इस आर्टिकल में बुद्धि के सिद्धांत जैसे बुद्धि का एक तत्व सिद्धांत/ बुद्धि का एक खंड सिद्धांत, बुद्धि का द्वित्व सिद्धांत/ बुद्धि का द्वि खंड सिद्धांत, बुद्धि का बहुतत्व सिद्धांत, समूह तत्व सिद्धांत, बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धांत अथवा बुद्धि संरचना सिद्धांत, बुद्धि का पदानुक्रमित सिद्धांत और उनके प्रतिपादक के बारे में चर्चा की गई है।
बुद्धि के स्वरूप (Nature of Intelligence) एवं उसकी संरचना को समझने के लिए अनेक मनोवैज्ञानिकों द्वारा अपने-अपने ढंग से बुद्धि के सिद्धांतों का निरूपण किया गया है।
थ्योरी ऑफ इंटेलिजेंस इन हिन्दी
मनोवैज्ञानिकों का मुख्य बिंदु था कि कौन-सी मानसिक क्षमताएं मिलकर बुद्धि के स्वरूप को निर्धारण करती है? पहले इसे स्थूल शक्ति के रूप में मान्यता मिली। उसके पश्चात स्पीयरमेन ने 1904 में अपना बुद्धि विषयक सिद्धांत (Intellectual Theory) प्रस्तुत किया।
बुद्धि की संरचना के संबंध में निम्न सिद्धांत मान्य हैै :
- 1. बुद्धि का एक तत्व सिद्धांत/ बुद्धि का एक खंड सिद्धांत
- 2. बुद्धि का द्वित्व सिद्धांत/ बुद्धि का द्वि खंड सिद्धांत
- 3. बुद्धि का बहु तत्व सिद्धांत (Multifactor Theory)
- 4. समूह तत्व सिद्धांत (Group factor Theory)
- 5. बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धांत अथवा बुद्धि संरचना सिद्धांत
- 6. पदानुक्रमित सिद्धांत (Hierarchical Theory)
- 7. प्रतिदर्श सिद्धांत (Sampling Theory)
बुद्धि का एक तत्व सिद्धांत (बुद्धि का एक खंड सिद्धांत)
बुद्धि के एक तत्व सिद्धांत सिद्धांत के प्रथम प्रतिपादक जॉनसन है। वैसे इसके प्रतिपादन में अल्फ्रेड बिने (Binet), टरमैन और स्टर्न का नाम लिया जाता है।
उन्होंने बुद्धि को एक अखंड और अविभाज्य इकाई माना है। उनका मत है कि व्यक्ति की विभिन्न मानसिक योग्यताएं (Mental Ability) एक इकाई के रूप में काम करती है।
योग्यताओं की विभिन्न परीक्षाओं द्वारा यह मत असत्य सिद्ध कर दिया गया क्योंकि यदि बुद्धि केवल एक तत्व से निर्मित है तब तो व्यक्ति को सभी क्षेत्रों में बुद्धिमान होना चाहिए था, किंतु ऐसा नहीं है।
जॉनसन का मानना है कि बुद्धि एक शक्तिशाली मानसिक प्रक्रिया है। यह समस्त मनुष्यों पर एकछत्र शासन करती हैं। अन्य सभी मानसिक योग्यताएं इसके अधीन है और यह बुद्धि केवल एक ही तत्व से निर्मित है।
इस प्रवृत्ति के कारण इसे निरंकुशवादी सिद्धांत (Monarecic Theory) भी कहा जाता है। अल्फ्रेड बिने ने 1964 में बुद्धि का पास मॉडल विकसित किया था।
बुद्धि का द्वित्व सिद्धांत (बुद्धि का द्वि खंड सिद्धांत)
बुद्धि के द्वि खंड सिद्धांत के प्रतिपादक स्पीयरमैन है। स्पीयरमैन के अनुसार बुद्धि की संरचना दो प्रकार के तत्वों से मिलकर बनी होती है :
- १. सामान्य तत्व – जिसे ‘G’ factor भी कहते हैं।
- २. विशिष्ट तत्व – जिसे ‘S’ factor भी कहते हैं।
सामान्य तत्व/योग्यता (General Factor) : स्पियरमैन ने सामान्य योग्यता को विशिष्ट योग्यताओं से अधिक महत्वपूर्ण माना है। सामान्य योग्यता सब मनुष्यों में कम या अधिक मात्रा में मिलती है। इसकी मुख्य विशेषताएं निम्न है :
