“क्रियात्मक अनुसंधान ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा शोधकर्ता अपने कार्यों एवं निर्णयों के निर्देशन संशोधन एवं मूल्यांकन की दृष्टि से अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने का प्रयास करता है।” – एस एम कोरे
“क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षकों, निरीक्षकों एवं प्रशासकों द्वारा अपने कार्यों एवं नियमों की गुणात्मक उन्नति के लिए प्रयोग किया जाने वाला अनुसंधान है।” – गुड
“क्रियात्मक अनुसंधान व अनुसंधान है जो एक व्यक्ति अपने उद्देश्यों को अधिक प्रभावशाली ढंग से प्राप्त करने के लिए करता है।” – Research In Education (NCERT)
• क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ
शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान एक नवीन प्रयोग है। विद्यालय के विभिन्न शैक्षणिक एवं सह शैक्षणिक क्रियाकलापों में सुधार के लिए इसका उपयोग किया जाता है।
शोधकर्ताओं द्वारा अपने व्यक्तिगत सुधार के लिए अपने कार्य प्रयोगों में शोध करते रहना ही क्रियात्मक अनुसंधान है। क्रियात्मक अनुसंधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा शोधकर्ता अपने कार्यों एवं निर्णयों के निर्देशन, संशोधन एवं मूल्यांकन की दृष्टि से अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने का प्रयास करता है।
क्रियात्मक अनुसंधान में शिक्षाकर्मी शिक्षण कार्य में सुधार लाने के लिए अपनी शैक्षिक समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से हल खोजने के लिए प्रमाण इकट्ठे करता है, प्रयोग और परीक्षण करता है और उनका मूल्यांकन करता है।
• क्रियात्मक अनुसंधान का इतिहास
क्रियात्मक अनुसंधान शब्द का प्रयोग द्वितीय विश्वयुद्ध के समय सर्वप्रथम कॉलियर ने किया। उनका मानना था कि जब तक उस कार्य से संबंधित व्यक्ति, जिसमें कि सुधार की आवश्यकता है, स्वयं अनुसंधान कार्य में भाग नहीं लेंगे तब तक उस कार्य में सुधार की आशा करना मात्र कल्पना होगा।
1946 में लेविन ने सामाजिक संबंधों की दिशा में सुधार करने के लिए क्रियात्मक अनुसंधान की प्रणाली पर बल दिया। राइटस्टोन ने पाठ्यक्रम ब्यूरो के कार्यों का विवरण देते समय ‘रिसर्च एक्शन’ शब्द का प्रयोग किया। ताबा, ब्रेडी तथा रॉबिंसन ने क्रियात्मक अनुसंधान का प्रयोग समस्या समाधान की एक विशिष्ट स्थिति के रूप में किया।
शिक्षा के क्षेत्र में क्रियात्मक अनुसंधान का विकास 1926 में माना जाता है। बंकिघम ने अपनी पुस्तक ‘रिसर्च फॉर टीचर्स’ में अध्यापकों के लिए अनुसंधान की आवश्यकता पर बल दिया। स्टीफन एम कोरे जो कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे, ने 1953 में क्रियात्मक अनुसंधान का शिक्षा की समस्याओं के लिए सर्वप्रथम प्रयोग किया। अतः स्टीफन एम कोरे को क्रियात्मक अनुसंधान के जनक या प्रवर्तक के रूप में देखा जा सकता है। एनसीईआरटी ने क्रियात्मक अनुसंधान के लिए 1962 में ‘रिसर्च इन एजुकेशन’ नामक पुस्तक प्रकाशित की।
• क्रियात्मक अनुसंधान के उद्देश्य
