इस आर्टिकल में संघवाद क्या है, संघवाद के मूल तत्व, भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था, भारतीय संघवाद की विशेषताएं, केंद्र-राज्य संबंध सुधार आयोग, केंद्र राज्यों के बीच विवादास्पद मुद्दे आदि पर विस्तार से चर्चा की गई है।
संघवाद क्या है
संघ का शाब्दिक अर्थ अनुबंध या समझौता होता है। पुस्तक The Federalist में अलेक्जेंडर हैमिल्टन (Alexander Hamilton) के अनुसार, “13 विभिन्न सम्प्रभु इच्छाओं की सहमति” इस वाक्य में हमें संघीय शासन अर्थात् संघवाद का सही अर्थ समझा आ जाता है।
शासन के सिद्धांत के रूप में संघवाद विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न-भिन्न स्वरुप ग्रहण करता है। जैसे अमेरिका का संघवाद, भारत और जर्मनी से भिन्न है।
संघवाद (Unionism) एक संस्थागत प्रणाली होती है जिसके अंतर्गत दो प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था केंद्र स्तर और राज्य स्तर पर होती है। प्रत्येक सरकार अपने क्षेत्र में स्वायत्त, दोहरी नागरिकता (Dual Citizenship) (भारत में इकहरी), लिखित संविधान और सर्वोच्च तथा सरकारों की शक्तियों का विभाजन और स्वतंत्र न्यायपालिका होती है।
संघात्मक संविधान का जन्मदाता अमेरिका संविधान है। इसमें केंद्र की निर्लबता है जबकि भारत में सशक्त है। कनाडा एवं भारत का संघीय ढांचा समान है। अमेरिका में अवशिष्ट शक्तियां राज्यों के पास है जबकि भारत एवं कनाडा में केंद्र के पास है।
कनाडा में वेस्ट मिनिस्टर मॉडल अपनाकर संसदीय परम्परा स्थापित की गई है। कनाडा का संघीय रूप भारतीय रुप से मेल खाता है। कनाडा ब्रिटिश सम्राज्य का पहला देश है जहां संघीय शासन की स्थापना की गई है।
अमेरिका में एकीकरण संघवाद पाया जाता है। संघीय राज्यों में अमेरिका, स्विट्ज़रलैंड, ऑस्ट्रेलिया, अफ्रिका, कनाडा, भारत आदि प्रमुख हैं।
भारतीय संविधान में संघवाद
भारत में केंद्र-राज्य संबंध संघवाद (Unionism) की और उन्मुख है, संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा से लिया गया है। भारत में संघ के स्थान पर राज्यों का संघ (Union) शब्द का प्रयोग किया गया है। (अनुच्छेद 1)
भारतीय संविधान के अंग्रेजी संस्करण में फेडरेशन (Federation) शब्द नहीं हैं। हिंदी में दोनों का अर्थ संघ (Union) के लिए किया गया है। संविधान में आर्थिक और वित्तीय शक्तियां केंद्र सरकार को सौंपी है, जबकि उत्तरदायित्व राज्यों के अधिक हैं और आय के स्रोत कम हैं।
भारत में संघवाद की विभिन्न समयों में स्थित निम्नलिखित प्रकार से रही है : –
- 1950 से 1967 तक : केन्द्रीकृत संघवाद
- 1967 से 1971 तक : सहकारी संघवाद (कमजोर राज्यों वाला संघ/सहयोगी)
- 1971 से 1977 तक : एकात्मक संघवाद
- 1977 से 2009…: सौदेबाजी वाला संघवाद
भारत में संघात्मक व्यवस्था के अलग-अलग नाम
- अर्धसंघात्मक
- संघात्मक बनाम एकात्मक संघवाद
- मिश्रित संघवाद
- अपकेंद्री संघवाद
- पृथक्करण संघवाद
- विषम संघवाद/असीमित संघवाद (अनुच्छेद 370 और 371)
भारतीय संघवाद की विशेषताएं
- भारत में अनूठा एकात्मक परिसंघीय (Integral Federal) मिश्रण का प्रतिमान है।
- भारतीय संविधान में संघीय व्यवस्था का सिद्धांत सहयोग, विविधता में एकता (Unity in Diversity) को अपनाया गया है।
