इस आर्टिकल में नील पत्र (blue print in hindi) क्या है, नील पत्र पर आधारित प्रश्नों का निर्माण करना, नील पत्र के सोपान, प्रश्न पत्र का संपादन, उत्तर तालिका एवं अंकन योजना का निर्माण, प्रश्रवार विश्लेषण और प्रमाणीकरण आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
निष्पत्ति परीक्षण (Achievement Test) निर्माण के सोपान के अंतर्गत प्रथम सोपान में अभिकल्प तैयार किया जाता है जिसके आधार पर ही नील पत्र का निर्माण होता है और नील पत्र (Blue Print) के निर्माण के आधार पर प्रश्न पत्र का निर्माण और उनका संपादन और प्रमाणीकरण किया जाता है।
ब्ल्यू प्रिंट निर्माण के इस लेख से पहले अभिकल्प (Design) तैयार करने वाला लेख पढ़ना होगा अन्यथा समझने में कठीनाई होगी। अभिकल्प (Design) कैसे तैयार किया जाता है पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें निष्पत्ति या उपलब्धि परीक्षण में अभिकल्प तैयार करना।
नील पत्र (ब्ल्यू प्रिंट) क्या है
नील पत्र (Blue Print) एक त्रिआयामी तालिका (Three Dimensional Table) है जिसमें
- उद्देश्य पर अंक प्रभार
- विषय वस्तु अथवा इकाइयों पर अंक प्रभार, एवं
- विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का अंक प्रभार।
तीनों आयामों का समावेश किया जाता है। तालिका के ऊपर परीक्षा का नाम, विषय एवं प्रश्न पत्र संख्या का उल्लेख किया जाता है। तालिका के उर्ध्वगामी स्तंभ में विषय वस्तु और क्षैतिज स्तम्भ में विभिन्न उद्देश्य एवं प्रत्येक उद्देश्य के स्तंभ को तीन या चार प्रकार के प्रश्न स्तंभों में विभाजित किया जाता है।
प्रत्येक इकाई से संबंधित उद्देश्यवार विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को तालिका में प्रदर्शित किया जाता है। कोष्ठक में प्रश्न संख्या तथा उसके बाहर निर्धारित अंको का उल्लेख किया जाता है। एक प्रश्न द्वारा यथा संभव एक ही उद्देश्य की जांच की जाती है।
नील पत्र के निर्माण में तालिका के अंतिम स्तंभ में इकाईवार अंको के योग मे डिजाइन में निर्धारित अंकों एवं इन अंको के योग में किसी प्रकार की भिन्नता नहीं होती। सुगमता की दृष्टि से निम्न बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
- यदि संभव हो सके तो प्रश्नपत्र में ज्ञान के प्रश्नों में कुछ अंक अन्य उद्देश्यों पर भी वितरित किए जाने अपेक्षित हैं।
- बहुचयनात्मक प्रश्न – ज्ञान की अपेक्षा अवबोध में अधिक बनाए जाने चाहिए। ज्ञानोपयोग और कौशल में भी विषयवस्तु के आधार पर कुछ प्रश्न दिए जा सकते हैं।
- अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न – के द्वारा ज्ञान पक्ष की जांच सुगम है। अतः इस उद्देश्य के प्रश्न रखे जा सकते हैं।
- लघूत्तरात्मक प्रश्न – अवबोध और ज्ञानोपयोग के होने चाहिए।
इस प्रकार प्रश्नों के वितरण को समग्र दृष्टि से विचार करते हुए निर्मित करना चाहिए जिससे प्रश्न-पत्र का संतुलन बना रहे। प्रश्न-पत्र को अंतिम रूप देने के उपरांत उसमें किसी भी प्रकार का परिवर्तन किया जाना अनुचित है।
नील पत्र पर आधारित प्रश्नों का निर्माण करना
नील पत्र की रचना के उपरांत प्रश्न निर्माण का कार्य प्रारंभ होता है। नील पत्र को सामने रखकर निर्धारित इकाई अथवा उप इकाई में से चयन किए गए परीक्षण बिंदु, उद्देश्य, विशिष्टीकरण, काठिन्य स्तर, अनुमानित समय एवं निर्धारित अंक का ध्यान रखते हुए एक-एक बिंदु पर प्रश्र बनाए जाते हैं।
प्रश्न निर्माण के समय निम्नलिखित बातों का ध्यान में रखना आवश्यक है :
