इस आर्टिकल में जॉन लॉक का सामाजिक समझौता सिद्धांत क्या है, सामाजिक समझौता सिद्धांत का विकास, मानव स्वभाव, प्राकृतिक अवस्था, नवीन राज्य का रूप, सामाजिक समझौता सिद्धांत का परिणाम, जॉन लॉक के सामाजिक समझौते की आलोचना एवं योगदान आदि टॉपिक पर चर्चा की गई है।
जॉन लॉक का सामाजिक समझौता सिद्धांत क्या है
जॉन लॉक (John Locke) इंग्लैंड का एक दार्शनिक था जिसने अपने सिद्धांत का प्रतिपादन 1690 में प्रकाशित पुस्तक ‘Two Treaties on Government’ में किया है। इस पुस्तक के प्रकाशन के 2 वर्ष पूर्व इंग्लैंड में गौरवपूर्ण क्रांति (Glorious Revolution) हो चुकी थी, जिसके द्वारा राजा के विरुद्ध पार्लियामेंट की अंतिम सत्ता को स्वीकार कर लिया गया था। लॉक (Locke) ने अपनी पुस्तक में इन परिस्थितियों का स्वागत करते हुए सीमित या वैज्ञानिक राजतंत्र का प्रतिपादन किया।
लॉक (Locke) ने अपना संविदा सिद्धांत (Contract Theory) में राजा-संसद विवाद में संसद का पक्ष पोषण किया। उसने सन 1688 ईसवी की इंग्लैंड की गौरवशाली क्रांति (Glorious Revolution) का सैद्धांतिक समर्थन प्रस्तुत किया जिसके दौरान संसद ने चार्ल्स द्वितीय को अपदस्थ करके विलियम्स और मेरी को इंग्लैंड का शासक नियुक्त किया था।
लॉक अपने विचारों द्वारा यह सिद्ध करना चाहता था कि सरकार समाज के अधीन है और यदि सरकार उन हितों की पूर्ति नहीं करती जिसके लिए उसकी स्थापना की गई है तो समाज को उसे अपदस्थ करने का अधिकार है। लॉक सीमित सरकार (Limited Government) तथा संवैधानिक राजतंत्र (Constitutional Monarchy) का समर्थक है।
मानव स्वभाव (Human Nature)
लॉक के अनुसार मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है, वह मूल रूप से अच्छा, विवेकशील, शांतिप्रिय, नैतिक तथा नियमों का पालन करने वाला है, फलतः उसमें प्रेम, सहानुभूति, सहयोग एवं दया की भावनाएं विद्यमान थी। वह शांतिप्रिय एवं नैतिक है तथा मनुष्य के आपसी संबंध उसी प्रकार प्रेम प्रधान है, जिस प्रकार माता पिता और बच्चों के। लॉक के मानव स्वभाव संबंधी विचार Essay on Human Understanding में दिए हैं। इच्छा सभी कार्यों की जननी है। उसके अनुसार जो आनंद उत्पन्न करने में समर्थ है उसे अच्छा तथा जो बुरा उत्पन्न करने मे सक्षम है उसे बुरा कहा। इसे ही ‘मनोवैज्ञानिक अहंवादी प्रयोगवाद’ कहा गया।
मनुष्य को स्वभाविक रूप से अच्छा और विवेकशील प्राणी मानते हुए लॉक कहता है कि विवेकपूर्ण होने के कारण ही वे स्वेच्छापूर्वक नैतिक व्यवस्था को स्वीकार कर उसके अनुसार जीवन व्यतीत करना अपना परम कर्तव्य समझता है।
लॉक के मत में इस दृष्टिकोण के अनुसार प्रत्येक मनुष्य दुख से बचना और सुख प्राप्त करना चाहता है। यही सुख प्राप्त करने की लिप्सा ही राज्य निर्माण हेतु मनुष्य द्वारा किए जाने वाले सामाजिक समझौते (Social Contract) का आधार है।
लोक द्वारा मनुष्य को अच्छा और सद्भावनापूर्ण बनाने के पीछे 3 प्रमुख कारण उत्तरदायी रहे :
- लॉक के पिता का मित्रवत व्यवहार
- जीवन पर्यंत उसके साथ मित्रों का सद्भावना पूर्ण संबंध
- 1688 में इंग्लैंड में हुई रक्तहीन क्रांति (गौरवपूर्ण क्रांति) जिसके द्वारा शांतिपूर्ण तरीके से बिना रक्तपात किए सत्ता में परिवर्तन कर दिया गया।
प्राकृतिक अवस्था (Natural State)
मानव स्वभाव की इस सामाजिकता के कारण प्राकृतिक अवस्था संघर्ष की अवस्था नहीं हो सकती थी, वह तो सदिच्छा, सहयोग और सुरक्षा की व्यवस्था थी।
लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था नियमविहीन नहीं थी और उसके अंतर्गत यह नियम प्रचलित था “तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा व्यवहार तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो” (Do unto others as you want others to do unto you.)
