Search Suggest

अभिवृद्धि एवं विकास : अर्थ, परिभाषा और अंतर

इस आर्टिकल में अभिवृद्धि एवं का अर्थ, अभिवृद्धि एवं विकास की परिभाषा, अभिवृद्धि और विकास में अंतर आदि टॉपिक पर विस्तार से चर्चा की गई है।

अभिवृद्धि एवं विकास का अर्थ

प्रायः अभिवृद्धि और विकास को समान रूप में प्रयुक्त किया जाता है किंतु मनोविज्ञान में वृद्धि और विकास की अवधारणा में अंतर है। यद्यपि दोनों परस्पर घनिष्ठतया संबंधित हैं।

बालक में अभिवृद्धि एवं विकास की प्रक्रिया उसके जन्म से पूर्व अर्थात गर्भाधान में ही प्रारंभ हो जाती है। जीवन का आरंभ गर्भाधान से होता है। मनुष्य के जीवन के विकास में यह प्रमुख अवस्था होती है जिसकी अवधि बहुत थोड़े समय की होती है अर्थात गर्भाधान से लेकर जन्म के समय तक प्राय: 9 माह की अवधि होती है।

इन दो कारणों से इस अवस्था का महत्व अधिक है – (1) व्यक्ति अंत में जाकर जो कुछ बनेगा वह बहुत कुछ इस अवस्था में निर्धारित हो जाता है और (2) यह कि इस समय जितना वृद्धि और विकास होता है वह व्यक्ति के जीवन की किसी भी अन्य समय की अपेक्षा अधिक होता है।

वृद्धि और विकास की इस अवधि को ‘जन्म पूर्वकाल’ (Prenatal Period) कहा जाता है और जन्म के बाद की स्थिति को जन्मोत्तर काल’ (late infancy) कहा जाता है।

इस प्रकार गर्भावस्था में प्रारंभ हुई वृद्धि और विकास की प्रक्रिया जन्म उत्तर काल में चलती रहती है जहां पर्यावरण से भी उसका संपर्क होता है।

इस आर्टिकल में आगे अभिवृद्धि और विकास के अर्थ एवं परिभाषा की अलग-अलग चर्चा की गई है जिससे वृद्धि और विकास के बीच अंतर (Difference Between Growth and Development) क्या है, यह भी स्पष्ट हो जाएगा।

अभिवृद्धि की परिभाषा

सोरेन्सन के अनुसार, “शारीरिक अभिवृद्धि का आशय अपेक्षाकृत आकार व भार में बड़ा होना है तथा वह अभिवृद्धि व परिवर्तन का सूचक है जो धनात्मक व वृद्धिपरक होते हैं। शारीरिक अभिवृद्धि इंच, पौण्ड या अन्य इकाइयों में परिमाणात्मक रूप से पाई जाती है।”

क्रोगमैन के अनुसार, “बालक की अभिवृद्धि जैविकीय नियमों के अनुसार होती है।”

इन उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि –

अभिवृद्धि की विशेषताएं

  • अभिवृद्धि परिमाणात्मक रूप में मापी जाती है। यह मात्रात्मक परिवर्तन है।
  • अभिवृद्धि व्यवहार को प्रभावित करती है और प्रभावित होती है।
  • यह वास्तव में शारीरिक अंगों की होती है अर्थात् शारीरिक अंगों की लंबाई, चौड़ाई, भार आदि का बढ़ना तथा शरीर के आंतरिक अंगों और मस्तिष्क के आकार एवं उनकी संरचना में वृद्धि।
  • अभिवृद्धि का प्रत्यक्ष रुप से मापन किया जा सकता है, जैसे लंबाई को इंचों में, भार को पौंड में आदि।

विकास का अर्थ एवं परिभाषा

विकास, अभिवृद्धि की प्रक्रिया पर निर्भर करता है अर्थात् अंगों के कार्य करने की विधि अथवा कार्य कुशलता ही विकास है। विकास गुणात्मक होता है।

हरलॉक के अनुसार, “विकास अपेक्षाकृत अभिवृद्धि होने तक सीमित नहीं होता अपितु वह ऐसे प्रगतिशील परिवर्तनों में निहित है जो परिपक्वता के लक्ष्य की और व्यवस्थित रुप से उन्मुख होते हैं।”

जेम्स ड्रेवर, “विकास कि वह दशा जो प्रगतिशील परिवर्तन के रूप में किसी गंतव्य दिशा की ओर निर्दिष्ट हो, प्राणी में सतत रूप से व्यक्त होती है, जैसे – किसी भी जाति के भ्रूण का प्रौढ़ावस्था की और प्रगतिशील परिवर्तन।