- भारत में केंद्र-राज्य संबंध संघवाद (Unionism) की और उन्मुख है। संघवाद की इस प्रणाली को कनाडा से लिया गया है।
- भारत में संघ के स्थान पर राज्यों का संघ (Union) शब्द का प्रयोग किया गया है।
- भारत सरकार अधिनियम 1935 के द्वारा अपकेंद्रीय शक्तियों के द्वारा संघवाद की स्थापना करता है। अपकेंद्री संघवाद : एकात्मक + संघात्मक
भारतीय संघवाद के बारे में विभिन्न विश्लेषकों की टिप्पणीयां
- डग्लास बी.बर्ने : 1950 की तुलना में भारत की संघीय व्यवस्था अब कहीं ज्यादा संजीव है।
- के.सी. हियर : भारतीय संघ अधिक से अधिक अर्धसंघ है।
- बी एन बनर्जी : भारतीय संविधान का ढ़ाचा संघीय है किंतु उसका झुकाव एकात्मकता की ओर है।
- डॉ. जी एन जोशी : भारत संघ नहीं अपितु अर्धसंघ है और उसमें एकात्मकता के भी कतिपय लक्षण हैं।
- ग्रेनविल ऑस्टिन : सहकारी संघवाद कहा है।
- मोरिस जोंस : सौदेबाजी वाला संघवाद कहा है।
केंद्र एवं राज्यों में तीन प्रकार के संबंध : विधायी, कार्यपालिका और वित्तिय
(1) केंद्र एवं राज्यों में विधायी संबंध
भारतीय संविधान में केंद्र एवं राज्यों में विधायी संबंध का वर्णन भाग 2, अध्याय 1, अनुच्छेद 245 से 255 तक किया गया है।
अनुच्छेद 245 : संसद और विधानमंडल अपने क्षेत्राधिकार के अंतर्गत विधि बना सकती है परंतु राज्य विधानमंडल क्षेत्रीय अधिकारिता में विस्तार नहीं कर सकता। केवल संसद ही अधिनियम द्वारा राज्य की सीमाएं बढ़ा सकती है। {अपवाद अनुच्छेद 245 (1)}
अनुच्छेद 246 (4) संसद को राज्य क्षेत्रीय विधान बनाने का अधिकार। संसद द्वारा निर्मित विधि भारत के राज्य क्षेत्र में व्यक्तियों एवं संपत्ति पर ही नहीं विश्व के किसी भी भाग में स्थित भारत के नागरिकों एवं संपत्तियों पर भी लागू है।
सातवीं अनुसूची एवं अनुच्छेद 246 – विधायन विषय वस्तु की दृष्टि से विभाजन :
संघ सूची (Union list) : 99 (मूलतः 97) विषय। रक्षा, विदेशी मामले, युद्ध, अंतर्राष्ट्रीय संधि, अणु शक्ति, सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, जनगणना, बैंकिंग, नागरिकता, संचार, विदेशी व्यापार, वायु तथा जल परिवहन, रेलवे, मुद्रा, सशस्त्र बल पर नियंत्रण (42वें संशोधन द्वारा जोड़ा गया)।
राज्य सूची (State List) : 61 (मूलत: 66) विषय। लोक सेवा, कृषि, कारागार, भू राजस्व, लोक व्यवस्था, पुलिस, लोक स्वास्थ्य, स्थानीय शासन, जेल, न्याय प्रशासन, क्रय विक्रय और सिंचाई, शराब, वाणिज्य, व्यापार, पशुपालन।
समवर्ती सूची : गणना की दृष्टि से 52 (वर्तमान में) और संवैधानिक दृष्टि से 47 (मूलत:)।
कृषि भूमि के अतिरिक्त संपदा का हस्थानांतरण, मजदूर संघ, समानों में मिलावट, गोद एवं उत्तराधिकार, राष्ट्रीय जलमार्ग, परिवार नियोजन, जनसंख्या नियंत्रण, समाचार पत्र, कारखाना, आर्थिक और सामाजिक योजना, दण्ड विधि व प्रक्रिया, विवाह व विवाह विच्छेद।
नाप-तौल, शिक्षा, जंगली जानवर एवं पक्षियों का संरक्षण (42वें संशोधन द्वारा राज्य सूची से निकालकर समवर्ती सूची में डाला गया)।
अवशिष्ट शक्तियां : उपरोक्त तीनों सूचियों में जो शामिल नहीं है वे अवशिष्ट शक्तियों में आते हैं। केंद्र ही कानून बना सकती है। (अनुच्छेद 248) जैसे – साइबर कानून (Cyber Law).