- 1.यह योग्यता जन्मजात होती है।
- 2.यह सदैव एक सी रहती है।
- 3.यह सब मानसिक कार्यों में प्रयोग की जाती है।
- 4.यह प्रत्येक व्यक्ति में भिन्न-भिन्न होती है।
- 5.यह जिन व्यक्तियों में जितनी अधिक होती है वह उतना ही प्रत्येक क्षेत्र में अच्छी सफलता प्राप्त करता है।
- 6.एक व्यक्ति में केवल एक सामान्य तत्व होता है।
- 7.यह भाषा विज्ञान दर्शन आदि में सामान्य सफलता प्रदान करती है।
विशिष्ट योग्यता/विशिष्ट तत्व (Specific Factor) : स्पियरमैन के अनुसार इसका संबंध व्यक्ति के विशिष्ट कार्यों से होता है। यह जन्मजात ना होकर अर्जित की जाती है। यह भिन्न-भिन्न व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न मात्रा में पाया जाता है।
किसी कार्य को करने में सामान्य तत्व के साथ-साथ विशिष्ट तत्व का होना भी आवश्यक है और सामान्य तत्व और विशिष्ट तत्व मैं जितना उच्च संबंध होगा, व्यक्ति उस क्षेत्र में उतनी ही अधिक सफलता प्राप्त करेगा।
विशिष्ट तत्व की सभी कार्यों को करने में आवश्यकता नहीं होती। प्रत्येक विशिष्ट तत्व एक-एक मानसिक कार्य करने के लिए निर्धारित है। जैसे Music, Drawing, Hand Work आदि। भिन्न-भिन्न विशिष्ट तत्व है।
स्पीयरमैन ने 7 वर्ष बाद सन 1911 में अपने उक्त सिद्धांत को सुधारा और कहा कि बुद्धि में दो तत्वों के स्थान पर तीन तत्व होते हैं। स्पीयरमैन ने कहा कि सामान्य तत्व तथा विशिष्ट तत्व के साथ ही साथ एक समूह तत्व (Group Factor) भी होता है। यह स्पियरमैन का त्रि तत्व सिद्धांत (Three Factor Theory) है।
स्पीयरमैन ने सामूहिक तत्व मे ऐसी योग्यताओं को स्थान दिया जो सामान्य योग्यता से श्रेष्ठ और विशिष्ट योग्यता (Specific Ability) से निम्न होने के कारण उनके मध्य का स्थान ग्रहण करती है।
बुद्धि का बहु तत्व सिद्धांत (Multifactor Theory)
बहुआयामी बुद्धि सिद्धांत के जनक एल ई थॉर्नडाइक (1927) है। थॉर्नडाइक का मानना है कि बुद्धि मे सामान्य योग्यता जैसी कोई सत्ता नहीं है, बल्कि बुद्धि के अंतर्गत कई तत्व या कारक हैं। किसी मानसिक क्रिया में कई तत्वों मिलकर कार्य करते हैं।
थॉर्नडाइक ने बुद्धि को उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत (S-R Theory) पर आधारित किया है। उनके मत में बुद्धि उन सभी मानसिक क्षमताओं का योग है जो मस्तिष्क की क्रियाओं में भाग लेते हैं और स्वयं में स्वतंत्र एवं अलग-अलग होते हैं। इस रूप में व्यक्ति की बुद्धि के स्तर का आधार मस्तिष्क के बीच के असंख्य बंध या योग होते हैं।
थॉर्नडाइक ने माना है कि यदि एक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से अधिक बुद्धिमान है तो इसका कारण है कि उसके मस्तिष्क में तंत्रििकाओं के उपयुक्त बंधनों या योगों की संख्या उस व्यक्ति से अधिक है जो उससे कम बुद्धिमान है।
थॉर्नडाइक ने बुद्धि की चार विशेषताएं बतायी हैं :
- 1.स्तर (Level) : किसी कार्य की कठिनाई