लिन्ग्रेन के अनुसार, “वृद्धि और विकास अपने स्वरूप में होने वाले परिवर्तनों के माध्यम से नहीं, बल्कि आचरण में होने वाले परिवर्तनों द्वारा अभिव्यक्त  होते हैं।”

विकास इन परिभाषाओं से निष्कर्ष निकलता है कि –

बालक के विकास की विशेषताएं

  • विकास में परिमाणात्मक की तुलना में गुणात्मक परिवर्तनों पर बल दिया जाता है।
  • कार्य क्षमता की वृद्धि ही विकास है।
  • विकास पर वंशानुक्रम और वातावरण दोनों का प्रभाव पड़ता है।
  • अभिवृद्धि की अपेक्षा विकास व्यापक संप्रत्यय है।
  • विकास गर्भाधान से लेकर मृत्यु पर्यंत चलने वाली प्रक्रिया है।
  • प्रत्येक अवस्था में विकास की गति भिन्न भिन्न होती है।
  • विकास के अंतर्गत अंगों की शारीरिक वृद्धि के फलस्वरुप उनके कार्य करने के ढंग, कार्यक्षमता, दूसरे अंगों के साथ मिल कर कार्य करने आदि में परिवर्तन आते हैं।
  • विकास का मापन लंबाई एवं भार के समान नहीं किया जा सकता, बल्कि इसका मापन अप्रत्यक्ष रूप से व्यवहार के माध्यम से किया जाता है।

अभिवृद्धि का अर्थ क्या है

अभिवृद्धि परिमाणात्मक होती है अर्थात् वृद्धि में हुए परिवर्तनों को सीधे मापा जा सकता है क्योंकि शरीर और उसके अंगों के भार तथा आकार में वृद्धि के लिए इस शब्द का प्रयोग किया जाता है।

अभिवृद्धि मूलतः शारीरिक परिवर्तन है। दूसरे शब्दों में कहें तो वृद्धि का अर्थ शारीरिक एवं व्यवहारिक परिवर्तनों से है। अभिवृद्धि एक निश्चित आयु व समय के बाद रुक जाती है। इस ग्रुप में अभिवृद्धि का स्वरूप बाह्य होता है।

अभिवृद्धि का संबंध शारीरिक तथा मानसिक परिपक्वता से है। यह किसी विशेष पक्ष या आंशिक रूप को ही व्यक्त करती है। अभिवृद्धि संकुचित होती है। परिपक्वता अभिवृद्धि की चरम सीमा है जिसके आगे वह प्रगति नहीं कर सकती अर्थात् अभिवृद्धि और परिपक्वता सीमित संप्रत्यय है।

अभिवृद्धि में व्यक्तिगत विभेद होते हैं अर्थात प्रत्येक बालक की अभिवृद्धि समान नहीं होती है। अभिवृद्धि का कोई निश्चित क्रम नहीं होता है और ना ही इसकी कोई निश्चित दिशा होती है।

विकास का अर्थ

विकास गुणात्मक होता है अर्थात् इसका सीधा मापन संभव नहीं है। यह शरीर के अंगों में होने वाले परिवर्तनों को विशेष रूप से व्यक्त करता है या यह शारीरिक अवयवों की कार्य कुशलता की ओर संकेत करता है।

विकास का अभिप्राय सभी अन्य पक्षों की संबंधता से है। इसमें शारीरिक, मानसिक, सामाजिक व संवेगात्मक पक्ष समाहित है।

विकास जीवनपर्यंत चलता रहता है और यह आंतरिक होता है। विकास प्राणी में होने वाले परिवर्तनों का योग है। यह वातावरण से भी संबंधित होता है।

विकास का अर्थ व्यापक है। इसमें अभिवृद्धि निहित होती है। अभिवृद्धि विकास के अवयवों में से एक है। विकास के पदों में समानता पाई जाती है, किंतु इसकी दर, सीमा तथा भिन्नता में अंतर होता है।

विकास में एक निश्चित क्रम रहता है तथा विकास की दिशा भी निश्चित होती है।

अभिवृद्धि और विकास में अंतर स्पष्ट कीजिए

अभिवृद्धिविकास
परिमाणात्मकगुणात्मक
स्वरूप बाह्य होता हैस्वरूप आंतरिक होता है
सीमित संप्रत्ययव्यापक संप्रत्यय
अनिश्चित क्रम एवं दिशानिश्चित क्रम एवं दिशा
मापन संभव हैमापन संभव नहीं
शारीरिक विकासशारीरिक, मानसिक और सामाजिक विकास
निश्चित समय सीमाजीवनपर्यंत
शरीर और उसके अंगों के भार तथा आकार में वृद्धिशारीरिक अवयवों की कार्य कुशलता
मापन प्रत्यक्ष रूप से लंबाई एवं भार के माध्यम सेमापन अप्रत्यक्ष रूप से व्यवहार के माध्यम से

