इस आर्टिकल में अमेरिका वर्चस्व क्या है, अमेरिकी वर्चस्व से आप क्या समझते हैं, समकालीन विश्व में अमरीकी वर्चस्व, अमरीकी वर्चस्व में अवरोध, बैंडवैगन रणनीति क्या है आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में वर्चस्व का क्या अर्थ है
सेन्य प्रभुत्व, आर्थिक शक्ति, राजनीति रुतबे और सांस्कृतिक बढ़त के रूप में। अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में ताकत का एक ही केंद्र हो तो उसे वर्चस्व कहा जाता है। Hegemony का अर्थ राज्यों के बीच सैन्य क्षमता की बुनावट और तौल से है। आज पूरे विश्व पर अमेरिकी Hegemony कायम है।
वर्चस्व सैन्य शक्ति के रूप में
अमेरिकी सैन्य शक्ति की विशेषता : सैन्य क्षमता के लिए सैन्य व्यय – अमेरिका से नीचे के कुल 12 ताकतवर देश एक साथ मिलकर अपनी सैन्य क्षमता के लिए जितना खर्च करते हैं उससे कहीं ज्यादा अमेरिका अकेले करता है।
सैन्य गुणात्मक : पेंटागन अपनी बजट का एक बड़ा हिस्सा रक्षा अनुसंधान और विकास के मद में अर्थात प्रौद्योगिकी पर खर्च करता है।
कमजोरी : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य के अनुसार साम्राज्यवादी शक्तियों ने सैन्य बल का प्रयोग जीतने, अपरोध करने, दंड देने और कानून व्यवस्था बहाल करने के लिए किया जाता है । अमेरिकी सैन्य क्षमता जीतने, अपरोध करने। दंड देने में तो उत्कृष्ट है परंतु अधिकृत भूभाग में कानून व्यवस्था बहाल नहीं कर पाया। जैसे इराक आक्रमण।
वर्चस्व ढांचागत ताकत के रूप में
वैश्विक अर्थव्यवस्था के रूप में : वैश्विक अर्थव्यवस्था में अपनी मर्जी चलाने वाला देश जो अपने मतलब की चीजों को बनाए और बरकरार रखें। इस हेतु नियमों को लागू करने की क्षमता और इच्छा तथा वैश्विक व्यवस्था बनाए रखना जरूरी है । विश्वव्यापी सार्वजनिक वस्तुओं को मुहैया कराने की अमेरिकी भूमिका।
नोट : सार्वजनिक वस्तु – जिसका उपयोग एक के करने से दूसरे को उपलब्ध इसी वस्तु में कोई मात्रात्मक कमी ना आए । जैसे – वैश्विक अर्थ में समुद्री व्यापार मार्ग (सी लेन आव कम्युनिकेशन SLOCs), इंटरनेट।
अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में अमेरिका आबाध आवाजाही को सुनिश्चित करता है। इंटरनेट उपग्रहों (Internet Satelites) के वैश्विक तंत्र में अधिकांंश उपग्रह अमेरिका के ही हैं। विश्व अर्थव्यवस्था में अमेरिका की 28% हिस्सेदारी है। यूरोपीय संघ के व्यापार को शामिल करें तो यह विश्व के कुल व्यापार का 15 प्रतिशत है। तुलनात्मक क्रय शक्ति के आधार पर (PPP – Purchasing Power Pareti) अमेरिका के कई तगड़े प्रतिद्वंदी हैं।
अमेरिका की आर्थिक प्रबलता और ढांचागत ताकत यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था की एक खास विशेषता “खास शक्ल में ढालने की ताकत” (ब्रेटन वुड्स प्रणाली (Bretton Woods System – वैश्विक व्यापार के नियम)।
यह प्रणाली द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कायम की गई जो आज भी विश्व अर्थव्यवस्था की बुनियादी संरचना का काम कर रही है। विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, WTO अमेरिकी वर्चस्व का ही परिणाम है। अमेरिका की ढांचागत ताकत का मानक उदाहरण : MBA की डिग्री।