संसद राज्य सूची पर कब कानून बना सकती है
अनुच्छेद 249 राष्ट्रीय हित में : राज्यसभा उपस्थित एवं मतदान करने वाले सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से प्रस्ताव पारित करके।1 वर्ष की अवधि के लिए। पुन: प्रस्ताव पर एक वर्ष या बार-बार कई वर्षों के लिए। इसका प्रयोग एक बार हुआ है : 1950 में व्यापार एवं वाणिज्य संबंधी कानून।
अनुच्छेद 252 राज्यों की सहमति से : जब दो या दो से अधिक राज्यों के विधान मंडल प्रस्ताव पारित करके संसद से अनुरोध करें, उन विषयों पर जिन पर अनुरोध किया जाए उन्ही राज्यों पर लागू जिसने अनुरोध किया है। इसका प्रयोग दो बार हुआ है –
- पांच राज्यों : मुंबई, मध्य प्रदेश, उड़ीसा, पंजाब, उत्तर प्रदेश द्वारा 1953 में संपदा शुल्क (Estate Duty) पर।
- आठ राज्य : आंध्र प्रदेश, मुंबई, मद्रास, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, हैदराबाद, पंजाब, सौराष्ट्र द्वारा 1955 में पुरस्कार प्रतियोगिता पर। इन कानूनों में संशोधन का अधिकार संसद को ही रहेगा।
अनुच्छेद 253 : अंतर्राष्ट्रीय संधि एवं समझौतों को लागू करने के लिए राज्य सूची पर भी विधि।
अनुच्छेद 356 : राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्थिति में। विधानमंडल उसे निरस्त न कर दे तब तक लागू रहते हैं।
(2) केंद्र एवं राज्यों में कार्यपालिका संबंध
भारतीय संविधान में केंद्र एवं राज्यों में विधायी संबंध का वर्णन भाग 11, अध्याय 2, अनुच्छेद 256 से 263 तक किया गया है।
7 वी अनुसूची में वर्णित समवर्ती सूची के विषयों पर प्रशासनिक नियंत्रण राज्य सरकार का रहता है। अपवाद : औद्योगिक विवाद अधिनियम 1947।
संविधान में केंद्र सरकार को यह अधिकार दिया गया है कि वह सामान्य आपातकाल, वित्तीय आपात (Financial Emergency) स्थिति में प्रशासन के संबंध में राज्यों को निर्देश दें।
- अनुच्छेद 257 : बाध्यकारी शक्ति निर्देश।
- अनुच्छेद 257 (1) : संघ के सशस्त्र बलों या अन्य बलों के अभियोजन द्वारा राज्यों की सहायता।
- अनुच्छेद 263 : अंतर्राज्यीय परिषद (interstate council) का गठन (1990)
- अनुच्छेद 258 : संघ एवं राज्यों द्वारा आपस में प्रशासनिक कृतियों का हस्थानांतरण।
(3) केंद्र एवं राज्यों में वित्तीय संबंध
भारतीय संविधान में केंद्र एवं राज्यों में विधायी संबंध का वर्णन भाग 12, अध्याय 1, अनुच्छेद 264 से 291 तक किया गया है।
भारतीय संविधान में केंद्र और राज्यों में राजस्व का वितरण भारत सरकार अधिनियम 1935 की पद्धति के आधार पर किया गया है। वित्त आयोग की स्थापना।
अनुच्छेद 265 : विधि के प्राधिकार के बिना कोई कर अधिरोपित या संग्रहित नहीं किया जाएगा। किसी कार्यपालिका आदेश द्वारा कोई कर अधिरोपित नहीं किया जा सकेगा।