- प्रश्न पूर्व निर्धारित उद्देश्यों पर आधारित हो।
- प्रश्न विषयवस्तु से संबंधित हो।
- प्रश्न विशिष्ट उद्देश्य पर आधारित हो।
- प्रश्नों की भाषा सरल हो जिससे संदिग्धता की स्थिति न आ सके।
- प्रश्नों का काठिन्य स्तर निर्धारित योजना के अनुसार हो।
- एक बड़ी इकाई को भिन्न-भिन्न उप इकाइयों में बांटकर प्रश्नों का निर्माण किया जाए जिससे अधिकाधिक प्रकरणों पर प्रश्न किए जा सके।
- प्रत्येक प्रश्न का उत्तर अथवा मुख्य बिंदु / प्रश्न निर्माण के साथ ही अंक योजना सहित लिख देना चाहिए।
- भाषा के प्रश्न पत्र के अलावा प्रश्न का अंग्रेजी अनुवाद भी साथ साथ किया जाना चाहिए।
- अनुवाद में प्रश्न क्रमांक, अर्थ, काठिन्य स्तर आदि बदला नहीं जाना चाहिए।
- एक औसत परीक्षार्थी द्वार निर्धारित समय में वांछित उत्तर दिया जा सके – इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए।
- प्रत्येक प्रश्न पृथक-पृथक कागज पर अधोलिखित सूचनाओं के साथ बनाना चाहिए।
इस प्रकार नील पत्र के आधार पर उद्देश्य एवं विशिष्ट उद्देश्य पर आधारित सभी बातों को ध्यान में रखते हुए कम से कम दो-तीन प्रश्न पत्र बनाने चाहिए। जिससे प्रश्न पत्र को संतुलित रूप देने हेतु उपयुक्त स्तरीय प्रश्न पत्रों का समावेश किया जा सके।
प्रश्न पत्र का संपादन
Editing of the Question Paper : पृथक पृथक कागजों पर लिखे गए प्रश्नों एक स्थान पर रखकर संपादन करना चाहिए। संपादन में निम्नलिखित बातों को ध्यान में रखना चाहिए :
- परीक्षार्थी के लिए यदि कोई निर्देश हो तो वे स्पष्ट होने चाहिए।
- प्रत्येक प्रश्न के लिए निर्धारित अंक प्रश्र की समाप्ति पर ‘पंक्ति के अंत में’ लिखे जाने चाहिए। दाएं और बने स्तंभ का प्रयोग करना अच्छा रहता है।
- वर्तनी की दृष्टि से त्रुटियां न रह जाए।
- अंग्रेजी अनुवाद के प्रश्नों के भाव में किसी प्रकार का अंतर न आए।
- प्रश्नों का क्रम सरल से कठिन की और हो।
- बहुचयनात्मक प्रश्र के अलग-अलग भाग के लिए तालिका बनाकर उत्तर देने का निर्देश दें।
- पहले बहुचयनात्मक व फिर अतिलघूउत्तरात्मक अथवा लघूत्तरात्मक तथा उसके बाद निबंधात्मक प्रश्न दें।
- प्रारंभ में प्रत्येक प्रश्न के क्रमांक एक दूसरे के नीचे सीधी पंक्ति में होने चाहिए इसके लिए बाएं हास्य का प्रयोग करना चाहिये। इसके लिए बाएं हाशिये का प्रयोग करना चाहिए।
उत्तर तालिका एवं अंकन योजना का निर्माण
Preparation of Marking Scheme and Answer Key : प्रश्न पत्र निर्माण का एक आवश्यक चरण उत्तर तालिका एवं अंकन योजना है। इसके माध्यम से विभिन्न परीक्षाओं द्वारा संपन्न किए जाने वाले अंकन कार्य में एकरूपता बनी रहती है और उत्तर पुस्तिकाओं की जांच कार्य में वस्तुनिष्ठता बढ़ जाती है।
समान उत्तर के लिए समान अंक देना अंकन योजना की आधारशिला है। प्रश्न पत्र निर्माता एवं मूल्यांकन करने वाले भिन्न-भिन्न व्यक्ति होते हैं – दोनों में एकरूपता बनी रहे, इसके लिए आवश्यक है कि उत्तर तालिका और अंकन योजना इतनी निश्चित हो की भिन्न-भिन्न परीक्षक होने पर भी वस्तुपरक और उद्देश्यनिष्ठ सही मूल्यांकन हो सके।
परीक्षक को परीक्षार्थी द्वारा लिखे गए उत्तरों के अनुरूप ही योजना अनुसार अंक देने होते हैं अतः इनमें निम्नलिखित सावधानियां अपेक्षित हैं :
- निश्चित उत्तरात्मक प्रश्न का उत्तर निश्चित रूप से एक ही होना चाहिए।
- निबंधात्मक प्रश्नों में मुख्य बिंदु के अनुसार निर्धारित अंक दिए जाने चाहिए।