वर्चस्व सांस्कृतिक अर्थ में
अर्थ – सहमति गढने की ताकत है। सामाजिक, राजनीतिक और खासकर विचारधारा के धरातल पर किसी वर्ग की बढ़त या दबदबा। प्रतिद्वंदी या कमजोर देश के व्यवहार बर्ताव को अपने मन वाकिफ बनाने के लिए विचारधारा से जुड़े साधनों का प्रयोग करना।
वर्चस्व का सांस्कृतिक पहलू रजामंदी पर आधारित है। सोवियत संघ पर अमेरिका की सबसे बड़ी जीत सांस्कृतिक प्रभुत्व के दायरे में हासिल की। वहां की Blue Jins (अमेरिकी संस्कृति) आजादी की प्रतीक हुआ करती थी।
सोवियत संघ की एक पूरी पीढ़ी के लिए नीली जिन्स अच्छे जीवन की आकांक्षाओं का प्रतीक बन गई थी। आज अच्छे जीवन और व्यक्तिगत सफलता के बारे में जो अवधारणाएं प्रचलित हैं, वे सब 20वीं शताब्दी के अमेरिका में प्रचलित व्यवहार-बर्ताव के ही प्रतिबिंब है।
अमेरिका की सांस्कृतिक वर्चस्व के उदाहरण – सामाजिक तथा राजनीतिक विचारधारा के आधार पर दबदबा होना, खानपान द्वारा (मैक्डोनल्डीकरण), अच्छे जीवन और व्यक्तिगत सफलता की धारणा, जींस का प्रचलन आदि।
अमेरिकी वर्चस्व के रास्ते में अवरोध
(1) स्वयं अमेरिका की संस्थागत/ढांचागत बुनावट शक्ति के रास्ते में अवरोध पैदा करती है। जैसे – शक्ति पृथक्करण का सिद्धांत (Separation of Power)।
(2) राजनीतिक संस्कृति (Political Cultural) : अमेरिकी समाज की प्रकृति का उन्मुक्त होना, जनसंचार के माध्यम से जनमत को एक ख़ास दिशा में मोड़ देना, विदेशी सैन्य अभियानों पर अंकुश रखना।
(3) NATO : यह सबसे महत्वपूर्ण है। यह लोकतांत्रिक देशों का अमेरिकी हित में संगठन है। यहां बाजारमूलक अर्थव्यवस्था चलती है, अतः यह संभावना बनती है कि ये देश उसके वर्चस्व पर कुछ अंकुश लगा सके।
Note - वर्तमान में नाटो (NATO) सैन्य संगठन में 32 सदस्य देश है। 7 मार्च 2024 को स्वीडन 32 वां सदस्य देश बना है।
अमेरिकी वर्चस्व से कैसे निपटें
(1) बैंडवैगन रणनीति : “जैसी बहे बयार पीठ तैसी कीजै” ताकतवर देश के विरुद्ध जाने की बजाय उसके वर्चस्व तंत्र में रहते हुए अवसरों का लाभ लेना अर्थात वर्चस्व जनित अवसरों का लाभ उठाने की रणनीति ही बैंडवैगन रणनीति है।
(2) वर्चस्व से अपने को छुपा लेना/दूर रहना : अमेरिका के किसी बेवजह क्रोध की चपेट में आने से उससे दूर रहे। चीन, रूस, यूरोपीय संघ ने यह नीति अपना रखी है। लेकिन बड़े या मंझलें दर्जे के ताकतवर देशों की बजाए छोटे देशों के लिए यह संगत और आकर्षक रणनीति होगी।
(3) राज्येतर संस्थाएं : स्वयंसेवी संगठन, सामाजिक आंदोलन और जनमत, मीडिया, बुद्धिजीवी, कलाकार और लेखक आदि आगे आएंगे और विश्वव्यापी नेटवर्क जिसमें अमेरिकी नागरिक भी शामिल होंगे और प्रतिरोध के लिए आगे आएंगे।
(4) जनसंख्या, संसाधनों की प्रचुरता तथा प्रौद्योगिकी क्षमता के आधार पर विकसित हो रही भारत, चीन और रूस अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे सकते हैं, लेकिन इन देशों में आपसी भेद हैं।
(5) CELAC : यह दक्षिणी अमेरिका का क्षैत्रीय समूह है जो अमेरिकी वर्चस्व को चुनौती दे रहा है।
