवादियों द्वारा शीत युद्ध की भू राजनीतिक व्याख्या “गर्म पानी के बंदरगाह और रक्षणीय सीमाओं की तलाश में पारंपरिक रूसी विस्तार वाद का परिणाम थी।”
शीत युद्ध के बीज तो बोल्शेविक क्रांति (Bolshevik Revolution)/अक्टूबर क्रांति 1917 से ही बो दिए थे परंतु यह चिंगारी के रूप में द्वितीय विश्व युद्ध के बाद याल्टा सम्मेलन (Yalta Confrence) 1945 तथा NATO 1949 की स्थापना के रूप में प्रकट हुई।
अमेरिकी राष्ट्रपति रूजवेल्ट शांति बनाए रखने के लिए महाशक्तियों के बीच सहयोग की आशा रखते थे। जिन्होंने यूएसए, सोवियत संघ, ब्रिटेन और चीन को चार रक्षकों (Four Policemen) के रूप में देखा।
अमेरिका का शीत युद्ध में प्रवेश तब हुआ जब जापान द्वारा 7 दिसंबर 1941 को पर्ल हार्बर पर आक्रमण किया। जॉर्ज ऑरवेल (George Orwell) द्वारा प्रकाशित लेख ‘यू एंड एटम बम’ (U & Atom Bomb) मे शीत युद्ध (Cold War) का नाम गढ़ा और उसने इसे परमाणु युद्ध (Nuclear War) के खतरे के साए में जी रही दुनिया के संदर्भ में प्रयोग किया और शांति विहीन शांति की संज्ञा दी। वाल्टर लिपमैन ने अपनी पुस्तक कोल्ड वार (Cold War) के माध्यम से इस शब्द को अंतर्राष्ट्रीय राजनीति के अध्ययन में लोकप्रियता प्रदान की।
द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के बाद में यूएसए और सोवियत संघ रूस के बीच तनाव की स्थिति शीतयुद्ध है। शीत युद्ध के उपनाम सशस्त्र सज्जित शांति। मनोवैज्ञानिक युद्ध, विचारधारात्मक संघर्ष, सैनिक गठबंधन, स्नायु युद्ध, वाक् युद्ध।
साम्यवादी (रूस) और पूंजीवादी (अमेरिका दो खेमों में बंट गया, परंतु कोई टकराव नहीं हुआ।
युद्ध क्यों नहीं हुआ : अपरोध (रोक और संतुलन) स्थिति के कारण।
अपरोध (रोक और संतुलन) से अभिप्राय – यदि कोई देश शत्रु देश पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करें तो भी उसके पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच ही जाएंगे। इस तरह दोनों देशों ने ही युद्ध का खतरा नहीं उठाया।
दो ध्रुवीय विश्व से क्या अभिप्राय है
शीत युद्ध के दौरान बने पूर्वी गठबंधन और पश्चिमी गठबंधन से अभिप्राय है यूरोप का दो धुर्वो में बंट जाना –
पश्चिमी यूरोप : अमेरिका के पक्ष में, जिसने पश्चिमी गठबंधन कहा जाता है। NATO (1949) नाम का सैन्य गठबंधन बनाया। इसमें 12 देश शामिल हुए।
पूर्वी यूरोप : सोवियत संघ रूस के पक्ष में, पूर्वी गठबंधन के नाम से जाना जाता है। वारसा पैक्ट (1955) नाम से सैन्य गठबंधन बनाया।
शीत युद्ध के दौरान विश्व का दो गुटों में विभाजन हो गया जिससे शक्ति संरचना ही द्वि ध्रुवीय हो गई जिसे अमेरिका और सोवियत संघ का नेतृत्व प्राप्त हुआ। यही द्विध्रुवीय विश्व था।
अमेरिका ने सोवियत संघ के विरूद्ध अपने प्रभाव विस्तार हेतु दक्षिणी पूर्वी एशियाई देशों के साथ गठबंधन करके चर्चिल (Churchill) की सलाह पर 1954 मे दक्षिणी पूर्वी एशियाई संधि संगठन (SEATO) और केंद्रीय संधि संगठन (CENTO 1955) जिसे बगदाद समझौता भी कहा जाता है।