- 2.विस्तार (Range) : कितने प्रकार के कार्यों में व्यक्ति सफलता प्राप्त कर सकता है।
- 3.क्षेत्र (Area) : व्यक्ति कितने कठीन और अधिक समस्याओं का हल खोज सकता है।
- 4.गति (Speed) : कितनी शीघ्रता से कोई व्यक्ति किसी समस्या का हल कर सकता है।
हमारे बुद्धि परीक्षणों (Intelligence Test) में गति पर अधिक जोर दिया जाता है। प्रत्येक बुद्धि परीक्षण में यह चारों विशेषताएं मिलती है।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि थॉर्नडाइक के अनुसार बुद्धि केवल सामान्य योग्यता और विशिष्ट योग्यता – इन दो कारकों का ही योग नहीं है, अपितु यह विशिष्ट उद्दीपकों और उससे संबंधित विशिष्ट अनुक्रियाओं के असंख्य योगों का सामूहिक रुप है।
समूह तत्व सिद्धांत (Group factor Theory)
समूह तत्व सिद्धांत के प्रतिपादक थर्सटन (1935) के अनुसार बुद्धि कुछ ऐसे विशिष्ट मानसिक तत्वों से मिलकर निर्मित है जो समान एवं विशिष्ट मानसिक योग्यताओं के समूह मात्र होते हैं। थर्सटन ने इन्हें ‘प्राथमिक मानसिक योग्यताएं’ (Primary Mental Ability) कहा है। प्राथमिक मानसिक योग्यता समूह सिद्धांत थर्सटन ने प्रस्तुत किया।
थर्सटन के अनुसार मानसिक क्रियाएँ असंख्य हो सकती हैं परंतु वे सभी एक दूसरे से भिन्न एवं विशिष्ट नहीं होती। उनमें से कुछ में अधिक समानता हो सकती है और उन्हें एक वर्ग में रखा जा सकता है। इन समस्त मानसिक क्रियाओं को कुछ विशिष्ट वर्गों में बांटा जा सकता है।
थर्सटन ने ऐसी 8 मानसिक योग्यताओं की खोज की है जो बुद्धि में उपस्थित होती है। निम्न है :
थर्सटन के अनुसार बुद्धि में उपस्थित प्राथमिक मानसिक योग्यताएं :
- 1. शाब्दिक योग्यता Verbal Ability
- 2. अंक योग्यता Numerical Ability
- 3. देशिक योग्यता Spatial Ability
- 4. निगमनात्मक तर्क Deducative Reasoning
- 5. आगमनात्मक तर्क Inducative Reasoning
- 6. शब्द प्रवाह Word Fluency
- 7. स्मृति Memory
- 8. प्रत्यक्ष ज्ञान योग्यता Perceptual Ability
बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धांत (बुद्धि संरचना सिद्धांत)
बुद्धि के त्रिस्तरीय सिद्धांत के प्रतिपादक गिलफॉर्ड है। अत: इसे गिलफॉर्ड का बुद्धि का सिद्धांत भी कहते है। गिलफॉर्ड ने बुद्धि की संरचना मॉडल भी विकसित किया था।
इस सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की मानसिक योग्यताओं को तीन आयामों में वर्गीकृत किया गया है :
- १. संक्रियां (Operations)
- २. विषय वस्तु (Content)
- ३. उत्पाद (Product)
बुद्धि के तीनों आयामों को मानसिक योग्यताओं के समूहों में विभाजित किया गया है। जैसे- संक्रिया के अंतर्गत 5 आयाम हैं – मूल्यांकन, अभिसारी उत्पाद, अपसारी उत्पाद, स्मृति और संज्ञान।
विषय वस्तु के अंतर्गत आकृत्यात्मक, प्रतीकात्मक, अर्थात्मक और व्यवहारात्मक – 4 आयामों को लिया गया है। तथा उत्पादन के अंतर्गत 6 आयाम है- इकाई, श्रेणी, संबंध,पद्धति, रूपांतरण और निहितार्थ। इसे प्रज्ञा गठन का सिद्धांत (Theory of Intelligence Formation)भी कहा जाता है।