क्रियात्मक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य किसी विशिष्ट क्षेत्र के कार्यों में सुधार लाने के लिए ही समस्या समाधान प्राप्त करना होता है।
क्रियात्मक अनुसंधान का उद्देश्य मुख्यत: क्षेत्र विशेष में उत्पन्न समस्या के समाधान द्वारा कार्य विशेष में सुधार लाना होता है। क्रियात्मक अनुसंधान में व्यक्ति अपने क्षेत्र की समस्या जैसे – भाषा शिक्षक भाषा शिक्षण संबंधित क्षेत्र में ही समस्या का वस्तुनिष्ठ एवं क्रमबद्ध रूप से अध्ययन ही क्रियात्मक अनुसंधान का आधार है।
विद्यालय की कार्यप्रणाली में प्रगति एवं सुधार, विद्यालय में जनतंत्रिय वातावरण का विकास, विद्यालय प्रशासन तथा अन्य कार्यकर्ताओं में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास, शिक्षण प्रविधियों में सुधार तथा रोचक एवं उपयोगी पाठ्यक्रम का निर्माण करना, छात्रों में किशोर अपराध, पिछड़ापन तथा अनुशासनहीनता आदि समस्याओं का हल करना भी क्रियात्मक अनुसंधान का प्रमुख उद्देश्य है।
• क्रियात्मक अनुसंधान का क्षेत्र
क्रियात्मक अनुसंधान का कार्यक्षेत्र उस कार्य क्षेत्र से संबंधित समस्या तक ही सीमित रहता है जिसके समाधान द्वारा कार्य में सुधार लाना उद्देश्य होता है।
1. बालकों की आवश्यकताओं का अध्ययन
2. रुचियों का अध्ययन
3. अनुशासन संबंधित समस्याएं
4. सामाजिक समस्याएं
5. सीखने एवम सिखाने का सामाजिक वातावरण
6. शिक्षकों की समस्याएं
7. पाठ्यक्रम निर्माण संबंधी समस्याएं
8. कक्षा शिक्षण प्रविधियों में सुधार
9. शिक्षण अधिगम सहायक सामग्री की उपयोगिता
10. छात्रों की अनुपस्थिति, कक्षा में विलंब से आने, तथा विद्यालय से भागने की समस्याएं
11. भाषा शिक्षण में वाचन एवं वर्तनी संबंधी समस्याएं
12. परीक्षाओं में नकल करने की समस्या
13. विद्यालय प्रशासन की समस्याएं
• क्रियात्मक अनुसंधान की विशेषताएं
1. क्रियात्मक अनुसंधान के निर्णय केवल संबंधित विशिष्ट क्षेत्र में ही सार्थक सिद्ध होते हैं।
2. क्रियात्मक अनुसंधान में शिक्षक आवश्यकता एवं परिस्थिति के अनुसार अपनी क्रियाविधि अपनाता है।
3. क्रियात्मक अनुसंधान का क्षेत्र सीमित एवं स्थानीय होता है।
4. क्रियात्मक अनुसंधान में परिकल्पनाओं का प्रतिपादन कारणों के विश्लेषण पर आधारित होता है।
5. अध्यापक निर्मित परीक्षण एवं अन्य मानकीकृत परीक्षण का प्रयोग
6. कार्यविधि ही समस्या के समाधान का व्यवहारिक रूप होता है।
7. शिक्षक सफलता का स्वयं मूल्यांकन करता है।
8. शोधकर्ता का समस्या से प्रत्यक्ष संबंध होता है।
• क्रियात्मक अनुसंधान के सोपान
क्रियात्मक अनुसंधान करने के लिए निश्चित सोपान अथवा चरणों से गुजरना पड़ता है। एंडरसन ने क्रियात्मक अनुसंधान के 7 सोपान आवश्यक रूप से माने है।
एंडरसन के अनुसार क्रियात्मक अनुसंधान के 7 सोपान
1. समस्या का ज्ञान/पहचान करना
2. कार्य के प्रति प्रस्तावों पर विचार विमर्श
3. योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण
4. तथ्य संग्रह करने की विधियों का निर्माण
5. योजना का क्रियान्वयन एवं प्रमाण का संकलन
6. तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष
7. दूसरों को परिणामों की सूचना