सोवियत संघ और साम्यवादी चीन ने उत्तरी वियतनाम, उतरी कोरिया, इराक के साथ गठबंधन किया। 1950 के दशक के उत्तरार्ध में चीन सोवियत संघ में अनबन हो गई, 1969 में एक छोटा युद्ध भी हुआ था।
छोटे-छोटे देशों का महाशक्तियों के साथ जुड़ाव का कारण : उसके निजी हित, सुरक्षा का वादा, आर्थिक और हत्यारों की मदद था।
महाशक्तियों का छोटे-छोटे देशों के साथ जुड़ाव का कारण : महत्वपूर्ण खनिज संसाधन, भू क्षेत्र (महाशक्तियाँ यहां से हथियार और सेना का संचालन कर सके), सैनिक ठिकाने (जासूसी करने के लिए), आर्थिक मदद (सैन्य खर्च वहन करने में मददगार)।
शीत युद्ध के प्रारंभ के दौर में कई छोटे-छोटे देश औपनिवेशिक शासन से मुक्त हुए थे। उसने किसी भी गुट में शामिल ना होने की गुटनिरपेक्षता (NAM) की नीति अपनाई।
पश्चिम गुट/अमेरिकी गुट/ पूंजीवादी में शामिल होने वाले देश : पुर्तगाल, स्पेन, फ्रांस, ब्रिटेन, पश्चिमी जर्मनी, नार्वे, इटली, ग्रीस, तुर्की, बेल्जियम, नीदरलैंड, डेनमार्क, जापान, ऑस्ट्रेलिया आदि।
पूर्वी गुट/ सोवियत गुट /साम्यवादी गुट में शामिल देश : पूर्वी जर्मनी, पोलैंड, हंगरी, चेकोस्लोवाकिया, रोमानिया, बुलगारिया, उत्तरी कोरिया।
- पहली दुनिया : पूंजीवादी गुट में शामिल देश।
- दूसरी दुनिया : साम्यवादी गुट में शामिल देश।
- तीसरी दुनिया : नव स्वतंत्र देश जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा बने।
शीत युद्ध के दौरान ऐसे कई अवसर आए जब युद्ध की स्थिति पैदा हो गई। इन संकटों को दूर करने में गुटनिरपेक्ष (NAM) देशों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उतरी कोरिया दक्षिण कोरिया के बीच जवाहरलाल नेहरू द्वारा मध्यस्थता, कांगो संकट (1960) संयुक्त राष्ट्र संघ (UNO) महासचिव डेग हैमरशोल्ड (dag hamrsold) द्वारा मध्यस्थता करके सुलझाने हेतु मरणोपरांत नोबेल शांति पुरस्कार (Nobel Peace Prize) दिया गया।
दोनों महाशक्तियों ने अस्त्र-नियंत्रण तथा स्थाई संतुलन लाने के लिए 1960 के दशक के उत्तरार्ध में 10 वर्षों के भीतर तीन संधियों पर हस्ताक्षर किए।
- सीमित परमाणु परीक्षण संधि (LTBT) मास्को 1963
- परमाणु अप्रसार संधि (NPT) 1970 से प्रभावी, 1995 में अनियतकाल के लिए बढ़ा दी गई। यह संधि केवल परमाणु शक्ति संपन्न देशों को ही एटमी हथियार रखने की अनुमति देता है।
- परमाणु प्रक्षेपास्त्र परिसीमन संधि (एंटी बैलेस्टिक मिसाइल ट्रीट्री) 1972
शीत युद्ध का चरम बिंदु यानी प्रारंभ क्यूबा मिसाइल संकट 1962 को कहा जाता है। सोवियत नेता निकिता ख्रुश्चेव द्वारा क्यूबा (अमेरिका का पड़ोसी देश है और साम्यवादी शासक फिदेल कास्त्रो द्वारा शासित) में परमाणु मिसाइलें तैनात कर देना।
शीत युद्ध की उत्पत्ति के कारण
- सोवियत संघ द्वारा याल्टा समझौते का पालन न करना
- सोवियत संघ और अमेरिका के वैचारिक मतभेद
- सोवियत संघ का एक शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में उभरना
- इरान में सोवियत हस्तक्षेप
- टर्की में सोवियत हस्तक्षेप
- यूनान में साम्यवादी प्रसार
- द्वितीय मोर्चे संबंधी विवाद
- तुष्टीकरण की नीति