प्राकृतिक अवस्था में मनुष्यों को प्राकृतिक अधिकार (Natural Right) प्राप्त थे और प्रत्येक व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के अधिकारों का आदर करता था। इसमें मुख्य अधिकार जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के थे।
सभी अपने अधिकारों का उपयोग इस प्रकार करते थे जिससे कि दूसरों के अधिकार में कोई बाधा न पड़े। इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था पूरी तरह नैतिक, सामाजिक एवं कर्तव्य बोध की अवस्था थी।
समझौते के कारण
इस आदर्श प्राकृतिक अवस्था में कालांतर में व्यक्तियों को कुछ ऐसी असुविधाएं अनुभव हुई कि इन असुविधाओं को दूर करने के लिए व्यक्तियों ने प्राकृतिक अवस्था का त्याग करना उचित समझा।
लॉक के अनुसार यह सुविधाएं निम्नलिखित थी –
- प्राकृतिक नियमों (Natural Rules) की कोई स्पष्ट व्यवस्था नहीं थी।
- इन नियमों की व्याख्या करने के लिए कोई योग्य सभा नहीं थी।
- इन नियमों को मनवाने के लिए कोई शक्ति नहीं थी।
लॉक के मतानुसार कालानंतर में नैतिकता के नियमों की अवहेलना कर मनुष्य ने एक दूसरे के अधिकारों से हनन करना प्रारंभ कर दिया और तब इस दोष के निराकरण के लिए तथा असुविधा से बचने के लिए मनुष्य नागरिक समाज (Civil Society) की स्थापना को प्रेरित हुए।
लॉक के अनुसार चूंंकी प्राकृतिक अवस्था का संचालन प्राकृतिक नियमों के माध्यम से होता था इसलिए मनुष्य को इन प्राकृतिक नियमों के अनुसार ही तीन प्रकार के प्राकृतिक अधिकार (Natural Right) प्राप्त थे :
- जीवन का अधिकार (Right to Life)
- स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
- संपत्ति का अधिकार।
लॉक के अनुसार प्राकृतिक अधिकारों की रक्षा के लिए ही मनुष्य नागरिक समाज (Civil Society) की कल्पना हेतु प्रेरित हुए। प्राकृतिक अवस्था में विद्यमान विभिन्न असुविधाओं को दूर करने हेतु मनुष्य ने आपस में एक समझौता किया। यह समझौता प्राकृतिक अवस्था में सब व्यक्तियों ने मिलकर सब व्यक्तियों के साथ किया जिससे समाज और राज्य की उत्पत्ति हुई।
लॉक का सामाजिक समझौता
हॉब्स के सामाजिक समझौते सिद्धांत के अंतर्गत राज्य का निर्माण करने के लिए केवल एक ही समझौता किया गया, परंतु लॉक के वर्णन में ऐसा प्रतीत होता है कि दो समझौते किए गए।
पहले समझौते द्वारा प्राकृतिक अवस्था का अंत करके समाज की स्थापना की गई। इसी समझौते का उद्देश्य व्यक्तियों के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा है।
पहले समझौते के बाद शासक और शासित के मध्य एक दूसरा समझौता संपन्न हुआ, जिसमें शासित वर्ग के द्वारा शासक को कानून बनाने, उनकी व्याख्या करने और उन्हें लागू करने का अधिकार दिया जाता है। परंतु शासक की शक्ति पर यह प्रतिबंध लगा दिया गया कि उसके द्वारा निर्मित कानून अनिवार्य रूप से प्राकृतिक नियमों के अनुकूल और अनुरूप होंगे तथा वे जनता के हित में ही होंगे।