- अंकन योजना यथासंभव सरल एवं सुगम होनी चाहिए।
- अंकन योजना ऐसी होनी चाहिए कि प्रत्येक परीक्षार्थी को उस अनुपात में अंक अवश्य मिले जितना उसने सही लिखा है।
- अंकन योजना में प्रश्नों के संभावित उत्तरों का स्पष्ट उल्लेख होना चाहिए।
- विवादास्पद प्रश्र न रखे जाएं। प्रश्नों की भाषा सरल व स्पष्ट हो।
- निबंधात्मक प्रश्न में आंतरिक विकल्प दो प्रश्नों से अधिक न हो।
- अंकन योजना में अपेक्षित उत्तर को अंकित किया जाए।
- अंत में अंक योजना में जहां आंकिक प्रश्र हो, वहां सभी संबंधित पदों को विस्तार से दिया जाए।
- संभावित उत्तर को विभिन्न मुख्य बिंदुओं के अनुसार विभाजित करते हुए प्रत्येक बिंदु के लिए अंक निर्धारित किए जाने चाहिए।
प्रश्रवार विश्लेषण (Item Analysis)
प्रश्र पत्र निर्माता की दृष्टि से प्रश्नवार विश्लेषण का अपना महत्व है। प्रश्न निर्माण के समय नील पत्र के अनुसार प्रश्न निर्माण हेतु जिन-जिन बिंदुओं, यथा – प्रकरण, उदेश्य, विशिष्ट उद्देश्य, कठिन स्तर, समय सीमा, प्रश्र प्रकार आदि को लेकर प्रश्न बनाना चाहा था, उसके अनुसार वह बन पाया है या नहीं इसकी जांच हेतु प्रश्न को सम्मुख रखकर सभी बिंदु निश्चित किए जा सकते हैं।
इसमें प्रश्नपत्र में अस्पष्टता से बचा जा सकता है। प्रश्न वार विश्लेषण निम्न बिंदुओं के आधार पर तय किया जाना चाहिए :
- प्रश्नों के द्वारा उद्देश्यों की जांच।
- निर्मित प्रश्न का विशिष्ट उद्देश्य पर आधारित होना।
- प्रश्नों का पाठ्यक्रम के बिंदुओं पर आधारित होना।
- प्रश्नों का उत्तर देने हेतु वांछित समय का निर्धारण।
- सभी प्रश्नों के निर्धारित अंक सही-सही लिखे गए हैं तथा उनका योग प्रश्नपत्र के पूर्णांक के बराबर है।
- प्रश्नों का नील पत्र के अनुसार उपयुक्त होना।
प्रमाणीकरण (Standardisation)
प्रश्न पत्र बनाने के पश्चात उसे कक्षा में छात्रों को हल करने के लिए दिया जाता है। उत्तर पुस्तिकाओं की जांच की जाती है और फिर उस उत्तर तालिका के आधार पर उसका फलांकन किया जाता है।
फलांकन के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि प्रश्नपत्र का कठिनाई स्तर कैसा था, कितने छात्रों ने किन-किन प्रश्नों को हल किया ? इस आधार पर बुद्धिमान, सामान्य और कमजोर छात्रों की जांच स्वत: ही हो जाती है।
इस प्रकार प्रश्नपत्र की रचना के आधार पर शिक्षक को अपने छात्रों के स्तर का पता लग जाता है। इससे अध्यापक को आगे उन्हें पढ़ाने और भविष्य में इसके आधार पर उन्हें प्रश्न पत्र बनाने में भी सहायता मिलती है। साथ ही कठिनाई के स्तर का स्पष्टीकरण भी हो जाता है।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
ब्लूप्रिंट का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर : ब्लू प्रिंट का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि प्रश्न पत्र का ऐसा खाका तैयार करना जिसमें पाठ्यवस्तु या विषय वस्तु का कोई भी अंश छूट न जाए जिससे कि विद्यार्थियों का समग्र आकलन किया जा सके।
प्रश्न पत्र निर्माण की आधारशिला क्या है?
उत्तर : प्रश्न पत्र निर्माण की आधारशिला नील पत्र (ब्ल्यू प्रिंट) होता है।
नील पत्र से आप क्या समझते हैं?
उत्तर : नील पत्र (blue print) एक त्रिआयामी तालिका (Three dimensional table) है जिसमें १. उद्देश्य पर अंक प्रभार, २. विषय वस्तु अथवा इकाइयों पर अंक प्रभार, एवं ३. विभिन्न प्रकार के प्रश्नों का अंक प्रभार – तीनों आयामों का समावेश किया जाता है।