- सोवियत संघ द्वारा बाल्कन समझौते की उपेक्षा
- अमेरिका का परमाणु कार्यक्रम
- परस्पर विरोधी प्रचार
- लैंड लीज समझौते का समापन
- फासीवादी ताकतों को अमेरिकी सहयोग
- बर्लिन विवाद
- सोवियत संघ द्वारा बार-बार वीटो पावर का प्रयोग
- संकीर्ण राष्ट्रवाद पर आधारित संकीर्ण राष्ट्रीय हित
शीत युद्ध को बढ़ावा देने वाली प्रमुख घटनाएं
- 1946 का चर्चिल का फुल्टन भाषण (Fulton Speech) – साम्यवाद की आलोचना, आंगल अमेरिका गठबंधन पर जोर
- 1947 का ट्रूमैन सिद्धांत (साम्यवादी प्रसार रोकना) यूनान व टर्की को सहायता।
- 1947 की मार्शल योजना (Marshall Plan) (साम्यवादी प्रसार रोकने हेतु पश्चिमी यूरोप के देशों को आर्थिक सहायता)।इसे डॉलर कूटनीति भी कहा जाता है।
- 1948 मे सोवियत संघ द्वारा बर्लिन की नाकेबंदी
- जर्मनी का विभाजन – सोवियत संघ की कॉमिकॉन नीति (COMECON) (कम्युनिस्ट इनफॉरमेशन ब्यूरो)
- 1949 में अमेरिका द्वारा NATO की स्थापना (वर्तमान मे इसकी सदस्य 29 राज्य है,अंतिम मांटेनेग्रो)।
- चीन मे 1950 में साम्यवादी शासन की स्थापना
- 1950 का कोरिया संकट
- 1951 में अमेरिका द्वारा जापान के साथ सेन फ्रांसिस्को में सम्मेलन और शांति संधि। इसी वर्ष जापान के साथ एक प्रतिरक्षा संधि की।
- 1953 में सोवियत संघ द्वारा प्रथम आणविक परीक्षण
- वियतनाम में 1954 में गृह युद्ध, दोनों देशों का हस्तक्षेप।
- हिंद चीन में 1954 में गृह युद्ध,यह क्षेत्र फ्रांस का उपनिवेश था। दोनों देशों का हस्तक्षेप। समस्या का हल – जिनेवा समझौता के रूप में।
- 1956 में हंगरी मे सोवियत संघ का हस्तक्षेप
- स्वेज नहर संकट 1956, सोवियत संघ ने मिस्र का साथ दिया।
- 1957 में आईजन हावर सिद्धांत (अमेरिका के राष्ट्रपति) – साम्यवाद के खतरे का सामना करने के लिए सशस्त्र सेनाओं के प्रयोग करने का अधिकार कांग्रेस द्वारा राष्ट्रपति को देना। पश्चिमी एशिया शीतयुद्ध का अखाड़ा बन गया।
- डोमिनो सिद्धांत : इस का प्रतिपादन आइजनहावर ने किया, जिसका अर्थ है कि यदि दक्षिणी वियतनाम पर साम्यवाद का नियंत्रण हो जाएगा तो समूचे दक्षिणी पूर्वी एशियाई क्षेत्र पर साम्यवाद का नियंत्रण हो जाएगा।
- 1960 में अमेरिकी जासूसी विमान U-2 सोवियत सीमा में पकड़ा जाना।
- 1961 में खुश्चेव (सोवियत संघ राष्ट्रपति) द्वारा पूर्वी जर्मनी के साथ पृथक संधि करने की धमकी।
- 1961 में सोवियत संघ द्वारा बर्लिन शहर में दीवार बनानी शुरू की – पश्चिमी शक्तियों के क्षेत्र को अलग करने के लिए।
- 1962 क्यूबा संकट
- सोवियत संघ द्वारा सैनिक अड्डे की स्थापना, केनेडी का विरोध, तृतीय विश्व युद्ध का जोखिम सबसे करीब सोचा गया।
नोट : बर्लिन की दीवार शीत युद्ध का सबसे महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है।
शीत युद्ध का (1963-979) तक का काल : दितांत अथवा तनाव शैथिल्य
1970 के दशक का दितांत अफगानिस्तान संकट के जन्म लेते ही एक नए प्रकार के शीत युद्ध में बदल गया। इस संकट को दितांत की अंतिम शव यात्रा कहा जाता है।