इस प्रकार लॉक एक सामाजिक (Social) और दूसरा राजनीतिक (Political) समझौता करता है। लॉक अपने सामाजिक अनुबंधन (Social Contract) में हॉब्स (Hobbes) की अपेक्षा रूसो (Rousseau) के अधिक निकट है।
लॉक के अनुसार सामाजिक समझौते के अंतर्गत व्यक्ति अपने अधिकार लेवियाथन (Leviathan) जैसे किसी महादैत्य को सौंपने के बजाय समष्टि रूप में संपूर्ण समुदाय को समर्पित करते हैं।
इस तरह राज्य की प्रभुसत्ता (Sovereignty) पूर्ण या असीम नहीं होती बल्कि शर्तों से बंधी होती है। सत्ताधारी शासक मनुष्योंं में हुए सामाजिक समझौते का ही एक अंग है इसलिए लॉक कहता है कि अगर शासक अपने अधिकारों और प्राकृतिक नियमों का अतिक्रमण करता है तो जनता उसके विरुद्ध विद्रोह कर सकती है।
अतः लॉक का समाज दासता का पक्ष नहीं वरन स्वतंत्रता का घोषणा पत्र है। लॉक ने समाज की स्थापना और सरकार की स्थापना में अंतर किया है। समाज की स्थापना एक सामाजिक क्रिया है जो सामाजिक जीवन (Social Life) के अस्तित्व का मूल कारण है। सरकार की स्थापना सोच विचारकर सहमति से निश्चित उद्देश्य की पूर्ति हेतु की जाती है।
अतः उसने सरकार की स्थापना एक ट्रस्ट (Trust) के रूप में की है। वाहन के अनुसार यद्यपि लोक ने स्पष्ट नहीं किया फिर भी वह दो प्रकार का समझौता मानता है। पहला समझौता प्राकृतिक अवस्था को समाप्त करके उसके स्थान पर नागरिक समाज (Civil Society) की स्थापना करता है।
इस समझौते के संपन्न होने के पश्चात दूसरे समझौते के द्वारा व्यक्ति राज्य (State) का निर्माण करते हैं। जिसके द्वारा मूल समझौते में स्वीकार की गई शर्तों को कार्य रूप में परिवर्तित करने के लिए एक शासन व्यवस्था स्थापित की जाती है।
लॉक के मतानुसार सरकार की स्थापना हेतु सहमति आवश्यक है और इस तरह लॉक ने संंवैधानिक शासन के विचार को बढ़ावा दिया।
नवीन राज्य का स्वरूप
लॉक के सामाजिक समझौता सिद्धांत (Social Contract Theory) के अंतर्गत शासक और शासित के मध्य जो समझौता संपन्न हुआ है उससे यह स्पष्ट है कि सरकार स्वयं एक लक्ष्य नहीं वरन एक लक्ष्य की प्राप्ति का साधन मात्र है और वह लक्ष्य है शांति और व्यवस्था स्थापित करना और जनकल्याण।
लॉक इस विचार का प्रतिपादन करता है कि यदि सरकार अपने उद्देश्य में असफल हो जाती है तो समाज को इस प्रकार की सरकार के स्थान पर दूसरी सरकार स्थापित करने का पूर्ण अधिकार है।
इस प्रकार लॉक के द्वारा एक ऐसी शासन व्यवस्था का समर्थन किया गया जिसमें वास्तविक एवं अंतिम शक्ति जनता में निहित होती है और सरकार का अस्तित्व तथा रूप जनता की इच्छा पर निर्भर करता है। ‘राज्य सीमित है पूर्ण नहीं’ उसके अनुसार नागरिक नियम प्राकृतिक नियम का ही अंग है। दोनों में संघर्ष हो सकता है। प्राकृतिक नियम राज्य के आंतरिक और बाह्य दोनों क्षेत्रों में लागू रहता है।