अनुच्छेद 268 संघ एवं राज्यों में राजस्व के वितरण की व्यवस्था : संघीय सूची में वर्णित विषय पर लगे कुछ कर पूर्णत: या अंशत: राज्यों में वितरित कर दिए जाते हैं। 4 प्रकार के कर :
- अनुच्छेद 268 संघ द्वारा अधिग्रहित किंतु राज्यों द्वारा संग्रहित तथा विनियोजित वाले शुल्क-स्टाम्प, औषधि और प्रसाधन।
- अनुच्छेद 269 (1) संघ द्वारा उद्गृहित और संग्रहित किन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर ।
- अनुच्छेद 270 संघ द्वारा उद्गृहित और संग्रहित तथा संघ और राज्यों के बीच वितरित कर – कृषि आय से भिन्न आय पर कर।
- अनुच्छेद 272 संघ उत्पाद शुल्कों का वितरण : अनुच्छेद 268 में वर्णित से भिन्न उत्पाद शुल्क।
अनुच्छेद 271 संघ के प्रयोजन के लिए कर : यदि संसद अनुच्छेद 269 तथा अनुच्छेद 270 के अधीन करो और शुल्कों में अधिभार लगाकर बढ़ा देती है तो वह पूरी आय भारत की संचित निधि होगी।
अनुच्छेद 273, 275, 282 : राज्यों को संघ से अनुदान।
केंद्र एवं राज्य के मध्य तनाव के कारण
केंद्र-राज्यों के बीच विवादास्पद मुद्दे निम्नलिखित कारणों से अक्सर होते रहते हैं : –
- राज्यों की सीमित शक्तियां
- राज्यपाल की भूमिका
- कानून व्यवस्था के मामलों में राज्यों को केंद्रीय निर्देश
- नवीन राज्यों की मांग
- स्वायत्तता की मांग
- राज्यों पर संघ का अनुचित वित्तीय नियंत्रण
वित्तीय संसाधनों का वितरण का निर्धारण राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त वित्त आयोग तथा प्रधानमंत्री एवं प्रमुख कैबिनेट मंत्रियों की सदस्यों वाले योजना आयोग द्वारा किया जाता है जिससे राज्यों का कोई प्रतिनिधि नहीं है। अशोक चंदा ने कहा है कि योजना आयोग ने संघवाद को निरस्त कर दिया है।
वर्तमान समय में योजना आयोग कि इस समस्या का हल नीति आयोग (Niti Aayog) द्वारा कर दिया गया है।
केंद्र राज्य संबंध सुधार हेतु गठित समितियां आयोग
(1) प्रशासनिक सुधार आयोग : प्रशासनिक सुधार आयोग का गठन M C सीतलवाड़ की अध्यक्षता में 1966 में किया गया था। प्रशासनिक सुधार आयोग द्वारा संविधान में बिना संशोधन किए राज्यों को अधिक स्वायत्तता देने की मांग की गई। 1970 में आयोग ने अपना प्रतिवेदन दिया।
(2) राजा मन्नार समिति : राजा मन्नार समिति का गठन P V राजा मन्नार की अध्यक्षता में 1970 में किया गया था। A L मुदालियर तथा पी. चेन्ना रेड्डी इस समिति के सदस्य थे।
राजा मन्नार समिति की मुख्य सिफारिशें :
- अवशिष्ट विषय समाप्त किए जाएं या उन्हें राज्यों को सौंपे जाए।
- अंतर्राज्जीय परिषद का गठन किया जाए। अनुच्छेद 263 (1990 में)