1. समस्या क्षेत्र की पहचान
समस्या की पहचान एवं उसका चयन क्रियात्मक अनुसंधान का पहला चरण है। समस्या की स्पष्ट पहचान के बिना उस समस्या के समाधान की आवश्यकता का तीव्र अनुभव शोधकर्ता को नहीं होगा। समस्या विद्यालय के आंतरिक कार्यों से ही संबंधित होनी चाहिए ताकि उसका अध्ययन विद्यालय के भीतर ही हो सके।
समस्या क्षेत्र से शिक्षक का भली-भांति अवगत होना और उसमें उसकी वास्तविक रूचि का होना भी आवश्यक है। समस्या क्षेत्र से परिचित होना एवं उसके कार्य क्षेत्र में अनुभव होने के कारण शिक्षक उस समस्या की छानबीन करने की आवश्यकता का अनुभव करता है। ऐसी समस्या का चुनना और भी अच्छा होगा जिसमें कुछ और शिक्षक भी रुचि रखते हो जिसके सम्मिलित रूप से शोध कार्य हो सके।
2. विशिष्ट समस्या का चुनाव
समस्या के सीमांकन का अर्थ है – व्यापक समस्या क्षेत्र को सीमांकित करके एक निश्चित विशिष्ट समस्या को चुनना। उदाहरण के लिए वर्तनी की समस्या एक वृहद एवं व्यापक समस्या है और सभी कक्षा स्तरों पर व्याप्त है।
अतः शिक्षक शोधकर्ता किसी एक कक्षा अथवा उसके एक अनुभाग के छात्रों के लिए वर्तनी संबंधी समस्याओं में से एक विशिष्ट समस्या जैसे- श, ष, स से संबंधित वर्तनी त्रुटियों की समस्या सिमांकित करता है और उसी पर क्रियात्मक शोध करता है। इस प्रकार एक निश्चित विशेष समस्या चुनकर ही उसका वस्तुनिष्ठ एवं क्रमबद्ध रूप से अध्ययन किया जा सकता है।
3. समस्या के कारणों अथवा कठिनाइयों का निदान
समस्या चयन के बाद शोधकर्ता को प्रमाणों एवं साक्ष्यों के आधार पर समस्या के सभी कारणों का सही सही पता लगाना चाहिए। कारणों के इस निदान पर ही क्रियात्मक शोध की सफलता निर्भर करती है।
कारणों के विश्लेषण में ध्यान देने वाली मुख्य बातें हैं – समस्या के साथ उन कारणों का तर्कयुक्त संबंध हो, उन कारणों का परीक्षण हो सके, समस्या के साथ उसकी विशिष्टता स्पष्ट हो, वे वास्तविक एवं प्रमाणिक हो और उनका स्त्रोत भी ज्ञात हो।
4. क्रियात्मक संकल्पनाओं का निर्माण
समस्या के कारणों के विश्लेषण एवं निदान के बाद अगला चरण क्रियात्मक संकल्पना का निर्माण करना आता है। इसमें विशेष सावधानी की आवश्यकता है। इसका तात्पर्य है उन क्रियाओं के बारे में विचार करना जिसमें समस्या का निराकरण संभव हो। ये क्रियात्मक संकल्पनाएं अनुमानिक समाधान हैं। प्रयोग की कसौटी पर कसकर ही यह मालूम होगा कि वह कहां तक विश्वसनीय हैं।
5. कार्य योजना का निर्माण और उसका प्रयोग
क्रियात्मक संकल्पना के निर्माण के बाद शोधकर्ता कार्य योजना तैयार करता है और संकल्पना के आधार पर प्रयोग करता है। वह उस कार्य योजना को संपादित करने के लिए सभी परिस्थितियों पर विचार करता है जैसे – क्या तथ्यात्मक सामग्री आवश्यक है, उसे कैसे प्राप्त और एकत्र किया जाए, उन्हें एकत्र करने में कितना समय लगेगा, उन्हें एकत्र करने में अन्य कौन से उपकरण आवश्यक हैं आदि।
कार्य योजना में शोधकर्ता को यह भी ध्यान रखना पड़ता है कि उसके क्रियात्मक शोध से विद्यालय के शेष कार्यों में कोई बाधा नहीं पड़ेगी और वे पूर्ववत संपन्न होते रहेंगे।
