अधिगामक की अनेक विशेषताओं में से एक विशेषता ज्ञानात्मक शैली है। ज्ञानात्मक तत्व अधिगम को प्रभावित करते हैं। यहां ज्ञानात्मक तत्वों से आशय स्मृति एवं विस्मृति, चिंतन, तर्क तथा मानसिक विकास से है। अधिगामक में ये विशेषताएं समान रूप से विकसित नहीं होने से सीखने में अंतर पाया जाता है। अतः यहां ज्ञानात्मक तत्वों का अध्ययन करना बहुत महत्वपूर्ण है।
• स्मृति क्या है (What is Memory)
स्मृति का शिक्षा में महत्वपूर्ण स्थान है। मनोवैज्ञानिकों का मत है कि स्मृति कोई मानसिक शक्ति नहीं अपितु एक मानसिक क्रिया है। स्मृति में मानव द्वारा सीखे गए अनुभव संग्रहित होते रहते हैं। आवश्यकता होने पर इन अनुभवों का स्मरण करके मानव अनेक समस्याओं का समाधान करके समायोजन करने का प्रयास करता है।
मनुष्य के मन को चेतन मन और अचेतन मन में बांटा गया है। जब हम किसी वस्तु को देखते हैं या कोई नवीन अनुभव सीखते हैं तो यह ज्ञानवाहक तंतुओं के द्वारा मस्तिष्क के ज्ञान केंद्र में पहुंचता है, जहां उसकी प्रतिमा की छाया अंकित हो जाती है। यही चेतन मन का क्षेत्र है। कुछ समय के बाद यह अनुभव उसके अचेतन मन में संग्रहित होते रहते हैं। आवश्यकता पड़ने पर अचेतन मन पर अंकित अनुभवों को चेतन मन पर लाने की प्रक्रिया ही स्मृति कहलाती है।
स्मृति को कुछ विद्वानों ने निम्न प्रकार परिभाषित किया है –
स्टाउट, “स्मृति एक आदर्श पुनर्स्मरण है जिसमें की पूर्व अनुभवों की वस्तुएं उसी क्रम एवं ढंग से जागृत होते हैं जैसे कि वह पहले उपस्थित हुए थे।
वुडवर्थ, “पहले सिखी गई बातों को याद रखना ही स्मृति है।”
रायबर्न, “जिस शक्ति द्वारा हम अपने अनुभवों को संचित करते हैं तथा कालांतर में उनको पुनः चेतना के क्षेत्र में लाते हैं, उसी को स्मृति कहते हैं।”
उपरोक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि स्मृति का अस्तित्व अधिगम से पैदा होता है। अधिगम को प्रभावित करने वाले तत्व ही स्मृति को संगठित करते हैं।
• स्मृति के सोपान (Factors or Steps of Memory) :
स्मृति के चार सोपान होते हैं। जो निम्न प्रकार हैं :
1. अधिगम (Learning) : स्मृति के लिए सीखने की आवश्यकता होती है। बिना सिखे व्यक्ति किसी अनुभव का स्मरण नहीं कर सकता। बार-बार अभ्यास करके हम उस अनुभव को अचेतन मन पर अंकित कर देते हैं। अच्छी स्मृति के लिए अधिगम के नियमों का पालन करना आवश्यक है।
2. धारण (Retention) : धारण स्मृति का दूसरा महत्वपूर्ण चरण है। जितने समय तक सीखे गए अनुभव अचेतन मन पर संचित रहते हैं, उसी को धारण कहते हैं। धारण शक्ति में किसी प्रकार का परिवर्तन संभव नहीं है। फिर भी निम्न तत्व धारण को प्रभावित करते हैं।
1. रुचि और ध्यान
2. सीखने की विधि
3. सिखी सामग्री की मात्रा
4. सीखने का अभ्यास
3. प्रत्यास्मरण (Recall) : सिखे हुए अनुभवों को अचेतन से चेतन मन में लाना ही प्रत्यास्मरण कहलाता है। प्रत्यास्मरण धारण शक्ति पर निर्भर रहता है। प्रत्यास्मरण को प्रभावित करने वाली बातें मानसिक और शारीरिक, स्वास्थ्य, संकेत, प्रयत्न तथा सुखद या दुखद आदि है।
4. अभिज्ञान या पहचान (Recognition) : अभिज्ञान एक मानसिक किया है जिसमें व्यक्ति किसी पूर्व अनुभव की हुई वस्तु का पुनर्स्मरण कर उसे अच्छी प्रकार पहचान लेता है। अभिज्ञान में साहचर्य का नियम अधिक प्रभावी होता है।
• स्मृति के प्रकार (Types of Memory) :
मनोवैज्ञानिकों ने स्मृति के अनेक प्रकार बताए हैं। इनमें कुछ इस प्रकार हैं –
1. तात्कालिक स्मृति – यह लघु अवधि स्मृति है। इसमें सीखे गये अनुभव को लंबी अवधि तक धारण नहीं किया जा सकता है।
2. स्थायी स्मृति – जब व्यक्ति सीखे गये अनुभव को दीर्घ अवधि तक धारण रख सकता है तो इसे स्थायी स्मृति कहते हैं।
3. यांत्रिक स्मृति – जब सीख गये अनुभवों का बिना प्रयास के स्वाभाविक रूप में प्रत्यास्मरण होता है तो यह यांत्रिक स्मृति कहलाती है।