इस प्रकार लॉक का राज्य एक नकारात्मक राज्य है। लॉक ने स्पष्ट रूप से संवैधानिक राज्य (Constitutional State), बहुमत का राज्य व प्रतिनिधि शासन के विचार दिए जो का राज्य में प्रतिनिधि शासन के विचार दिए जो उदारवाद का आधार है। अतः लॉक को आधुनिक उदारवाद (Liberalism) का जनक माना जाता है।
लॉक ने प्रभुसत्ता को विभाजित माना है। लॉक के अनुसार राज्य सता व्यक्तियों तथा राजा में बंटी हुई है। लॉक के राज्य का संचालन निश्चित कानूनों के अनुसार होता है। लॉक के अनुसार कानून के शासन के अंतर्गत ही नागरिकों की राजनीतिक स्वतंत्रता (Political Freedom) सुरक्षित रहती है।
समझौते के उपरांत उत्पन्न राज्य सत्ता को सर्वोच्च शक्ति माना परंतु उनके लिए संप्रभुता (Sovereignty) शब्द का प्रयोग नहीं किया। लॉक सर्वोच्च सत्ता (सरकार में निहित होते हुए भी) सत्ता में निहित रहती है। जबकि रूसो इसे जनता की अविभाज्य सर्वोच्च सत्ता के नाम से पुकारता है।
लॉक के सामाजिक समझौते सिद्धांत की आलोचना
(1) प्राकृतिक अवस्था का चित्रण अवास्तविक : लॉक का प्राकृतिक अवस्था का चित्रण हॉब्स से भी अधिक वास्तविकता से दूर है। प्रारंभिक जन समुदाय कभी भी इतना सामाजिक, शांत और नैतिक नहीं रहा, जितना कि लॉक के द्वारा समझा गया है। लॉक के समान प्राकृतिक अवस्था को आदर्श नहीं माना जा सकता और यदि प्राकृतिक अवस्था ऐसी ही आदर्श थी तो फिर राज्य के निर्माण की आवश्यकता ही क्या थी।
(2) निरंतर क्रांति की आशंका : लॉक ने कहा कि यदि सरकार जनहित के विरुद्ध कार्य करें तो जनता के द्वारा विद्रोह करते हुए सरकार को पदच्युत किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त जनता को ही सरकार के कार्यों की जांच और निर्णय का अधिकार दे दिया गया है। ऐसी स्थिति में लॉक का दर्शन जनता के लिए विद्रोह का लाइसेंस बन जाता है और सरकार के पास उसकी रक्षा के कोई साधन नहीं रहते।
(3) कानूनी राजसत्ता को महत्व नहीं है : लॉक की एक गंभीर त्रुटि यह है कि उसने कानूनी राजसत्ता को कोई महत्व नहीं दिया। इस संबंध में गिलक्राइस्ट ने ठीक ही लिखा है, “हॉब्स (Hobbes) ने राजनीतिक सत्ता को अस्विकार करते हुए कानूनी राजसत्ता का प्रतिपादन किया है। लॉक ने अपने राजनीतिक राजसत्ता की शक्ति को स्वीकार किया है पर कानूनी राजसत्ता को मान्यता नहीं दी है।”
(4) प्राकृतिक अधिकारों की धारणा गलत : लॉक ने प्राकृतिक अवस्था में अधिकारों के अस्तित्व की बात कही है किंतु बिना समाज के अधिकारों की बात करना कोरी कल्पना है। अधिकार समाज में ही अस्तित्व ग्रहण करते हैं।