6. क्रियात्मक संकल्पनाओं का परीक्षण एवं प्रमाणीकरण
क्रियात्मक संकल्पना के आधार पर निश्चित कार्य योजना के संपादन द्वारा यदि अभीष्ट लक्ष्य की प्राप्ति होती है तो उसे स्वीकार कर लिया जाता है अन्यथा उसे छोड़ दिया जाता है। कार्य संपादन करते समय आवश्यकतानुसार संकल्पना में सुधार या परिवर्तन भी किया जा सकता है। कार्य योजना यह पता लगाने के लिए कि किस सीमा तक लक्ष्य पूर्ति हुई है, तथ्यों एवं आंकड़ों को एकत्र करना। इसे संकल्पना को प्रमाणिक रीत करना कहते हैं।
शोधकर्ता का ध्यान सदा अपने लक्ष्य प्राप्ति की ओर रहता है अतः वह संकल्पनाओं की सार्थकता एवं उपयोगिताओं का पता लगाने के लिए अनेक परीक्षण विधियों का प्रयोग करता है। जैसे निरीक्षण, प्रश्नावली का प्रयोग, साक्षात्कार, परीक्षा पत्र, चेक लिस्ट, रेटिंग स्केल, सांख्यिकी विधियां आदि।
7. सामान्यीकरण और सामान्य सिद्धांतों का परवर्ती क्रियात्मक स्थितियों द्वारा परीक्षण।
क्रियात्मक अनुसंधान से प्राप्त निष्कर्षों को अन्य विद्यालयों या महाविद्यालयों तथा संस्थाओं पर लागू नहीं किया जा सकता है। इसमें सामान्यीकरण का अभाव पाया जाता है।
• क्रियात्मक अनुसंधान के उपकरण
1. न्यादर्श (Sampling) – न्यादर्श किसी भी अनुसंधानकर्ता के लिए यह संभव नहीं है कि पूरे विद्यालय के सभी बालकों को अपनी खोज का विषय बना सके। इसलिए विद्यालय में से वे कुछ ऐसी इकाईयों का चयन कर लेते हैं जो कि समग्र का प्रतिनिधितत्व करें और जिन पर किए गए अध्ययन के आधार पर समग्र के लिए निष्कर्ष निकाले जा सके। अध्ययन के लिए चयनित व्यक्तियों के ऐसे समूह को न्यादर्श कहते हैं।
गुड व हाट के अनुसार, ‘‘एक न्यादर्श जैसे कि नाम से स्पष्ट है कि एक विस्तृत समूह का अपेक्षाकृत छोटा प्रतिनिधि है।’’
2. अवलोकन
3. प्रश्नावली
4. साक्षात्कार
5. समाजमिति
6. मनोवैज्ञानिक परीक्षण
• क्रियात्मक अनुसंधान की सामान्य रूपरेखा
विषय – रा. बा. उच्च प्राथमिक विद्यालय चांदन, पंचायत समिति जैसलमेर की बालिकाओं द्वारा कक्षा आठवीं उत्तीर्ण से पूर्व बीच में पढ़ाई छोड़ने की समस्या एवं उसका समाधान
* शोध औचित्य –
1. बालिकाओं के अधूरी पढ़ाई छोड़ने के कारणों का पता लगाना
2. शिक्षा के प्रति बालिकाओं में अरुचि का पता लगाना
3. बालिकाओं के कम ठहराव की समस्या का पता लगाना
* उद्देश्य –
प्राथमिक कक्षाओं तक बालिकाएं नियमित रहती है लेकिन उच्च प्राथमिक कक्षाओं तक आते-आते वह ड्रॉप आउट होने के साथ एवं शिक्षा का स्तर गिरता है। बालिका शिक्षा बाधित होती है तथा भावी पीढ़ियों की भी शिक्षा योजना बाधित होती है। अतः बालिकाओं में उच्च शिक्षा के प्रति रुचि जागृत करना। बीच में पढ़ाई छोड़ने के कारणों का पता लगाना। इस क्रियात्मक शोध का उद्देश्य है।
* समस्या कथन –
रा. बा. उच्च प्राथमिक विद्यालय चांदन, पंचायत समिति जैसलमेर की बालिकाओं द्वारा कक्षा आठवीं उत्तीर्ण से पूर्व बीच में पढ़ाई छोड़ने की समस्या एवं समाधान।
* समस्या कारण –
1. बालिकाओं पर शिक्षण कार्य के अलावा घरेलू कार्यों की अधिकता
2. किशोर बालिकाओं के अभिभावकों में उसके प्रति असुरक्षा की भावना।