सोवियत संघ द्वारा अफगानिस्तान में हस्तक्षेप 1979 : 1986 में रीगन-गोर्वाचेव शिखर वार्ता, 1987 में INF संधि पर हस्ताक्षर। हस्तक्षेप का आधार – प्रमुखता का अधिकार।
देतांत से क्या अभिप्राय है – देतांत शीत युद्ध काल में महाशक्तियों के मध्य वास्तविक युद्ध की विभीषिकाओं से बचने के लिए अनेक समझौते हुए जिन्हें अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में देतांंत नाम से जाना जाता है।
23 मार्च 1983 को अमेरिका द्वारा (रिगन द्वारा) स्टार वार कार्यक्रम (Star Wars Program) (अंतरिक्ष युद्ध) को मंजूरी दी। नए अस्त्र शस्त्रों की होड़ शुरू हो गई।
अमेरिका का खाड़ी सिद्धांत विश्व शांति के लिए खतरा, इराक-अमेरिका (खाड़ी युद्ध) – हाईवे ऑफ़ डेथ – युद्ध अपराध की संज्ञा और जिनेवा समझौते का उल्लंघन।
शीत युद्ध में शक्ति संतुलन के स्थान पर आंतक के संतुलन को जन्म दिया।
शीत युद्ध के सकारात्मक प्रभाव
- तकनीकी और प्राविधिक विकास का मार्ग प्रशस्त हुआ
- यथार्थवादी राजनीति का आविर्भाव
- विश्व राजनीति में नए राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण
- गुटनिरपेक्ष आंदोलन को सबल आधार
नकारात्मक प्रभाव मे शीत युद्ध के कारण संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद को लकवा लग गया।
शीत युद्ध के विशिष्ट साधन
- प्रचार
- शक्ति प्रदर्शन (सैनिक व तकनीकी)
- जासूसी
- कूटनीति (Diplomacy)
- कमजोर तथा अविकसित राष्ट्रों को आर्थिक व सैन्य सहायता प्रदान करना।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
दो ध्रुवीय विश्व से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर : शीत युद्ध के दौरान विश्व का दो गुटों में विभाजन हो गया जिससे शक्ति संरचना ही द्वि ध्रुवीय हो गई जिसे अमेरिका और सोवियत संघ का नेतृत्व प्राप्त हुआ। यही द्विध्रुवीय विश्व था।
तीसरी दुनिया में कौन से देश शामिल हैं?
उत्तर : तीसरी दुनिया में नव स्वतंत्र देश जो गुटनिरपेक्ष आंदोलन का हिस्सा बने। तीसरी दुनिया के नाम से जाने जाते हैं।
शीत युद्ध के दौरान विश्व कितने गुटों में बंटा हुआ था?
उत्तर : शीत युद्ध के दौरान विश्व दो गुटों में बंटा हुआ था।
1. पश्चिम गुट/अमेरिकी गुट/ पूंजीवादी में शामिल होने वाले देश।
2. पूर्वी गुट/ सोवियत गुट /साम्यवादी गुट में शामिल देश।पश्चिमी गुट का नेतृत्व कौन सी महाशक्ति कर रही थी?
उत्तर : शीत युद्ध के दौरान पश्चिमी गुट का नेतृत्व अमेरिका और अमेरिका समर्थित देश कर रहे थे।
अपरोध (रोक और संतुलन) से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : यदि कोई देश शत्रु देश पर आक्रमण करके उसके परमाणु हथियारों को नाकाम करने की कोशिश करें तो भी उसके पास उसे बर्बाद करने लायक हथियार बच ही जाएंगे। इस तरह दोनों देशों ने ही युद्ध का खतरा नहीं उठाया।
दितांत अथवा तनाव शैथिल्य से क्या तात्पर्य है?
उत्तर : देतांत शीत युद्ध काल में महाशक्तियों के मध्य वास्तविक युद्ध की विभीषिकाओं से बचने के लिए अनेक समझौते हुए जिन्हें अंतरराष्ट्रीय राजनीति में देतांंत नाम से जाना जाता है।