विकास के विषय में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य

(1) बाल्यावस्था जीवन की आधारभूत अवस्था है –

जीवन के प्रारंभ के वर्षों में अभिवृत्तियाँ, आदतें और व्यवहार के प्रकार पक्के हो जाते हैं। व्यक्ति बड़ा होकर जीवन की परिस्थितियों के साथ कितनी सफलता से समायोजन कर सकेगा यह बहुत कुछ जीवन में प्रारंभिक वर्षों के व्यवहार आदि पर ही निर्भर रहता है । किशोरों के अध्ययन से यह स्पष्ट हो गया है कि आदमी की कार्य पद्धति कि नींव पहले 10 वर्षों के अंदर पड़ जाती है और उसका अधिकांश ढांचा भी तैयार हो जाता है।

(2) विकास परिपाक और सीखने से होता है –

परिपक्वता का अर्थ व्यक्ति के अंदर सहज रुप से छिपे लक्षणों का प्रकट होना है। सीखने का अर्थ व्यक्ति के अभ्यास और प्रयत्न करने से है। अर्थात् परिपाक और सीखना, विकास के परस्पर संबंधित कारण है।

(3) विकास एक निश्चित और पूर्वानुमानगम्य क्रम के अनुसार होता है –

जैसे जन्म के बाद जीवन में विकास क्रम है वैसा ही जन्म के पूर्व – विकास निश्चित क्रम मे होता है अर्थात् जन्म से पूर्व जीवन में विकास का अनुक्रम सिर से पैरों की ओर होता है वैसे ही जन्म के बाद में भी सिर के अवयव, पैर के हिस्से की तुलना में जल्दी विकास करते हैं।

(4) व्यवहार के विकास का क्रम सभी व्यक्तियों में समान होता है –

जैसे लिखना, रेखाचित्र बनाना, हंसना, मुस्कुराना आदि में, सामाजिक व्यवहार में, पढ़ने में तथा अंकगणित आदि में सभी बच्चों में समान क्रम पाया जाता है। मानवीय विकास का क्रम बिना टूटे लगातार चलता है। विकास की गति कभी कम कभी तेज हो सकती है, किंतु जो कुछ विकास की एक अवस्था में हो चुका होता है वह विद्यमान रहता है और आगे आने वाली अवस्थाओं को भी प्रभावित करता है।

(5) विकास की गति व्यक्ति व्यक्ति में भिन्न पाई जाती है –

तीन प्रकार की गतियां स्पष्ट दिखाई देती हैं – (१) निरंतर प्रगति (२) बीच-बीच में विराम देती हुई सामान्य प्रगति और (३) बीच-बीच में प्रतिगामी प्रवृति वाली सामान्य प्रगति।

दूसरे प्रकार की गति सर्वाधिक व्यापक पाई गई है। विकास की गतियों में अंतर होने के कारण एक ही उम्र के सभी बालक शारीरिक एवं मानसिक विकास के स्तर तक नहीं पहुंच पाते है।

Also Read :

अभिवृद्धि और विकास के सिद्धांत

अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)

  1. हरलॉक के अनुसार विकास की परिभाषा क्या है?

    उत्तर : हरलॉक के अनुसार, “विकास अपेक्षाकृत अभिवृद्धि होने तक सीमित नहीं होता अपितु वह ऐसे प्रगतिशील परिवर्तनों में निहित है जो परिपक्वता के लक्ष्य की और व्यवस्थित रुप से उन्मुख होते हैं।”

  2. अभिवृद्धि का अर्थ क्या है?

    उत्तर : शारीरिक अंगों की लंबाई, चौड़ाई, भार आदि का बढ़ना तथा शरीर के आंतरिक अंगों और मस्तिष्क के आकार एवं उनकी संरचना में वृद्धि को अभिवृद्धि कहा जाता है। अभिवृद्धि का प्रत्यक्ष रुप से मापन किया जा सकता है, जैसे लंबाई को इंचों में, भार को पौंड में आदि।

  3. क्या कारण है कि एक ही उम्र के सभी बालक शारीरिक एवं मानसिक विकास के स्तर तक नहीं पहुंच पाते है।

    उत्तर : विकास की गतियों में अंतर होने के कारण एक ही उम्र के सभी बालक शारीरिक एवं मानसिक विकास के स्तर तक नहीं पहुंच पाते है।

My name is Mahendra Kumar and I do teaching work. I am interested in studying and teaching competitive exams. My qualification is B.A., B.Ed., M.A. (Pol.Sc.), M.A. (Hindi).

Post a Comment