3. छात्राओं द्वारा अपने छोटे भाइयों बहनों की देखभाल के कारण विद्यालय आने का समय न निकाल पाना।
* परिकल्पना –
1. बालिका शिक्षा को बढ़ावा मिलेगा, बालिकाओं में उच्च शिक्षा के प्रति रुचि जागृत होगी।
2. अभिभावकों का बालिका शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण में बदलाव आएगा।
3. बालिकाओं के ठहराव की स्थिति सुनिश्चित होगी।
* शोध परीसर –
रा. बा. उच्च प्राथमिक विद्यालय चांदन, पंचायत समिति जैसलमेर की कक्षा 6 से 8 की बालिकाएं।
* न्यायदर्श – विद्यालय की कक्षा 6 की 3, कक्षा 7 की 5, कक्षा 8 की 6 अध्यनरत बालिकाएं।
* उपकरण – प्रस्तुत क्रियात्मक शोध को पूर्ण करने के लिए स्वनिर्मित प्रश्नावली का निर्माण कर प्रशासित किया गया व साक्षात्कार प्रविधि को अपनाया गया।
* सांख्यिकी एवं तकनीक – शोध हेतु दत्त विश्लेषण कार्य में औसत प्रतिशत था, सांख्यिकी प्रविधि का प्रयोग किया गया।
* दत्त संकलन एवं व्याख्या – प्रयुक्त प्रश्नावली व साक्षात्कार से प्राप्त आंकड़ों के आधार पर तथ्य सामने आए। विद्यालय की 14 बालिकाओं, 14 अभिभावकों, प्रधानाध्यापक सहित 2 शिक्षकों से प्रश्न पूछे गए।
* विश्लेषण – संस्था प्रधान ने बताया कि कक्षा 5 के बाद विद्यालय की बालिकाएं अनियमित रूप से आती है और वह आठवीं कक्षा तक आते-आते बिल्कुल ही आना बंद कर देती हैं। इसके व्यापक कारण निम्न है –
1. 70% अभिभावकों का मानना है कि बालिकाओं से घरेलू कार्य करवाया जाता है।
2. 50% महिला अभिभावकों ने बताया कि बालिकाएं अपने छोटे भाई बहनों को संभालने में, घरेलू कार्य में मेरा सहयोग करने के कारण विद्यालय नहीं जा पाती।
3. शिक्षिकाओं ने बताया कि बालिकाएं कक्षा में अनियमितता, गृह कार्य पूरा न करना आदि कारणों से 60% बालिकाएं पढ़ाई में पिछड़ जाती है व हींन भावना आ जाने के से विद्यालय छोड़ देती हैं।
4. 60% बालिकाओं ने बताया कि उन्हें घर पर रहना ही अच्छा लगता है। क्योंकि उनको पढ़ाई से ज्यादा घरेलू कार्यों में सहयोग अच्छा लगता है।
5. 50% अभिभावकों ने बताया कि उनके कहने के उपरांत भी विद्यालय नहीं जाती है। घरों के अन्य कार्यों में रुचि लेती है।
* निष्कर्ष – अभिभावक प्रश्नावली व शिक्षार्थी प्रश्नावली, साक्षात्कार के माध्यम से उनके उत्तरों का विश्लेषण करने के पश्चात निम्न निष्कर्ष निकाले गए –
1. अधिकांश बालिकाएं माता-पिता के साथ घरेलू कार्यों में सहयोग देती है।
2. अभिभावक असाक्षर होने के कारण बालिकाओं की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान नहीं दे पाते हैं।
3. बालिकाएं घर पर छोटे बच्चों का ध्यान रखती है इसलिए वे नियमित विद्यालय नहीं आती है।
4. महिला अभिभावकों की शिक्षण के प्रति उदासीनता बालिकाओं की पढ़ाई बीच में छोड़ने का मुख्य कारण है।
5. ग्रामीण क्षेत्र में होने के कारण लिंग भेदभाव भी एक कारण है। बालिका शिक्षा के प्रति गंभीर नहीं है। शिक्षकों का पर्याप्त मात्रा में नहीं होना।
* सुझाव – 1. लिंग भेदभाव की समस्या का अंत आवश्यक है जिससे बालिकाओं में भी शिक्षण में रुचि बढ़ेगी।
2. बालिकाओं के अभिभावकों से संपर्क कर उनको शिक्षण के महत्व को समझाया जाए।