लॉक के सामाजिक समझौते सिद्धांत का योगदान
लॉक द्वारा प्रतिपादित जीवन, स्वतंत्रता, संपत्ति के अधिकारों का सिद्धांत आज भी सर्वमान्य है और आधुनिक लोकतंत्र का मूल आधार है।
लॉक का प्रमुख योगदान प्रभुसता के सिद्धांत (Theory of Sovereignty) के रूप में है जिसके आधार पर उसने कहा कि प्रभुसत्ता शासक मे नहीं जनता में निहित होती है। लॉक ने राजा के शासन करने के दैवी अधिकार का प्रबल खंडन करते हुए संविधानवाद (Constitutionism) का सिद्धांत प्रस्तुत किया।
मैक्सी के अनुसार, ‘लॉक सबसे पहला व्यक्ति था जिसने इतने स्पष्ट और शक्तिशाली ढंग से इस सिद्धांत का समर्थन किया और यह कहा कि अगर शासन जनता की सहमति पर आधारित न हो तो वह अवैद्यानिक है।
डनिंग, “राजनीतिक सिद्धांतों को लॉक का सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान उसका प्राकृतिक अधिकारों (Natural Rights) का सिद्धांत है।”
Also Read :
- हॉब्स का सामाजिक समझौता सिद्धांत
- रूसो का सामाजिक समझौता सिद्धांत
- रूसो की सामान्य इच्छा के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
जॉन लॉक के अनुसार प्राकृतिक अधिकार कौन कौन से हैं?
उत्तर : लॉक के अनुसार चूंंकी प्राकृतिक अवस्था का संचालन प्राकृतिक नियमों के माध्यम से होता था इसलिए मनुष्य को इन प्राकृतिक नियमों के अनुसार ही तीन प्रकार के प्राकृतिक अधिकार (Natural Rights) प्राप्त थे : 1. जीवन का अधिकार 2. स्वतंत्रता का अधिकार 3. संपत्ति का अधिकार।
जॉन लॉक को उदारवाद का जनक क्यों कहा जाता है?
उत्तर : लॉक का राज्य एक नकारात्मक राज्य है। लॉक ने स्पष्ट रूप से संवैधानिक राज्य (Constitutional State), बहुमत का राज्य व प्रतिनिधि शासन के विचार दिए जो का राज्य में प्रतिनिधि शासन के विचार दिए जो उदारवाद का आधार है। अतः लॉक को आधुनिक उदारवाद (Liberalism) का जनक माना जाता है।
जॉन लॉक द्वारा कौन सी पुस्तक में सामाजिक समझौते सिद्धांत का वर्णन किया गया है?
उत्तर : जॉन लॉक (John Locke) इंग्लैंड का एक दार्शनिक था जिसने अपने सामाजिक समझौते सिद्धांत का प्रतिपादन 1690 में प्रकाशित पुस्तक ‘Two Treaties on Government’ में किया है।
जॉन लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था में मनुष्य की क्या स्थिति थी?
उत्तर : लॉक के अनुसार प्राकृतिक अवस्था नियमविहीन नहीं थी और उसके अंतर्गत यह नियम प्रचलित था “तुम दूसरों के प्रति वैसा ही व्यवहार करो जैसा व्यवहार तुम दूसरों से अपने प्रति चाहते हो”
प्राकृतिक अवस्था में मनुष्यों को प्राकृतिक अधिकार प्राप्त थे। सभी अपने अधिकारों का उपयोग इस प्रकार करते थे जिससे कि दूसरों के अधिकार में कोई बाधा न पड़े। इस प्रकार प्राकृतिक अवस्था पूरी तरह नैतिक, सामाजिक एवं कर्तव्य बोध की अवस्था थी।