(6) रूस द्वारा शंघाई सहयोग संगठन (SCO) एवं कैस्पियन सागरीय राष्ट्रों का मंच भी चुनौती दे रहा है।
(7) राष्ट्रपति पुतिन के नेतृत्व में शक्तिशाली राष्ट्र के रूप में रूस का पुनरोदय।
(8) विश्व राजनीति का बहुधुर्वीकरण और बहु सांस्कृतिक बनना। आज विश्व राजनीति सांस्कृतिक आधार पर पुनर्गठीत हो रही है। हम सभ्यताओं के टकराव की ओर बढ़ रहे हैं, जो अमेरिका के वर्चस्व को चुनौती दे रहा है।
विश्व पर अमेरिकी वर्चस्व के उदाहरण
1991 में सोवियत संघ के विघटन तथा शीत युद्ध की समाप्ति (End of Cold War) के बाद अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभरा। अमेरिकी नेतृत्व में एक ध्रुवीय विश्व की भी स्थापना हुई इसी को अमेरिकी वर्चस्व या अमेरिकी प्रभुत्व की संज्ञा दी जाती है। इस समय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति का केवल एक केंद्र अमेरिका था। एक ध्रुवीय विश्व अमेरिका के प्रभुत्व का परिचायक है। इस प्रकार विश्व राजनीति में अमेरिकन प्रभुत्व की शुरुआत 1991 से हुई।
नयी विश्व व्यवस्था (New World Order)
अगस्त 1990 में इराक का कुवैत पर आक्रमण तथा UNO ने कुवैत को मुक्त कराने हेतु बल प्रयोग की अनुमति दी। जॉर्ज बुश ने इसे नई विश्व व्यवस्था (New World Order) की संज्ञा दी।
34 देशों की सेना (अमेरिका के 75% सैनिक) ने इराक के विरुद्ध मोर्चा खोल दिया। अमेरिका राष्ट्रपति जोर्ज बुश ने इसे प्रथम खाड़ी युद्ध (Frist Gulf War) कहा जाता है। UNO के इस सैन्य अभियान को ऑपरेशन डेजर्ट स्ट्रोम (Opration Desert Storme) कहा जाता है जो एक हद तक अमेरिकी सैन्य अभियान ही था।
इराक के राष्ट्रपति ने ऐलान किया की यह 100 जगों की एक जंग साबित होगा। अमेरिका ने इस युद्ध में स्मार्ट बमों का प्रयोग किया और पर्यवेक्षकों ने कंप्यूटर युद्ध (Computer Game) की संज्ञा दी। टीवी पर व्यापक कवरेज और वीडियो गेम वार (video game war) में तब्दील हो गया। युद्ध से जाहिर हुआ कि अमेरिकी प्रौद्योगिकी (American Technology) में सबसे आगे निकल गया और सैन्य क्षमता के मामले में बाकी देश बहुत पीछे रह गए है।
अमेरिका ने इस जंग में जितनी रकम खर्च की उससे कहीं ज्यादा रकम तो जर्मनी, जापान और सऊदी अरब जैसे देशों से ही मिल गई। पर्यवेक्षकों ने हाईवे ऑफ़ डेथ जैसी कार्रवाई को युद्ध अपराध की संज्ञा दी और जिनेवा समझौता का उल्लंघन माना।
क्लिंटन का दौर (1992 से 2000)
क्लिंटन ने विदेश नीति सैन्य शक्ति और सुरक्षा जैसी कठोर राजनीति की जगह लोकतंत्र को बढ़ावा, जलवायु परिवर्तन तथा विश्व व्यापार जैसे नरम मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। युगोस्लाविया मे NATO ने 1999 मे सैन्य कार्यवाही की 1998 में नैरोबी और दारे ए सलाम (तंजानिया) के अमेरिकी दूतावास पर हमले का जिम्मेवार ठहराकर सैन्य कार्यवाही ऑपरेशन इंनफाइनाइट रीच अभियान चलाया।
9/11 और आंतकवाद के विरुद्ध विश्वव्यापी युद्ध
सितंबर 2001मे वर्ल्ड ट्रेड सेंटर और पेंटागन पर आंतकवादियों द्वारा चार अमेरिकी व्यवसायिक विमानों का अपहरण कर हमला किया। इस हमले को 9/11 कहा जाता है। अमेरिकियों ने इस घटना की तुलना 1814 की वाशिंगटन डीसी आगजनी और 1941 में जापान द्वारा पर्लहार्बर पर हमले से कि।