नोट : अपसारी चिंतन (Divergent Thinking) : अपसारी चिंतन क्रिया में हम भिन्न-भिन्न दशाओं में सोचते हैं। यह प्रायः सृजनात्मक क्षमता से घनिष्ठ संबंधित है।
अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) : प्रदत सूचनाओं के आधार पर नवीन सूचनाओं का निर्माण ही अभिसारी चिंतन है। दी गई सूचनाएं पूर्ण रूप से अनुक्रिया को निर्धारित करती है।
पदानुक्रमित सिद्धांत (Hierarchical Theory)
बुद्धि के पदानुक्रमित सिद्धांत का प्रतिपादन बर्ट और वरनन ने किया है। इस सिद्धांत में प्रत्येक मानसिक योग्यता को सोपानानुसार क्रम प्रदान किया गया है। इसमें सर्वप्रथम सामान्य मानसिक योग्यता आती है जो दो प्रमुख खंडों में विभाजित है जिनमें से प्रथम खंड में शाब्दिक, आंकिक और शैक्षिक योग्यता आती है।
द्वितीय खंड में व्यवहारिक,अथक् क्रियात्मक, यांत्रिक, देशिक और शारीरिक योग्यता आती है। ये दोनों प्रमुख व महत्वपूर्ण कारक अनेक गौण अथवा लघु कारकों में विभाजित किए जा सकते हैं।
प्रतिदर्श सिद्धांत (Sampling Theory)
बुद्धि के प्रतिदर्श सिद्धांत का प्रतिपादन थॉमसन ने किया। उनके मतानुसार व्यक्ति में अनेक योग्यताएं होती है परंतु जब वह किसी कार्य का संपादन करता है तो उस कार्य के संपादन में सभी योग्यताओं में से थोड़ा-थोड़ा प्रतिदर्श अथवा नमूना लेकर उस कार्य विशेष के लिए एक नवीन योग्यता बना लेता है।
अर्थात प्रत्येक कार्य निश्चित योग्यताओं का प्रतिदर्श होता है। किसी विशेष कार्य को करने में हम मानसिक योग्यताओं के बड़े समूह में से कुछ योग्यताओं को उनके प्रतिनिधित्व के रूप में छांंट लेते हैं और इनका परस्पर सहसंबंध सभी स्वतंत्र कारकों के प्रतिनिधित्व मिश्रण के कारण होता है।
उपर्युक्त प्रमुख सिद्धांतों के अलावा और भी कई सिद्धांत हैं।सिद्धांतों के पृथक-पृथक दृष्टिकोणों के कारण बुद्धि की संरचना संबंधी ज्ञान और भी अधिक जटिल हो गया है और इन सिद्धांतों के जाल में फंसकर यह समझना बड़ा कठिन है कि बुद्धि का वास्तविक रूप क्या है? इस समस्या के कारण आधुनिक मनोवैज्ञानिक बुद्धि के स्थान पर बुद्धिमतापूर्ण व्यवहार शब्द का प्रयोग करने लगे हैं।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
बुद्धि का त्रिआयामी सिद्धांत किसने दिया था?
उत्तर: बुद्धि के त्रिआयामी सिद्धांत के प्रतिपादक गिलफॉर्ड है। अत: इसे गिलफॉर्ड का बुद्धि का सिद्धांत भी कहते है। गिलफॉर्ड ने बुद्धि की संरचना मॉडल भी विकसित किया था।
बुद्धि का पदानुक्रम सिद्धांत किसने दिया था?
उत्तर : बुद्धि के पदानुक्रम सिद्धांत का प्रतिपादन बर्ट और वरनन ने किया है। इस सिद्धांत में प्रत्येक मानसिक योग्यता को सोपानानुसार क्रम प्रदान किया गया है।
बुद्धि का प्रतिदर्श सिद्धांत किसने दिया था?
उत्तर : बुद्धि के प्रतिदर्श सिद्धांत का प्रतिपादन थॉमसन ने किया। उनके मतानुसार व्यक्ति में अनेक योग्यताएं होती है परंतु जब वह किसी कार्य का संपादन करता है तो उस कार्य के संपादन में सभी योग्यताओं में से थोड़ा-थोड़ा प्रतिदर्श अथवा नमूना लेकर उस कार्य विशेष के लिए एक नवीन योग्यता बना लेता है।