3. शिक्षक अभिभावक परिषद की नियमित बैठकें करते हुए उक्त समस्या का समाधान किया जाए।
4. विद्यालय का माहौल आनंददाई व रूचि के अनुसार हस्त शिल्प, हस्त निर्मित गतिविधियों का आयोजन किया जाए।
5. शिक्षिकाओं द्वारा बालिकाओं तथा उनके अभिभावकों को समय-समय पर संपर्क कर शिक्षा के प्रति रुचि जागृत की जाएं।
* उपयोगिता – कक्षा 6 से 8 तक अनियमितता व ड्रॉपआउट की समस्या एवं उनका समाधान विषय पर अनुसंधान किया गया। जो मेरे विद्यालय की कक्षा 6 से 8 तक की बालिकाओं के लिए उपयोगी है। इसके माध्यम से विद्यार्थियों की अनियमितता की समस्या का पता लगाया गया एवं उसका समाधान किया जाएगा।
यह क्रियात्मक अनुसंधान ग्रामीण क्षेत्र की बालिकाओं, अन्य विद्यालयों, विद्यार्थियों व शिक्षार्थियों के लिए उपयोगी होगा। इस अनुसंधान से अभिभावकों की लैंगिक भेदभाव व बालिका शिक्षा के प्रति दृष्टिकोण में परिवर्तन आएगा। अंत में मेरे द्वारा किया गया यह क्रियात्मक शोध अनुसंधान अंतिम परिणाम नहीं है। अन्य अनुसंधानकर्ताओं के लिए आगे उपयोगी हो सकेगा।
यह भी पढ़ें –
• अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Q. 01 क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ क्या है ?
Ans. शोधकर्ताओं द्वारा अपने व्यक्तिगत सुधार के लिए अपने कार्य प्रयोगों में शोध करते रहना ही क्रियात्मक अनुसंधान है। क्रियात्मक अनुसंधान एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा शोधकर्ता अपने कार्यों एवं निर्णयों के निर्देशन, संशोधन एवं मूल्यांकन की दृष्टि से अपनी समस्याओं का वैज्ञानिक ढंग से अध्ययन करने का प्रयास करता है।
Q. 02 क्रियात्मक अनुसंधान के जनक कौन है ?
Ans. स्टीफन एम कोरे जो कोलंबिया विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थे, ने 1953 में क्रियात्मक अनुसंधान का शिक्षा की समस्याओं के लिए सर्वप्रथम प्रयोग किया। अतः स्टीफन एम कोरे को क्रियात्मक अनुसंधान के जनक या प्रवर्तक के रूप में देखा जा सकता है।
Q. 03 क्रियात्मक अनुसंधान का उद्देश्य क्या है ?
Ans. क्रियात्मक अनुसंधान का उद्देश्य मुख्यत: क्षेत्र विशेष में उत्पन्न समस्या के समाधान द्वारा कार्य विशेष में सुधार लाना होता है। क्रियात्मक अनुसंधान में व्यक्ति अपने क्षेत्र की समस्या जैसे – भाषा शिक्षक भाषा शिक्षण संबंधित क्षेत्र में ही समस्या का वस्तुनिष्ठ एवं क्रमबद्ध रूप से अध्ययन ही क्रियात्मक अनुसंधान का आधार है।
Q. 04 क्रियात्मक अनुसंधान के कितने सोपान है ?
Ans. क्रियात्मक अनुसंधान करने के लिए निश्चित सोपान अथवा चरणों से गुजरना पड़ता है। एंडरसन ने क्रियात्मक अनुसंधान के 7 सोपान आवश्यक रूप से माने है।
एंडरसन के अनुसार क्रियात्मक अनुसंधान के 7 सोपान
1. समस्या का ज्ञान
2. कार्य के प्रति प्रस्तावों पर विचार विमर्श
3. योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण
4. तथ्य संग्रह करने की विधियों का निर्माण
5. योजना का क्रियान्वयन एवं प्रमाण का संकलन
6. तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष
7. दूसरों को परिणामों की सूचना