यह अमेरिका में अब तक का सबसे बड़ा हमला था। अब क्लिंटन की जगह जॉर्ज बुश राष्ट्रपति थे और कठोर रवैया अपनाया गया। ऑपरेशन एंडयूरिंग फ्रीडम (Operation Enduring Freedom) चलाया गया। मुख्य निशाना अलकायदा और तालिबान शासन था।
अफगानिस्तान में तालिबान का सफाया (2001) महज आंतकवाद के सफाये की कार्रवाई नहीं थी; बल्कि असली मंशा थी अफगानिस्तान में पिछलग्गू सरकार का गठन।
इराक पर आक्रमण
इसे द्वितीय खाड़ी युद्ध भी कहा जाता है। इस समय अमेरिका के राष्ट्रपति जार्ज बुश थे। 19 मार्च 2003 को अमेरिका ने ऑपरेशन इराकी फ्रीडम (Operation Iraqi Freedom) कूट नाम से इराक पर हमला किया।
इसके पिछे अमेरिका का असली मकसद या उद्देश्य इराक के तेल भंडार पर नियंत्रण और मनपसंद सरकार कायम करना था। ऑपरेशन सामूहिक संहार के हथियार को रोकने के लिए चलाया था, यह सिर्फ ऊपरी दिखावा था। UNO ने हमले की अनुमति नहीं दी, परंतु कहा सामूहिक संहार के हथियार (विपंस आँव मास डिस्ट्रक्शन) बनाने से रोकने के लिए इराक पर हमला किया जा सकता है।
अमेरिकी अगुवाई कोअलिशन आव वीलिंग्स (आकांक्षियों का महाजोट) मे 40 से ज्यादा देश शामिल हुए। सद्दाम हुसैन सरकार का अंत, अमेरिका के खिलाफ पूर्णव्यापी विद्रोह भड़का, सैनिक व आम जनता मारे गए।
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अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
अमेरिकी वर्चस्व में मुख्य अवरोध क्या है?
अमेरिकी वर्चस्व के रास्ते में मुख्य अवरोध स्वयं अमेरिका की संस्थागत/ढांचागत बुनावट, राजनीतिक संस्कृति एवं नाटो (NATO) है।
अमेरिका के वर्चस्व की शुरुआत कब हुई थी?
1991 में सोवियत संघ के विघटन तथा शीत युद्ध की समाप्ति के बाद अमेरिका विश्व की सबसे बड़ी शक्ति बनकर उभरा। अमेरिकी नेतृत्व में एक ध्रुवीय विश्व की भी स्थापना हुई इसी को अमेरिकी वर्चस्व या अमेरिकी प्रभुत्व की संज्ञा दी जाती है। इस समय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में शक्ति का केवल एक केंद्र अमेरिका था। एक ध्रुवीय विश्व अमेरिका के प्रभुत्व का परिचायक है। इस प्रकार विश्व राजनीति में अमेरिकन प्रभुत्व की शुरुआत 1991 से हुई।
1991 में नई विश्व व्यवस्था की शुरुआत कैसे हुई?
अगस्त 1990 में इराक का कुवैत पर आक्रमण तथा UNO ने कुवैत को मुक्त कराने हेतु बल प्रयोग की अनुमति दी। जॉर्ज बुश ने इसे नई विश्व व्यवस्था (New World Order) की संज्ञा दी।
ढांचागत आर्थिक क्षेत्र में अमेरिकी वर्चस्व को स्पष्ट कीजिए?
अमेरिका की आर्थिक प्रबलता और ढांचागत ताकत यानी वैश्विक अर्थव्यवस्था की एक खास विशेषता “खास शक्ल में ढालने की ताकत” (ब्रेटन वुड्स प्रणाली (Bretton woods system – वैश्विक व्यापार के नियम)। यह प्रणाली द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कायम की गई जो आज भी विश्व अर्थव्यवस्था की बुनियादी संरचना का काम कर रही है। विश्व बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष, WTO अमेरिकी वर्चस्व का ही परिणाम है। अमेरिका की ढांचागत ताकत का मानक उदाहरण MBA की डिग्री है।