- अखिल भारतीय सेवाओं (all india services) को समाप्त किया जाए।
(3) भगवान सहाय समिति 1971 : इस समिति ने राज्यपालों तथा मुख्यमंत्री के संबंध में सिफारिश की थी।
(4) सरकारिया आयोग (Sarkariya Commission) : सरकारिया आयोग का गठन रणजीत सिंह सरकारिया की अध्यक्षता में 1983 में किया गया था। वि. शिवरमण और एस. आर. सेन इस आयोग के सदस्य थे। आयोग ने अपना प्रतिवेदन 1988 में प्रस्तुत किया।
सरकारिया आयोग की सिफारिशें :
- देश की एकता और अखंडता के लिए सशक्त केंद्र अनिवार्य।
- राष्ट्रपति शासन अंतिम विकल्प के रूप में, राज्यपाल की नियुक्ति 5 वर्ष के लिए, बीच में स्थानांतरण नही।
- निगम कर के उचित बंटवारे हेतु संविधान में संशोधन।
- अभियांत्रिकी, चिकित्सा तथा शिक्षा के लिए अखिल भारतीय सेवाओं का गठन।
- राष्ट्रीय विकास परिषद का नाम राष्ट्रीय एवं आर्थिक परिषद कर देना चाहिए।
- मुख्यमंत्री या पूर्व मंत्री के विरुद्ध पद के दुरुपयोग की जांच हेतु गठित आयोग का बहुमत से समर्थन।
- देश की एकता एवं अखंडता के लिए त्रिभाषा सूत्र सभी राज्य में लागू किया जाए।
भारत में सहकारी संघवाद की प्रमुख संस्थाएं
- नीति आयोग
- राष्ट्रीय विकास परिषद (6 अगस्त 1952)
- क्षेत्रीय परिषद (1956 में अधिनियम द्वारा)
- अंतर्राज्यीय परिषद (मई 1990, अनुच्छेद 263)
- महिला आयोग (1992 में अधिसूचना द्वारा)
- पिछड़ा वर्ग आयोग (1992)
- अल्पसंख्यक आयोग (1993 में अध्यादेश द्वारा)
- केंद्र राज्य संबंध आयोग
- नदी जल बोर्ड (अनुच्छेद 262)
- अखिल भारतीय सेवाएं (IAS)
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
- वित्त आयोग
- निर्वाचन आयोग
- राज्यपाल सम्मेलन
- मुख्यमंत्री सम्मेलन
- पंचायती राज
- भारतीय संविधान की प्रस्तावना/उद्देशिका
- भारतीय संविधान सभा : महत्वपूर्ण जानकारियां
- मूल अधिकारों का वर्गीकरण
- राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के उद्देश्य लिखिए
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
संविधान की किस अनुसूची में शक्तियों का विभाजन किया गया है?
उत्तर : संविधान की 7 वीं अनुसूची केंद्र और राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का वितरण संबंधी प्रावधान करती है। विधायी विषयों को संघ सूची, समवर्ती सूची और राज्य सूची में बांटा गया है।
ग्रेनविल ऑस्टिन ने भारतीय संघवाद को क्या नाम दिया?
उत्तर : ग्रेनविल ऑस्टिन ने भारतीय संघवाद को सहकारी संघवाद कहा।
संघवाद में कितने प्रकार की सरकार होती है?
उत्तर : संघवाद (Unionism) एक संस्थागत प्रणाली होती है, जिसके अंतर्गत दो प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था केंद्र स्तर और राज्य स्तर पर होती है।