4. तार्किक स्मृति – जब किसी अनुभव को तर्क – वितर्क करके याद किया जाता है तो यह तार्किक स्मृति कहलाती है।
5. सक्रिय स्मृति – प्रयास करके गत अनुभवों को याद करना सक्रिय स्मृति कहलाती है। परीक्षा भवन में छात्र द्वारा विषय वस्तु को याद करना सक्रिय समृति का उदाहरण है।
6. निष्क्रिय स्मृति – बिना प्रयास के जब गत अनुभवों का प्रत्यास्मरण होता है तो इसे निष्क्रिय स्मृति कहते हैं।
• स्मृति की विधियां (Methods of Memory) :
स्मरण करने की अनेक विधियां हैं जिनका चयन करके शिक्षक अधिगम को प्रभावी बना सकते हैं।
1. पूर्ण विधि – इस विधि में पाठ को प्रारंभ से अंत तक पढ़कर स्मरण किया जाता है।
2. आंशिक विधि – इसमें पाठ को टुकड़ों में बांटकर याद किया जाता है।
3. निरंतर विधि – इसके अनुसार सीखी जाने वाली विषय वस्तु को प्रतिदिन दोहराया जाता है।
4. सान्तर विधि – याद किए पाठ को थोड़े अंतराल के बाद याद करना सान्तर विधि कहलाती है।
5. साहचर्य विधि – जब सीखी जाने वाली बातों को महत्वपूर्ण घटनाओं से जोड़कर सीखा जाता है तो उसे साहचर्य विधि कहते हैं।
6. कंठस्थ विधि – बिना अवबोध के पाठ को कंठस्थ कर लेना कंठस्थ विधि कहलाती है।
• स्मृति प्रशिक्षण (Memory Training) :
वैसे स्मृति में वृद्धि करना संभव नहीं है किन्तु कुछ उपाय स्मृति की उन्नति में सहायक होते हैं।
1. उद्देश्यों का स्पष्टीकरण – पाठ के उद्देश्य स्पष्ट होने पर बालक उस पाठ को याद कर लेता है। शिक्षक को उद्देश्य स्पष्ट करने चाहिए।
2. सार्थक पाठ्य सामग्री – सार्थक सामग्री प्रस्तुत करने पर स्मरण सरल तथा स्थाई होता है।
3. अर्थ का स्पष्टीकरण – याद किए जाने वाले पाठ का भावार्थ बालकों को समझने की पाठ्य वस्तु बालकों को शीघ्र याद हो जाती है।
4. संबंध स्थापित करना – बालकों के पूर्व अनुभवों तथा अन्य विषयों के साथ संबंध स्थापित करते हुए पढ़ाने पर स्मरण प्रखर हो जाता है।
5. दोहराना – पढ़ाई या सिखायी जाने वाली बात का छात्रों को बार-बार अभ्यास करवाने से छात्रों की स्मृति में उन्नति की जा सकती है।
6. विश्राम – थकान स्मरण में विध्न पैदा करती है। छात्रों को विश्राम देना चाहिए।
• विस्मृति (Forgetting) :
स्मृति के साथ विस्मृति भी जुड़ी हुई है। विस्मृति से आशय गत अनुभवों को भूल जाना है। जब अचेतन मन में अंकित गत अनुभवों को चेतन मन में लाने में हम असमर्थ रहते हैं तो प्रत्यास्मरण नहीं कर पाते हैं। इस स्थिति को विस्मृति कहते हैं।
जेम्स ड्रेवर ने लिखा है, “किसी समय प्रयत्नों के द्वारा पूर्व अनुभव का प्रत्यास्मरण करने में असफलता ही विस्मृति है।”
• विस्मृति के कारण
विस्मृति के कारणों को दो भागों में बांटा जा सकता है। सैद्धांतिक कारण और सामान्य कारण।
1. सैद्धांतिक कारण
* अनाभ्यास का सिद्धांत – यदि सिखे गये अनुभवों का अभ्यास न करें या उपयोग में न लायें तो धीरे-धीरे यह बातें विस्मृत हो जाती है।
* बाधा का सिद्धांत – एक पाठ याद करने के बाद दूसरा पाठ याद करने पर नवीन पाठ पुराने पाठ के प्रत्यास्मरण में बाधा पैदा करता है। इससे स्मृति धुंधली हो जाती है।
* दमन का सिद्धांत – व्यक्ति अपने जीवन की अप्रिय अनुभूतियों का अचेतन मन में दमन कर लेता है। दमन के कारण व्यक्ति उनका प्रत्यास्मरण नहीं कर पाता है।
* क्षय सिद्धांत – याद किए गए अनुभवों के मस्तिष्क पर बनने वाले स्मृति चिन्ह समय बीतने के साथ-साथ क्षीण होने लगते हैं।
2. सामान्य कारण –
विस्मृति के कुछ सामान्य करण निम्नलिखित हैं –
* समय का प्रभाव
* विषय का स्वरूप
* सीखने की मात्रा
* सीखने की दोषपूर्ण विधि
* मानसिक आघात
* मादक द्रव्यों का उपयोग
* संवेग
* मानसिक द्वंद्व
* सीखने वाले की आयु एवं बुद्धि।
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1. अधिगम स्थानांतरण के प्रकार एवं कारक